Books - गौ संरक्षण एवं संवर्द्धन एक राष्ट्रीय कर्तव्य
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Language: HINDI
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गौ रक्षा एक अनिवार्य राष्ट्रीय कर्तव्य
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आर्षकालीन महामानवों ने गौ को माता कहकर पुकारा व कहा है ‘‘गाय सर्वश्रेष्ठ, पूज्यनीय एवं संसार का सबसे उत्तम प्राणी है।’’ सामान्यतया भारतीय समाज में गाय को सर्वाधिक मान्यता देने का कारण यही प्रतीत होता है कि उससे कृषि कार्य के लिए आवश्यक बछड़े, बैल तथा उच्च स्तर का खाद आदि प्राप्त होता है परन्तु यही कारण पर्याप्त नहीं है। एक अन्य कारण यह भी है कि उसके दूध में जो विशेषताएं पाई जाती हैं, वे इतनी अद्भुत हैं कि अन्य किसी भी पशु के दूध में नहीं पाई जाती। मां के दूध का एक मात्र विकल्प गाय का दूध है। नवजात शिशु जो किसी कारण वश मां का दूध नहीं पी पाते उनके लिए गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ है। प्रसिद्ध जीव विज्ञानी डॉ. एस.ए. पीपल्स ने अपने दीर्घकालीन शोध, प्रयोगों और परीक्षणों के बाद यह पाया है कि मनुष्य की प्रकृति के लिए गाय का दूध ही सबसे निरापद, पौष्टिक और संपूर्ण आहार है, जिसमें सभी जीवनदायी तत्व पाये जाते हैं। यदि कोई और आहार नहीं लिया जाए तथा केवल गाय के दूध का ही सेवन किया जाय तो व्यक्ति न केवल स्वस्थ, पुष्ट एवं सशक्त जीवन व्यतीत कर सकता है वरन् उसका स्वभाव भी सात्विक मानवोचित गुणों से ओत-प्रोत हो सकता है। डॉ. पीपल्स ने गौ दुग्ध पर किए गये परीक्षणों में यह भी पाया कि यदि गायें कोई विषैला पदार्थ खा जाती हैं तो भी उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता। उसके शरीर में सामान्य विषों को पचा जाने की अद्भुत क्षमता है। अन्य स्तन धारी जीव यदि विषाक्त आहार ग्रहण करते हैं तो उनके शरीर में वह विष जमा होता रहता है और मृत्यु का कारण बनता है। अधिक मात्रा में खा लिए जाने पर तो एक ही बार में मृत्यु हो जाती है। न्यूयार्क की विज्ञान ऐकेडेमी की एक बैठक में अन्य वैज्ञानिकों ने भी डॉ. पीपल्स के इस मत की पुष्टि की है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि जो दूध जितना चिकना होता है, उतना ही उत्कृष्ट होता है। वस्तुतः दूध का महत्व चिकनाई से नहीं, उसमें पाए जाने वाले खनिजों और लवणों से है। गौ-दुग्ध में ये खनिज, लवण, विटामिन तथा अन्य पोषक तत्व अन्य पशुओं के दूध की तुलना में अधिक व पूर्णतः संतुलित होते हैं। इसी कारण गाय को प्रधानता मिली है और उसका पालन धार्मिक तथा आर्थिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण माना गया है। भैंस के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन बड़ी कठिनाई से पचता है, जबकि गाय के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन सुपाच्य होता है। उसमें विटामिन ए., बी. और डी. की मात्रा अधिक रहती है। शरीर में सतत उत्पन्न होते रहने वाले टॉक्सिन्स और रोग जन्य विषों का निवारण करने वाले जो एनजाइम्स गाय के दूध में होते हैं वे भैंस के दूध में नहीं पाये जाते। पोषण और स्वास्थ्य की दृष्टि से अद्वितीय गौ दुग्ध के कारण गाय की महत्ता असंदिग्ध है ही, आर्थिक दृष्टि से भी वह कम उपयोगी नहीं है। यदि गौ-वंश की रक्षा नहीं की जा सकी तो बैलों के बिना खेती हमारे कृषि प्रधान देश में किस प्रकार होगी? बैलों को हटाकर ट्रैक्टरों के सहारे भारत का गरीब किसान अपनी छोटी जोतों की कृषि कैसे कर सकेगा? उन्हें जुटाने के लिए धन कहां से लाएगा? फिर छोटे देहातों में उन्हें चलाने वाले ड्राइवर और सुधारने वाले कारीगर कहां से उपलब्ध होंगे? फिर इन ट्रैक्टरों के लिए आज की परिस्थितियों में डीजल कहां से आयेगा? वे ट्रैक्टर गोबर तो देंगे नहीं फिर खाद की आवश्यकता कैसे पूरी होगी? इन सब तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए इसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है कि कृषि, अर्थ व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं धार्मिक हर दृष्टि से गायों को संरक्षण मिलना ही चाहिए।