Books - गौ संरक्षण एवं संवर्द्धन एक राष्ट्रीय कर्तव्य
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Language: HINDI
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गौ-दुग्ध पियें, सौ बरस जियें
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संसार के समस्त देशों में गाय की महत्ता उसके दूध के कारण है। गाय के दूध में जो भी अमृतोपम गुण हैं उनका वैज्ञानिक विशेषण तो अब से कुछ दिनों पूर्व ही किया गया है। किन्तु वैदिक युग तथा महाभारत काल में भी भारत में गाय और गौवंश की महत्ता और विशेषताओं का समुचित ज्ञान था। इसके लिए ऋग्वेद में स्थान-स्थान पर गौ वंश की रक्षा और गौ दुग्ध की विशेषताओं का वर्णन मिलता है। गौ के दूध, घृत और गोबर मूत्र का उपयोग औषधियों तथा यज्ञों के विधि-विधान में भी बताया जाता रहा है। इसीलिए गौ की महत्ता से भारतीय धर्मशास्त्र ओत-प्रोत हैं। गाय को देवोपम पूज्य मानकर उसकी पूजा और रक्षा तथा संवर्धन किया जाता है। महाभारतकार ने गौ स्तुति करते हुए लिखा है—
गावः श्रेष्ठा पवित्राश्च पावना जगदुत्तमाः । ऋते दधि घृताभ्यां च नेह यज्ञः प्रवर्तते ।। गावो लक्ष्म्याः सव मूलं गोषु पाप्मा न विद्यते । मातरः सर्वभूताना गावः सर्व सुख प्रदाः ।।
अर्थात् गौएं सर्वश्रेष्ठ, पवित्र, पूजनीय और संसार भर में उत्तम हैं। इनके घी, दूध, दही, और गव्य के बिना संसार में यज्ञ सम्पन्न नहीं होते। गौ में सदैव लक्ष्मी निवास करती है। गौ जहां रहती हैं वहां पाप निवास नहीं करते, ये प्राणिमात्र को सुख-सम्पदा से विभूषित करती रहती हैं। संसार भर के समुन्नत और प्रगतिशील कहे जाने वाले देशों में महाभारत के उपरोक्त कथन को चरितार्थ होते देखा जा सकता है। अमेरिका, रूस, डेनमार्क अथवा स्विट्जरलैण्ड—कोई भी प्रगतिशील देश हो, सभी गाय का समुचित पालन-पोषण करते हैं। अमृतोपम दूध, घी, मक्खन से भरपूर लाभ उठाते हैं। वहां न लक्ष्मी का अभाव है न बल पौरुष की कमी। गाय के दूध के सर्वोत्तम होने की बात संसार भर में एक मत से स्वीकार की जाती है। महर्षि सुश्रुत के शब्दों में गाय का दूध पवित्र, स्नायु वर्धक, शक्ति, ओज तथा शुक्राणु संवर्धक है। इसमें रोग निवारण की अद्भुत शक्ति है। यह सर्वांगपूर्ण आहार है। पाश्चात्य जगत् के आहार विशेषज्ञ शेरमैन भी यही दावा करते हैं कि गाय का दूध सर्वोत्तम और पूर्ण आहार है। इसमें वे सभी शक्तिवर्धक तत्व विद्यमान हैं जो मनुष्य के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने इसका प्रयोग भी अलग-अलग चूहों पर करके देखा। पांच सप्ताह तक एक चूहे को मात्र दूध पर, दूसरे को अन्न पर रक्खा गया। दूध अहारी का वजन पांच सप्ताह में अन्न आहार खाने वाले से दूना हो गया जब कि अन्न आहारी सुस्त पड़ा रहता और दूध आहार करने वाला और चुस्त हो गया। इसी प्रकार के विचार ब्रनियर ने व्यक्त किए हैं कि संसार की सुदृढ़ और बहादुर जातियों का सर्वोत्तम आहार दूध ही रहा है। दूध से दीर्घ आयु और निरोगता प्राप्त की जा सकती है, जबकि अन्नाहारी अपेक्षाकृत सुस्त, ठस्स और मन्द बुद्धि भी होते हैं। पाश्चात्य जगत के जितने भी इतिहासकार रहे हैं वे एक मत से स्वीकार करते हैं कि भारत में बसी जाति संसार भर की सर्वश्रेष्ठ, वीर और साहसी जाति थी जिसका मुख्य धन्धा पशु पालन, मुख्य आहार गौ-दुग्ध था। वे गौ दुग्ध पीकर सौ वर्ष तक जीवित बने रहते थे। गौदुग्ध के संबंध में धन्वन्तरि, निघण्टु, सुवर्णादि वर्ग में कहा गया है।
पथ्यं रसायनं वल्यंहृद्यं मेध्यं गवां पयः ।आयुष्यं पुस्त्वं कृद्धात रक्तपित्तविकारनुत ।।164।।
अर्थात्—गौ दुग्ध समस्त रोगों की अवस्था में पथ्य सेवन के लिए रसायन, बलकारक, हृदय दौर्बल्य में लाभकारी, बुद्धि, आयु, वीर्य वर्धक, वात, पित्त नाशक है। गौ दुग्ध की सबसे बड़ी विशेषता है कि जब रोगी को सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ के सेवन की मनाही कर दी जाती है तब भी चिकित्सक उसे गौ-दुग्ध सेवन का सत्परामर्श देकर स्वास्थ्य लाभ कराते हैं। चरक संहिता के अनुसार भी गौ दुग्ध, मधुर, मृदु, बहल, श्लक्ष्ण, पच्छिल, गुरु, मन्द, प्रसन्न दस गुणों वाला है। ओज के भी यही दस लक्षण हैं। सुश्रुत संहिता में गौ दुग्ध को मल शोधक, पाचक, चिकना, वीर्योत्पादक, बल, आयु, प्राण संवर्धक, अस्थिसंघ को सुदृढ़, सुनियोजित रखने वाला उत्तम रसायन बताया है, जो वात, पित्त विकारों का भी शमन करता है। इसके सेवन से जीर्ण ज्वर, भ्रम, मूर्छा, थकावट, तृष्णा, दाह, गुल्म, अफरा, रक्त पित्त, अतिसार, उदररोग, शूल, बवासीर और वृण जैसे भयंकर रोग दूर हो जाते हैं। दूध की उत्कृष्टता चिकनाई के भाग से मापने की भारी भ्रान्ति भारतीय जनमानस में घर कर गई है और इसी भुलावे में आकर गौ के स्थान पर भैंस पालन का प्रचलन आरम्भ हो गया है। जिससे भारत की आर्थिक दशा और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। चिकनाई को ही लिया जाय तब तो दूध की अपेक्षा मूंगफली, तिल, सरसों आदि में भी पर्याप्त चिकनाई उपलब्ध हो जाती है। किन्तु गाय के दूध में प्राप्त चिकनाई इस प्रकार सन्तुलित है कि मनुष्य शरीर के अनुकूल और पाचन क्रिया में सहायक तथा शारीरिक कलपुर्जों के लिए उत्तम स्निग्धता और सम्बल प्रदान करती है। दूध का महत्व चिकनाई से न होकर खनिज लवणों से हैं जिनकी मात्रा, उपयुक्तता और श्रेष्ठता के आधार पर वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि गाय दूध से उत्तम खनिज और लवण किसी अन्य पशु के दूध से उपलब्ध नहीं होते। गाय के दूध में 21 प्रकार के एमिनोएसिड, 11 प्रकार के फैटीएसिड, 6 प्रकार के विटामिन, 8 प्रकार के किण्व, 25 प्रकार के धातुज तत्व, 2 प्रकार की शुगर, 4 प्रकार के फास्फोरस योगिक, 19 प्रकार के नाइट्रोजन तत्व उपलब्ध हैं। गाय के दूध में मुख्य एन्जाइम इस प्रकार पाए जाते हैं—पेरिक्सिडेज, रिडक्टेज, लाइपेज, प्रोटिएज, लैक्टेज, फास्फेटेज, ओलिनेज, गैटालेज। दूध में पाए जाने वाले खनिज जैसे कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, तांबा, आयोडिन, मैगनीज, फ्लोरिन, सिलीकोन आदि मुख्य हैं। गाय के दूध में विटामिन ए, 1 कैरोटिन-डी. ई. टोकोफेराल, विटामिन बी. 1 थियामिन, बी. 2 रिवोफ्लेविन, बी, 3, बी. 4 तथा विटामिन सी. (एसकॉविक एसिड) के रूप में पाए जाते हैं। भारत में दूध को स्वास्थ्यवर्धक तो माना जाता है किन्तु किस प्रकार लेने और उपयोग करने पर वह स्वास्थ्यवर्धक है इसकी जानकारी जन साधारण को नहीं है। स्वास्थ्य के लिए प्रवाही अर्थात् तरल मात्रा में दूध का सेवन हितकर है, जिसके लेने से कैल्शियम 76.3 प्रतिशत मात्रा में उपलब्ध होता है, जबकि घी, खोया और दही और क्रीम में परिवर्तित करके उपयोग करने में मात्र 1 प्रतिशत कैल्शियम मिल पाता है। अपने देश में तरल दूध की खपत 36.2 प्रतिशत, घी में परिवर्तित कर 43.3 प्रतिशत, दही में 4.1 प्रतिशत और मावा में 9.1 प्रतिशत और मक्खन तथा क्रीम में 6.9 प्रतिशत उपयोग में लाया जाता है। गाय के दूध की अनेकों विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि जब अन्य स्रोतों से प्राप्त प्रोटीनें कठिनाई से हजम होती हैं वहां गाय के दूध से प्राप्त 97 प्रतिशत प्रोटीन भाग पाचन संस्थान पचा लेता है। दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शरीर में उत्पन्न होने वाला यूरिक एसिड जो मूत्र में जलन, दाह और बदबू उत्पन्न करता है, गाय के दूध के सेवन से अधिक मात्रा में नहीं बन पाता और शमन होता रहता है। गाय के दूध में ही यह विशेषता पाई जाती है कि इसमें रेडियोधर्मिता का प्रभाव नहीं होता। अन्य पशुओं के दूध में इसका प्रभाव प्रयोगों से सिद्ध हुआ है। गाय के 1 पौण्ड दूध में इतनी शक्ति होती है कि जितनी कि 4 अण्डों और 250 ग्राम मांस से प्राप्त नहीं होती। विकसित देशों में पशुओं की संख्या का अनुपात प्रति सौ मनुष्यों के पीछे न्यूजीलैण्ड में 281, अर्जेण्टाइना में 259, आस्ट्रेलिया में 191, डेनमार्क में 86 और भारत में मात्र 50 है। इसीलिए भारत में प्रति व्यक्ति दूध की दैनिक खपत का औसत जहां 8 औंस है वहां ब्रिटेन में 40 अमेरिका में 43 डेनमार्क में 45, स्वीडन में 60 न्यूजीलैण्ड में 56 औंस आता है। भारत का आर्थिक ढांचा ही पशु पालन और गौ-वंश पर निर्भर है, क्योंकि यहां की मुख्य आजीविका का स्रोत कृषि व्यवसाय है और मुख्य माध्यम बैल है जो गाय से प्राप्त होते हैं। भारत की छोटी-छोटी जोतों के लिए बैल से बढ़कर और कोई उपयुक्त साधन नहीं है। यह ऐसा सस्ता ट्रैक्टर है जो जुताई के साथ खाद भी उपलब्ध कराता है और बहुमुखी उपयोग में भी लाया जा सकता है। अतः उपरोक्त सभी लाभों, विशेषताओं और उपयोगिताओं को दृष्टिगत रखते हुए अन्य विकसित देशों के स्वास्थ्य और आर्थिक स्तर तक पहुंचने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि गौ वंश संवर्धन हेतु विशेष अभियान प्रयास चलाए जाने चाहिए, तभी राष्ट्र के स्वास्थ्य और आर्थिक दशा को सुधारा-संवारा जा सकता है।
गावः श्रेष्ठा पवित्राश्च पावना जगदुत्तमाः । ऋते दधि घृताभ्यां च नेह यज्ञः प्रवर्तते ।। गावो लक्ष्म्याः सव मूलं गोषु पाप्मा न विद्यते । मातरः सर्वभूताना गावः सर्व सुख प्रदाः ।।
अर्थात् गौएं सर्वश्रेष्ठ, पवित्र, पूजनीय और संसार भर में उत्तम हैं। इनके घी, दूध, दही, और गव्य के बिना संसार में यज्ञ सम्पन्न नहीं होते। गौ में सदैव लक्ष्मी निवास करती है। गौ जहां रहती हैं वहां पाप निवास नहीं करते, ये प्राणिमात्र को सुख-सम्पदा से विभूषित करती रहती हैं। संसार भर के समुन्नत और प्रगतिशील कहे जाने वाले देशों में महाभारत के उपरोक्त कथन को चरितार्थ होते देखा जा सकता है। अमेरिका, रूस, डेनमार्क अथवा स्विट्जरलैण्ड—कोई भी प्रगतिशील देश हो, सभी गाय का समुचित पालन-पोषण करते हैं। अमृतोपम दूध, घी, मक्खन से भरपूर लाभ उठाते हैं। वहां न लक्ष्मी का अभाव है न बल पौरुष की कमी। गाय के दूध के सर्वोत्तम होने की बात संसार भर में एक मत से स्वीकार की जाती है। महर्षि सुश्रुत के शब्दों में गाय का दूध पवित्र, स्नायु वर्धक, शक्ति, ओज तथा शुक्राणु संवर्धक है। इसमें रोग निवारण की अद्भुत शक्ति है। यह सर्वांगपूर्ण आहार है। पाश्चात्य जगत् के आहार विशेषज्ञ शेरमैन भी यही दावा करते हैं कि गाय का दूध सर्वोत्तम और पूर्ण आहार है। इसमें वे सभी शक्तिवर्धक तत्व विद्यमान हैं जो मनुष्य के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने इसका प्रयोग भी अलग-अलग चूहों पर करके देखा। पांच सप्ताह तक एक चूहे को मात्र दूध पर, दूसरे को अन्न पर रक्खा गया। दूध अहारी का वजन पांच सप्ताह में अन्न आहार खाने वाले से दूना हो गया जब कि अन्न आहारी सुस्त पड़ा रहता और दूध आहार करने वाला और चुस्त हो गया। इसी प्रकार के विचार ब्रनियर ने व्यक्त किए हैं कि संसार की सुदृढ़ और बहादुर जातियों का सर्वोत्तम आहार दूध ही रहा है। दूध से दीर्घ आयु और निरोगता प्राप्त की जा सकती है, जबकि अन्नाहारी अपेक्षाकृत सुस्त, ठस्स और मन्द बुद्धि भी होते हैं। पाश्चात्य जगत के जितने भी इतिहासकार रहे हैं वे एक मत से स्वीकार करते हैं कि भारत में बसी जाति संसार भर की सर्वश्रेष्ठ, वीर और साहसी जाति थी जिसका मुख्य धन्धा पशु पालन, मुख्य आहार गौ-दुग्ध था। वे गौ दुग्ध पीकर सौ वर्ष तक जीवित बने रहते थे। गौदुग्ध के संबंध में धन्वन्तरि, निघण्टु, सुवर्णादि वर्ग में कहा गया है।
पथ्यं रसायनं वल्यंहृद्यं मेध्यं गवां पयः ।आयुष्यं पुस्त्वं कृद्धात रक्तपित्तविकारनुत ।।164।।
अर्थात्—गौ दुग्ध समस्त रोगों की अवस्था में पथ्य सेवन के लिए रसायन, बलकारक, हृदय दौर्बल्य में लाभकारी, बुद्धि, आयु, वीर्य वर्धक, वात, पित्त नाशक है। गौ दुग्ध की सबसे बड़ी विशेषता है कि जब रोगी को सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ के सेवन की मनाही कर दी जाती है तब भी चिकित्सक उसे गौ-दुग्ध सेवन का सत्परामर्श देकर स्वास्थ्य लाभ कराते हैं। चरक संहिता के अनुसार भी गौ दुग्ध, मधुर, मृदु, बहल, श्लक्ष्ण, पच्छिल, गुरु, मन्द, प्रसन्न दस गुणों वाला है। ओज के भी यही दस लक्षण हैं। सुश्रुत संहिता में गौ दुग्ध को मल शोधक, पाचक, चिकना, वीर्योत्पादक, बल, आयु, प्राण संवर्धक, अस्थिसंघ को सुदृढ़, सुनियोजित रखने वाला उत्तम रसायन बताया है, जो वात, पित्त विकारों का भी शमन करता है। इसके सेवन से जीर्ण ज्वर, भ्रम, मूर्छा, थकावट, तृष्णा, दाह, गुल्म, अफरा, रक्त पित्त, अतिसार, उदररोग, शूल, बवासीर और वृण जैसे भयंकर रोग दूर हो जाते हैं। दूध की उत्कृष्टता चिकनाई के भाग से मापने की भारी भ्रान्ति भारतीय जनमानस में घर कर गई है और इसी भुलावे में आकर गौ के स्थान पर भैंस पालन का प्रचलन आरम्भ हो गया है। जिससे भारत की आर्थिक दशा और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। चिकनाई को ही लिया जाय तब तो दूध की अपेक्षा मूंगफली, तिल, सरसों आदि में भी पर्याप्त चिकनाई उपलब्ध हो जाती है। किन्तु गाय के दूध में प्राप्त चिकनाई इस प्रकार सन्तुलित है कि मनुष्य शरीर के अनुकूल और पाचन क्रिया में सहायक तथा शारीरिक कलपुर्जों के लिए उत्तम स्निग्धता और सम्बल प्रदान करती है। दूध का महत्व चिकनाई से न होकर खनिज लवणों से हैं जिनकी मात्रा, उपयुक्तता और श्रेष्ठता के आधार पर वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि गाय दूध से उत्तम खनिज और लवण किसी अन्य पशु के दूध से उपलब्ध नहीं होते। गाय के दूध में 21 प्रकार के एमिनोएसिड, 11 प्रकार के फैटीएसिड, 6 प्रकार के विटामिन, 8 प्रकार के किण्व, 25 प्रकार के धातुज तत्व, 2 प्रकार की शुगर, 4 प्रकार के फास्फोरस योगिक, 19 प्रकार के नाइट्रोजन तत्व उपलब्ध हैं। गाय के दूध में मुख्य एन्जाइम इस प्रकार पाए जाते हैं—पेरिक्सिडेज, रिडक्टेज, लाइपेज, प्रोटिएज, लैक्टेज, फास्फेटेज, ओलिनेज, गैटालेज। दूध में पाए जाने वाले खनिज जैसे कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, तांबा, आयोडिन, मैगनीज, फ्लोरिन, सिलीकोन आदि मुख्य हैं। गाय के दूध में विटामिन ए, 1 कैरोटिन-डी. ई. टोकोफेराल, विटामिन बी. 1 थियामिन, बी. 2 रिवोफ्लेविन, बी, 3, बी. 4 तथा विटामिन सी. (एसकॉविक एसिड) के रूप में पाए जाते हैं। भारत में दूध को स्वास्थ्यवर्धक तो माना जाता है किन्तु किस प्रकार लेने और उपयोग करने पर वह स्वास्थ्यवर्धक है इसकी जानकारी जन साधारण को नहीं है। स्वास्थ्य के लिए प्रवाही अर्थात् तरल मात्रा में दूध का सेवन हितकर है, जिसके लेने से कैल्शियम 76.3 प्रतिशत मात्रा में उपलब्ध होता है, जबकि घी, खोया और दही और क्रीम में परिवर्तित करके उपयोग करने में मात्र 1 प्रतिशत कैल्शियम मिल पाता है। अपने देश में तरल दूध की खपत 36.2 प्रतिशत, घी में परिवर्तित कर 43.3 प्रतिशत, दही में 4.1 प्रतिशत और मावा में 9.1 प्रतिशत और मक्खन तथा क्रीम में 6.9 प्रतिशत उपयोग में लाया जाता है। गाय के दूध की अनेकों विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि जब अन्य स्रोतों से प्राप्त प्रोटीनें कठिनाई से हजम होती हैं वहां गाय के दूध से प्राप्त 97 प्रतिशत प्रोटीन भाग पाचन संस्थान पचा लेता है। दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शरीर में उत्पन्न होने वाला यूरिक एसिड जो मूत्र में जलन, दाह और बदबू उत्पन्न करता है, गाय के दूध के सेवन से अधिक मात्रा में नहीं बन पाता और शमन होता रहता है। गाय के दूध में ही यह विशेषता पाई जाती है कि इसमें रेडियोधर्मिता का प्रभाव नहीं होता। अन्य पशुओं के दूध में इसका प्रभाव प्रयोगों से सिद्ध हुआ है। गाय के 1 पौण्ड दूध में इतनी शक्ति होती है कि जितनी कि 4 अण्डों और 250 ग्राम मांस से प्राप्त नहीं होती। विकसित देशों में पशुओं की संख्या का अनुपात प्रति सौ मनुष्यों के पीछे न्यूजीलैण्ड में 281, अर्जेण्टाइना में 259, आस्ट्रेलिया में 191, डेनमार्क में 86 और भारत में मात्र 50 है। इसीलिए भारत में प्रति व्यक्ति दूध की दैनिक खपत का औसत जहां 8 औंस है वहां ब्रिटेन में 40 अमेरिका में 43 डेनमार्क में 45, स्वीडन में 60 न्यूजीलैण्ड में 56 औंस आता है। भारत का आर्थिक ढांचा ही पशु पालन और गौ-वंश पर निर्भर है, क्योंकि यहां की मुख्य आजीविका का स्रोत कृषि व्यवसाय है और मुख्य माध्यम बैल है जो गाय से प्राप्त होते हैं। भारत की छोटी-छोटी जोतों के लिए बैल से बढ़कर और कोई उपयुक्त साधन नहीं है। यह ऐसा सस्ता ट्रैक्टर है जो जुताई के साथ खाद भी उपलब्ध कराता है और बहुमुखी उपयोग में भी लाया जा सकता है। अतः उपरोक्त सभी लाभों, विशेषताओं और उपयोगिताओं को दृष्टिगत रखते हुए अन्य विकसित देशों के स्वास्थ्य और आर्थिक स्तर तक पहुंचने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि गौ वंश संवर्धन हेतु विशेष अभियान प्रयास चलाए जाने चाहिए, तभी राष्ट्र के स्वास्थ्य और आर्थिक दशा को सुधारा-संवारा जा सकता है।