Books - गायत्री महाविद्या की उच्चस्तरीय साधना
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Language: HINDI
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गायत्री का पौराणिक पक्ष क्या है?
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अब मैं आपको चलिए यह समझाने की कोशिश करता हूँ कि गायत्री क्या है? पौराणिक कथाएँ हमारे सामने हैं। इनके माध्यम से हम आपको यह आसानी से समझा सकते हैं कि गायत्री माता क्या हो सकती हैं? एक पौराणिक कथा आती है राजा विश्वामित्र की। वे गुरु वसिष्ठ के आश्रम में गए। गुरु वसिष्ठ का आश्रम जंगल में था। छोटी सी, जरा सी झोपड़ी थी। अकेले में रहते थे, बिना किसी सामान के। कमण्डलु में खाना खा लेते थे और अपने वस्त्रों को बिछाकर गुजारा कर लेते थे। बड़े संतोषी ब्राह्मण थे। गुरु वसिष्ठ के आश्रम में संपन्न राजा विश्वामित्र गए। वे जंगल में किसी काम से सेना-समेत गए थे। उन्होंने आवश्यक समझा कि गुरु वसिष्ठ के पास चलें और प्रणाम कर आएँ। राजा विश्वामित्र प्रणाम करने गए। गुरु वसिष्ठ ने पूछा-दोपहरी में आप लोग यहाँ कैसे आए? महाराज जी! हम लोग रास्ता भूल गए हैं और सेना के साथ यहाँ पर आ पहुँचे। आप लोगों ने खाना भी नहीं खाया होगा। कहाँ पर खाना खाते, महाराज जी! यहाँ पर पात्र भी नहीं हैं, भोजन का सामान भी नहीं है। भोजन का सामान पीछे रह गया है। यहाँ पर भटक गए हैं, पानी मिल जाए वही बहुत है। वसिष्ठ ने कहा-हमारे यहाँ दरवाजे पर आप आए हैं। अत: आप हमारे अतिथि हुए इसलिए अतिथि का सत्कार करना, स्वागत करना हमारा कर्तव्य है। आप भूखे भी हैं और प्यासे भी हैं। हम चाहते हैं कि आपके भोजन का प्रबंध करें। अरे, महाराज जी अकेले से क्या फायदा, इतनी बड़ी सेना भी साथ है, इसके भोजन का आप प्रबंध जब तक नहीं करेंगे, तब तक बात कैसे बनेगी? अच्छा तो चलिए अभी हम करते हैं। उनके पास एक नंदिनी नाम की गाय थी। कामधेनु की बेटी नंदिनी। उन्होंने कहा-'' नंदिनी हजारों की संख्या में आए हुए हैं मेहमान। उनके भोजन का प्रबंध होना चाहिए। '' नंदिनी ने सिर हिला दिया, ठीक है अभी होता है। राजा से कहा गया कि आइए आप सबको भोजन करा ले जाइए। सब लोग बैठ गए।
पौराणिक खंड की यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई। मित्रो, कहानी में एक और बात शामिल होती है। जब सब लोगों ने भोजन कर लिया तब विश्वामित्र ने पूछा-महाराज जी ये सब आपने कहाँ से पाया? सामान तो था नहीं आपके पास, इतना दही, भोग, इतना चमत्कार, इतनी सिद्धि, इतना धन, इतनी विशेषताएँ कहाँ से पा लीं। उन्होंने इशारा किया नंदिनी की ओर। ये नंदिनी है। नंदिनी के पास सब कुछ है। यह कामधेनु है। इसकी छाया में बैठकर हर चीज प्राप्त हो जाती है। सभी कामनाओं को पूरा करती है, इसलिए इसे कामधेनु कहा गया है। विश्वामित्र ने कामधेनु को छीनना, हड़पना चाहा और बोले-'' '' यदि कामधेनु हमें मिल जाए तो कितना अच्छा हो। '' गुरु वसिष्ठ बहुत नाराज होते हैं, पौराणिक कथा के मुताबिक़। उन्होंने कहा-हमारी गाय को आप नहीं ले जा सकते। राजा विश्वामित्र ने कहा-हम आपकी गाय को अवश्य ले जाएँगे। अच्छा तो आप लेकर दिखाइए। विश्वामित्र गाय को जबरदस्ती लेने के लिए चले। तो गुरु वसिष्ठ ने नंदिनी को आज्ञा दी इन सबकी अक्ल ठिकाने कर दो। नंदिनी ने अपनी सींगों से मार मारकर सारी सेना को परास्त कर दिया। सेना भाग खड़ी हुई और राजा भी भाग खड़ा हुआ। विश्वामित्र ने इस धारणा पर विचार किया कि क्या गाय इतना धन और वैभव इकट्ठा कर सकती हे? एक गाय इतना युद्ध कर सकती है? यह गाय बड़ी जबरदस्त है। इस गाय को प्राप्त करने के लिए हमको प्रयत्न करना चाहिए। गुरु वसिष्ठ ने जिस तरह प्रयत्न किया तो, बस उसी तरह विश्वामित्र अपना राजपाट घर वालों को देकर के जंगल में आ गए और उसी नंदिनी की कृपा पाने के लिए प्रयत्न करने लगे। विश्वामित्र ने कहा-'धिक बलम् छत्रिय बलम् ब्रह्मतेजो बलम् बलम्'। भौतिक बल, सांसारिक बल जिसमें धन भी आता है, श्रम, समय भी आता है, रूप भी आता है; बुद्धिबल भी आता है, ये सारे के सारे हैं, जिनको हम भौतिक बल कहते हैं। धिक अर्थात छोटे हैं, नगण्य-नाचीज हैं। ब्रह्म तेजो बलम् बलम् अर्थात अगर कोई श्रेष्ठ बल है, तो वह है ब्रह्मबल, आत्मा का बल। इसे ही प्राप्त करना चाहिए।
सब गाथा खत्म हो गई। पौराणिक कहानी खत्म हो गई। क्या अर्थ निकला? प्राय: पौराणिक कहानियों को लोग इतिहास मान लेते हैं। गलती तो गलती है, मैं क्या कह सकता हूँ। वास्तव में यह अलंकार है। अलंकार की दृष्टि से ऋषियों ने बड़े महत्त्वपूर्ण विषयों को समझाने की कोशिश की है। सारे आर्ष ग्रंथों, अठारह पुराणों के मैंने भाष्य किए हैं। पुराणों को लोग इतिहास मान बैठते हैं और फिर यह कहते हैं कि पुराणों में गप्पें लिखी हैं। लेकिन बेटे पंचतंत्र की किताबों में भी गप्पें लिख रही हैं, जैसे कौवे से लोमड़ी ने कहा-अरे भाई साहब! गाना गा दीजिए। अच्छा तो मैं गाना गाता हूँ रोटी का टुकड़ा मुँह में से गिरा और लोमड़ी लेकर के भाग गई। क्यों साहब, लोमड़ी की बातचीत कौवा सुन सकता है? नहीं! तो क्या कौवे की बात-चीत लोमड़ी समझ सकती हैं? नहीं बेटे! ये झूठ नहीं है। बालकों को आकर्षक ढंग से, पहेली के ढंग से, प्रिय बुजुर्गों के ढंग से उनको महत्त्वपूर्ण बात समझा देती है, तो क्या हर्ज है। उसमें मनोरंजन भी रहता है, आकर्षण भी रहता है। इसी तरह का शिक्षण है पुराणों में। कोई क्या समझे, पुराणों में विचित्र कहानियाँ हैं। कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षण देने की कोशिश की है। बताने की कोशिश की है, बड़े महत्त्वपूर्ण विषयों को, जो साधारणत: समझ में नहीं आते हैं, कठिन विषयों, जटिल विषयों, फिलॉसफी को समझाने के लिए कथानकों का माध्यम लिया गया है। यह कथा जो मैं अभी अभी आपको सुना चुका हूँ इसका क्या अर्थ होता है? आत्मबल, आत्मशक्ति संसार की सबसे बड़ी शक्ति है। इसे प्राप्त करने के लिए गायत्री का, ऋतम्भरा प्रज्ञा का अवलंबन लेना होता है।
पौराणिक खंड की यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई। मित्रो, कहानी में एक और बात शामिल होती है। जब सब लोगों ने भोजन कर लिया तब विश्वामित्र ने पूछा-महाराज जी ये सब आपने कहाँ से पाया? सामान तो था नहीं आपके पास, इतना दही, भोग, इतना चमत्कार, इतनी सिद्धि, इतना धन, इतनी विशेषताएँ कहाँ से पा लीं। उन्होंने इशारा किया नंदिनी की ओर। ये नंदिनी है। नंदिनी के पास सब कुछ है। यह कामधेनु है। इसकी छाया में बैठकर हर चीज प्राप्त हो जाती है। सभी कामनाओं को पूरा करती है, इसलिए इसे कामधेनु कहा गया है। विश्वामित्र ने कामधेनु को छीनना, हड़पना चाहा और बोले-'' '' यदि कामधेनु हमें मिल जाए तो कितना अच्छा हो। '' गुरु वसिष्ठ बहुत नाराज होते हैं, पौराणिक कथा के मुताबिक़। उन्होंने कहा-हमारी गाय को आप नहीं ले जा सकते। राजा विश्वामित्र ने कहा-हम आपकी गाय को अवश्य ले जाएँगे। अच्छा तो आप लेकर दिखाइए। विश्वामित्र गाय को जबरदस्ती लेने के लिए चले। तो गुरु वसिष्ठ ने नंदिनी को आज्ञा दी इन सबकी अक्ल ठिकाने कर दो। नंदिनी ने अपनी सींगों से मार मारकर सारी सेना को परास्त कर दिया। सेना भाग खड़ी हुई और राजा भी भाग खड़ा हुआ। विश्वामित्र ने इस धारणा पर विचार किया कि क्या गाय इतना धन और वैभव इकट्ठा कर सकती हे? एक गाय इतना युद्ध कर सकती है? यह गाय बड़ी जबरदस्त है। इस गाय को प्राप्त करने के लिए हमको प्रयत्न करना चाहिए। गुरु वसिष्ठ ने जिस तरह प्रयत्न किया तो, बस उसी तरह विश्वामित्र अपना राजपाट घर वालों को देकर के जंगल में आ गए और उसी नंदिनी की कृपा पाने के लिए प्रयत्न करने लगे। विश्वामित्र ने कहा-'धिक बलम् छत्रिय बलम् ब्रह्मतेजो बलम् बलम्'। भौतिक बल, सांसारिक बल जिसमें धन भी आता है, श्रम, समय भी आता है, रूप भी आता है; बुद्धिबल भी आता है, ये सारे के सारे हैं, जिनको हम भौतिक बल कहते हैं। धिक अर्थात छोटे हैं, नगण्य-नाचीज हैं। ब्रह्म तेजो बलम् बलम् अर्थात अगर कोई श्रेष्ठ बल है, तो वह है ब्रह्मबल, आत्मा का बल। इसे ही प्राप्त करना चाहिए।
सब गाथा खत्म हो गई। पौराणिक कहानी खत्म हो गई। क्या अर्थ निकला? प्राय: पौराणिक कहानियों को लोग इतिहास मान लेते हैं। गलती तो गलती है, मैं क्या कह सकता हूँ। वास्तव में यह अलंकार है। अलंकार की दृष्टि से ऋषियों ने बड़े महत्त्वपूर्ण विषयों को समझाने की कोशिश की है। सारे आर्ष ग्रंथों, अठारह पुराणों के मैंने भाष्य किए हैं। पुराणों को लोग इतिहास मान बैठते हैं और फिर यह कहते हैं कि पुराणों में गप्पें लिखी हैं। लेकिन बेटे पंचतंत्र की किताबों में भी गप्पें लिख रही हैं, जैसे कौवे से लोमड़ी ने कहा-अरे भाई साहब! गाना गा दीजिए। अच्छा तो मैं गाना गाता हूँ रोटी का टुकड़ा मुँह में से गिरा और लोमड़ी लेकर के भाग गई। क्यों साहब, लोमड़ी की बातचीत कौवा सुन सकता है? नहीं! तो क्या कौवे की बात-चीत लोमड़ी समझ सकती हैं? नहीं बेटे! ये झूठ नहीं है। बालकों को आकर्षक ढंग से, पहेली के ढंग से, प्रिय बुजुर्गों के ढंग से उनको महत्त्वपूर्ण बात समझा देती है, तो क्या हर्ज है। उसमें मनोरंजन भी रहता है, आकर्षण भी रहता है। इसी तरह का शिक्षण है पुराणों में। कोई क्या समझे, पुराणों में विचित्र कहानियाँ हैं। कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षण देने की कोशिश की है। बताने की कोशिश की है, बड़े महत्त्वपूर्ण विषयों को, जो साधारणत: समझ में नहीं आते हैं, कठिन विषयों, जटिल विषयों, फिलॉसफी को समझाने के लिए कथानकों का माध्यम लिया गया है। यह कथा जो मैं अभी अभी आपको सुना चुका हूँ इसका क्या अर्थ होता है? आत्मबल, आत्मशक्ति संसार की सबसे बड़ी शक्ति है। इसे प्राप्त करने के लिए गायत्री का, ऋतम्भरा प्रज्ञा का अवलंबन लेना होता है।