Books - गायत्री महाविद्या की उच्चस्तरीय साधना
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Language: HINDI
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गायत्री है ऋतम्भरा प्रज्ञा
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गायत्री का ही दूसरा नाम ऋतम्भरा प्रज्ञा है। ऋतम्भरा प्रज्ञा, इसका नाम गायत्री है। कितनी शिक्षाएँ इसमें हैं? नंदिनी की तरह यह भी काम कर सकती है। एक काम यह कर सकती है-जो पाप, ताप, शोक संताप, कष्ट और अभाव हमारे जीवन में हैं, उन्हें यह उसी तरह सींगों से मारकर भगा सकती है जैसे कि विश्वामित्र और उनकी सेना को जो गुरु वसिष्ठ को हैरान करने और नंदिनी को हैरान करने के लिए आए थे, तो नंदिनी ने उनको मार गिराया और सफाया कर दिया था। इसी तरीके से अपने जीवन की मौलिक कठिनाइयों और बाधाएँ जो हमको रास्ते पर चलने में रुकावट डालती है, उन सारी की सारी कठिनाइयों को, हमारी भ्रामक मनःस्थितियों को, भ्रामक यश-लिप्सा को ऋतम्भरा प्रज्ञा मारकर भगा सकती है। इस कहानी का यही अर्थ है कि यह मनुष्य की भौतिक और आत्मिक सफलताओं का द्वार खोल सकती है। अब आप आध्यात्मिकता की ताकत को देने:, जो दुनिया की सबसे खड़ी ताकत है, इनके मुकाबले दुनिया के परदे पर कोई नहीं है, क्योंकि ये चेतना की ताकत है। जड़ की ताकत सीमित है जड़ क्या है? जड़ हमारा शरीर है? जड़ क्या है? जड़ हमारा पैसा है। जड़ क्या है? जड़ हमारा व्यापार है। दिमाग भी हमारा जड़ पदार्थ का बना है, जिसे ज्ञानेंद्रिय कहा जाता है ये भी जड़ है। पदार्थ की सीमा हैं। पैसे की शक्ति बुद्धि की शक्ति सब शक्तियाँ जड़ हैं। जड़ के द्वारा जो फायदा मिल सकता है; चेतना के द्वारा उससे हजारों गुना फायदा हो सकता है; लाखों गुना ज्यादा फायदा हो सकता है चेतना की शक्ति अगर हमारे पास हो, जिसे हम ब्रह्मबल कहते हैं और आत्मबल कहते हैं, तो फिर उसका कहना ही क्या?
मित्रो! मैं कहानी का अर्थ समझाना चाहूँगा आपको, ताकि गायत्री की परिभाषा समझ में आ जाए कि गायत्री क्या हो सकती है एवं क्यों इसका दूसरा नाम ऋतम्भरा प्रज्ञा है। एक कहानी सावित्री और सत्यवान की है। एक लड़की बड़ी रूपवती, बड़ी कुलवती, बड़ी सुंदर, ऐसी सुंदर जिसकी ख्याति संसार भर में फैल गई। सभी राजकुमार उसे देखकर यही कहते कि यह तो बड़ी सुंदर राजकुमारी है। यदि वह हमको मिल जाती तो अच्छा होता। लड़की के पिता के सामने सभी राजकुमार हाथ पसारने लगे और कहने लगे कि इसे हमको दीजिए। लड़की ने अपने पिता से कहा कि हमको अपनी मरजी का दूल्हा चुनने दीजिए। अच्छा तो आप चुन लें। ठीक है। रथ पर सवार होकर सेना को साथ लेकर सावित्री रवाना हुई। रवाना होते-होते वह सारे देशों के राजकुमारों से मिली और यह पता लगाया कि हमारे लिए कोई दूल्हा है क्या? कोई भी दूल्हा उसको पसंद नहीं आया। जंगल में एक दिन निकलकर जा रही थी सावित्री रथ समेत। उसने एक लड़के को देखा। वह एक लकड़हारा था। लकड़हारा बड़ा तेजस्वी मालूम पड़ता था और चेहरे पर उसके यशस्विता भी टपक रही थी। दृढ़ निश्चय भी टपक रहा था। सावित्री ने उसको रोका और पूछा लकड़हारे तुम कौन हो और कैसे हो? उसने कहा लकड़हारा तो इस समय पर हूँ पर पहले लकड़हारा नहीं था। हमारे माता पिता अंधे हो गए हैं। यहाँ जंगल में जाकर तप करते हैं उन्हीं की रक्षा करने के लिए हमने यह आवश्यक समझा कि उनको भोजन कराने से लेकर के सेवा करने तक के लिए हमको कुछ काम करना चाहिए और जिम्मेदारी को निभाना चाहिए। इस जंगल में और तो कोई पेशा है नहीं, लकड़ी काटकर ले जाते हैं और गाँव में बेच देते हैं, पैसे लाते हैं और उनका सामान खरीदकर लाते हैं। माता पिता को रोटी खिलाते हैं, सेवा करते हैं। आपने अपने भविष्य के बारे में क्या सोचा है? भविष्य के बारे में, क्या शादी नहीं करना चाहते। अभी हमारे माता पिता का कर्ज हमारे ऊपर रखा हुआ है, अभी हम शादी कैसे कर सकते हैं? सावित्री ने कहा तुम कुछ और नहीं कर सकते क्या? पैसा नहीं कमा सकते? पैसे कमा करके हम क्या करेंगे? कर्तव्यों का वजन हमारे ऊपर रखा है। पहले कर्तव्यों का वजन तो कम कर लें, तब संपत्तिवान बनने की बात सोची जाएगी या शादी करने की बात देखी जाएगी। अपनी सुविधा की बात बहुत पीछे की है। पहले तो वह करेंगे जो हमारे ऊपर कर्ज के रूप में विद्यमान है, इसलिए माता-पिता, जिन्होंने हमारे शरीर का पालन किया, पहला काम उनकी सेवा का करेंगे, इसके बाद और बातों को देखेंगे। पढ़ना होगा तो पीछे पढ़ेंगे। नौकरी करनी होगी तो पीछे करेंगे या शादी करनी होगी तो पीछे करेंगे, अभी तो हमको कर्ज चुकाना है, माता-पिता की सेवा करनी है।
लकड़हारे की बात सुनकर राजकुमारी रुक गई। अब वह विचार करने लगी कि बाहर से ये लकड़हारा है, लेकिन भीतर से कितना शानदार है। कितना शानदार इसका कलेजा, कितना शानदार इसका दिल, कितना शानदार इसकी जीवात्मा। इसने अपने सुख और भौतिक सुविधाओं को लात मार दी और अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दी। यह बड़ा जबरदस्त है। लकड़हारा है तो क्या हुआ। लकड़हारे से सावित्री ने कहा कि हम तो दूल्हा तलाश करने 'चले थे, अब हम आपसे ही ब्याह करेंगे। अब हम आपको ही माला पहनाना चाहते हैं। वह हँसा, उसने कहा-हमको अपने पेट का तो गुजारा करना ही मुश्किल पड़ता है फिर तुम्हारा गुजारा कैसे कर सकते हैं? उसने कहा-हम पेट पालने के लिए आपकी सहायता माँगने के लिए नहीं आए? आपकी सहायता करने के लिए आए हैं। हम बहुत बड़े मालदार हैं। हमारा बाप बहुत बड़ा मालदार है, हमारे पास बहुत सारा पैसा है। हम आपकी सेवा कर सकते हैं? यह सुनकर राजकुमार -नारद बोला जी बता गए थे कि एक साल बाद हमारी मृत्यु होने वाली है। सावित्री ने कहा कि हमारे पास इतनी विशेषता है कि हम आपकी जान बचा सकते हैं। हम आपको सम्पन्न बना सकते हैं। आपको यशस्वी बना सकते हैं। हम आपको सब कुछ उपलब्ध करा सकते हैं। हम बड़े मालदार हैं-और सावित्री ने गले में माला पहना दी। क्या आपने सावित्री सत्यवान की कहानी पढ़ी है? पढ़ी होगी तो जानते होंगे कि फिर क्या हुआ था? राजकुमारी से विवाह करने के बाद सत्यवान के जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब यमराज आए थे और सत्यवान का प्राण निकालकर ले गए थे। तब सावित्री ने कहा था-नहीं, यमराज बड़े नहीं हो सकते। हम बड़े हैं। आखिर सावित्री ने यमराज से अपने पति का प्राण छीन लिया था। आपने सुना है या नहीं सुना है। हमें नहीं मालूम, पर यह एक कहानी है, जो गायत्री का प्राण, गायत्री की जीवात्मा, गायत्री की वास्तविकता और गायत्री की फिलॉसफी है। आप इस फिलॉसफी की गहराई में जाइए किनारे पर बैठकर गायत्री का भजन करेंगे तो उससे क्या मिलेगा? यह तो किनारे बैठकर किनारे का भजन है। अरे डुबकी मार करके गायत्री के भजन की वास्तविक स्थिति ढूँढ़कर के ला। जहाँ से लोग शक्तिवान बन जाते हैं, चमत्कारी बन जाते हैं वहाँ तक डुबकी मार। वहाँ तक डुबकी नहीं मारेगा, किनारे तक बैठा रहेगा।
सावित्री किसे कहते हैं? सावित्री बेटे गायत्री का ही दूसरा नाम है और सत्यवान? सत्यवान उसे कहते हैं, जिस साधक ने अपना जीवन समय के लिए सिद्धांतों के लिए अर्थात आदर्शों के लिए समर्पित किया है, उस आदमी का नाम है सत्यवान। सावित्री गायत्री के लिए यह आवश्यक है कि उसका भक्त सत्यवान हो अर्थात सिद्धान्तवादी हो, आदर्शवादी हो। उत्कृष्ट चिंतन में लगा हो। कर्तव्यों में लगा हुआ हो। इस तरह का अगर कोई व्यक्ति है, तो उसे गायत्री का साधक कह सकते हैं। साधना के लिए पकड़ना पड़ेगा चेतना का स्तर, जहाँ शक्तियाँ निवास करती हैं, जहाँ भगवान निवास करते हैं, जहाँ आस्थाएँ निवास करती हैं। उस स्थान का नाम, उस स्तर का नाम वह भूमि है, जिसे दिव्यलोक कहते हैं, जहाँ गायत्री भी निवास करती है, चेतना निवास करती है, जिसको हमने ऋतम्भरा प्रज्ञा कहा है। चलिए हमें ऋतम्भरा प्रज्ञा ही कहने दीजिए। ऋतम्भरा प्रज्ञा क्या है? वह प्रज्ञा, वह धारणा, वह निष्ठा जो आदमी को ऊँचा उठा देती है, ऊँचा उछाल देती है। जिसकी प्रेरणा से आदमी ऊँची बातों पर विचार करता है और नीची बातों से ऊँचा उठता चला जाता है, उसे ऋतम्भरा प्रज्ञा कहते हैं। प्रज्ञावान के सामने, आदर्श रहते हैं, ऊँचाई रहती है।
मित्रो! मैं कहानी का अर्थ समझाना चाहूँगा आपको, ताकि गायत्री की परिभाषा समझ में आ जाए कि गायत्री क्या हो सकती है एवं क्यों इसका दूसरा नाम ऋतम्भरा प्रज्ञा है। एक कहानी सावित्री और सत्यवान की है। एक लड़की बड़ी रूपवती, बड़ी कुलवती, बड़ी सुंदर, ऐसी सुंदर जिसकी ख्याति संसार भर में फैल गई। सभी राजकुमार उसे देखकर यही कहते कि यह तो बड़ी सुंदर राजकुमारी है। यदि वह हमको मिल जाती तो अच्छा होता। लड़की के पिता के सामने सभी राजकुमार हाथ पसारने लगे और कहने लगे कि इसे हमको दीजिए। लड़की ने अपने पिता से कहा कि हमको अपनी मरजी का दूल्हा चुनने दीजिए। अच्छा तो आप चुन लें। ठीक है। रथ पर सवार होकर सेना को साथ लेकर सावित्री रवाना हुई। रवाना होते-होते वह सारे देशों के राजकुमारों से मिली और यह पता लगाया कि हमारे लिए कोई दूल्हा है क्या? कोई भी दूल्हा उसको पसंद नहीं आया। जंगल में एक दिन निकलकर जा रही थी सावित्री रथ समेत। उसने एक लड़के को देखा। वह एक लकड़हारा था। लकड़हारा बड़ा तेजस्वी मालूम पड़ता था और चेहरे पर उसके यशस्विता भी टपक रही थी। दृढ़ निश्चय भी टपक रहा था। सावित्री ने उसको रोका और पूछा लकड़हारे तुम कौन हो और कैसे हो? उसने कहा लकड़हारा तो इस समय पर हूँ पर पहले लकड़हारा नहीं था। हमारे माता पिता अंधे हो गए हैं। यहाँ जंगल में जाकर तप करते हैं उन्हीं की रक्षा करने के लिए हमने यह आवश्यक समझा कि उनको भोजन कराने से लेकर के सेवा करने तक के लिए हमको कुछ काम करना चाहिए और जिम्मेदारी को निभाना चाहिए। इस जंगल में और तो कोई पेशा है नहीं, लकड़ी काटकर ले जाते हैं और गाँव में बेच देते हैं, पैसे लाते हैं और उनका सामान खरीदकर लाते हैं। माता पिता को रोटी खिलाते हैं, सेवा करते हैं। आपने अपने भविष्य के बारे में क्या सोचा है? भविष्य के बारे में, क्या शादी नहीं करना चाहते। अभी हमारे माता पिता का कर्ज हमारे ऊपर रखा हुआ है, अभी हम शादी कैसे कर सकते हैं? सावित्री ने कहा तुम कुछ और नहीं कर सकते क्या? पैसा नहीं कमा सकते? पैसे कमा करके हम क्या करेंगे? कर्तव्यों का वजन हमारे ऊपर रखा है। पहले कर्तव्यों का वजन तो कम कर लें, तब संपत्तिवान बनने की बात सोची जाएगी या शादी करने की बात देखी जाएगी। अपनी सुविधा की बात बहुत पीछे की है। पहले तो वह करेंगे जो हमारे ऊपर कर्ज के रूप में विद्यमान है, इसलिए माता-पिता, जिन्होंने हमारे शरीर का पालन किया, पहला काम उनकी सेवा का करेंगे, इसके बाद और बातों को देखेंगे। पढ़ना होगा तो पीछे पढ़ेंगे। नौकरी करनी होगी तो पीछे करेंगे या शादी करनी होगी तो पीछे करेंगे, अभी तो हमको कर्ज चुकाना है, माता-पिता की सेवा करनी है।
लकड़हारे की बात सुनकर राजकुमारी रुक गई। अब वह विचार करने लगी कि बाहर से ये लकड़हारा है, लेकिन भीतर से कितना शानदार है। कितना शानदार इसका कलेजा, कितना शानदार इसका दिल, कितना शानदार इसकी जीवात्मा। इसने अपने सुख और भौतिक सुविधाओं को लात मार दी और अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दी। यह बड़ा जबरदस्त है। लकड़हारा है तो क्या हुआ। लकड़हारे से सावित्री ने कहा कि हम तो दूल्हा तलाश करने 'चले थे, अब हम आपसे ही ब्याह करेंगे। अब हम आपको ही माला पहनाना चाहते हैं। वह हँसा, उसने कहा-हमको अपने पेट का तो गुजारा करना ही मुश्किल पड़ता है फिर तुम्हारा गुजारा कैसे कर सकते हैं? उसने कहा-हम पेट पालने के लिए आपकी सहायता माँगने के लिए नहीं आए? आपकी सहायता करने के लिए आए हैं। हम बहुत बड़े मालदार हैं। हमारा बाप बहुत बड़ा मालदार है, हमारे पास बहुत सारा पैसा है। हम आपकी सेवा कर सकते हैं? यह सुनकर राजकुमार -नारद बोला जी बता गए थे कि एक साल बाद हमारी मृत्यु होने वाली है। सावित्री ने कहा कि हमारे पास इतनी विशेषता है कि हम आपकी जान बचा सकते हैं। हम आपको सम्पन्न बना सकते हैं। आपको यशस्वी बना सकते हैं। हम आपको सब कुछ उपलब्ध करा सकते हैं। हम बड़े मालदार हैं-और सावित्री ने गले में माला पहना दी। क्या आपने सावित्री सत्यवान की कहानी पढ़ी है? पढ़ी होगी तो जानते होंगे कि फिर क्या हुआ था? राजकुमारी से विवाह करने के बाद सत्यवान के जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब यमराज आए थे और सत्यवान का प्राण निकालकर ले गए थे। तब सावित्री ने कहा था-नहीं, यमराज बड़े नहीं हो सकते। हम बड़े हैं। आखिर सावित्री ने यमराज से अपने पति का प्राण छीन लिया था। आपने सुना है या नहीं सुना है। हमें नहीं मालूम, पर यह एक कहानी है, जो गायत्री का प्राण, गायत्री की जीवात्मा, गायत्री की वास्तविकता और गायत्री की फिलॉसफी है। आप इस फिलॉसफी की गहराई में जाइए किनारे पर बैठकर गायत्री का भजन करेंगे तो उससे क्या मिलेगा? यह तो किनारे बैठकर किनारे का भजन है। अरे डुबकी मार करके गायत्री के भजन की वास्तविक स्थिति ढूँढ़कर के ला। जहाँ से लोग शक्तिवान बन जाते हैं, चमत्कारी बन जाते हैं वहाँ तक डुबकी मार। वहाँ तक डुबकी नहीं मारेगा, किनारे तक बैठा रहेगा।
सावित्री किसे कहते हैं? सावित्री बेटे गायत्री का ही दूसरा नाम है और सत्यवान? सत्यवान उसे कहते हैं, जिस साधक ने अपना जीवन समय के लिए सिद्धांतों के लिए अर्थात आदर्शों के लिए समर्पित किया है, उस आदमी का नाम है सत्यवान। सावित्री गायत्री के लिए यह आवश्यक है कि उसका भक्त सत्यवान हो अर्थात सिद्धान्तवादी हो, आदर्शवादी हो। उत्कृष्ट चिंतन में लगा हो। कर्तव्यों में लगा हुआ हो। इस तरह का अगर कोई व्यक्ति है, तो उसे गायत्री का साधक कह सकते हैं। साधना के लिए पकड़ना पड़ेगा चेतना का स्तर, जहाँ शक्तियाँ निवास करती हैं, जहाँ भगवान निवास करते हैं, जहाँ आस्थाएँ निवास करती हैं। उस स्थान का नाम, उस स्तर का नाम वह भूमि है, जिसे दिव्यलोक कहते हैं, जहाँ गायत्री भी निवास करती है, चेतना निवास करती है, जिसको हमने ऋतम्भरा प्रज्ञा कहा है। चलिए हमें ऋतम्भरा प्रज्ञा ही कहने दीजिए। ऋतम्भरा प्रज्ञा क्या है? वह प्रज्ञा, वह धारणा, वह निष्ठा जो आदमी को ऊँचा उठा देती है, ऊँचा उछाल देती है। जिसकी प्रेरणा से आदमी ऊँची बातों पर विचार करता है और नीची बातों से ऊँचा उठता चला जाता है, उसे ऋतम्भरा प्रज्ञा कहते हैं। प्रज्ञावान के सामने, आदर्श रहते हैं, ऊँचाई रहती है।