Books - गायत्री महाविद्या की उच्चस्तरीय साधना
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Language: HINDI
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गायत्री महाविद्या की उच्चस्तरीय साधना
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ -
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो! यहाँ इस शिविर में आपको गायत्री साधना करने के लिए बुलाया गया है। गायत्री की साधना के सम्बन्ध में आपको क्यों बुलाना पड़ा? इससे पहले भी हम आपको कई बार साधना करा चुके हैं, आपको बता चुके हैं, फिर क्या जरूरत पड़ गई इस साधना को सिखाने की-इस साधना को बताने की। मित्रो! बहुत समय से हम आपको गायत्री उपासना का कर्मकाण्ड एवं क्रिया-कलाप समझाते रहे हैं कि पावन गायत्री मंत्र क्या होता है और गायत्री उपासना कैसे की जा सकती है? कर्मकाण्ड तो कलेवर मात्र है। यह उपासना का शरीर मात्र है, जिसे अभी हमने आपको बताया।
शरीर किसे कहते हैं? शरीर उसे कहते हैं जो दिखाई पड़ता है, जो देखा जा सकता है, जो अनुभव में लाया जा सकता है। हमारा शरीर आपके सामने बैठा हुआ है, कैसा है? इसमें उँगलियाँ हैं, हाथ हैं, नाक है, कान हैं, दाँत हैं, बाल हैं। इसे हम देखते हैं। छू भी सकते हैं इस शरीर को, लेकिन इसके भीतर एक ऐसी विशेषता छिपी हुई है, जिसे आप देख भी नहीं सकते और सुन भी नहीं सकते। केवल अपने गहन अनुभव के द्वारा ही इसको जाना जा सकता है। आपका प्राण कैसा है बताएँ। साहब, प्राण दिखाई तो नहीं पड़ता। कितना शक्तिशाली है, मालूम नहीं पड़ता। कितना ज्ञानवान है, मालूम नहीं पड़ता। कितना चरित्रवान है, मालूम नहीं पड़ता। आँखों से मालूम नहीं पड़ सकता, दिखाई नहीं पड़ सकता। केवल विचारणा के द्वारा आप यह जान सकते हैं कि आपके शरीर में कोई प्राण होगा। फिर आप उससे भी गहराई में जानना चाहें तो यह जान सकते हैं कि आचार्य जी का प्राण कितना शक्तिशाली होगा कितना सामर्थ्यवान, कितना महत्त्वपूर्ण होगा, कितना विकसित होगा। आप ज्यादा खोज-बीन करेंगे तो ही आपको यह मालूम पड़ेगा। ज्यादा खोज-बीन नहीं करेंगे तो आपको केवल हमारा शरीर दिखाई पड़ेगा।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो! यहाँ इस शिविर में आपको गायत्री साधना करने के लिए बुलाया गया है। गायत्री की साधना के सम्बन्ध में आपको क्यों बुलाना पड़ा? इससे पहले भी हम आपको कई बार साधना करा चुके हैं, आपको बता चुके हैं, फिर क्या जरूरत पड़ गई इस साधना को सिखाने की-इस साधना को बताने की। मित्रो! बहुत समय से हम आपको गायत्री उपासना का कर्मकाण्ड एवं क्रिया-कलाप समझाते रहे हैं कि पावन गायत्री मंत्र क्या होता है और गायत्री उपासना कैसे की जा सकती है? कर्मकाण्ड तो कलेवर मात्र है। यह उपासना का शरीर मात्र है, जिसे अभी हमने आपको बताया।
शरीर किसे कहते हैं? शरीर उसे कहते हैं जो दिखाई पड़ता है, जो देखा जा सकता है, जो अनुभव में लाया जा सकता है। हमारा शरीर आपके सामने बैठा हुआ है, कैसा है? इसमें उँगलियाँ हैं, हाथ हैं, नाक है, कान हैं, दाँत हैं, बाल हैं। इसे हम देखते हैं। छू भी सकते हैं इस शरीर को, लेकिन इसके भीतर एक ऐसी विशेषता छिपी हुई है, जिसे आप देख भी नहीं सकते और सुन भी नहीं सकते। केवल अपने गहन अनुभव के द्वारा ही इसको जाना जा सकता है। आपका प्राण कैसा है बताएँ। साहब, प्राण दिखाई तो नहीं पड़ता। कितना शक्तिशाली है, मालूम नहीं पड़ता। कितना ज्ञानवान है, मालूम नहीं पड़ता। कितना चरित्रवान है, मालूम नहीं पड़ता। आँखों से मालूम नहीं पड़ सकता, दिखाई नहीं पड़ सकता। केवल विचारणा के द्वारा आप यह जान सकते हैं कि आपके शरीर में कोई प्राण होगा। फिर आप उससे भी गहराई में जानना चाहें तो यह जान सकते हैं कि आचार्य जी का प्राण कितना शक्तिशाली होगा कितना सामर्थ्यवान, कितना महत्त्वपूर्ण होगा, कितना विकसित होगा। आप ज्यादा खोज-बीन करेंगे तो ही आपको यह मालूम पड़ेगा। ज्यादा खोज-बीन नहीं करेंगे तो आपको केवल हमारा शरीर दिखाई पड़ेगा।