Books - गायत्री यज्ञ विधान
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Language: HINDI
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हवन सम्बन्धी कुछ आवश्यक बातें
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वैसे तो प्रत्येक कार्य ही विधि- पूर्वक करना उचित है, परन्तु यज्ञ जैसे महान धार्मिक कृत्य को तो और भी अधिक सावधानी, श्रद्धा, एवं तत्परता पूर्वक करना चाहिए ।। जिन विविध- विधानों का, नियमों का शास्त्रों न उल्लेख हैं, उनका पालन करने में लापरवाही से किये हुए यज्ञ की निन्दा की है और उसे तामस ठहराया है ।।
विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् ।।
श्रद्धा विरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते।।
शास्त्र विधि से हीन, अन्न- दान से रहित, एवं बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किये हुए यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं ।।
यज्ञ के समय पालन करने योग्य कुछ नियमों की चर्चा नीचे की जाती है ।।
सुशुद्धैर्यजमानस्य ऋत्विग्भिश्र्च यथा विधि
शुद्ध द्रव्योफ्करणैयष्टव्यमिति निश्र्चयः ।।
तथा कृतेषु यज्ञेषु देवानां तोषणं भवेत् ।।
श्रेष्ठ स्याद्देव संधेषु यज्वा यज्ञ फलं लभेत् ।।
शुद्ध सुयोग्य ऋत्विजों से, विधि पूर्वक शुद्ध सामग्री से यजमान यज्ञ करावे ।। विधि पूर्वक यज्ञ सम्पन्न होने से देवता सन्तुष्ट होते हैं, जिससे अच्छे सम्मान तथा यथा यथोचित यज्ञ- फल की प्राप्ति होती है ।।
होम देवार्चनाद्यास्तु क्रियास्वाचमों तथा ।।
नेक वस्त्रः प्रर्वतेत द्विजवाचनिकेतथा ।।
वामे पृष्ठे तथ नाभौ कच्छत्रय मुदाह्यतम् ।।
त्रिभिः कच्छैः परिज्ञेयो विप्रो यः स शुचिर्भवेत्॥
यज्ञोपवीते द्वेधर्ये श्रौते स्मरते च कर्मणि ।।
तृतीयमुत्तरीयर्थे वस्त्राभावेतदिष्यते ॥
खल्वाटत्वादि दोषेण विषिखश्चेन्नरोभवेत् ।।
कौशीं तदाधारयीत ब्रह्मग्रन्थि युतांशिखाम ।।
कुश पाणि सदातिष्ठैद् ब्राह्मणोदम्भ वर्जिताः ।।
स नित्यं हन्ति पापानि तूल राशिमिवानिलः ॥
होम, आचमन, सन्ध्या, स्वस्तिवाचन और देव पूजादि कर्मों को एक वस्त्र से न करे । नाभि पर तथा नाभि से वाम भाग में और एक पृष्ठ भाग में इस प्रकार धोती की तीन काछें लगाने से ब्राह्मण कर्म के योग्य शुद्ध होता है ।। श्रौत और स्मार्त कर्मों में दो यज्ञोपवीत धारण करने चाहिये ।। कन्धे पर अंगोछा न हो, तो तीसरा यज्ञोपवीत उसके स्थान में ग्रहण करे ।। यदि गञ्जेपन के कारण शिर- स्थान पर बाल न हों, तो ब्रह्म- ग्रन्थि लगाकर कुश की शिखा धारण करे ।। जो ब्राह्मण हाथ में कुश लेकर कार्य करता है, वह पापों को नष्ट करता है ।।
संकल्पेन बिना कर्म यत्किंचित् कुरुते नरः ।।
फलं चाप्यल्पकं तस्य धर्मस्यार्द्धक्षयों भवेत ॥
संकल्प के बिना जो कर्म किया जाता है, उसका आधा फल नष्ट हो जाता है ।। इसलिए संकल्प पढ़ कर हवन कृत्य करावे ।।
जप होमोपवासेषु धौतवस्त्र धरो भवेत् ।।
अलंकृतः शुचिर्मोनी श्रद्धावान् विजितेन्द्रियः ।।
जप, होम और उपवास में धुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिए ।। स्वच्छ, मौन, श्रद्धावान और इन्द्रियों को जीत कर रहना चाहिए ।।
अधोवायु समुत्र्सगे प्रहासेऽनृत भाषणे ।।
मार्जार मूषिक स्पर्शे आकुष्टे क्रोध सम्भवे ।।
निमित्तेष्वेषु सर्वेषु कर्म कुर्वन्नयः स्पृशेत ।।
होम- जप आदि करते हुए, आपन वायु निकल पड़ने, हँस पड़ने, मिथ्या भाषण करने बिल्ली, मूषक आदि के छू जाने, गाली देने, और क्रोध के आ जाने पर, हृदय तथा जल का स्पर्श करना ही प्रायश्चित है ।।
ग्रन्थों में अनेक विधि- विधानों का अधिक खुलासा वर्णन नहीं है ।। संक्षिप्त रूप से ही संकेत कर दिये गये हैं ।। ऐसे प्रसङ्गों पर कुछ का स्पष्टीकरण इस प्रकार है ।।
कर्त्रंगानामनुक्तौतु दक्षिणांगं भवेत्सदा ।।
यत्रदिङ् नियमोनास्ति जपादि कथंचन ।।
तिस्रस्तत्रदिशः प्रोक्ता ऐन्द्री सौम्यांऽपराजिता ।।
आसीनः प्रह्वऊध्र्वोवा नियमोयत्रनेदृशः ।।
तदासीने न कर्तव्यं न प्रहवेण न तिष्ठता ।।
जहाँ कर्त्ता के हस्त आदि का नाम नहीं कहा गया हो कि अमुक अङ्ग से यह करे, वहाँ सर्वत्र दाहिना हाथ जानो ।। यहाँ जप होम आदि में जहाँ दिशा का नियम न लिखा हो, वहाँ सर्वत्र पूर्व- उत्तर और ईशान इनमें से किसी दिशा में मुख करके कर्म करे ।। जहाँ यह नहीं कहा गया हो कि खड़ा होकर, बैठकर या झुककर धर्म करे, वहाँ सर्वत्र बैठकर करना चाहिये ।।
सदोपवीतिनाभाव्यं सदा बद्ध शिखेन च ।।
विशिखोव्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतम् ।।
तिलकम् कुंकुमेनैव सदा मंगल कर्मणि ।।
कारयित्वा सुमतिमान् न श्वेत चन्दनं मृदा ।।
हवन आदि करते समय यज्ञोपवीत पहने, शिखा में गांठ लगाये रहे ।। खुली शिखा न रखे ।। सब मांगलिक कार्यों में केशर- मिश्रित तिलक लगावेंगे ।। सफेद चन्दन या मिट्टी का नहीं ।।
हविष्यान्न तिला माषा नीबारा ब्रीहयो यवाः ।।
इक्षवः शालयों मुद्गा पयोदधि घृतं मधु ॥
हविष्येषु यवा मुख्यास्तदनु ब्रीह्य स्मृता ।।
रव्रीहीणामप्यलाभेतुदध्ना वा पयसाऽपिवा ॥
यथोक्त वस्वसम्पत्तौग्राह्यं तदनुकल्पतः ।।
यवानामिव गोधूमा ब्रीहीणामिव शालवः ॥
तिल, उड़द, नीवारल (जंगली चावल) भदौह धान, जौ, ईख, बासमती चावल, मूँग, दूध, दही, घी और शहद ये हवि हैं ।। इनमें जौ मुख्य है, उसके बाद धान ।। यदि धान न मिल तो दूध अथवा दही से काम चलाये।। कही हुई वस्तु न मिले तो उसके स्थान पर अनुकल्प, समान गुण वाली