Books - गायत्री का हर अक्षर शक्ति स्रोत
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Language: HINDI
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चौबीस देव गायत्री
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गायत्री परिकर सुविस्तृत हैं। उसके अन्तर्गत अवतार, देवता, देवियां, ऋषि आदि का समावेश है। अनेकों शक्तियों की गरिमा और साधनाओं की महिमा का वर्णन है। संक्षेप में इस छोटे से 24 अक्षर वाले ब्रह्म सूत में वह सब कुछ है जो मनुष्य को भौतिक प्रगति एवं आत्मिक समृद्धि के लिए आवश्यक है।
गायत्री में अपनी निजी 24 सामर्थ्यं हैं, जिनके अन्तर्गत समृद्धियों और विभूतियों का सारा परिकर भली भांति समा जाता है। प्रतिपादन कर्ताओं ने देवताओं के स्वतन्त्र अस्तित्व को भी मान्यता दी है और उनकी आराधना के विधि विधान बनाये हैं। इस वर्ग के लिए भी गायत्री के माध्यम से अन्य देवताओं की उपासना की जा सकती है। जिनके उपास्य इष्ट अन्य देवता हैं, वे उनके निमित्त बनाई गई देव-गायत्री के माध्यम से अपने लक्ष्य तक अधिक सरलता पूर्वक पहुंच सकते हैं।
तन्त्र ग्रन्थों 24 देव गायत्री भी बताई गई है। आवश्यकतानुसार अनुभवी मार्ग दर्शन में इनकी उपासना भी की जा सकती है। देवताओं का विवरण एवं प्रतिफल शास्त्रों में इस प्रकार लिखा मिलता है।
गायत्री मन्त्र के 24 अक्षरों में से प्रत्येक के देवता क्रमशः
(1) गणेश (2) नृसिंह (3) विष्णु (4) शिव (5) कृष्ण (6) राधा (7) लक्ष्मी (8) अग्नि (9) इन्द्र (10) सरस्वती (11) दुर्गा (12) हनुमान (13) पृथ्वी (14) सूर्य (15) राम (16) सीता (17) चन्द्रमा (18) यम (19) ब्रह्म (20) वरुण (21) नारायण (22) हयग्रीव (23) हंस (24) तुलसी हैं। उन शक्तियों के द्वारा क्या-क्या लाभ मिल सकते हैं, इसका विवरण नीचे दिया गया है—
1. गणेश- सफलता शक्ति। फल- कठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि-वृद्धि।
2. नृसिंह- पराक्रम शक्ति। फल- पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता, शत्रु नाश, आतंक, आक्रमण से रक्षा।
3. विष्णु- पालन-शक्ति। फल- प्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि, रक्षा।
4. शिव- कल्याण-शक्ति। फल- अनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता।
5. कृष्ण- योग-शक्ति। फल- क्रियाशीलता, आत्म-निष्ठा, अनाशक्ति, कर्मयोन सौन्दर्य, सरसता।
6. राधा- प्रेम शक्ति। फल- प्रेम दृष्टि, द्वेष-भाव की समाप्ति।
7. लक्ष्मी- धन-शक्ति। फल- धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति।
8. अग्नि- तेज-शक्ति। फल- उष्णता, प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रभावशाली, प्रतिभाशाली, तेजस्वी होना।
9. इन्द्र- रक्षा-शक्ति। फल- रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेत, अनिष्ट आदि के आक्रमणों से रक्षा।
10. सरस्वती- बुद्धि-शक्ति। फल- मेधा की वृद्धि, बुद्धि की पवित्रता, चतुरता, दूरदर्शिता, विवेकशीलता।
11. दुर्गा- दमन-शक्ति। फल- विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार, दर्प की प्रचण्डता।
12. हनुमान- निष्ठा-शक्ति। फल-कर्त्तव्यपरायणता, निष्ठावान्, विश्वासी, ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारी एवं निर्भय होना।
13. पृथ्वी- धारण-शक्ति। फल- गम्भीरता, क्षमाशीलता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य, भार-वहन करने की क्षमता।
14. सूर्य- प्राण-शक्ति। फल- निरोगता, दीर्घजीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विकारों का शोधन।
15. राम- मर्यादा-शक्ति। फल- तितीक्षा, कष्ट में विचलित न होना, धर्म, मर्यादा, सौम्यता, संयम, मैत्री।
16. सीता- तप-शक्ति। फल- निर्विकार, पवित्रता, मधुरता, सात्विकता शील, नम्रता।
17. चन्द्र- शान्ति-शक्ति। फल- उद्विग्नताओं की शान्ति, शोक, क्रोध, चिन्ता, प्रतिहिंसा आदि विक्षोभों का शमन, काम, लोभ, मोह एवं तृष्णा का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार।
18. यम-काल-शक्ति। फल समय का सदुपयोग, मृत्यु से निर्भयता,निरालस्यता,स्फूर्ति,जागरुकता।
19. ब्रह्मा- उत्पादक-शक्ति। फल- उत्पादन, शक्ति की वृद्धि। वस्तुओं का उत्पादन बढ़ना, सन्तान बढ़ना, पशु, कृषि, वृष, वनस्पति आदि में उत्पादन की मात्रा बढ़ना। 20. वरुण- रस-शक्ति। फल- भावुकता, सरलता, कलाप्रियता, कवित्व, आद्रता, दया, दूसरों के लिए द्रवित होना, कोमलता, प्रसन्नता, माधुर्य।
21. नारायण- आदर्श-शक्ति। फल- महत्वाकांक्षा, श्रेष्ठता, उच्च आकांक्षा, दिव्य गुण, दिव्य स्वभाव, उज्ज्वल चरित्र, पथ-प्रदर्शन, कार्य शैली।
22. हयग्रीव- साहस-शक्ति। फल- उत्साह, साहस, वीरता, शूरता, निर्भयता, कठिनाइयों से लड़ने की अभिलाषा, पुरुषार्थ।
23. हंस- विवेक-शक्ति। फल- उज्ज्वल कीर्ति, आत्म-संतोष, सत्-असत् निर्णय, दूरदर्शिता, सत्-संगति, उत्तम आहार-विहार।
24. तुलसी- सेवा-शक्ति। फल- लोक-सेवा में प्रवृत्ति, सत्य प्रधानता, पतिव्रत, पत्नीव्रत, आत्म-शान्ति, परदुःख निवारण।
जिसे अपने में जिस शक्ति की, जिस गुण, कर्म, स्वभाव की कमी या विकृति दिखाई पड़ती हो, उसे उस शक्ति वाले देवता की उपासना विशेष रूप से करनी चाहिए। जिस देवता की जो गायत्री है, उसका दशांश जप गायत्री साधना के साथ-साथ करना चाहिए। जैसे कोई व्यक्ति सन्तानहीन है, सन्तान की माना करनी चाहिए। यदि गायत्री की दश मालाएं नित्य जपी जायं तो एक माला ब्रह्म गायत्री की भी जपनी चाहिए। केवल मात्र ब्रह्म गायत्री को ही जपने से काम न चलेगा, क्योंकि ब्रह्म-गायत्री की स्वतन्त्र सत्ता उतनी बलवती नहीं है। देव-गायत्रियां, उस महान् वेदात्मा गायत्री की छोटी शाखायें तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूल वृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेली देव-गायत्री भी निष्प्राण होती है उनका जप महागायत्री के साथ ही करना चाहिए।
नीचे चौबीसों देवताओं की गायत्रियां दी जाती हैं इनके जप से उन देवताओं के साथ विशेष रूप से सम्बन्ध रखने वाले गुण, पदार्थ एवं अवसर साधक प्राप्त कर सकते हैं।
1. गणेश गायत्री—ॐ एक दंष्ट्राय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तनो बुद्धिः प्रचोदयात् ।
2. नृसिंह गायत्री—ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह प्रचोदयात् ।
3. विष्णु गायत्री—ॐ नारायण विदूमहे, महादेवाह धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।
4. शिव गायत्री—ॐ पञ्चवक्शाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।
5. कृष्ण गायत्री—ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् ।
6. राधा गायत्री—ॐ वृषभानुजायै विद्महे, कृष्ण प्रियायै धीमहि । तन्नो राधा प्रचोदयात् ।
7. लक्ष्मी गायत्री—ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।
8. अग्नि गायत्री—ॐ महाज्वालाय विद्महे, अग्निदेवाय धीमहि । तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ।
9. इन्द्र गायत्री—ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे, वज्र हस्ताय धीमहि । तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात् ।
10. सरस्वती गायत्री—ॐ सरस्वत्यै विद्महे, ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
11. दुर्गा गायत्री—ॐ गिरिजायै विद्महे, शिव प्रियायै धीमहि । तन्त्रो दुर्गा प्रचोदयात् ।
12. हनुमान गायत्री—ॐ अञ्जनी सुताय विद्महे, वायु पुत्राय धीमहि । तन्नो मारुतिः प्रचोदयात् ।
13. पृथ्वी गायत्री—ॐ पृथ्वी दैव्यै विद्महे, सहस्र मूर्त्ये धीमहि । तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात् ।
14. सूर्यगायत्री—ॐ भास्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्योः प्रचोदयात् ।
15. राम गायत्री—ॐ दशरथये विद्महे, सीता बल्लभाय धीमहि । तन्नो रामः प्रचोदयात् ।
16. सीता गायत्री—ॐ जनकनदिन्यै विद्महे, भूमिजायै धीमहि । तन्नो सीता प्रचोदयात् ।
17. चन्द्र गायत्री—ॐ क्षीर पुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि । तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात् ।
18. यम गायत्री—ॐ सूर्य पुत्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि । तन्नो यमः प्रचोदयात् ।
19. ब्रह्मा गायत्री—ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, हंसारूढ़ाय धीमहि । तन्नो ब्रह्मां प्रचोदयात् ।
20. वरुण गायत्री—ॐ जल बिम्बाय विद्महे, नील पुरुषाय धीमहि । तन्नो वरुणः प्रचोदयात् ।
21. नारायण गायत्री—ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो नारायणः प्रचोदयात् ।
22. हयग्रीव गायत्री—ॐ वाणीश्वराय विद्लहे, हयग्रीवाय धीमहि । तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात् ।
23. हंस गायत्री—ॐ परमहंसाय विद्महे, महाहंसाय धीमहि । तन्नो हंसः प्रचोदयात् ।
24. तुलसी गायत्री—ॐ श्री तुलस्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो वृन्दाः प्रचोदयात् ।
एक ही परमात्मा की विविध शक्तियों का नाम ही देवता है। जैसे सूर्य की विविध गुणों वाली किरणें अल्ट्रा वायलेट, अल्फा, पारदर्शी मृत्यु किरण आदि अनेक नामों से पुकारी जाती हैं, उसी प्रकार अनेक कार्य और गुणों के कारण ईश्वरीय शक्तियां भी देव नामों से पुकारी जाती है। सूर्य की प्रातः कालीन, मध्याह्न कालीन, संध्याकालीन किरणों के गुण भिन्न-भिन्न हैं। इसी प्रकार गर्मी वर्षा और शीत काल में किरणों के गुण में अन्तर पड़ जाता है। सूर्य एक ही है पर प्रदेश, ऋतु और काल के भेद से उनका गुण भिन्न-भिन्न हो जाता है। ईश्वर की शक्तियों में इसी प्रकार की विभिन्नताओं के होने के कारण उनके नाम विभिन्न प्रकार के रखे गये हैं।
रेडियो यन्त्र की सुई घुमाने से उन विविध स्थानों की ध्वनियां सुनाई पड़ती हैं जो आपस में बहुत भिन्न हैं। सुई के घुमाने से यन्त्र के भीतर ऐसा परिवर्तन हो जाता है कि पहले उसके भीतर जो गतिविधि काम कर रही थी वह बन्द हो जाती है और नये प्रकार की गतिविधि आरम्भ हो जाती है, जिससे पहले जिस स्टेशन की ध्वनियां सुनाई पड़ रही थीं वे बन्द होकर नया स्टेशन सुनाई पड़ने लगता है। मनुष्य शरीर की स्थिति को भी साधनात्मक कर्मकाण्डों द्वारा इसी प्रकार परिवर्तित कर दिया जाता है कि वह कभी किसी देव भक्ति के और कभी अन्य देव-शक्ति के अनुकूल बन जाती है। साधना-काल में साधक के रहन-सहन, आहार-विहार, दिनचर्या, विचार, चिंतन, ध्यान, संयम, कर्मकाण्ड आदि के ऐसे प्रबन्ध एवं नियंत्रण कायम किये जाते हैं, जिनके कारण उसकी मनोभूमि एक विशेष दिशा में काम करने योग्य बन जाती है। साधनाकाल के नियमोपनियमों का प्रतिबन्धों या नियन्त्रणों का कोई साधक पूरी तरह पालन करे तो उसकी मशीन इतनी सूक्ष्म हो जावेगी कि इच्छित देव-शक्ति से सम्बन्ध स्थापित कर सके।
गायत्री में अपनी निजी 24 सामर्थ्यं हैं, जिनके अन्तर्गत समृद्धियों और विभूतियों का सारा परिकर भली भांति समा जाता है। प्रतिपादन कर्ताओं ने देवताओं के स्वतन्त्र अस्तित्व को भी मान्यता दी है और उनकी आराधना के विधि विधान बनाये हैं। इस वर्ग के लिए भी गायत्री के माध्यम से अन्य देवताओं की उपासना की जा सकती है। जिनके उपास्य इष्ट अन्य देवता हैं, वे उनके निमित्त बनाई गई देव-गायत्री के माध्यम से अपने लक्ष्य तक अधिक सरलता पूर्वक पहुंच सकते हैं।
तन्त्र ग्रन्थों 24 देव गायत्री भी बताई गई है। आवश्यकतानुसार अनुभवी मार्ग दर्शन में इनकी उपासना भी की जा सकती है। देवताओं का विवरण एवं प्रतिफल शास्त्रों में इस प्रकार लिखा मिलता है।
गायत्री मन्त्र के 24 अक्षरों में से प्रत्येक के देवता क्रमशः
(1) गणेश (2) नृसिंह (3) विष्णु (4) शिव (5) कृष्ण (6) राधा (7) लक्ष्मी (8) अग्नि (9) इन्द्र (10) सरस्वती (11) दुर्गा (12) हनुमान (13) पृथ्वी (14) सूर्य (15) राम (16) सीता (17) चन्द्रमा (18) यम (19) ब्रह्म (20) वरुण (21) नारायण (22) हयग्रीव (23) हंस (24) तुलसी हैं। उन शक्तियों के द्वारा क्या-क्या लाभ मिल सकते हैं, इसका विवरण नीचे दिया गया है—
1. गणेश- सफलता शक्ति। फल- कठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि-वृद्धि।
2. नृसिंह- पराक्रम शक्ति। फल- पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता, शत्रु नाश, आतंक, आक्रमण से रक्षा।
3. विष्णु- पालन-शक्ति। फल- प्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि, रक्षा।
4. शिव- कल्याण-शक्ति। फल- अनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता।
5. कृष्ण- योग-शक्ति। फल- क्रियाशीलता, आत्म-निष्ठा, अनाशक्ति, कर्मयोन सौन्दर्य, सरसता।
6. राधा- प्रेम शक्ति। फल- प्रेम दृष्टि, द्वेष-भाव की समाप्ति।
7. लक्ष्मी- धन-शक्ति। फल- धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति।
8. अग्नि- तेज-शक्ति। फल- उष्णता, प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रभावशाली, प्रतिभाशाली, तेजस्वी होना।
9. इन्द्र- रक्षा-शक्ति। फल- रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेत, अनिष्ट आदि के आक्रमणों से रक्षा।
10. सरस्वती- बुद्धि-शक्ति। फल- मेधा की वृद्धि, बुद्धि की पवित्रता, चतुरता, दूरदर्शिता, विवेकशीलता।
11. दुर्गा- दमन-शक्ति। फल- विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार, दर्प की प्रचण्डता।
12. हनुमान- निष्ठा-शक्ति। फल-कर्त्तव्यपरायणता, निष्ठावान्, विश्वासी, ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारी एवं निर्भय होना।
13. पृथ्वी- धारण-शक्ति। फल- गम्भीरता, क्षमाशीलता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य, भार-वहन करने की क्षमता।
14. सूर्य- प्राण-शक्ति। फल- निरोगता, दीर्घजीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विकारों का शोधन।
15. राम- मर्यादा-शक्ति। फल- तितीक्षा, कष्ट में विचलित न होना, धर्म, मर्यादा, सौम्यता, संयम, मैत्री।
16. सीता- तप-शक्ति। फल- निर्विकार, पवित्रता, मधुरता, सात्विकता शील, नम्रता।
17. चन्द्र- शान्ति-शक्ति। फल- उद्विग्नताओं की शान्ति, शोक, क्रोध, चिन्ता, प्रतिहिंसा आदि विक्षोभों का शमन, काम, लोभ, मोह एवं तृष्णा का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार।
18. यम-काल-शक्ति। फल समय का सदुपयोग, मृत्यु से निर्भयता,निरालस्यता,स्फूर्ति,जागरुकता।
19. ब्रह्मा- उत्पादक-शक्ति। फल- उत्पादन, शक्ति की वृद्धि। वस्तुओं का उत्पादन बढ़ना, सन्तान बढ़ना, पशु, कृषि, वृष, वनस्पति आदि में उत्पादन की मात्रा बढ़ना। 20. वरुण- रस-शक्ति। फल- भावुकता, सरलता, कलाप्रियता, कवित्व, आद्रता, दया, दूसरों के लिए द्रवित होना, कोमलता, प्रसन्नता, माधुर्य।
21. नारायण- आदर्श-शक्ति। फल- महत्वाकांक्षा, श्रेष्ठता, उच्च आकांक्षा, दिव्य गुण, दिव्य स्वभाव, उज्ज्वल चरित्र, पथ-प्रदर्शन, कार्य शैली।
22. हयग्रीव- साहस-शक्ति। फल- उत्साह, साहस, वीरता, शूरता, निर्भयता, कठिनाइयों से लड़ने की अभिलाषा, पुरुषार्थ।
23. हंस- विवेक-शक्ति। फल- उज्ज्वल कीर्ति, आत्म-संतोष, सत्-असत् निर्णय, दूरदर्शिता, सत्-संगति, उत्तम आहार-विहार।
24. तुलसी- सेवा-शक्ति। फल- लोक-सेवा में प्रवृत्ति, सत्य प्रधानता, पतिव्रत, पत्नीव्रत, आत्म-शान्ति, परदुःख निवारण।
जिसे अपने में जिस शक्ति की, जिस गुण, कर्म, स्वभाव की कमी या विकृति दिखाई पड़ती हो, उसे उस शक्ति वाले देवता की उपासना विशेष रूप से करनी चाहिए। जिस देवता की जो गायत्री है, उसका दशांश जप गायत्री साधना के साथ-साथ करना चाहिए। जैसे कोई व्यक्ति सन्तानहीन है, सन्तान की माना करनी चाहिए। यदि गायत्री की दश मालाएं नित्य जपी जायं तो एक माला ब्रह्म गायत्री की भी जपनी चाहिए। केवल मात्र ब्रह्म गायत्री को ही जपने से काम न चलेगा, क्योंकि ब्रह्म-गायत्री की स्वतन्त्र सत्ता उतनी बलवती नहीं है। देव-गायत्रियां, उस महान् वेदात्मा गायत्री की छोटी शाखायें तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूल वृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेली देव-गायत्री भी निष्प्राण होती है उनका जप महागायत्री के साथ ही करना चाहिए।
नीचे चौबीसों देवताओं की गायत्रियां दी जाती हैं इनके जप से उन देवताओं के साथ विशेष रूप से सम्बन्ध रखने वाले गुण, पदार्थ एवं अवसर साधक प्राप्त कर सकते हैं।
1. गणेश गायत्री—ॐ एक दंष्ट्राय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तनो बुद्धिः प्रचोदयात् ।
2. नृसिंह गायत्री—ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह प्रचोदयात् ।
3. विष्णु गायत्री—ॐ नारायण विदूमहे, महादेवाह धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।
4. शिव गायत्री—ॐ पञ्चवक्शाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।
5. कृष्ण गायत्री—ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् ।
6. राधा गायत्री—ॐ वृषभानुजायै विद्महे, कृष्ण प्रियायै धीमहि । तन्नो राधा प्रचोदयात् ।
7. लक्ष्मी गायत्री—ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।
8. अग्नि गायत्री—ॐ महाज्वालाय विद्महे, अग्निदेवाय धीमहि । तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ।
9. इन्द्र गायत्री—ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे, वज्र हस्ताय धीमहि । तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात् ।
10. सरस्वती गायत्री—ॐ सरस्वत्यै विद्महे, ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
11. दुर्गा गायत्री—ॐ गिरिजायै विद्महे, शिव प्रियायै धीमहि । तन्त्रो दुर्गा प्रचोदयात् ।
12. हनुमान गायत्री—ॐ अञ्जनी सुताय विद्महे, वायु पुत्राय धीमहि । तन्नो मारुतिः प्रचोदयात् ।
13. पृथ्वी गायत्री—ॐ पृथ्वी दैव्यै विद्महे, सहस्र मूर्त्ये धीमहि । तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात् ।
14. सूर्यगायत्री—ॐ भास्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्योः प्रचोदयात् ।
15. राम गायत्री—ॐ दशरथये विद्महे, सीता बल्लभाय धीमहि । तन्नो रामः प्रचोदयात् ।
16. सीता गायत्री—ॐ जनकनदिन्यै विद्महे, भूमिजायै धीमहि । तन्नो सीता प्रचोदयात् ।
17. चन्द्र गायत्री—ॐ क्षीर पुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि । तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात् ।
18. यम गायत्री—ॐ सूर्य पुत्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि । तन्नो यमः प्रचोदयात् ।
19. ब्रह्मा गायत्री—ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, हंसारूढ़ाय धीमहि । तन्नो ब्रह्मां प्रचोदयात् ।
20. वरुण गायत्री—ॐ जल बिम्बाय विद्महे, नील पुरुषाय धीमहि । तन्नो वरुणः प्रचोदयात् ।
21. नारायण गायत्री—ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो नारायणः प्रचोदयात् ।
22. हयग्रीव गायत्री—ॐ वाणीश्वराय विद्लहे, हयग्रीवाय धीमहि । तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात् ।
23. हंस गायत्री—ॐ परमहंसाय विद्महे, महाहंसाय धीमहि । तन्नो हंसः प्रचोदयात् ।
24. तुलसी गायत्री—ॐ श्री तुलस्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो वृन्दाः प्रचोदयात् ।
एक ही परमात्मा की विविध शक्तियों का नाम ही देवता है। जैसे सूर्य की विविध गुणों वाली किरणें अल्ट्रा वायलेट, अल्फा, पारदर्शी मृत्यु किरण आदि अनेक नामों से पुकारी जाती हैं, उसी प्रकार अनेक कार्य और गुणों के कारण ईश्वरीय शक्तियां भी देव नामों से पुकारी जाती है। सूर्य की प्रातः कालीन, मध्याह्न कालीन, संध्याकालीन किरणों के गुण भिन्न-भिन्न हैं। इसी प्रकार गर्मी वर्षा और शीत काल में किरणों के गुण में अन्तर पड़ जाता है। सूर्य एक ही है पर प्रदेश, ऋतु और काल के भेद से उनका गुण भिन्न-भिन्न हो जाता है। ईश्वर की शक्तियों में इसी प्रकार की विभिन्नताओं के होने के कारण उनके नाम विभिन्न प्रकार के रखे गये हैं।
रेडियो यन्त्र की सुई घुमाने से उन विविध स्थानों की ध्वनियां सुनाई पड़ती हैं जो आपस में बहुत भिन्न हैं। सुई के घुमाने से यन्त्र के भीतर ऐसा परिवर्तन हो जाता है कि पहले उसके भीतर जो गतिविधि काम कर रही थी वह बन्द हो जाती है और नये प्रकार की गतिविधि आरम्भ हो जाती है, जिससे पहले जिस स्टेशन की ध्वनियां सुनाई पड़ रही थीं वे बन्द होकर नया स्टेशन सुनाई पड़ने लगता है। मनुष्य शरीर की स्थिति को भी साधनात्मक कर्मकाण्डों द्वारा इसी प्रकार परिवर्तित कर दिया जाता है कि वह कभी किसी देव भक्ति के और कभी अन्य देव-शक्ति के अनुकूल बन जाती है। साधना-काल में साधक के रहन-सहन, आहार-विहार, दिनचर्या, विचार, चिंतन, ध्यान, संयम, कर्मकाण्ड आदि के ऐसे प्रबन्ध एवं नियंत्रण कायम किये जाते हैं, जिनके कारण उसकी मनोभूमि एक विशेष दिशा में काम करने योग्य बन जाती है। साधनाकाल के नियमोपनियमों का प्रतिबन्धों या नियन्त्रणों का कोई साधक पूरी तरह पालन करे तो उसकी मशीन इतनी सूक्ष्म हो जावेगी कि इच्छित देव-शक्ति से सम्बन्ध स्थापित कर सके।