Books - गायत्री की दिव्य शक्तियाँ
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Language: HINDI
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गुप्त शक्ति-भण्डार की कुंजी
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सृष्टि के आदि काल से जिन महात्माओं ने तपश्चर्या एवं योग साधना की है उन्होंने 'गायत्री' को आधार रखा है। सम्पूर्ण आध्यात्मिक तत्त्वों की चाबी गायत्री है इसके बिना आत्म सिद्धि का ताला खुल नहीं सकता। कितने ही ऋषि, मुनि, राम, कृष्ण, शंकर, विष्णु, ब्रह्मा, दुर्गा, सूर्य आदि को इष्ट मानकर उन्हें प्रसन्न करके शक्ति प्राप्त करने के लिये योग साधन करते है। परन्तु हर एक को 'गायत्री' का प्रथम आश्रय अवश्य लेना पड़ा है। बिना गायत्री के कोई भी तप या साधन सफल नहीं हो सकता।
शास्त्र का वचन है :-
अस्य कस्यापि मंत्रस्य पुरूश्चरणमारभेत् ।।
व्याहृति त्रय संयुक्ता गायत्री चायुतं जपेत ।।
नृसिंह बराह्यणां कौला तांत्रिक तथा ।।
बिना जप्त्वा गायत्री सत्सर्व निष्फलं भवेत् ।।
अर्थात् चाहे किसी मंत्र का साधन किया जाय पर उस मंत्र को व्याहृति समेत गायत्री के साथ जपना चाहिए। चाहे नृसिंह, सूर्य, वाराह आदि की उपासना हो या वाम मार्ग के कौल तांत्रिक प्रयोग किये जायें बिना गायत्री को आगे लिये वे सभी निष्फल होते हैं।
गायत्री चारों वेदों की माता है। उसके बिना वेदांतों दक्षिणमार्गी साधनाएँ सफल नहीं होती। साथ ही तांत्रिक कौल, अवधूत, कापालिक, अघोर आदि वाममार्ग में जिस शक्ति की आवश्यकता पड़ती है उसका मूल उद्गम भी गायत्री ही है। बिना गायत्री के जिन सब मंत्रों को लोग सिद्ध करते हैं वे क्षणिक चमत्कार दिखा कर शक्तिहीन हो जाते हैं। जिनके मूल में ठोस शक्ति होगी वही सफलता देर तक ठहरेगी और कठिन कार्यों को भी पूरा करेगी। गायत्री से रहित मंत्र चिरस्थायी और तीव्र शक्ति सम्पन्न नहीं होते, उनके लिये किया गया श्रम बहुत कम लाभ दे पाता है।
प्राचीन इतिहास पुराणों से पता चलता है कि सभी प्रमुख ऋषि महर्षि गायत्री के आधार पर ही योग साधना और तपश्चर्या करते थे। गीता में भगवान ने स्वयं कहा है "गायत्री छन्द सामहम्" अर्थात- गायत्री मैं ही हूँ। भगवान की उपासना के लिए गायत्री से बड़ा और कोई मंत्र नहीं हो सकता।
वशिष्ठ, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विश्वामित्र, भारद्वाज, नारद, कपिल, कणादि, गौतम, व्यास, शुकदेव, दधीचि, वाल्मीकि, वन, शंख, लोमश, तैत्तिरीय, जावालि, उद्दालक, वात्स्यायन, दुर्वासा, परशुराम, पुलिस्त, दत्तात्रेय, अगस्त्य, सनतकुमार, कण्व, शौनक आदि ऋषियों के विस्तृत जीवन चरित्र लिखकर इस लेख में यह बताने का स्थान नहीं कि उन्होंने वेदमाता की उपासना करके किस प्रकार परम सिद्धि प्राप्त की थी और गायत्री की शक्ति द्वारा वे कितनी महान् सफलताएँ सम्पादित कर सके थे। इतिहास पुराण के ज्ञाताओं से इन महर्षियों के चरित्र छिपे नहीं हैं।
थोड़े समय पूर्व अनेक ऐसे महात्मा हुए हैं जिन्होंने गायत्री का आश्रय लेकर अपनी प्रतिभा को प्रकाशित किया। उनके इष्टदेव आदर्श सिद्धान्त भिन्न रहे हों पर वेदमाता के प्रति सभी की अनन्य श्रद्धा थी, उन्होंने प्रारम्भिक कुच पान इसी महाशक्ति का किया था जिससे वे इतने प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष बन सके। शंकराचार्य, समर्थ गुरू रामदास ,, नरसी मेहता, दादू दयाल, संत ज्ञानेश्वर, स्वामी रामानन्द, गोरखनाथ, मछीन्द्रनाथ, हरिदास, तुलसीदास, रामनुजाचार्य, माधवाचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, रामतीर्थ, योगी अरविन्द, महर्षि रमण, गौरांग महाप्रभु, महात्मा एकरसानन्द आदि प्रात: स्मरणीय महात्माओं का आत्मिक विकास इस महाशक्ति के आंचल में ही हुआ था।
वर्तमान काल में तीर्थ स्वरूप शरीर धारण किये हुए अनेक महात्मा, जिनमें से कुछ ज्ञात, कुछ अज्ञात स्थानों में तप कर रहे हैं, गायत्री की अनन्य श्रद्धापूर्वक उपासना करते हैं। महात्मा गांधी, महामना, मालवीय, कवीन्द्र रवीन्द्र, टी. सव्वाराय, सर राधाकृष्णन, जगत् गुरु शंकराचार्य, स्वामी शिवानन्द, आदि महापुरुषों ने गायत्री की महानता के सम्बन्ध में अपने को उद्गार प्रकट किये हैं वे बहुत ही विचार- पूर्ण और मनन करने योग्य हैं। अखण्ड- ज्योति संचालक आचार्य जी द्वारा गायत्री का जो असाधारण प्रकाश हुआ है वह तो आश्चर्यजनक है।
अनेक महात्मा भूतकाल में गायत्री द्वारा असाधारण सिद्धियाँ प्राप्त कर चुके हैं और आज भी प्राप्त कर रहे हैं। जो शास्त्र- मर्म के ज्ञाता हैं, भारतीय योग विद्या से परिचित हैं, उन सभी साधकों की आराधना में गायत्री का प्रारम्भिक ज्ञान है फिर चाहे उसके इष्ट देव एवं विशेष साधन विधान कुछ भी क्यों न हों। आरम्भ से ही योग विद्या की प्रमुख सड़क गायत्री रही है अन्त तक और कोई मार्ग ऐसा नहीं मिल सकेगा जो गायत्री से अधिक सीधा, सरल, स्वल्प, श्रमसाध्य और निश्चित सफलता प्रदान करने वाला हो।
गायत्री की नौका पर सवार होकर ही भवसागर को तराशा जा सकता है। गृही और विरोधी दोनों को ही यह गायत्री रूपी कामधेनु समान स्नेह से अपना पय पान कराती है। दोनों ही उसकी कृपा से अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।
गायत्री साधना की विशेषता यह है कि वह जिस प्रकार बन पर्वतों में रहने वाले विरक्त महात्माओं के द्वारा साधित होने पर जैसी सिद्धि सफलता प्रदान करती है वैसे ही सत्परिणाम न गृहस्थों को भी उपलब्ध हो सकते हैं। आध्यात्मिक सात्विकता बढ़ाना गायत्री का निश्चित परिणाम है। जो भी मनुष्य इस महामंत्र का श्रद्धापूर्वक अवलम्बन करता है, उसमें दिन- दिन सतोगुणी, गुण कर्म स्वभाव बढ़ते जाते हैं, बुराइयाँ घटती जाती हैं और उत्तमता बढ़ती जाती हैं। जिस प्रकार मैला बरतन माँज देने से चमकने लगता है, दर्पण क मैल हट जाये तो उसमें चेहरा साफ दीखने लगता है, अंगार के ऊपर से राख हटा देने पर वह पुन: प्रज्ज्वलित हो जाता है, उसी प्रकार गायत्री द्वारा परिमार्जित हुआ आत्मा अपनी दैवी विशेषताओं से सुसम्पन्न दृष्टिगोचर होने लगता है। गृहस्थ हो या विरागी, गायत्री माता का दूध पीने पर सभी का आत्मिक शरीर परिपुष्टि होता है।
शास्त्र का वचन है :-
अस्य कस्यापि मंत्रस्य पुरूश्चरणमारभेत् ।।
व्याहृति त्रय संयुक्ता गायत्री चायुतं जपेत ।।
नृसिंह बराह्यणां कौला तांत्रिक तथा ।।
बिना जप्त्वा गायत्री सत्सर्व निष्फलं भवेत् ।।
अर्थात् चाहे किसी मंत्र का साधन किया जाय पर उस मंत्र को व्याहृति समेत गायत्री के साथ जपना चाहिए। चाहे नृसिंह, सूर्य, वाराह आदि की उपासना हो या वाम मार्ग के कौल तांत्रिक प्रयोग किये जायें बिना गायत्री को आगे लिये वे सभी निष्फल होते हैं।
गायत्री चारों वेदों की माता है। उसके बिना वेदांतों दक्षिणमार्गी साधनाएँ सफल नहीं होती। साथ ही तांत्रिक कौल, अवधूत, कापालिक, अघोर आदि वाममार्ग में जिस शक्ति की आवश्यकता पड़ती है उसका मूल उद्गम भी गायत्री ही है। बिना गायत्री के जिन सब मंत्रों को लोग सिद्ध करते हैं वे क्षणिक चमत्कार दिखा कर शक्तिहीन हो जाते हैं। जिनके मूल में ठोस शक्ति होगी वही सफलता देर तक ठहरेगी और कठिन कार्यों को भी पूरा करेगी। गायत्री से रहित मंत्र चिरस्थायी और तीव्र शक्ति सम्पन्न नहीं होते, उनके लिये किया गया श्रम बहुत कम लाभ दे पाता है।
प्राचीन इतिहास पुराणों से पता चलता है कि सभी प्रमुख ऋषि महर्षि गायत्री के आधार पर ही योग साधना और तपश्चर्या करते थे। गीता में भगवान ने स्वयं कहा है "गायत्री छन्द सामहम्" अर्थात- गायत्री मैं ही हूँ। भगवान की उपासना के लिए गायत्री से बड़ा और कोई मंत्र नहीं हो सकता।
वशिष्ठ, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विश्वामित्र, भारद्वाज, नारद, कपिल, कणादि, गौतम, व्यास, शुकदेव, दधीचि, वाल्मीकि, वन, शंख, लोमश, तैत्तिरीय, जावालि, उद्दालक, वात्स्यायन, दुर्वासा, परशुराम, पुलिस्त, दत्तात्रेय, अगस्त्य, सनतकुमार, कण्व, शौनक आदि ऋषियों के विस्तृत जीवन चरित्र लिखकर इस लेख में यह बताने का स्थान नहीं कि उन्होंने वेदमाता की उपासना करके किस प्रकार परम सिद्धि प्राप्त की थी और गायत्री की शक्ति द्वारा वे कितनी महान् सफलताएँ सम्पादित कर सके थे। इतिहास पुराण के ज्ञाताओं से इन महर्षियों के चरित्र छिपे नहीं हैं।
थोड़े समय पूर्व अनेक ऐसे महात्मा हुए हैं जिन्होंने गायत्री का आश्रय लेकर अपनी प्रतिभा को प्रकाशित किया। उनके इष्टदेव आदर्श सिद्धान्त भिन्न रहे हों पर वेदमाता के प्रति सभी की अनन्य श्रद्धा थी, उन्होंने प्रारम्भिक कुच पान इसी महाशक्ति का किया था जिससे वे इतने प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष बन सके। शंकराचार्य, समर्थ गुरू रामदास ,, नरसी मेहता, दादू दयाल, संत ज्ञानेश्वर, स्वामी रामानन्द, गोरखनाथ, मछीन्द्रनाथ, हरिदास, तुलसीदास, रामनुजाचार्य, माधवाचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, रामतीर्थ, योगी अरविन्द, महर्षि रमण, गौरांग महाप्रभु, महात्मा एकरसानन्द आदि प्रात: स्मरणीय महात्माओं का आत्मिक विकास इस महाशक्ति के आंचल में ही हुआ था।
वर्तमान काल में तीर्थ स्वरूप शरीर धारण किये हुए अनेक महात्मा, जिनमें से कुछ ज्ञात, कुछ अज्ञात स्थानों में तप कर रहे हैं, गायत्री की अनन्य श्रद्धापूर्वक उपासना करते हैं। महात्मा गांधी, महामना, मालवीय, कवीन्द्र रवीन्द्र, टी. सव्वाराय, सर राधाकृष्णन, जगत् गुरु शंकराचार्य, स्वामी शिवानन्द, आदि महापुरुषों ने गायत्री की महानता के सम्बन्ध में अपने को उद्गार प्रकट किये हैं वे बहुत ही विचार- पूर्ण और मनन करने योग्य हैं। अखण्ड- ज्योति संचालक आचार्य जी द्वारा गायत्री का जो असाधारण प्रकाश हुआ है वह तो आश्चर्यजनक है।
अनेक महात्मा भूतकाल में गायत्री द्वारा असाधारण सिद्धियाँ प्राप्त कर चुके हैं और आज भी प्राप्त कर रहे हैं। जो शास्त्र- मर्म के ज्ञाता हैं, भारतीय योग विद्या से परिचित हैं, उन सभी साधकों की आराधना में गायत्री का प्रारम्भिक ज्ञान है फिर चाहे उसके इष्ट देव एवं विशेष साधन विधान कुछ भी क्यों न हों। आरम्भ से ही योग विद्या की प्रमुख सड़क गायत्री रही है अन्त तक और कोई मार्ग ऐसा नहीं मिल सकेगा जो गायत्री से अधिक सीधा, सरल, स्वल्प, श्रमसाध्य और निश्चित सफलता प्रदान करने वाला हो।
गायत्री की नौका पर सवार होकर ही भवसागर को तराशा जा सकता है। गृही और विरोधी दोनों को ही यह गायत्री रूपी कामधेनु समान स्नेह से अपना पय पान कराती है। दोनों ही उसकी कृपा से अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।
गायत्री साधना की विशेषता यह है कि वह जिस प्रकार बन पर्वतों में रहने वाले विरक्त महात्माओं के द्वारा साधित होने पर जैसी सिद्धि सफलता प्रदान करती है वैसे ही सत्परिणाम न गृहस्थों को भी उपलब्ध हो सकते हैं। आध्यात्मिक सात्विकता बढ़ाना गायत्री का निश्चित परिणाम है। जो भी मनुष्य इस महामंत्र का श्रद्धापूर्वक अवलम्बन करता है, उसमें दिन- दिन सतोगुणी, गुण कर्म स्वभाव बढ़ते जाते हैं, बुराइयाँ घटती जाती हैं और उत्तमता बढ़ती जाती हैं। जिस प्रकार मैला बरतन माँज देने से चमकने लगता है, दर्पण क मैल हट जाये तो उसमें चेहरा साफ दीखने लगता है, अंगार के ऊपर से राख हटा देने पर वह पुन: प्रज्ज्वलित हो जाता है, उसी प्रकार गायत्री द्वारा परिमार्जित हुआ आत्मा अपनी दैवी विशेषताओं से सुसम्पन्न दृष्टिगोचर होने लगता है। गृहस्थ हो या विरागी, गायत्री माता का दूध पीने पर सभी का आत्मिक शरीर परिपुष्टि होता है।