Books - गायत्री की दिव्य शक्तियाँ
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Language: HINDI
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इच्छा मृत्यु
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बूँदी राज्य में ‘खडकड’ नामक एक पुराना गाँव है जिनके समीप ही अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच से एक नदी बहती है। दृश्य मनोरम और प्रशांत है। अब से लगभग ७० वर्ष पहले यहीं पर पं. कन्हैयालाल ब्रह्मचारी नामक महात्मा रहते थे। वे गायत्री के परम उपासक थे। अपने जीवन में उन्होंने कई पुरश्चरण किये तथा सिद्धियाँ प्राप्त कीं, उनके प्रभाव की ख्याति पूरे प्रदेश में थी। अपनी मृत्यु के बारे में उन्होंने ६ माह पहले से ही जान लिया था, तब वे निकटवर्ती गाँव में जाकर अपने परिचितों से मिलने लगे। उनसे विदा होते समय वे अत्यन्त प्रसन्न, गम्भीर वाणी में कहते- ‘भाईयों! अब मैं जा रहा हूँ, मेरा अन्तिम नमस्कार।’ निर्वाण के दिन वे चम्बल नदी के किनारे कोका शहर से ८ मील दूर ‘केशोराय पाटन’ नामक जगह पर जा पहुँचे। इस स्थान पर चम्बल का प्रवाह पूर्व दिशा की ओर है। इसी से उसकी पवित्रता विशेष मानी जाती है और वहाँ प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है जिसमें हजारों ग्रामीण सम्मिलित होते हैं। वहीं पहुँचकर ब्रह्मचारी जी ने भूमि को गोबर से लीपा- पोता, वहीं उन्होंने स्नान आदि के उपरान्त संध्या- वन्दन किया, फिर वे उस पोती हुई भूमि पर दर्भसन बिछाकर पद्मासन में बैठ गये। उपस्थित लोगों ने उनके आदेशानुसार एक नया श्वेत वस्त्र उनके सिर पर दूर से ही डाल दिया था। लोगों से उन्होंने कह रखा था कि जब तक उनका शरीर स्वतः न गिरे, तब तक उसे स्पर्श न करें। तदुपरान्त प्राणायाम द्वारा प्राण को सहस्रार में स्थापित कर वे समाधिस्थ हो गये। उत्सुक लोग चारो तरफ कुतूहलपूर्वक शांति से उन्होंने ध्यानलीन, निस्पन्द देख रहे थे। एक प्रहर तक वे बिल्कुल अविचल रहे। तभी लोगों ने देखा कि उनके सिर में से एक तेज विस्फोटक ध्वनि निकली, जैसे तोप चली हो और तभी ब्रह्मचारी जी का शरीर भूमि पर लुढ़क गया। उसके वे जगह- जगह पर ब्रह्मभोज हुए। उनका नाम और महत्व आज भी प्रान्त में चर्चा का विषय है।