Books - गीत माला भाग ४
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गुरु का शक्ति- प्रवाह बह
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मुक्तक-
गायत्री की आज जयंती, गंगा का अवतरण दिवस है।
गुरुवर का यह पर्व डूबा, जिसमें तन, मन सर्वस्व है।।
गुरु का शक्ति- प्रवाह बह
गुरु का शक्ति- प्रवाह बह रहा, अब इससे जुड़ जाएँ हम।
करें भगीरथ के जैसा तप- उन जैसे बन जाएँ हम।।
भागीरथी और गायत्री का अवतरण हुआ इस दिन।
थी मृतप्राय मनुजता, प्राणों का संचरण हुआ इस दिन।।
सुधा- बिन्दु पाकर उनसे फिर प्राणवान बन जाएँ हम।।
ऋषि ने तप से किया मुक्त, गायत्री रही न बन्धन में।
पहुँची देश- देश, घर- घर में, संपन्नों में निर्धन में।।
इस प्रभाव को शेष जनों तक भी निश्चित पहुँचाएँ हम।।
करें साधना हो सशक्त, ठहरें न कहीं बाधाओं में।
दृष्टि स्वच्छ हो, जिससे पल भर भ्रमित न हों भटकावों में।।
सर्वप्रथम व्यक्तित्व स्वयं का पावन प्रखर बनाएँ हम।।
ऋषि का शक्ति- प्रवाह हमें हर कोने तक पहुँचाना है।
युग के महत्कार्य में जनसहयोग सभी से पाना है
इसके लिए सशक्त संगठन मिलकर अभी बनाएँ हम।।
गायत्री की आज जयंती, गंगा का अवतरण दिवस है।
गुरुवर का यह पर्व डूबा, जिसमें तन, मन सर्वस्व है।।
गुरु का शक्ति- प्रवाह बह
गुरु का शक्ति- प्रवाह बह रहा, अब इससे जुड़ जाएँ हम।
करें भगीरथ के जैसा तप- उन जैसे बन जाएँ हम।।
भागीरथी और गायत्री का अवतरण हुआ इस दिन।
थी मृतप्राय मनुजता, प्राणों का संचरण हुआ इस दिन।।
सुधा- बिन्दु पाकर उनसे फिर प्राणवान बन जाएँ हम।।
ऋषि ने तप से किया मुक्त, गायत्री रही न बन्धन में।
पहुँची देश- देश, घर- घर में, संपन्नों में निर्धन में।।
इस प्रभाव को शेष जनों तक भी निश्चित पहुँचाएँ हम।।
करें साधना हो सशक्त, ठहरें न कहीं बाधाओं में।
दृष्टि स्वच्छ हो, जिससे पल भर भ्रमित न हों भटकावों में।।
सर्वप्रथम व्यक्तित्व स्वयं का पावन प्रखर बनाएँ हम।।
ऋषि का शक्ति- प्रवाह हमें हर कोने तक पहुँचाना है।
युग के महत्कार्य में जनसहयोग सभी से पाना है
इसके लिए सशक्त संगठन मिलकर अभी बनाएँ हम।।