Books - गीत माला भाग ७
Media: TEXT
Language: EN
Language: EN
तुम मुझे दे दो सरस
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मुक्तक-
माँग रही है देव संस्कृति, निष्ठावानों से कुर्बानी।
देवभूमि की शपथ उठाकर, आगे बढ़ो वीर बलिदानी॥
शीश चढ़ाकर कभी सपूतों ने, माटी का कर्ज चुकाया।
लोभ- मोह से ऊपर उठकर, आओ बनें सृजन सेनानी॥
तुम मुझे दे दो सरस
तुम मुझे दे दो सरस स्वर, तान ऐसी छोड़ दूँ मैं।
हर हृदय भर जाय रस से, टूटते दिल जोड़ दूँ मैं॥
हाँ! मनुज को हो गया क्या? मनुजता को छोड़ बैठा।
और अनुशासन सभी यह, श्रेष्ठता से तोड़ बैठा॥
हीनता से बचा सबको, दिव्यता से जोड़ दूँ मैं॥
क्षणिक सुख के लिए मानव, शान्ति मन की खो चुका है।
क्रूरता में लिप्त है यह, प्यार मन का सो चुका है॥
मनों को फिर से सरस, संवेदना से जोड़ दूँ मैं॥
देवपुत्रों पर अरे क्यों? स्वार्थ परता छा गयी है।
दिव्य पौरुष सो गया है, या कृतज्ञता भा गयी है॥
शक्ति दो पुरुषार्थ इनका, दिव्य पथ पर मोड़ दूँ मैं॥
देव संस्कृति के पहरुए, खुद असंस्कृत हो रहे हैं।
क्रान्ति वेला द्वार है, हाय अब भी सो रहे हैं॥
गा सरस मंगल प्रभाती, नींद इनकी तोड़ दूँ मैं॥
माँग रही है देव संस्कृति, निष्ठावानों से कुर्बानी।
देवभूमि की शपथ उठाकर, आगे बढ़ो वीर बलिदानी॥
शीश चढ़ाकर कभी सपूतों ने, माटी का कर्ज चुकाया।
लोभ- मोह से ऊपर उठकर, आओ बनें सृजन सेनानी॥
तुम मुझे दे दो सरस
तुम मुझे दे दो सरस स्वर, तान ऐसी छोड़ दूँ मैं।
हर हृदय भर जाय रस से, टूटते दिल जोड़ दूँ मैं॥
हाँ! मनुज को हो गया क्या? मनुजता को छोड़ बैठा।
और अनुशासन सभी यह, श्रेष्ठता से तोड़ बैठा॥
हीनता से बचा सबको, दिव्यता से जोड़ दूँ मैं॥
क्षणिक सुख के लिए मानव, शान्ति मन की खो चुका है।
क्रूरता में लिप्त है यह, प्यार मन का सो चुका है॥
मनों को फिर से सरस, संवेदना से जोड़ दूँ मैं॥
देवपुत्रों पर अरे क्यों? स्वार्थ परता छा गयी है।
दिव्य पौरुष सो गया है, या कृतज्ञता भा गयी है॥
शक्ति दो पुरुषार्थ इनका, दिव्य पथ पर मोड़ दूँ मैं॥
देव संस्कृति के पहरुए, खुद असंस्कृत हो रहे हैं।
क्रान्ति वेला द्वार है, हाय अब भी सो रहे हैं॥
गा सरस मंगल प्रभाती, नींद इनकी तोड़ दूँ मैं॥