Books - गीत संजीवनी-4
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उन चरणों को पूजो
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उन चरणों को पूजो
उन चरणों को पूजो, जिनने राहें नई बनायी है॥
रुके नहीं जो थके नहीं जो- अविरल गति अपनाई है॥
चरण जो कि ठोकर खाकर भी- हरदम आगे बढ़ते हैं।
चरण जो कि घायल होकर भी- गिरि शिखरों पर चढ़ते हैं॥
उन चरणों को पूजो जिनकी- प्रगति न रुकने पाई है॥
चरण जो कि भूले भटकों को- जीवन पथ दिखलाते हैं।
चुभे हुए हों काटें तो भी- आगे बढ़ते जाते हैं॥
उन चरणों को पूजो जिनसे- पीड़ा भी शरमाई है॥
चरण कि जिनने सघन वनों में- अपनी राह बनाई है।
चरण कि जिनने पत्थर में भी- सोती पीर जगाई है॥
उन चरणों को पूजो जिनने- मंजिल हमें दिखाई है॥
चरण अभय के चिह्न बनाते- जो कि हवा में उड़ते हैं।
चरण जो कि बिन सीढ़ी के ही- आसमान पर चढ़ते हैं॥
उन चरणों को पूजो जिनने- नभ तक राह बनाई है॥
मुक्तक-
वन्दनीय वे जन हैं जिनने, जीवन को आदर्श बनाया।
पूजनीय वे पग हैं जिनने, नया मार्ग रचकर दिखलाया॥
उन चरणों को पूजो, जिनने राहें नई बनायी है॥
रुके नहीं जो थके नहीं जो- अविरल गति अपनाई है॥
चरण जो कि ठोकर खाकर भी- हरदम आगे बढ़ते हैं।
चरण जो कि घायल होकर भी- गिरि शिखरों पर चढ़ते हैं॥
उन चरणों को पूजो जिनकी- प्रगति न रुकने पाई है॥
चरण जो कि भूले भटकों को- जीवन पथ दिखलाते हैं।
चुभे हुए हों काटें तो भी- आगे बढ़ते जाते हैं॥
उन चरणों को पूजो जिनसे- पीड़ा भी शरमाई है॥
चरण कि जिनने सघन वनों में- अपनी राह बनाई है।
चरण कि जिनने पत्थर में भी- सोती पीर जगाई है॥
उन चरणों को पूजो जिनने- मंजिल हमें दिखाई है॥
चरण अभय के चिह्न बनाते- जो कि हवा में उड़ते हैं।
चरण जो कि बिन सीढ़ी के ही- आसमान पर चढ़ते हैं॥
उन चरणों को पूजो जिनने- नभ तक राह बनाई है॥
मुक्तक-
वन्दनीय वे जन हैं जिनने, जीवन को आदर्श बनाया।
पूजनीय वे पग हैं जिनने, नया मार्ग रचकर दिखलाया॥