Books - गीत संजीवनी-9
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Language: EN
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ये हमारा वतन है
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ये हमारा वतन ये हमारा वतन।
है हमें जान से भी ये प्यारा वतन॥
इसके हर फूल में ताज़गी देख लो।
इसके हर पात में जि़न्दगी देख लो॥
इसकी कलियों में जीवन का संगीत है।
इसकी हर शाख पे चाँदनी देख लो॥
ये हमारा चमन है हमारा चमन।
हर तरह के गुलों से सँवारा चमन॥
इसके पूरब में टैगोर का बंग है।
इसके पश्चिम में मेवाड़ का रंग है॥
इसके उत्तर में कश्मीर की वादियाँ।
इसके दक्षिण में मद्रास का ढंग है॥
बह रहे जिसके दामन में गंगा, जमुन।
जिसकी लहरों से भीगे सभी का बदन॥
है ये सन्तों की धरती शहीदों का घर।
है ये गाँधी की बस्ती अमन का नगर॥
और बहादुर से इसके कई लाल हैं।
यह भगतसिंह जैसे सपूतों का दर॥
दुर्गा, लक्ष्मी व सीता का है ये सपन।
इसकी आज़ाद नदियाँ हैं आज़ाद वन॥
कृष्ण ने कर्म का गीत गाया जहाँ।
राम की जिसमें मर्यादा का है निशाँ॥
जिसके कण- कण में गौतम की तासीर है।
खल्क में जिसको कहते है हिन्दोस्ताँ॥
जिसकी माटी को करते हैं हम सब नमन।
जन्म लें फिर इसी में सभी का है मन॥
ईद, होली, दिवाली, मनाता है जो।
गीत पोंगल, वैशाखी के गाता है जो॥
जिसके क्रिसमस में हो बूढ़े, बच्चे जवाँ।
मिल के रहना सिखाता है आलम को जो॥
एक होने की जिसमें सभी को लगन।
अपने- अपने त्यौहारों में हैं जो मगन॥
दोस्तों के लिए जो मददगार है।
दुश्मनों के लिए तेज तलवार है॥
यह तो मज़लूमों दुखियों का है पासबां।
सरहदों पे हमेशा यह होशियार है।
हर सिपाही जवाँ मर्द जिसका है धन।
खुद हो कुर्बां जो लाता है चैनो अमन॥
मुक्तक-
हमारा देश है, जिसको धरा का स्वर्ग कहते हैं।
जहाँ अवतार, संत, शहीद, अक्सर जन्म लेते हैं॥
यहाँ के रक्त में तासीर ही कुछ इस तरह की है।
वतन के वास्ते हँसते हुए बलिदान देते हैं॥
है हमें जान से भी ये प्यारा वतन॥
इसके हर फूल में ताज़गी देख लो।
इसके हर पात में जि़न्दगी देख लो॥
इसकी कलियों में जीवन का संगीत है।
इसकी हर शाख पे चाँदनी देख लो॥
ये हमारा चमन है हमारा चमन।
हर तरह के गुलों से सँवारा चमन॥
इसके पूरब में टैगोर का बंग है।
इसके पश्चिम में मेवाड़ का रंग है॥
इसके उत्तर में कश्मीर की वादियाँ।
इसके दक्षिण में मद्रास का ढंग है॥
बह रहे जिसके दामन में गंगा, जमुन।
जिसकी लहरों से भीगे सभी का बदन॥
है ये सन्तों की धरती शहीदों का घर।
है ये गाँधी की बस्ती अमन का नगर॥
और बहादुर से इसके कई लाल हैं।
यह भगतसिंह जैसे सपूतों का दर॥
दुर्गा, लक्ष्मी व सीता का है ये सपन।
इसकी आज़ाद नदियाँ हैं आज़ाद वन॥
कृष्ण ने कर्म का गीत गाया जहाँ।
राम की जिसमें मर्यादा का है निशाँ॥
जिसके कण- कण में गौतम की तासीर है।
खल्क में जिसको कहते है हिन्दोस्ताँ॥
जिसकी माटी को करते हैं हम सब नमन।
जन्म लें फिर इसी में सभी का है मन॥
ईद, होली, दिवाली, मनाता है जो।
गीत पोंगल, वैशाखी के गाता है जो॥
जिसके क्रिसमस में हो बूढ़े, बच्चे जवाँ।
मिल के रहना सिखाता है आलम को जो॥
एक होने की जिसमें सभी को लगन।
अपने- अपने त्यौहारों में हैं जो मगन॥
दोस्तों के लिए जो मददगार है।
दुश्मनों के लिए तेज तलवार है॥
यह तो मज़लूमों दुखियों का है पासबां।
सरहदों पे हमेशा यह होशियार है।
हर सिपाही जवाँ मर्द जिसका है धन।
खुद हो कुर्बां जो लाता है चैनो अमन॥
मुक्तक-
हमारा देश है, जिसको धरा का स्वर्ग कहते हैं।
जहाँ अवतार, संत, शहीद, अक्सर जन्म लेते हैं॥
यहाँ के रक्त में तासीर ही कुछ इस तरह की है।
वतन के वास्ते हँसते हुए बलिदान देते हैं॥