Books - जप का ज्ञान और विज्ञान
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जप का ज्ञान और विज्ञान
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सीताजी को रावण जब अपहरण कर ले गया और कुटिया में वह नहीं मिलीं, तो भगवान राम परेशान हो गए। सोचने लगे कि आखिर सीता गई कहाँ? क्या जमीन निगल गई? आसमान में चली गई? खिन्न अनुभव करने लगे, असहाय अनुभव करने लगे, अपने को दीन-हीन अनुभव करने लगे। भगवान राम अपनी सीता को पुकारने के लिए, तलाश करने के लिए चल पड़े। पेड़ों से पूछा—सीता आपने देखी? पक्षियों से पूछा—आपने सीता देखी? जानवरों से पूछा—सीता आपने देखी? किसी ने जवाब नहीं दिया, तो चिल्ला करके हवा से पूछने लगे—सीता! सीता! कहीं सीता हों तो जवाब दें। कहाँ चली गई है सीता? कहाँ चली गई है? बेटे! तलाश करते फिरे। कौन? रामचन्द्रजी। हम आपको तलाश करने के लिए, पुकारने के लिए कहते हैं। आप अपनी सीताजी को तलाश कीजिए। हम आपको जप कराते हैं। किसका जप कराते हैं? भगवान का जप कराते हैं। क्यों कराते हैं? इसलिए कराते हैं कि आपके हाथ से भगवान चला गया है और आपने भगवान को गँवा दिया है, भगवान को खो दिया, अपनी जीवात्मा को, अपनी सीता को विस्मृत कर दिया। आत्मा भी हमारे शरीर में है। दुःखिया, दीन, दरिद्र, चिन्ता में डुबा हुआ, व्यथा में डुबा हुआ, पीड़ा में डुबा हुआ है। देखिये! हम रामचन्द्र जी के तरीके से कलपते हुए दीन, दुःखी, असहाय मारे-मारे फिरते हैं। हम आपको जप कराते हैं। किसलिए जप कराते हैं? जप का जो आपका ख्याल है, वह गलत है। आपका क्या ख्याल है? आपका बहुत छोटा ख्याल है। जैसी आपकी तबियत, वैसा आपका भगवान, वैसा आपका विधान। आपका उद्देश्य क्या है? आपका उद्देश्य यह है कि हम भगवान जी का नाम लें, तो क्या हो जाएगा? भगवान जी समझेंगे कि हमारी बड़ी प्रशंसा कर रहा है—बड़ी प्रशंसा कर रहा है। भगवान जी प्रसन्न हो जाएँगे। प्रसन्न होकर फिर वे क्या करेंगे? आपसे कहेंगे मनोकामना माँगिए। फिर आप क्या माँगेंगे? पैसा माँगिए, रुपया माँगिए, बेटा माँगिए, औलाद माँगिए, मुकदमा में विजय माँगिए। यही व्याख्या है न आपकी या और कुछ व्याख्या है? नहीं, और कुछ व्याख्या नहीं है। बेटे! ये बड़ी घटिया वाली बात है। ये सारे-के सिद्धान्तों का नाश कर देती है। आध्यात्मिक सिद्धान्तों के मूल सिद्धान्तों का सत्यानाश कर देती है और ये बिल्कुल उलटी मान्यता है। अगर भगवान इस तरह का है, जो अपनी खुशामद और चापलूसी करने वाले को अपना भक्त मान लेता है, तो मैं उनको ठग कहूँगा और जो आदमी ठगे जाने वाले हैं, उनको मैं एक ही नसीहत दूँगा, उनका एक ही धन्धा है। क्या धन्धा है? आदमी जो खुशामद करते हैं और चापलूसी करते हैं, भाईसाहब! हम आपका ब्याह करा देंगे, भाईसाहब! हम आपका ये करा देंगे, हम आपका वह करा देंगे—बीस तरह की चापलूसियाँ करते हैं और चापलूसियाँ करने के बाद में कोई भोला आदमी, भला आदमी उनका विश्वास कर लेते हैं, तो जेब काट लेते हैं, माल मार लेते हैं। ठगों का धन्धा यही है।
आप क्या करना चाहते हैं? ठगों का धन्धा करना चाहते हैं और भगवान को आप ऐसा बच्चा समझते हैं, आप राम-नाम लेंगे और भगवान आपको चेला मान लेंगे, आपको भक्त मान लेंगे और आपको अपना शिष्य मान लेंगे और आपकी मनोकामना पूरी कर देंगे, देखिये, ऐसा अगर अन्धेर दुनिया में फैलेगा, तो फिर राम, राम नहीं रह जाएगा और फिर भक्त, भक्त नहीं रह जाएँगे और उपासना, उपासना नहीं रहेगी और फिर सत्यानाश हो जाएगा दुनिया का। जैसा आपका ख्याल है—छोटा वाला ख्याल, घटिया वाला ख्याल, नामाकूल ख्याल, प्रभु का ख्याल जिसको आप समझते हैं वास्तव में वह ख्याल वैसा नहीं है। आपके राम नाम लेने का उद्देश्य अलग है और हमारे राम के नाम का उद्देश्य समझाना अलग है। आप तो खुशामद के लिए राम का नाम लेते हैं। जीभ से नाम लेते हैं और जीभ ऐसी जालसाज है और जीभ ऐसी चालाक है, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ये चमड़े की बनी है; ये माँस की बनी है और ऐसी गन्दी चीजों से बनी है, जिसके बारे में हम यकीन नहीं कर सकते; पर ये जीभ हमारी ऐसी बनी है कि जिस भी आदमी से हम बात करते हैं, हमेशा जालसाजी की बात करते हैं, चालाकी की बात करते हैं! चुनाव में वोट माँगने वाला आता है। क्यों भाई! कौन-सी पार्टी के हैं आप? हम तो उस पार्टी के हैं—झोंपड़ी वाली पार्टी के हैं। अह....हा....हा....! हम भी झोंपड़ी में रहते हैं, आप भी झोंपड़ी में रहते हैं। हम आपको ही देंगे वोट। पक्का हो गया आपका वोट और आपको मिल जाएगा हमारा वोट। जा रहे हैं। नमस्कार साहब! नमस्कार! चला गया और आ गया दूसरा वाला। कहिये साहब! आप भी वोट माँगने आए हैं? हाँ, साहब! वोट माँगने तो हम भी आए हैं। कौन-सी पार्टी से आए हैं? हम तो दीपक वाली पार्टी से आए हैं। बस, बस हो गया। सब जगह अँधेरा छाया हुआ हुआ है। अब दीपक के बिना अँधेरा दूर नहीं हो सकता। बस, दीपक को वोट देंगे और दीपक जलेगा, तभी तो काम चलेगा। अँधेरा दुनिया में फैल गया है। बताइये तो हमारा दीपक पक्का रहा। वोट पक्का है। आपको मिल जाएगा वोट। चला गया, फिर कौन आ गया? फिर लाल झण्डे वाला आ गया। कहिये साहब! नमस्कार साहब! नमस्कार साहब! नमस्कार साहब! कहिये साहब! किसको वोट मिलेगा? आप कौन-सी पार्टी से आए हैं? पहले आप बताइये? हम तो लाल झण्डे वाले हैं। अह....हा....हा....! लाल झण्डे वही तो है, जो गरीब-अमीर सबको बराबर कर देते हैं। हमको बिड़ला के बराबर तो बना ही देंगे। हाँ साहब! सबको बराबर बना देंगे, तो आपको भी क्यों नहीं बनाएँगे। सबको बराबर बनाएँगे हम। हम तो समाजवादी हैं। बस, तो ठीक रहा। हम तो इसी चक्कर में थे कि कौन आदमी ऐसा आ जाए, जो वोट बराबर करा जाए। हम तो आपको ही वोट देंगे। चलिये साहब वह भी चला गया। फिर एक और आ गया। आप कौन-सी पार्टी के है? पहले आप पार्टी बताइये, तब बात करेंगे आपसे? हम तो साहब गाय-बच्चा वाला पार्टी के हैं। बस, बस हो गया। ये तो हम देख रहे थे कि गौमाता की हम सेवा करते हैं। गायों की हम पूजा करते हैं। बेरोक-टोक हमारा काम चलता है, फिर किसको वोट दे सकते हैं! हम तो गाय-भैंस वाले को वोट देंगे। हम गाय-भैंस वाले हैं, बिल्कुल गाय-बैल वाले हैं। आपका वोट—आपका वोट पक्का रहा। जाइये। चुनाव का दिन आया। तब? किसको वोट देंगे? रुपया निकालिये जी। जो कोई पैसा देगा, उसी को वोट देंगे। उस दिन तो आप कह रहे थे कि गाय-बच्चा वाले को वोट देंगे। हम तो पैसा देने वाले को वोट देते हैं। जीभ, जीभ ऐसी जाहिल, ऐसी कामिनी और ऐसी दुष्ट, ऐसी चालाक और ऐसी धूर्त है कि इस पर कोई यकीन नहीं कर सकता।
क्यों राम नाम लेता है तू? राम का नाम लेता है तू? चालाक! बेईमान! सब भार सौंप दिया भगवान तुम्हारे हाथों में। क्या-क्या सौंप दिया भार? बिना बना मकान पड़ा है, अधूरा है। इसको बनवाना भगवान् तुम्हारे हाथों में है। भगवान तुम्हारे हाथों में सौंप रहा हूँ भार। जानता है किसे कहते हैं भार सौंपना? भार सौंपना उसे कहते हैं, जब सारी-की क्षमता को, सारी-की जिम्मेदारियों को भगवान के सुपुर्द किया जाता है और अपनी इच्छाओं को और अपनी आकांक्षाओं को भगवान के सुपुर्द किया जाता है। इसी को कहते हैं समर्पण महाराज जी! हमारा मतलब ये नहीं था। क्या मतलब था? हमारा मतलब ये था, सब भार का मतलब ये था कि तीन लड़कियाँ ब्याह लायक हो गई हैं। १५-१५ हजार रुपया चाहिए। ४५ हजार रुपया चाहिए तो भगवान सब भार तुम्हारे हाथों में। ये मतलब है न। हाँ, साहब! ये मतलब है। आपका क्या मतलब है, हम समझते हैं। भगवान आपका क्या मतलब है, इसको समझता है। इसलिए जुबान की नोंक से बार-बार भगवान का नाम उच्चारण करने के बाद में आप ध्यान करते हैं कि हमें भगवान की प्राप्ति होने वाली है और आपका उद्देश्य पूरा होने वाला है—ये कभी नहीं हो सकता। इसका क्या मतलब है? फिर जप करने के लिए क्यों कहा आपने? २४००० हजार जप कराने के लिए क्यों कहा? जप में हमको क्यों लगा दिया? आप रोज जप क्यों कराते हैं? बेटे! इसलिए जप कराते हैं कि कोई चीज हमारी खो गई है और हम तलाश करते हैं कि हे भगवान! वह चीज हमारी कहाँ चली गई है? बिल्ली के बच्चे गुम हो गए, बिल्ली कहीं चली गई! बच्चों की भी आदत होती है कि कहीं चले जाते हैं, छिपकर बैठ जाते हैं। बिल्ली इस घर में गई, उस घर में गई, घर-घर में गई, पुकार करती रही—हमारे बच्चे कहाँ चले गये? कहाँ खो गये? बिल्ली क्या कर रही थी? म्याऊँ-म्याऊँ। क्या कर रही थी? तलाश कर रही थी। हमारे बच्चे कहाँ चले गए? बच्चों ने अपनी माँ की आवाज सुनी। बच्चे बोलने लगे—म्याऊँ-म्याऊँ। बस, दोनों हो गए खुश और दोनों मिल गए; दोनों का मिलाप हो गया।
हम इसलिए पुकारते हैं राम के नाम को। बच्चा खो गया था। देर हो गई। घर वाले तलाश करते फिर रहे थे—रमेश! रमेश!! रमेश!!! यहाँ-वहाँ सारी जगह तलाश कर रहे थे। नहीं मिला, तो माइक में गुँजाया—एक लड़का रमेश नाम का, सफेद कमीज पहने हुए है, नेकर पहने हुए है, पाँच वर्ष का है, किसी ने देखा हो तो, अमुक पते पर पहुँचाने की कृपा करें। रमेश! रमेश!! हम पुकारते रहते हैं भगवान को, वह भगवान बाँसुरी बजाने वाला भगवान, जो हमारे हृदय में शक्ति उत्पन्न कर सकता है; वह भगवान जो धनुष-बाण अपनी पीठ पर लटकाये चलता है; वह भगवान् जिसके मस्तिष्क से ज्ञान की गंगा प्रवाहित होती रहती है, जो मुण्डों की माला अपने लिये, लिये फिरता है। बस भगवान को तलाश करते हैं—जाने शंकर कहाँ चला गया हमारा, जाने हमारे राम कहाँ चले गये, जाने हमारे कृष्ण कहाँ चले गये, जाने हमारी देवी कहाँ चली गई, जाने हमारी शक्ति कहाँ चली गई, जाने हमारी बुद्धि कहाँ चली गई, जाने हमारी सरस्वती कहाँ चली गई, हमारा सब कुछ चला गया। हम तलाश करते फिरते हैं। जहाँ-जहाँ हम जप करते हैं और हम पुकारते और हम चिल्लाते रहते हैं। हम आपको जप कराते हैं। पुकारिए कहीं शायद आपको मिल जाए। कौन मिल जाए? आपकी जीवात्मा और आपका परमात्मा। न आपके पास जीवात्मा बाकी बची है, न आपके पास परमात्मा बाकी बचा है। वह चीजें बाकी बची है, जो किसी काम की नहीं। आपके रोम-रोम में जो चीजें बची और बसी हुई हैं, उसका नाम है—लोभ; उसका नाम है—मोह; उसका नाम है—वासना; उसका नाम तृष्णा; उसका नाम अहंकार—ये सब चीजें आपके पास पर्याप्त मात्रा में बची हुई हैं। आपके पास मकान मौजूद है, आपके पास तिजारत मौजूद है, आपके पास नहीं हैं। न आपके पास आत्मा रह गई है, न आपके पास परमात्मा रह गया है। दोनों में से कोई चीज हमारे पास नहीं है। हम छूँछ हैं मित्रो! पाप से लिपटे हुए, वासनाओं से लदे हुए, हर समय हम दुःखी, हर समय क्लेश में डूबे हुए, हर समय झल्लाये हुए और हर समय पीड़ित, हर समय पतित मनःस्थिति है। हमने मणि गँवा दी, जैसे साँप मणि को गँवा देता है। मणि गँवाया हुआ साँप, दुःखी बैठा हुआ साँप; हाथी का मुक्ता कहीं चला गया था और मुक्ताविहीन हाथी कहीं बैठा हुआ था और साँप मणिविहीन बैठा हुआ था। मणि से विहीन साँप के तरीके से मुरझाये हुए बैठे हैं, कुम्हलाये हुए बैठे हैं, निरुत्साहित हुए बैठे हुए हैं, कुण्ठा में बैठे हुए हैं हम। हमारे जीवन का रस चला गया और हमारे जीवन का आनन्द चला गया, इसलिए हम पुकारते हैं—कहाँ है हमारे जीवन का रस! कहाँ है? मिल जाए, तो अच्छा हो।
रसो वै सः—भगवान् रसमय-आनन्दमय है। आनन्द हमने छुआ भी नहीं, ज्ञान हमने जाना भी नहीं। कितनी जिन्दगी निकल गई रोते-रोते, झल्लाते-झल्लाते? अगर भगवान की एक किरण हमारे पास आ जाती, तो हमारे चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती; हमारे चेहरे पर सन्तोष आ जाता; हमारे चेहरे पर आनन्द दिखायी पड़ता; पर हमने जाना ही नहीं आनन्द किसे कहते हैं; जाना ही नहीं सन्तोष किसे कहते हैं; जाना ही शान्ति किसे कहते हैं; जानता ही नहीं हर्षोल्लास किसे कहते हैं? हमने कभी नहीं जाना ऐसी खीज में और जलन मेंं हम जलते-जलते इतने बड़े हो गए और अब मोमबत्ती के तरीके से सारी-की जलन ने हमको जला दिया और हम छूँछ रह गये हैं। भोगो न भुक्ता वयमेव भुक्ता। भोगो-भोगो। भोग भोगने के लिए हम लगे रहे; पर भोगों को हम भोग नहीं सके, भोगों ने हमको भोग लिया। वैरागी जी ने चिल्लाकर के लोगों से पूछा—अरे हाजिर लोगो! जरा बताओ तो सही तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा है? कैसा? जिसने वास्तविक सुख का, वास्तविक आनन्द का उपभोग किया हो। अरे अभागे लोगो! तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा हो, जिसने जिन्दगी में सुख देखा हो, सुख पाया हो, सुख जाना हो, तो तुम बताओ। है तुममें से कोई ऐसा? न हमने कभी सुख देखा न हमने कभी सुख पाया, न हमने कभी सुख के बारे में सुना, न हमने कभी सुख जाना। जलन, बस जलन—कुत्ते की हड्डी जैसी जलन हमारी जिन्दगी भर साथ रही। उसी को जाना कि सुख इसी का नाम है। कुत्ता एक हड्डी उठाकर ले आया और चबाने लगा। उसमें से क्या हो गया कि जबड़े में से खून टपकने लगा। जब जबड़े में से खून टपका और जब उस टपकते हुए खून को चखा, तो बड़ा जायका आया—ये खून बड़ा जायकेदार है। बेटे! जायकेदार खून को चखते-चखते हम अपने आपको जला रहे हैं, अपने आपको गला रहे हैं, सोचते हैं, इसी में सुख होता होगा। वासनाओं में हमने अपने आपको जलाया, वासनाओं में हमने अपने आपको गलाया। क्या कर रहा था तू? काम-वासनाओं का सेवन कर रहा था। क्या मिल गया? क्या कमा के लाया? कुछ भी नहीं कमा के लाया गुरुजी! प्रशिक्षण यों ही गँवाया, तो फिर मूरख काहे के लिए कह रहा था कि मैं बड़ा प्रसन्न हूँ, मैं बड़ा शेर मार के लाया हूँ। अपनी हड्डी चबा रहा था। हाँ, अपने जबड़े में से खून निकाल रहा था। हाँ, अपने जबड़े के खून को पी रहा था, उसी को सुख कह रहा था। अपना लोक बिगाड़ रहा था, अपना ईमान बिगाड़ रहा था और जिन्दगी को चौपट कर रहा था, उसे सत्यानाश कर रहा था। उसी की बारूद जला करके फुलझड़ी देख रहा था। उसी को मान रहा था खुशी। हाँ, महाराज! उसी को खुशी मान रहा था। हमें देखिये, पैसे के लिए और उन चीजों के लिए, जो हमारे किसी काम की नहीं है; जो हमें न शान्ति दे सकती हैं, न सन्तोष दे सकती हैं, न चैन दे सकती हैं; उन चीजों को इकट्ठा करने के लिए हम पागलों की तरह जिन्दगी भर भटकते रहे और समझते रहे शायद इसी में सुख हो सकता है; शायद इसी में चैन हो सकता है। इसमें चैन कहाँ से हो सकता है? मिट्टी में चैन कहाँ से आ जाएगा? पैसे में चैन कहाँ से आ जाएगा? इन चीजों में चैन कहाँ से आ जाएगा? चैन तो बेटे! आदर्शों में रहता है, सिद्धान्तों में रहता है। सिद्धान्त भी हमारे पास नहीं आ सके, आदर्श भी हमारे पास नहीं आ सके। उसकी कभी इच्छा भी उत्पन्न नहीं हो सकी। हम क्या कर सकते हैं? हमको ग्राह खाये जा रहा है। गज और ग्राह—इस लड़ाई का वृतान्त आता है पुस्तकों में। पुस्तकों में गज और ग्राह के संघर्ष की लड़ाई का वर्णन है।
एक ग्राह था। उसने गज को पकड़ लिया और एक पाँव जो था, सामने वाला अगला वाला पाँव निगल लिया। जब पाँव निगल लिया, तो गज जो था, ताकत लगाने लगा और बाहर आने की कोशिश करने लगा और ग्राह भीतर खींचने लगा। दोनों में कुश्ती होने लगी और लड़ाई होने लगी। गज बहुत परेशान हुआ और बहुत दुःखी हुआ। जब गज को यह दिखाई पड़ा कि मैं अपनी ताकत के भरोसे पर बाहर नहीं निकल सकता तो उसने पुकार लगानी शुरू की और विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ किया। इसमें भगवान के नाम लिये गये हैं, और भगवान को पुकारा गया है। बार-बार भगवान को पुकारा है—आप विष्णु हैं, आप नारायण हैं, आप शिव हैं, आप कल्याणकारी हैं। बहुत-से नाम उस गज ने लिये हैं। देखिये, हम आपको वही कह रहे थे कि आप बार-बार नाम लिया कीजिये; भगवान् का जप किया कीजिए; भगवान को कहिये कि हम मर रहे हैं और हम डूबे जा रहे हैं। नरक में और पाप में हमारा अन्त हुआ जा रहा है। गज की तो एक ही टाँग पकड़ी थी और हमारे टाँगें तो हैं चार और मगर? मगर हैं छह? छह मगरों ने चार टाँगें पकड़ रखी हैं और एक-एक हमारी पूँछ पकड़ रखी है। एक हमारी सूँड़ पकड़ रखी है। गज तो एक ही पकड़ा गया था; लेकिन हमारे छह गज पकड़ के रखे हैं छह ग्राहों ने। एक ग्राह का नाम काम, एक का नाम क्रोध, एक का नाम लोभ, एक का नाम मोह, एक का नाम मद, एक का नाम मत्सर—इन सब रिपुओं ने हमारे रोम-रोम को पकड़ लिया है, जकड़ लिया है और अब हमको मालूम पड़ता है कि अब हम डूबने ही वाले हैं; हम मरने ही वाले हैं; हम जलने ही वाले हैं और खत्म होने ही वाले हैं। इसलिए हम पुकारते हैं—हे भगवान! तुम कहाँ हो—धियो यो नः प्रचोदयात्— हे भगवान! कहीं हो, तो आ जाओ। हमारा उद्धार कर दो, भगवान् बेड़ा पार लगा दो। इसीलिए हम पुकारते हैं। हमारी पुकार शायद अन्तरिक्ष में, उस वातावरण में फैल जाए और कहीं भगवान हों, तो उसकी प्रतिक्रिया हमारे भीतर आए और हमको उद्धार करने के लिए, हमको उबारने के लिए, हमको उठाने के लिए लम्बा हाथ फैला दें।
आप क्या करना चाहते हैं? ठगों का धन्धा करना चाहते हैं और भगवान को आप ऐसा बच्चा समझते हैं, आप राम-नाम लेंगे और भगवान आपको चेला मान लेंगे, आपको भक्त मान लेंगे और आपको अपना शिष्य मान लेंगे और आपकी मनोकामना पूरी कर देंगे, देखिये, ऐसा अगर अन्धेर दुनिया में फैलेगा, तो फिर राम, राम नहीं रह जाएगा और फिर भक्त, भक्त नहीं रह जाएँगे और उपासना, उपासना नहीं रहेगी और फिर सत्यानाश हो जाएगा दुनिया का। जैसा आपका ख्याल है—छोटा वाला ख्याल, घटिया वाला ख्याल, नामाकूल ख्याल, प्रभु का ख्याल जिसको आप समझते हैं वास्तव में वह ख्याल वैसा नहीं है। आपके राम नाम लेने का उद्देश्य अलग है और हमारे राम के नाम का उद्देश्य समझाना अलग है। आप तो खुशामद के लिए राम का नाम लेते हैं। जीभ से नाम लेते हैं और जीभ ऐसी जालसाज है और जीभ ऐसी चालाक है, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ये चमड़े की बनी है; ये माँस की बनी है और ऐसी गन्दी चीजों से बनी है, जिसके बारे में हम यकीन नहीं कर सकते; पर ये जीभ हमारी ऐसी बनी है कि जिस भी आदमी से हम बात करते हैं, हमेशा जालसाजी की बात करते हैं, चालाकी की बात करते हैं! चुनाव में वोट माँगने वाला आता है। क्यों भाई! कौन-सी पार्टी के हैं आप? हम तो उस पार्टी के हैं—झोंपड़ी वाली पार्टी के हैं। अह....हा....हा....! हम भी झोंपड़ी में रहते हैं, आप भी झोंपड़ी में रहते हैं। हम आपको ही देंगे वोट। पक्का हो गया आपका वोट और आपको मिल जाएगा हमारा वोट। जा रहे हैं। नमस्कार साहब! नमस्कार! चला गया और आ गया दूसरा वाला। कहिये साहब! आप भी वोट माँगने आए हैं? हाँ, साहब! वोट माँगने तो हम भी आए हैं। कौन-सी पार्टी से आए हैं? हम तो दीपक वाली पार्टी से आए हैं। बस, बस हो गया। सब जगह अँधेरा छाया हुआ हुआ है। अब दीपक के बिना अँधेरा दूर नहीं हो सकता। बस, दीपक को वोट देंगे और दीपक जलेगा, तभी तो काम चलेगा। अँधेरा दुनिया में फैल गया है। बताइये तो हमारा दीपक पक्का रहा। वोट पक्का है। आपको मिल जाएगा वोट। चला गया, फिर कौन आ गया? फिर लाल झण्डे वाला आ गया। कहिये साहब! नमस्कार साहब! नमस्कार साहब! नमस्कार साहब! कहिये साहब! किसको वोट मिलेगा? आप कौन-सी पार्टी से आए हैं? पहले आप बताइये? हम तो लाल झण्डे वाले हैं। अह....हा....हा....! लाल झण्डे वही तो है, जो गरीब-अमीर सबको बराबर कर देते हैं। हमको बिड़ला के बराबर तो बना ही देंगे। हाँ साहब! सबको बराबर बना देंगे, तो आपको भी क्यों नहीं बनाएँगे। सबको बराबर बनाएँगे हम। हम तो समाजवादी हैं। बस, तो ठीक रहा। हम तो इसी चक्कर में थे कि कौन आदमी ऐसा आ जाए, जो वोट बराबर करा जाए। हम तो आपको ही वोट देंगे। चलिये साहब वह भी चला गया। फिर एक और आ गया। आप कौन-सी पार्टी के है? पहले आप पार्टी बताइये, तब बात करेंगे आपसे? हम तो साहब गाय-बच्चा वाला पार्टी के हैं। बस, बस हो गया। ये तो हम देख रहे थे कि गौमाता की हम सेवा करते हैं। गायों की हम पूजा करते हैं। बेरोक-टोक हमारा काम चलता है, फिर किसको वोट दे सकते हैं! हम तो गाय-भैंस वाले को वोट देंगे। हम गाय-भैंस वाले हैं, बिल्कुल गाय-बैल वाले हैं। आपका वोट—आपका वोट पक्का रहा। जाइये। चुनाव का दिन आया। तब? किसको वोट देंगे? रुपया निकालिये जी। जो कोई पैसा देगा, उसी को वोट देंगे। उस दिन तो आप कह रहे थे कि गाय-बच्चा वाले को वोट देंगे। हम तो पैसा देने वाले को वोट देते हैं। जीभ, जीभ ऐसी जाहिल, ऐसी कामिनी और ऐसी दुष्ट, ऐसी चालाक और ऐसी धूर्त है कि इस पर कोई यकीन नहीं कर सकता।
क्यों राम नाम लेता है तू? राम का नाम लेता है तू? चालाक! बेईमान! सब भार सौंप दिया भगवान तुम्हारे हाथों में। क्या-क्या सौंप दिया भार? बिना बना मकान पड़ा है, अधूरा है। इसको बनवाना भगवान् तुम्हारे हाथों में है। भगवान तुम्हारे हाथों में सौंप रहा हूँ भार। जानता है किसे कहते हैं भार सौंपना? भार सौंपना उसे कहते हैं, जब सारी-की क्षमता को, सारी-की जिम्मेदारियों को भगवान के सुपुर्द किया जाता है और अपनी इच्छाओं को और अपनी आकांक्षाओं को भगवान के सुपुर्द किया जाता है। इसी को कहते हैं समर्पण महाराज जी! हमारा मतलब ये नहीं था। क्या मतलब था? हमारा मतलब ये था, सब भार का मतलब ये था कि तीन लड़कियाँ ब्याह लायक हो गई हैं। १५-१५ हजार रुपया चाहिए। ४५ हजार रुपया चाहिए तो भगवान सब भार तुम्हारे हाथों में। ये मतलब है न। हाँ, साहब! ये मतलब है। आपका क्या मतलब है, हम समझते हैं। भगवान आपका क्या मतलब है, इसको समझता है। इसलिए जुबान की नोंक से बार-बार भगवान का नाम उच्चारण करने के बाद में आप ध्यान करते हैं कि हमें भगवान की प्राप्ति होने वाली है और आपका उद्देश्य पूरा होने वाला है—ये कभी नहीं हो सकता। इसका क्या मतलब है? फिर जप करने के लिए क्यों कहा आपने? २४००० हजार जप कराने के लिए क्यों कहा? जप में हमको क्यों लगा दिया? आप रोज जप क्यों कराते हैं? बेटे! इसलिए जप कराते हैं कि कोई चीज हमारी खो गई है और हम तलाश करते हैं कि हे भगवान! वह चीज हमारी कहाँ चली गई है? बिल्ली के बच्चे गुम हो गए, बिल्ली कहीं चली गई! बच्चों की भी आदत होती है कि कहीं चले जाते हैं, छिपकर बैठ जाते हैं। बिल्ली इस घर में गई, उस घर में गई, घर-घर में गई, पुकार करती रही—हमारे बच्चे कहाँ चले गये? कहाँ खो गये? बिल्ली क्या कर रही थी? म्याऊँ-म्याऊँ। क्या कर रही थी? तलाश कर रही थी। हमारे बच्चे कहाँ चले गए? बच्चों ने अपनी माँ की आवाज सुनी। बच्चे बोलने लगे—म्याऊँ-म्याऊँ। बस, दोनों हो गए खुश और दोनों मिल गए; दोनों का मिलाप हो गया।
हम इसलिए पुकारते हैं राम के नाम को। बच्चा खो गया था। देर हो गई। घर वाले तलाश करते फिर रहे थे—रमेश! रमेश!! रमेश!!! यहाँ-वहाँ सारी जगह तलाश कर रहे थे। नहीं मिला, तो माइक में गुँजाया—एक लड़का रमेश नाम का, सफेद कमीज पहने हुए है, नेकर पहने हुए है, पाँच वर्ष का है, किसी ने देखा हो तो, अमुक पते पर पहुँचाने की कृपा करें। रमेश! रमेश!! हम पुकारते रहते हैं भगवान को, वह भगवान बाँसुरी बजाने वाला भगवान, जो हमारे हृदय में शक्ति उत्पन्न कर सकता है; वह भगवान जो धनुष-बाण अपनी पीठ पर लटकाये चलता है; वह भगवान् जिसके मस्तिष्क से ज्ञान की गंगा प्रवाहित होती रहती है, जो मुण्डों की माला अपने लिये, लिये फिरता है। बस भगवान को तलाश करते हैं—जाने शंकर कहाँ चला गया हमारा, जाने हमारे राम कहाँ चले गये, जाने हमारे कृष्ण कहाँ चले गये, जाने हमारी देवी कहाँ चली गई, जाने हमारी शक्ति कहाँ चली गई, जाने हमारी बुद्धि कहाँ चली गई, जाने हमारी सरस्वती कहाँ चली गई, हमारा सब कुछ चला गया। हम तलाश करते फिरते हैं। जहाँ-जहाँ हम जप करते हैं और हम पुकारते और हम चिल्लाते रहते हैं। हम आपको जप कराते हैं। पुकारिए कहीं शायद आपको मिल जाए। कौन मिल जाए? आपकी जीवात्मा और आपका परमात्मा। न आपके पास जीवात्मा बाकी बची है, न आपके पास परमात्मा बाकी बचा है। वह चीजें बाकी बची है, जो किसी काम की नहीं। आपके रोम-रोम में जो चीजें बची और बसी हुई हैं, उसका नाम है—लोभ; उसका नाम है—मोह; उसका नाम है—वासना; उसका नाम तृष्णा; उसका नाम अहंकार—ये सब चीजें आपके पास पर्याप्त मात्रा में बची हुई हैं। आपके पास मकान मौजूद है, आपके पास तिजारत मौजूद है, आपके पास नहीं हैं। न आपके पास आत्मा रह गई है, न आपके पास परमात्मा रह गया है। दोनों में से कोई चीज हमारे पास नहीं है। हम छूँछ हैं मित्रो! पाप से लिपटे हुए, वासनाओं से लदे हुए, हर समय हम दुःखी, हर समय क्लेश में डूबे हुए, हर समय झल्लाये हुए और हर समय पीड़ित, हर समय पतित मनःस्थिति है। हमने मणि गँवा दी, जैसे साँप मणि को गँवा देता है। मणि गँवाया हुआ साँप, दुःखी बैठा हुआ साँप; हाथी का मुक्ता कहीं चला गया था और मुक्ताविहीन हाथी कहीं बैठा हुआ था और साँप मणिविहीन बैठा हुआ था। मणि से विहीन साँप के तरीके से मुरझाये हुए बैठे हैं, कुम्हलाये हुए बैठे हैं, निरुत्साहित हुए बैठे हुए हैं, कुण्ठा में बैठे हुए हैं हम। हमारे जीवन का रस चला गया और हमारे जीवन का आनन्द चला गया, इसलिए हम पुकारते हैं—कहाँ है हमारे जीवन का रस! कहाँ है? मिल जाए, तो अच्छा हो।
रसो वै सः—भगवान् रसमय-आनन्दमय है। आनन्द हमने छुआ भी नहीं, ज्ञान हमने जाना भी नहीं। कितनी जिन्दगी निकल गई रोते-रोते, झल्लाते-झल्लाते? अगर भगवान की एक किरण हमारे पास आ जाती, तो हमारे चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती; हमारे चेहरे पर सन्तोष आ जाता; हमारे चेहरे पर आनन्द दिखायी पड़ता; पर हमने जाना ही नहीं आनन्द किसे कहते हैं; जाना ही नहीं सन्तोष किसे कहते हैं; जाना ही शान्ति किसे कहते हैं; जानता ही नहीं हर्षोल्लास किसे कहते हैं? हमने कभी नहीं जाना ऐसी खीज में और जलन मेंं हम जलते-जलते इतने बड़े हो गए और अब मोमबत्ती के तरीके से सारी-की जलन ने हमको जला दिया और हम छूँछ रह गये हैं। भोगो न भुक्ता वयमेव भुक्ता। भोगो-भोगो। भोग भोगने के लिए हम लगे रहे; पर भोगों को हम भोग नहीं सके, भोगों ने हमको भोग लिया। वैरागी जी ने चिल्लाकर के लोगों से पूछा—अरे हाजिर लोगो! जरा बताओ तो सही तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा है? कैसा? जिसने वास्तविक सुख का, वास्तविक आनन्द का उपभोग किया हो। अरे अभागे लोगो! तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा हो, जिसने जिन्दगी में सुख देखा हो, सुख पाया हो, सुख जाना हो, तो तुम बताओ। है तुममें से कोई ऐसा? न हमने कभी सुख देखा न हमने कभी सुख पाया, न हमने कभी सुख के बारे में सुना, न हमने कभी सुख जाना। जलन, बस जलन—कुत्ते की हड्डी जैसी जलन हमारी जिन्दगी भर साथ रही। उसी को जाना कि सुख इसी का नाम है। कुत्ता एक हड्डी उठाकर ले आया और चबाने लगा। उसमें से क्या हो गया कि जबड़े में से खून टपकने लगा। जब जबड़े में से खून टपका और जब उस टपकते हुए खून को चखा, तो बड़ा जायका आया—ये खून बड़ा जायकेदार है। बेटे! जायकेदार खून को चखते-चखते हम अपने आपको जला रहे हैं, अपने आपको गला रहे हैं, सोचते हैं, इसी में सुख होता होगा। वासनाओं में हमने अपने आपको जलाया, वासनाओं में हमने अपने आपको गलाया। क्या कर रहा था तू? काम-वासनाओं का सेवन कर रहा था। क्या मिल गया? क्या कमा के लाया? कुछ भी नहीं कमा के लाया गुरुजी! प्रशिक्षण यों ही गँवाया, तो फिर मूरख काहे के लिए कह रहा था कि मैं बड़ा प्रसन्न हूँ, मैं बड़ा शेर मार के लाया हूँ। अपनी हड्डी चबा रहा था। हाँ, अपने जबड़े में से खून निकाल रहा था। हाँ, अपने जबड़े के खून को पी रहा था, उसी को सुख कह रहा था। अपना लोक बिगाड़ रहा था, अपना ईमान बिगाड़ रहा था और जिन्दगी को चौपट कर रहा था, उसे सत्यानाश कर रहा था। उसी की बारूद जला करके फुलझड़ी देख रहा था। उसी को मान रहा था खुशी। हाँ, महाराज! उसी को खुशी मान रहा था। हमें देखिये, पैसे के लिए और उन चीजों के लिए, जो हमारे किसी काम की नहीं है; जो हमें न शान्ति दे सकती हैं, न सन्तोष दे सकती हैं, न चैन दे सकती हैं; उन चीजों को इकट्ठा करने के लिए हम पागलों की तरह जिन्दगी भर भटकते रहे और समझते रहे शायद इसी में सुख हो सकता है; शायद इसी में चैन हो सकता है। इसमें चैन कहाँ से हो सकता है? मिट्टी में चैन कहाँ से आ जाएगा? पैसे में चैन कहाँ से आ जाएगा? इन चीजों में चैन कहाँ से आ जाएगा? चैन तो बेटे! आदर्शों में रहता है, सिद्धान्तों में रहता है। सिद्धान्त भी हमारे पास नहीं आ सके, आदर्श भी हमारे पास नहीं आ सके। उसकी कभी इच्छा भी उत्पन्न नहीं हो सकी। हम क्या कर सकते हैं? हमको ग्राह खाये जा रहा है। गज और ग्राह—इस लड़ाई का वृतान्त आता है पुस्तकों में। पुस्तकों में गज और ग्राह के संघर्ष की लड़ाई का वर्णन है।
एक ग्राह था। उसने गज को पकड़ लिया और एक पाँव जो था, सामने वाला अगला वाला पाँव निगल लिया। जब पाँव निगल लिया, तो गज जो था, ताकत लगाने लगा और बाहर आने की कोशिश करने लगा और ग्राह भीतर खींचने लगा। दोनों में कुश्ती होने लगी और लड़ाई होने लगी। गज बहुत परेशान हुआ और बहुत दुःखी हुआ। जब गज को यह दिखाई पड़ा कि मैं अपनी ताकत के भरोसे पर बाहर नहीं निकल सकता तो उसने पुकार लगानी शुरू की और विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ किया। इसमें भगवान के नाम लिये गये हैं, और भगवान को पुकारा गया है। बार-बार भगवान को पुकारा है—आप विष्णु हैं, आप नारायण हैं, आप शिव हैं, आप कल्याणकारी हैं। बहुत-से नाम उस गज ने लिये हैं। देखिये, हम आपको वही कह रहे थे कि आप बार-बार नाम लिया कीजिये; भगवान् का जप किया कीजिए; भगवान को कहिये कि हम मर रहे हैं और हम डूबे जा रहे हैं। नरक में और पाप में हमारा अन्त हुआ जा रहा है। गज की तो एक ही टाँग पकड़ी थी और हमारे टाँगें तो हैं चार और मगर? मगर हैं छह? छह मगरों ने चार टाँगें पकड़ रखी हैं और एक-एक हमारी पूँछ पकड़ रखी है। एक हमारी सूँड़ पकड़ रखी है। गज तो एक ही पकड़ा गया था; लेकिन हमारे छह गज पकड़ के रखे हैं छह ग्राहों ने। एक ग्राह का नाम काम, एक का नाम क्रोध, एक का नाम लोभ, एक का नाम मोह, एक का नाम मद, एक का नाम मत्सर—इन सब रिपुओं ने हमारे रोम-रोम को पकड़ लिया है, जकड़ लिया है और अब हमको मालूम पड़ता है कि अब हम डूबने ही वाले हैं; हम मरने ही वाले हैं; हम जलने ही वाले हैं और खत्म होने ही वाले हैं। इसलिए हम पुकारते हैं—हे भगवान! तुम कहाँ हो—धियो यो नः प्रचोदयात्— हे भगवान! कहीं हो, तो आ जाओ। हमारा उद्धार कर दो, भगवान् बेड़ा पार लगा दो। इसीलिए हम पुकारते हैं। हमारी पुकार शायद अन्तरिक्ष में, उस वातावरण में फैल जाए और कहीं भगवान हों, तो उसकी प्रतिक्रिया हमारे भीतर आए और हमको उद्धार करने के लिए, हमको उबारने के लिए, हमको उठाने के लिए लम्बा हाथ फैला दें।