Books - मनुष्य के मूल्यांकन का आधार-आध्यात्मिकता
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Language: HINDI
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पढ़ाई दुर्गुणों को हटाने के बाद आरंभ होगी
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मित्रो! माला मुख्य नहीं होती। आप वहाँ से पढ़ना शुरू कीजिए जहाँ से आध्यात्मिकता का आरंभ होता है। आप अपने आप को मुलायम करने की कोशिश कीजिए। मुलायम करने से बेटे! क्या हो सकता है? आपने अपने मुँह में घास भर रखी है, उसको हटाइए ताकि आपको दूध पीने का मौका मिले। आप अपनी वासनाओं और तृष्णाओं को हटाइए। कमजोरियों को हटाइए ताकि जो खाली स्थान हो, उसमें श्रेष्ठता का समावेश संभव हो सके। नहीं साहब! हम अपने पाप को नहीं हटाना चाहते और अपने दोष-दुर्गुणों को नहीं हटाना चाहते। अब हम भक्ति का वरदान पाना चाहते हैं और भगवान का आशीर्वाद पाना चाहते हैं। अब सिद्धि का चमत्कार देखना चाहते हैं। अगर ऐसा संभव हो सकता है तो बेटे! हमको बताना। हमको तो पता नहीं है। हमने तो अपने आप की इतनी धुलाई की है कि जिस सख्ती से धोबी कपड़े के साथ करता है। धोबी उसे भट्ठी पर चढ़ाता है, गरम करता है, उसमें तेजाब डालता है। तेजाब डालने के बाद कहाँ ले जाता है? घाट पर ले जाता है और क्या करता है? उसे पत्थर पर पछाड़-पछाड़कर दे मारता है और धो-धो करके उसका सारा का सारा मैल निकाल देता है। हमने तो धोबी के तरीके से अपनी मलीनताओं का निवारण करने के लिए सख्ती अपने साथ की है। आपको इससे सस्ता कोई तरीका याद हो तो तलाश करना। हमने धुनिये की तरह धुना है स्वयं को बेटे! हमने तो अपने आप को धुनिये के तरीके से धुना है। जरा सी रूई की जब धुनाई होती है तो वह फूल-फूल करके इतनी बड़ी हो जाती है। राजस्थान एक पाव रूई की रजाई के लिए मशहूर है। इंदिरा गाँधी जब वहाँ भरतपुर गई थीं तो उनको एक पाव की रजाई भेंट की गई थी। एक पाव रूई से सारी की सारी रजाई का लिहाफ भर दिया गया था और भर जाने के बाद में उनको यकीन दिलाया गया था कि अगर आप एक पाव की बनाई गई रजाई को ओढ़ करके जाड़े के दिनों में सोएँगी तो आपकी ठंडक दूर हो जाएगी। आपको ठंडक की शिकायत नहीं होगी। एक पाव की रजाई कैसे हो सकती है? हमारे लिहाफ में तो दो किलो रूई आती है, ढाई किलो आती है। हाँ बेटे! बिना धुनी वाली ढाई किलो भी कम है, पाँच किलो डालनी चाहिए। लेकिन रूई अच्छी तरह से धुनी हुई है तो एक पाव का लिहाफ ही काफी हो सकता है। हमने अपने आप को धुना है और अपने आप को धोया है। धुनने के बाद हमारा फैलाव होता चला गया, विस्तार होता चला गया। बेटे! धोने के बाद हमारा कपड़ा इतना साफ होता चला गया कि जैसे टिनोपॉल लगा हुआ है। हम झकाझक चमाचम कपड़ा पहनकर आते हैं। हम ऐसे मालूम पड़ते हैं, जैसे कि कोई नेता हों और कोई मिनिस्टर हों। हम बहुत बढ़िया कपड़ा पहनकर आते हैं। बेटे! धुला हुआ लिहाफ ओढ़कर आते हैं। हमको मजा आता है।