Books - प्राणवान प्रतिभाओं एवं जागृत आत्माओं को महाकाल का आह्वान
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Language: HINDI
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युग निर्माण योजना, मथुरा
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अनुयाज-2 दिनांक-सितम्बर 5, 1994
आत्मीय बन्धु/बहन,
सप्रेम नमस्कार! आशा है आप सपरिवार अन्य समस्त परिजनों सहित स्वस्थ एवं सानन्द होंगे।
इस पत्र के साथ हम ‘महाकाल का आह्वान’ पुस्तक भेज रहे हैं, श्रावणी पर्व पर इस पुस्तक को तैयार कराने के हमारे दो प्रमुख उद्देश्य हैं :
(1) अश्वमेध के उपरान्त अनुयाज प्रक्रिया में वांछित गति लाने के लिए प. पू. गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी से प्राप्त अन्तःप्रेरणा द्वारा आप का दिशा
दर्शन करना। अपने क्षेत्र के अश्वमेध यज्ञ को सफल बनाने के लिए आपने भावनाशीलता के साथ अपना समय देते हुए अथक परिश्रमपूर्वक युग
जागरण किया है। अब जाग्रत आत्माओं में अपने मिशन के उद्देश्य एवं कार्यक्रमों के प्रति स्थाई श्रद्धा एवं निष्ठा बनाये रखना हमारा सर्वोपरि कार्य
है अन्यथा सारा किया-कराया निरर्थक हो जायेगा। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आप स्वयं इस पुस्तक को आद्योपांत पढ़ें और अनुयाज
कार्यक्रमों को समझकर अपनी श्रद्धा एवं शक्ति के अनुसार उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में फैलाने के प्रयास में जुट जायें।
(2) अश्वमेध यज्ञों की अद्भुत सफलता प. पू. गुरुदेव एवं वन्दनीया माता जी की साधना एवं सिद्धि के प्रबल प्रमाण हैं। उनके अनुदानों की वर्षा अधिक
से अधिक लोगों पर हो, यह हमारा प्रयास होना चाहिए। इस दृष्टि से कार्य करते समय जब हम नव श्रद्धालुओं एवं भावनाशीलों से सम्पर्क करेंगे
उस समय यह पुस्तक बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। हम संक्षेप में उनसे अपनी बात कह कर उन्हें इस पुस्तक को पढ़ने की प्रेरणा देंगे। इससे आपके
अपने समय और श्रम की बचत होगी और पुस्तक से उन्हें अपेक्षित जानकारी एवं सूचनाएं प्राप्त हो जायेंगी। पुस्तक पास में रहने से उन्हें इसे बार- बार पढ़ने एवं चिन्तन-मनन का अवसर भी मिलेगा।
इस पुस्तक का मूल्य मात्र एक रुपया निर्धारित किया है जबकि इसका लागत मूल्य इससे अधिक है। इसकी आप कम से कम 125 रुपये भेजकर 125 प्रतियां अवश्य मंगायें। यह कार्य स्वयं के धन से अथवा पारस्परिक या दानदाताओं के सहयोग से सरलता से हो सकता है। हमने इस पुस्तक को सवा लाख भावनाशीलों तक पहुंचाने का संकल्प लिया है। हमारा यह संकल्प आपके सहयोग से ही पूरा हो सकता है।
इस पत्र के साथ एक संकल्प पत्र भी संलग्न है जिसे स्वयं भरकर तथा अन्य भावनाशीलों से भरवाकर तत्काल हमारे कार्यालय के पते पर भेज दें।
प. पू. गुरुदेव ने सत्कार्यों के अभिनन्दन को बहुत अधिक महत्व दिया है। अतः ज्ञान यज्ञ के कर्मवीरों को अनुयाज कार्यक्रमों के आधार पर हमने निम्नलिखित अनुसार सम्मानित करने का निश्चय किया है :
1. घर मन्दिर कार्यक्रम के अन्तर्गत न्यूनतम 24 घरों में देव स्थापना कराके दैनिक उपासना प्रारंभ कराने वाले भाई-बहिनों को ‘गायत्री प्रचारक’ का
प्रमाण-पत्र देकर अभिनन्दित किया जायेगा।
2. इसी प्रकार परिवार संस्कार मन्दिर न्यूनतम 24 घरों में स्थापित करने का संकल्प लेने वाले भाई-बहन ‘संस्कृति प्रचारक’ के रूप में पंजीकृत एवं
अभिनन्दित होंगे।
3. जो भाई-बहन घर-घर विद्या मन्दिर कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए न्यूनतम 24 घरों में गायत्री ज्ञान मन्दिर की स्थापना करेंगे उनका ‘विद्या
विस्तार प्रचारक’ के रूप में पंजीकरण एवं अभिनन्दन होगा।
4. राष्ट्र सेवा मन्दिर के अन्तर्गत विविध कार्यक्रमों में से अपने क्षेत्र की आवश्यकता एवं अपनी शक्ति, सामर्थ्य तथा रुचि को ध्यान में रखकर चयन
करना है। जो भी कार्यकर्ता इस क्षेत्र में कार्य करने का संकल्प लेते हैं उन्हें अपना 24 सहयोगी तैयार करना होगा। लक्ष्य पूरा हो जाने पर कार्यकर्ता
को ‘राष्ट्र शिल्पी’ उपाधि से विभूषित किया जायेगा।
संकल्प पत्र भरते समय आप एक से अधिक अनुयाज कार्यक्रमों को सफल बनाने का संकल्प ले सकते हैं, पर अपने समय और शक्ति का ध्यान रखकर ही संकल्प लें। 24 से अधिक सहयोगी तैयार करने का संकल्प भी लिया जा सकता है।
उपर्युक्त अनुयाज कार्यक्रमों के साथ ही हमारी ‘हीर मणि’ उपाधि योजना चल रही है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक संकल्पधारी को 108 विद्या विस्तार प्रचारकों को संकल्प दिलाना है। आगामी गुरु पर्व तक ऐसे दस हजार ‘हीर मणियों’ की माला तैयार कर श्री गुरु चरणों में अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का हमने विचार किया है। इसकी प्रेरणा हमें परम पूज्य गुरुदेव से ही प्राप्त हुई है। इसे सफल बनाना भी आपका पुनीत कर्तव्य है।
हमें विश्वास है आप प्रमाद और आलस्य को अपने पास फटकने न देंगे एवं तत्परतापूर्वक कार्य में लग जायेंगे।
जिस प्रकार हम प. पू. गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी से प्रेरणा प्राप्त कर आपका उत्साहवर्धन एवं दिशा दर्शन कर रहे हैं उसी प्रकार आपसे भी अपेक्षा है कि आप हमारा उत्साहवर्धन करने के लिए पत्राचार का क्रम बनाए रखें और इस पुस्तक के संबंध में अपनी सम्मति एवं कृत कार्य से हमें अवगत कराते रहें।
प. पू. गुरुदेव एवं वन्दनीया माता जी के आशीर्वाद और अनुदान के आप सच्चे अधिकारी हैं। आपका यह अधिकार निरन्तर पुष्ट होकर वृद्धि को प्राप्त हो इस शुभकामना के साथ,
आपका भाईलीलापत शर्मा व्यवस्थापक
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