Books - संस्कृति की सीता की वापसी
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
विज्ञान सम्मत अनुशासित यज्ञ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अब हमारे पास दो उद्देश्य हैं। एक तो यज्ञ की वैज्ञानिकता को सिद्ध करना है, जिसमें आप सिद्धि और चमत्कार ढूँढ़ते हैं। जिस सिद्धि और चमत्कार के लिए आप यज्ञ करते हैं, वह काफी नहीं हो सकता। उसके लिए विशेष चीजों की जरूरत होगी। समिधाएँ अलग चाहिए। समिधायें ही नहीं, वरन् व्यक्तियों ने किस पेड़ पर से कब, किस तरीके से उन्हें तोड़ा और उनके अन्दर कैसे संस्कार भर दिए। हवन के लिए जड़ी- बूटियाँ आप बाजार में से नहीं ला सकते। जिस तरह से आप यज्ञ के लिए किसी मन्त्र से अभिमन्त्रित करके जल लाते हैं, उसी तरह जड़ी- बूटियाँ भी अभिमन्त्रित करके लानी पड़ती हैं। सामग्री भी मन्त्रित करके लानी पड़ेगी और जो आदमी हवन करने वाले होंगे, उनको भी संस्कारित करना पड़ेगा। उनको क्या करना पड़ेगा? इतने दिनों तक आपने उपवास किया है कि नहीं किया है, ब्रह्मचर्य रखते हैं कि नहीं। बेटे, वे सामर्थ्य वाले यज्ञ हैं, बरसात कराने वाले यज्ञ हैं, सन्तान देने वाले यज्ञ हैं, शान्ति देने वाले यज्ञ हैं। वे अलग होंगे। इसके लिए हम अलग प्रयत्न कर रहे हैं।
मित्रो! इसके लिए हमारा अलग शोध- संस्थान खड़ा हो रहा है। अभी तक हम क्या करते रहे? प्रचार के लिए, प्रशिक्षण के लिए यज्ञ करते रहे। दुकान पर से समिधाएँ ले आइये, टाल पर से ले आइये और दुकानदार से पूछना कि आम की हैं? अच्छा महाराज जी! आप की समिधा मिल जायेगी। बेटे! जिसकी दे, उसी की ले आना और चीर फाड़कर हवन कर देना। तो फिर वह जो सामर्थ्य की बात थी, वह आयेगी? नहीं बेटे, इससे नहीं आयेगी। अब आप क्या कर रहे हैं? अब हम पुरश्चरण कर रहे हैं। इसे इस वर्ष से हमने प्रारम्भ कर दिया है। पुरश्चरण में जप, जप के साथ हवन अनिवार्य है। हवन के बिना जप पूरा नहीं होता। इस यज्ञ की अपनी मर्यादाएँ हैं, अनुशासन हैं।
पिछले यज्ञों में अब तक ऐसा नहीं था। उसमें क्या था? चलिये भाई साहब! यज्ञ में बैठ जाइये। नहीं साहब! हमारे काम में देर हो जायेगी। नहीं साहब! देखिए, एक पारी बीस मिनट में पूरी हो जाती है। इतने में क्या देर हो जायेगी? हवन से कुछ फायदा होता होगा, तो जरूर मिलेगा। बैठिए तो सही, २० मिनट ही सही। हाथ धोइये और हवन में बैठ जाइये। अच्छा साहब! सिगरेट के हाथ तो धो लूँ। हाँ, धो लीजिए। सिगरेट के हाथ से हवन मत कीजिए। मोजा पहनकर हवन में बैठ गये। क्यों साहब! यह मोजा कितने दिनों का धुला हुआ है? यह तो बहुत दिनों से धुला नहीं है। धोती भी धुली हुई नहीं है। अतः धुली हुई धोती पहनिये, अन्यथा हवन में नहीं बैठने देंगे। नहीं साहब! इसमें क्या फर्क पड़ता है? नहीं बेटे, अब हम इस तरह के यज्ञ नहीं करने देंगे।
मित्रो! इस साल के जो यज्ञ हैं, उनके साथ अब बहुत- सी मर्यादाएँ लगा देंगे। अभी तो हमने इसमें केवल यह मर्यादा लगायी है कि जो जप करेगा, उसे ही हवन करने देंगे। गायत्री महापुरश्चरण के ये जो हवन हैं, इनकी विशेषता यह है कि इनमें हवन होने तक के लिए नियमित रूप से जप करने का जो संकल्प करेंगे, केवल वही शामिल हो सकेंगे और कोई शामिल नहीं हो सकेगा। इसके लिए नियमित उपासना अनिवार्य है। यह इसकी रीढ़ है। हवन मुख्य नहीं है, सामग्री मुख्य नहीं है। यह पैसा प्रधान यज्ञ नहीं है। यह जन सहयोग के और श्रद्धा- संकलन के यज्ञ हैं। यदि आप श्रद्धा का संकलन कर सकते हैं, तो यज्ञ कर सकते हैं। जिन्होंने श्रद्धा का संकलन नहीं किया, उपासक नहीं बनाये, तो आपका यज्ञ नहीं हो सकेगा। फिर आप यज्ञ को आगे बढ़ा लें। इसलिए यज्ञ का सारा नियंत्रण हमने अपने हाथ में लिया है। यह जीवन्त यज्ञ है। यह हमारा पुरश्चरण यज्ञ है। हमारे गुरुदेव ने हमको पुरश्चरण का संकल्प दिया था और अब हम आपके हाथ में पुरश्चरण का संकल्प देते हैं।
मित्रो! इसके लिए हमारा अलग शोध- संस्थान खड़ा हो रहा है। अभी तक हम क्या करते रहे? प्रचार के लिए, प्रशिक्षण के लिए यज्ञ करते रहे। दुकान पर से समिधाएँ ले आइये, टाल पर से ले आइये और दुकानदार से पूछना कि आम की हैं? अच्छा महाराज जी! आप की समिधा मिल जायेगी। बेटे! जिसकी दे, उसी की ले आना और चीर फाड़कर हवन कर देना। तो फिर वह जो सामर्थ्य की बात थी, वह आयेगी? नहीं बेटे, इससे नहीं आयेगी। अब आप क्या कर रहे हैं? अब हम पुरश्चरण कर रहे हैं। इसे इस वर्ष से हमने प्रारम्भ कर दिया है। पुरश्चरण में जप, जप के साथ हवन अनिवार्य है। हवन के बिना जप पूरा नहीं होता। इस यज्ञ की अपनी मर्यादाएँ हैं, अनुशासन हैं।
पिछले यज्ञों में अब तक ऐसा नहीं था। उसमें क्या था? चलिये भाई साहब! यज्ञ में बैठ जाइये। नहीं साहब! हमारे काम में देर हो जायेगी। नहीं साहब! देखिए, एक पारी बीस मिनट में पूरी हो जाती है। इतने में क्या देर हो जायेगी? हवन से कुछ फायदा होता होगा, तो जरूर मिलेगा। बैठिए तो सही, २० मिनट ही सही। हाथ धोइये और हवन में बैठ जाइये। अच्छा साहब! सिगरेट के हाथ तो धो लूँ। हाँ, धो लीजिए। सिगरेट के हाथ से हवन मत कीजिए। मोजा पहनकर हवन में बैठ गये। क्यों साहब! यह मोजा कितने दिनों का धुला हुआ है? यह तो बहुत दिनों से धुला नहीं है। धोती भी धुली हुई नहीं है। अतः धुली हुई धोती पहनिये, अन्यथा हवन में नहीं बैठने देंगे। नहीं साहब! इसमें क्या फर्क पड़ता है? नहीं बेटे, अब हम इस तरह के यज्ञ नहीं करने देंगे।
मित्रो! इस साल के जो यज्ञ हैं, उनके साथ अब बहुत- सी मर्यादाएँ लगा देंगे। अभी तो हमने इसमें केवल यह मर्यादा लगायी है कि जो जप करेगा, उसे ही हवन करने देंगे। गायत्री महापुरश्चरण के ये जो हवन हैं, इनकी विशेषता यह है कि इनमें हवन होने तक के लिए नियमित रूप से जप करने का जो संकल्प करेंगे, केवल वही शामिल हो सकेंगे और कोई शामिल नहीं हो सकेगा। इसके लिए नियमित उपासना अनिवार्य है। यह इसकी रीढ़ है। हवन मुख्य नहीं है, सामग्री मुख्य नहीं है। यह पैसा प्रधान यज्ञ नहीं है। यह जन सहयोग के और श्रद्धा- संकलन के यज्ञ हैं। यदि आप श्रद्धा का संकलन कर सकते हैं, तो यज्ञ कर सकते हैं। जिन्होंने श्रद्धा का संकलन नहीं किया, उपासक नहीं बनाये, तो आपका यज्ञ नहीं हो सकेगा। फिर आप यज्ञ को आगे बढ़ा लें। इसलिए यज्ञ का सारा नियंत्रण हमने अपने हाथ में लिया है। यह जीवन्त यज्ञ है। यह हमारा पुरश्चरण यज्ञ है। हमारे गुरुदेव ने हमको पुरश्चरण का संकल्प दिया था और अब हम आपके हाथ में पुरश्चरण का संकल्प देते हैं।