Books - शक्ति के भंडार से स्वयं को जोड़े
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Language: HINDI
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शक्ति के भंडार से स्वयं को जोड़ें
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलें—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
देवियो, सज्जनो!
मनुष्य की सामान्य शक्ति सीमित है। प्रत्येक प्राणी को भगवान ने इतना ही सामान दिया है कि वह अपने जीवन का गुजारा कर ले। कीड़ों-मकोड़ों और पशु-पक्षियों को सिर्फ इतना ही ज्ञान, साधना, शक्ति और इंद्रियाँ मिली हैं, ताकि वे अपना पेट भर लें और प्रकृति की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी औलाद पैदा करते रहें। इससे ज्यादा कुछ उनके पास है नहीं, लेकिन आपके पास है। अगर आपको इससे कुछ ज्यादा जानना और प्राप्त करना है, तो आपको वहाँ जाना पड़ेगा, जहाँ शक्तियों के भांडागार भरे पड़े हैं। एक जगह ऐसी भी है जहाँ बहुत शक्ति भरी पड़ी है, जहाँ संपत्तियों का कोई ठिकाना नहीं। जहाँ समृद्धि की अनंत शक्ति है। सारे विश्व का मालिक कौन है? भगवान। यह उसी का तो सामान है जिससे उन्होंने दुनिया को बना दिया। यहाँ जो कुछ भी वैभव आप देखते हैं, वह भगवान के भंडार का एक छोटा सा चमत्कार है। पृथ्वी के अलावा और भी लोक हैं। उन सबमें भी भगवान का भंडार भरा पड़ा हुआ है। बड़ा संपत्तिवान है भगवान। आपको यदि संपत्तियों की, सफलताओं की, विभूतियों की जरूरत है, तो अपना पुरुषार्थ इस काम में खरच करिए कि उस भगवान के साथ में अपना रिश्ता बना लीजिए। उसके साथ जुड़ने में अगर आप समर्थ हो सकें, तो यह सबसे बड़ा पुरुषार्थ होगा। आप भगवान के साथ में अपना रिश्ता बना लें तो मजा आ जाए।
मालदार आदमी से रिश्ता बना लेने पर क्या हो सकता है? लालबहादुर शास्त्री का नाम सुना है आपने, वे बिलकुल एक छोटे से आदमी थे, लेकिन पंडित नेहरू के साथ में उन्होंने अपने घनिष्ठ संबंध बना लिए जिसकी वजह से वे एम. पी. हो गए। उनकी सहायता से वे यूपी के मिनिस्टर भी हो गए और फिर मरने के पश्चात उनके उत्तराधिकारी भी हो गए। बहुत शानदार थे लालबहादुर शास्त्री, यह उनके अपने पुरुषार्थ का उतना फल नहीं था, जितना कि नेहरू जी के सहयोग का। उनकी निगाह में उनकी इज्जत जम गई थी। उन्होंने देख लिया था कि यह आदमी बड़ा उपयोगी है, उसकी सहायता करनी चाहिए। उसकी सहायता से उनने भी लाभ उठाया, इसलिए पंडित नेहरू ने उनकी भरपूर सहायता की। ठीक यही बात हर जगह लागू होती है। भगवान एक सर्वशक्तिमान सत्ता है। उसके साथ अगर आप अपना संबंध जोड़ लें, तब आपकी मालदारी का कोई ठिकाना न रहेगा, तब आप इतने संपन्न हो जाएँगे कि मैं आपसे क्या-क्या कहूँ? आप बापा जलाराम के तरीके से संपन्न हो सकते हैं, आप सुदामा के तरीके से मालदार भी हो सकते हैं, विभीषण और सुग्रीव के तरीके से मुसीबतों से बचकर के फिर से अपना खोया हुआ राजपाट पा सकते हैं। नरसी मेहता के तरीके से हुंडी भी आप पर बरस सकती है। यहाँ कुछ कमी है क्या? यहाँ कोई कमी नहीं है। इसलिए यहाँ जो आपको बुलाया गया है, उसका एक कारण यह भी है कि आप से कहा जाए कि आप भगवान से रिश्ता जोड़ लें। आप जो पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं, उसका मतलब यह है कि आप इन उपायों के माध्यम से अपना रिश्ता भगवान से जोड़ लें। एक गरीब घर की लड़की की यदि किसी मालदार पति के साथ में शादी हो जाए तो वह दूसरे ही दिन से उसकी मालकिन हो जाती है, क्योंकि उसने उससे रिश्ता मिला लिया।
रिश्ता मिलाने के लिए क्या करना पड़ता है? बस यही तो मुझे आपसे कहना था। रिश्ता मिलाने में आप ख्याल करते हैं कि रिश्वत देनी पड़ती है, चापलूसी करनी पड़ती है, पर इस ख्याल को आप हटा दीजिए। रिश्वत देकर के भगवान को अपना मित्र बना सकते हैं? उसका अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं? ऐसा मत कीजिए। साथ ही आप यह विचार मत कीजिए कि जीभ की नोक से कुछ मीठी बातें, कुछ चापलूसी की बातें और स्तोत्र पाठ करने के बाद में भगवान को आप अपना बना सकते हैं। भगवान की साझेदारी पर आप यकीन कीजिए और यह समझिए कि भगवान आपकी जुबान को नहीं, आपकी नीयत को देखता है, दृष्टिकोण को देखता है, चरित्र को देखता है, चिंतन को देखता है और आपकी भावनाओं को देखता है। अगर आप इस क्षेत्र में सूने हैं तो आपके कर्मकाण्ड कोई बहुत ज्यादा कारगर नहीं हो सकते। आप देखते हैं न कि कितने पंडित लोग हैं जो तरह-तरह के विधि-विधान और कर्मकाण्ड जानते हैं, पर सब खाली हाथ रहते हैं। आपने देखा है कि साधु महात्मा तरह-तरह के जाप करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, स्नान-ध्यान करते हैं, तीर्थयात्रा करते हैं, लेकिन उनकी नीयत, भावना और दृष्टिकोण अगर ऊँचा न हुआ, व्यक्तित्व ऊँचा न हुआ, अंतःकरण ऊँचा न हुआ, तब उनका लाल-पीले कपड़े पहन लेना, तरह-तरह के आडम्बर बना लेना और तरह-तरह के क्रिया-कृत्य कर लेना बिलकुल बेकार चला जाता है और सामान्य स्तर के नागरिकों से भी गई-बीती जिंदगी जीते हैं।
भगवान की कृपा कहाँ मिलती है? भगवान को प्राप्त करने का जो असली रहस्य है, उसे आपको जानना ही चाहिए। क्या करना होगा? आपको भगवान के साथ जुड़ जाना होगा। जुड़ जाने को ही उपासना कहते हैं। उपासना का मतलब ही है-जुड़ जाना-पास बैठना। किस तरह से जुड़ जाएँ? मैं आपको कुछ थोड़े से उदाहरण बताऊँगा। जुड़ना किसे कहते हैं? आपने आग में लकड़ी को गिरते हुए देखा है न। उस लकड़ी की क्या कीमत है-दो कौड़ी की जिसे आप पैर के नीचे फेंक दीजिए तो क्या या तोड़कर फेंक दीजिए तो क्या इधर से उधर करते रहिए। उसकी कोई कीमत नहीं हो सकती, पर आग के साथ में यदि उसको मिला दिया जाए तो आप देखेंगे कि थोड़ी ही देर में लकड़ी गरम होने लगती है और आग हो जाती है। तब आप उसे छू भी नहीं सकते और जो गुण अग्निदेवता के हैं, वही गुण उस नाचीज लकड़ी में भी आ जाते हैं। ठीक यही तरीका व्यक्ति को, जीवात्मा को परमात्मा के साथ मिलाने का है। क्या करें? नजदीक तो आइए आप। नजदीक आने का बस एक ही तरीका है-अपने आप को सौंप देना, होम देना। भगवान की इच्छा पर चलना। लकड़ी अपने आप को सौंप देती है और होम देती है। आग जब उसको जलाती है तो जलने में वह रजामंद हो जाती है। उसी के साथ जब वह घुल गई तो वह उसी का रूप हो जाती है। हमारी और आपकी नियति यह हो कि हम भगवान के साथ में घुल जाएँ। घुलने का मतलब है सौंप देंगे। उनको अपने में नहीं मिला लेंगे, अपनी मरजी के ऊपर नहीं चलाएँगे, वरन हम अपने को उनकी मरजी के मुताबिक़ चलाएँगे। इसी का नाम ''समर्पण'' है। इसी का नाम विलय और विसर्जन है। इसी का नाम शरणागति है। बहुत से नाम इसको दिए गए हैं। उपासना का तत्त्वज्ञान इसी पर टिका हुआ है कि आप भगवान के अनुयायी होते हैं कि नहीं, उसका अनुशासन मानते हैं कि नहीं। आप भगवान की इच्छानुसार चलते हैं कि नहीं, उसके बताए हुए इशारे एवं संकेत पर चलते हैं कि नहीं। उपासना के साथ जुड़ा हुआ एकमात्र यही प्रश्न है और कोई दूसरा नहीं।
यह ख्याल ठीक नहीं है कि आप अपनी मनमरजी पर चला सकते हैं और चलाएँगे। भगवान आपकी मरजी पर क्यों चलने लगे? भगवान के अपने कुछ नीति-नियम हैं, मर्यादा और कायदे हैं। आपकी खुशामद की वजह से आपकी मनोकामना पूरी करने के लिए भगवान अपने नीति-नियम को छोड़ देंगे, मर्यादा और कायदे-कानून को छोड़ देंगे और अपने आप को पक्षपाती होने का इल्जाम लगवाएँगे-कलंक लेंगे क्या? नहीं ऐसा भगवान कर नहीं सकेंगे। अगर आपके मन में यह ख्याल हो कि मिन्नतों और खुशामदों से भगवान को कहीं नजदीक ला सकते हैं और उपासना कर सकते हैं तो आप यह ख्याल छोड़ दीजिए। तब क्या करना पड़ेगा? तब एक ही काम करना पड़ेगा कि आप अपने आप को भगवान को सौंप दीजिए। अपने आप को उनके हाथ की कठपुतली बना लीजिए फिर देखिए भगवान क्या से क्या करवाते हैं। पानी दूध में मिल जाता है और उसकी हैसियत दूध के बराबर हो जाती है। छोटी सी नाचीज बूँद समुद्र में गिरती है और अपनी हस्ती को उसी में विसर्जित कर देती है और समुद्र की कीमत की हो जाती है। छोटी सी बूँद की हैसियत समुद्र के बराबर हो जाती है। दो कौड़ी का गंदा, कीचड़ से भरा हुआ नाला जब नदी में शामिल हो जाता है, तब वह नदी हो जाता है। उसका पानी नदी की तरह से पूजा जाता है। गंगा में गिरे हुए नाले का गंदा जल भी गंगाजल कहलाता है। यह कैसे हो गया? नाले ने अपने आप को समर्पित कर दिया। किसको? नदी को। यदि समर्पित न करता तब? तब आपकी मनःस्थिति का होता और गंगा जी से कहता-आप नाला बन जाइए और हमारी मरजी पूरी कीजिए। हमारे साथ-साथ रहिए पर ऐसा हो नहीं सकता। भगवान को आप अपने जैसा नहीं बना सकते। अपनी मरजियाँ पूरी कराने के लिए उन्हें मजबूर नहीं कर सकते। आपको ही उनके पीछे चलना पड़ेगा।
मित्रो, पारस के बारे में आप लोगों ने सुना होगा कि पारस को छूकर लोहा सोना हो जाता है, बदल जाता है। यदि लोहा वैसा ही रहे और पारस से कहे कि आप लोहा बन जाइए तो यह संभव नहीं। पारस लोहा नहीं बन सकता। लोहे को ही बदलना पड़ेगा। चंदन के पास उगे हुए पौधे चंदन की खुशबू देते हैं और चंदन बन जाते हैं, पर आप तो यह चाहते हैं कि चंदन को ही हम जैसा बनना चाहिए। चंदन आप जैसा नहीं बन सकता। छोटी झाड़ियों को ही चंदन जैसा खुशबूदार बनना चाहिए। चंदन बदबूदार झाड़ी नहीं बन सकता। भगवान पर दबाव मत डालिए। तब क्या करना पड़ेगा? आप उसके साथ में घुल जाइए लिपट जाइए। बेल देखी है न आपने, वह पेड़ के साथ में लिपट जाती है और जितना ऊँचा पेड़ है, उतनी ऊँची होती चली जाती है। यदि बेल अपनी मनमरजी से फैलती तो सिर्फ जमीन पर फैल सकती थी और ऊँचा उठना मुमकिन नहीं था, परंतु इतनी ऊँची कैसे हो गई? क्योंकि वह पेड़ से गुँथ गई, लिपट गई। आप भी भगवान से गुँथ जाइए लिपट जाइए फिर देखिए कि आपकी ऊँचाई भी पेड़ पर लिपटी हुई बेल के बराबर होती है कि नहीं। भगवान बहुत ऊँचा है, आप उसके साथ जुड़कर देखिए उसके अनुशासन को पालिए। उसकी इच्छा के साथ चलिए फिर आप देखिए कि भगवान के बराबर बन जाते हैं कि नहीं। पतंग अपने आप को बच्चे के हाथ में सौंप देती है। बच्चे के हाथ में उस बँधी हुई डोरी का एक सिरा होता है जिसे वह झटका देता रहता है और पतंग आसमान में जा पहुँचती है। पतंग अपनी डोरी को बच्चे के सुपुर्द न करे तब, उसे जमीन पर पड़ा रहना पड़ेगा।
आप अपने जीवन की बागडोर और जीवन का आधार भगवान के हाथ में न सौंपे, उसकी मरजी के अनुसार न चलें तो आप पतंग के तरीके से आसमान पर उड़ने की अपेक्षा मत कीजिए। आपने दर्पण देखा है न, उसके सामने जो चीज आती है वह दर्पण में वैसे ही दिखाई पड़ने लगती है। आपके जीवन में चारों ओर से दोष-दुर्गुण एवं कल्मष छाए हुए हैं, इसलिए आपका दर्पण भी-मानसिक स्तर भी वैसा ही बन गया है, लेकिन अगर आप भगवान को सामने रखें, उसके नजदीक जाएँ तो आप देखेंगे कि आपके जीवन में भी भगवान की आभा-भगवान की शक्ति उसी तरीके से बन जाती है जैसे कि दर्पण के सामने खड़े हुए आदमी की बन जाती है। वंशी अपने आप को पोली कर देती है और खाली कर देती है। पोली और खाली कर देने के बाद में फिर बजाने वाले के पास जा पहुँचती है और उससे कहती है कि आप बजाइए जो आप कहेंगे वही मैं गाऊँगी। बजाने वाला फूँक मारता जाता है और वह बजती जाती है। भगवान को फूँक मारने दीजिए और आप बजने के लिए तैयार हो जाइए।
कठपुतली को आपने देखा होगा। उसके धागे बाजीगर के हाथ में लगे होते हैं। बाजीगर इशारे करता जाता है और कठपुतली बिना कुछ कहे नाचना शुरू कर देती है। दुनिया को दिखाई पड़ता है कि कठपुतली का नाच कितना शानदार हुआ? पर वस्तुत: यह कठपुतली का नाच नहीं वरन बाजीगर का कमाल है। कठपुतली ने तो अपने शरीर के हिस्सों में धागे बँधवाए और उनको बाजीगर के हाथ में सौंप दिया समर्पण कर दिया। बस, यही आपको भी करना पड़ेगा। कठपुतली के तरीके से अगर आप बाजीगर के हाथ में अपनी जिंदगी की नाव सौंप सकते हों, अपने विचार और चिंतन सौंप सकते हों, अपनी इच्छाएँ और आकांक्षाएँ सौंप सकते हों, तो फिर देखिए कि कैसा मजा आ जाता है। आप उस जेनरेटर से संबद्ध हो जाइए जिसके साथ में जुड़ने के बाद ही बल्ब जलता है। पंखे तभी चलते हैं, जब उनका संबंध बिजलीघर से जुड़ जाता है। अगर आप सुनेंगे नहीं, जुड़ेंगे नहीं, तब आप रखे रहिए आपकी कीमत ढाई रुपए है। आप प्रकाश नहीं दे सकते। आपकी हैसियत है तो ठीक है, वह आपको मुबारक, लेकिन अगर आप अनंत शक्ति के साथ न जुड़े तो सब बेकार है। अनंत शक्ति के साथ अगर आप जुड़ेंगे तो फिर देखेंगे कि कितना कमाल कर सकते हैं। इसलिए आदमी की सबसे बड़ी समझदारी यह है कि अपने आप को भगवान के साथ में जोड़ लें। उसकी शक्तियों के साथ में अपनी सत्ता को मिला दें। यह काम जरा भी कठिन नहीं है, वरन बहुत सरल है। नल आपने देखा है न, जब वह टंकी के साथ जुड़ जाता है जिसमें पानी भरा हुआ है तो उसको बराबर पानी मिलता रहता है। अपने आप में अकेला नल कुछ भी तो नहीं है, लेकिन जब टंकी के साथ में रिश्ता मिला लिया तो उसकी कीमत बढ़ गई। उस नल से अब आपको बराबर पानी मिलता रहेगा।
वक्त छोटा हो तो क्या, नाचीज हो तो क्या, यदि आपने सच्चे मन से भगवान के साथ अपने आपको जोड़कर रखा है, तो भगवान की जो संपदा है, जो विभूतियाँ हैं, वह भक्त की अपनी हो जाती हैं और बराबर उसको मिलती चली जाती हैं। इसके लिए क्या करना पड़ेगा? अपने आप को सौंपना पड़ेगा और क्या करना पड़ेगा। भगवान को बहकाना, फुसलाना और अपनी मरजी पर चलाना बंद करना पड़ेगा, आपको ही उसका कहना मानना पड़ेगा आपको ही समर्पण करना पड़ेगा। बीज अपने आप को ही बनाना पड़ेगा। भगवान के खेत में अपने आप को बोइए फिर देखिए कैसी फसल आती है? मक्का का एक दाना खेत में बो देते हैं और उसका पौधा खड़ा हो जाता है, भुट्टे आ जाते हैं और एक-एक भुट्टे में हजार-हजार दाने होते हैं। इस तरह एक बीज के हजारों दाने हो जाते हैं। आप अपने आप को भगवान के खेत में बोइए गलिए फिर देखिए आपकी स्थिति कहाँ से कहाँ पहुँच जाती है। गलने का मन है नहीं, हिम्मत है नहीं, तो फिर काम कैसे चलेगा? आप गलने की हिम्मत नहीं करेंगे, बीज को जिंदगी भर अपनी पोटली में रखे रहेंगे और यह अपेक्षा करते रहेंगे कि जमीन हमारे खेत लहलहा दे और हमको नहीं गलना पड़े, ऐसा कहीं हुआ है क्या? ऐसा नहीं होगा। आपको गलना पड़ेगा। अगर आप नहीं गलेंगे, तब आप भगवान से क्या उम्मीद करेंगे?
आपने सुना है न कि भगवान की आदत कुछ ऐसी है कि माँगते रहते हैं। पहले हाथ पसारते हैं, बाद में कुछ देने की बात कहते हैं। उनके हाथ पर आप कुछ रख नहीं सकते तो फिर आप क्या पाएँगे? चावलों से, धूपबत्ती से आप भगवान को खरीद नहीं सकेंगे। आप आरती करके पा नहीं सकेंगे। जीभ की नोक से स्तोत्र पाठ करके या छोटे-बड़े कर्मकाण्ड करके भगवान के अनुग्रहों के आप अधिकारी नहीं हो पाएँगे। तो फिर क्या करना पड़ेगा? आपको अपना दृष्टिकोण, चिंतन और चरित्र, भावना और लक्ष्य सब का सब भगवान के साथ में जोड़ना पड़ेगा। जिस दिन आप यह करने को तैयार हो जाएँगे तो उस दिन आप देखिएगा क्या-क्या होता है? भगवान की मरजी तो पूरी करिए फिर देखिए आपको कुछ मिलता है या नहीं। भगवान नीयत देखते हैं। अभी मैंने सुदामा का नाम लिया था। सुदामा ने अपनी पोटली दे दी थी, बाद में भगवान ने उन्हें जो दिया वह आप जानते हैं। जिसके पास भी भगवान जाते हैं, माँगते जाते हैं, देते हुए नहीं। शबरी के पास भगवान गए थे तो कोई सोना-चाँदी या हीरे-मोती लेकर नहीं गए थे। वे माँगते हुए गए थे कि अरे हम बहुत भूखे हैं कुछ खाना खिलाइए। शबरी के पास जूठे बेर थे, जो कुछ भी था भगवान के सुपुर्द कर दिया। गोपियों के पास भी गए थे। गोपियों से भगवान प्यार करते थे और उनसे यही पूछते थे-लाइए आप कुछ दीजिए। कुछ नहीं तो छाछ ही माँगते थे। कर्ण से भी माँगने गए थे, बलि से भी माँगने गए थे। हर जगह भगवान माँगते ही चले आते हैं। भगवान कहीं भी जाते हैं तो मनुष्य की पात्रता को परखने के लिए उसकी महानता को विकसित करने के लिए एक ही दबाव डालते हैं कि आपके पास क्या है, उसे सुपुर्द कीजिए। भगवान की आदत को आप जानेंगे नहीं तो मुश्किल पड़ेगा और अपने आप को सौंपने के लिए आमादा न होंगे तो आप भगवान को अपना नहीं बना सकेंगे।
भगवान की भक्ति किसे कहते हैं? समर्पण को, पर आपने तो उसे कठपुतली के तरीके से चलाने और भक्ति से उचित और अनुचित जो कुछ भी फायदे होते हों, उठा लेने को मान लिया है। आप अपनी भक्ति की इस परिभाषा को बदल दीजिए। भक्ति कैसी होती है? इसकी एक कहानी सुनाता हूँ आपको। लैला-मजनूँ की कहानी सुनी है न आपने, न सुनी हो तो सुनिए। एक मजनूँ था जो लैला को प्यार करता था और चाहता था कि उससे शादी हो जाए लेकिन उसका बाप तैयार नहीं था। उसने कहा-हम भिखारी के साथ अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे। तब लैला ने सोचा-चलो मैं ही अपनी मरजी से शादी कर लेती हूँ लेकिन पहले देखूँ तो सही कि ऐसे ही अपनी खुदगर्जी के लिए मतलब के लिए ही मुझे अपने शिकंजे में कसना चाहता है, या वास्तव में मुझे प्यार करता है। प्यार करने का अर्थ होता है-देना। सो उसने सोचा चलो उसकी परीक्षा लेनी चाहिए। उसने अपनी एक बाँदी को भेजा। उसने मजनूँ से कहा कि लैला बहुत बीमार है, तो वह बहुत दुखी हुआ। बाँदी ने कहा-दुखी होने से क्या फायदा कर सकते हो तो कुछ मदद कीजिए। अगर प्यार करते हैं तो कुछ कीजिए न। तो उसने कहा, क्या दूँ? बाँदी ने कहा कि डॉक्टरों ने कहा है कि लैला की नसों में खून चढ़ाया जाएगा। तो क्या आप अपना खून देंगे जिससे लैला की जान बचाई जा सके। मजनूँ फौरन तैयार हो गया और चाँदी का जो कटोरा बाँदी लाई थी उसे अपने खून से लबालब भर दिया और बोला-बाँदी जल्दी आना अभी मेरे शरीर में जितना भी रक्त है, मैं सब उसके सुपुर्द कर दूँगा। मैं उसे मुहब्बत करता हूँ और मुहब्बत का अर्थ होता है-देना। इसलिए मैं तो देने ही देने वाला हूँ। बाँदी रक्त का कटोरा लेकर चली गई। शेष नकली मजनुओं को भगा दिया गया लैला ने अपने बाप से कहा कि जो मुझसे इतनी मुहब्बत करता है और जो मुहब्बत की कीमत को समझता है उसके साथ तो मैं रहूँगी ही। लैला की मजनूँ के साथ शादी हुई थी। आपकी भी शादी भगवान के साथ हो सकती है, आप जरूर भगवान के साथ शादी कर सकते हैं।
इसके लिए करना क्या चाहिए? एक ही बात करनी चाहिए-भगवान की मरजी पर चलने के लिए आमादा हो जाइए। जो कुछ वह आपसे चाहते हैं, वह आप कीजिए। आप चाहते हैं ठीक है, लेकिन जो आप चाहते हैं उससे पहले भगवान ने बहुत कुछ दे दिया है। उसने आपको इनसान की ऐसी बेहतरीन और समर्थ जिंदगी दी है कि इसके आधार पर आप अपनी मनमरजी पूरी कर सकते हैं। मनमरजी के लिए कोई कमी नहीं है। आपके हाथ कितने बड़े हैं, अक्ल कितनी बड़ी है, आपकी आँखें और जुबान कितनी शानदार हैं? आप अपनी दैनिक जरूरतों की, जिनकी भगवान से अपेक्षा करते हैं, उनके लिए अपेक्षा मत कीजिए। आप जो पुरुषार्थ से कमाते हैं उसमें संतोष कर सकते हैं अथवा कम में काम चला सकते हैं आप अपनी हवस और अपनी ख्वाहिशें, तमन्नाएँ और इच्छाएँ अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए क्या भगवान को दबोचेंगे, भगवान को मजबूर करेंगे क्या? क्या वह कर्तव्य की बात को छोड़ दें और आपके लिए पक्षपात करने लगें और कर्मफल की महत्ता का परित्याग कर दें। आप ऐसा मत कीजिए भगवान को न्यायाधीश रहने दीजिए। आप भगवान को बेइज्जत मत कीजिए। आप अपनी मरजी के लिए उनको पक्षपाती मत बनाइए। ऐसा वे करेंगे भी नहीं। आप बनाना चाहें तो भी वे नहीं करेंगे।
इसलिए तरीका सिर्फ एक ही है कि आप उस शक्ति के भंडार के साथ में अपने आप को मिला लीजिए जोड़ लीजिए। मिलाने और जोड़ने का तरीका वही है अर्थात आपको उनकी मरजी पर चलना पड़ेगा। आप अपनी मर्जियाँ खतम कीजिए अपनी आकांक्षाएँ खतम कीजिए अपनी इच्छाएँ खतम कीजिए। आप उन्हीं के हो जाइए और उन्हीं के साथ रहिए। जब आप भगवान के साथ हो जाते हैं तो वे आपके हो जाते हैं। आप उनके हो जाइए और अपना बना लीजिए। राजा हरिश्चंद्र बिके थे एक बार, डोमराजा खरीद ले गया था उन्हें। भगवान भी चौराहे पर बिकने के लिए खड़े हैं। वे आवाज लगाते है कि हम बिकने के लिए खड़े हैं कि हमको खरीद लिया जाए। जो हमको खरीद लेगा, उसी की सेवा करेंगे, उसी के साथ-साथ रहेंगे। आप चाहें तो उनको खरीद सकते हैं। क्या कीमत है? आप अपने आप को उनके हाथों बेच दीजिए और उन्हें अपने हाथों खरीद लीजिए। स्त्री अपने हाथों अपने आप को अपने पति के हाथों सौंप देती है, अपने आप को बेच देती है और इसकी कीमत पर पति को खरीद लेती है। बस यही मित्रता का रास्ता है, यही भगवान की भक्ति का रास्ता है। आपको अपने जीवन में हेर-फेर करना ही पड़ेगा और करना ही चाहिए। आप अपने घिनौने चिंतन को बदल दीजिए छोटे दृष्टिकोण को बदल दीजिए। लोभ और लालच से बाज आइए और भगवान की सुंदर दुनिया को ऊँचा बनाने के लिए शानदार बनाने के लिए उनके राजकुमार के तरीके से उनकी संपदा को, उनकी सृष्टि को ऊँचा और अच्छा बनाने के लिए कमर कसकर खड़े हो जाइए। आप समर्पित हो जाइए शरणागति में आइए विलय कीजिए विसर्जन कीजिए फिर देखिए आप क्या पाते हैं? बीज के तरीके से गल जाएँ और पेड़ के तरीके से उगने की तैयारी कीजिए। आप त्याग नहीं करेंगे तो पा कैसे लेंगे? जो त्याग करना है, उसमें जप करना ही काफी नहीं है, जरूरी तो है, पर काफी नहीं। भगवान को चावल चढ़ा देना, धूपबत्ती उतार देना, आरती उतारना जरूरी तो है, पर काफी नहीं है। ज्यादा करने के लिए आप अपना कलेजा चौड़ा कीजिए और तैयारी कीजिए। आज मुझे यही निवेदन करना था, आप सब लोगों से।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
देवियो, सज्जनो!
मनुष्य की सामान्य शक्ति सीमित है। प्रत्येक प्राणी को भगवान ने इतना ही सामान दिया है कि वह अपने जीवन का गुजारा कर ले। कीड़ों-मकोड़ों और पशु-पक्षियों को सिर्फ इतना ही ज्ञान, साधना, शक्ति और इंद्रियाँ मिली हैं, ताकि वे अपना पेट भर लें और प्रकृति की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी औलाद पैदा करते रहें। इससे ज्यादा कुछ उनके पास है नहीं, लेकिन आपके पास है। अगर आपको इससे कुछ ज्यादा जानना और प्राप्त करना है, तो आपको वहाँ जाना पड़ेगा, जहाँ शक्तियों के भांडागार भरे पड़े हैं। एक जगह ऐसी भी है जहाँ बहुत शक्ति भरी पड़ी है, जहाँ संपत्तियों का कोई ठिकाना नहीं। जहाँ समृद्धि की अनंत शक्ति है। सारे विश्व का मालिक कौन है? भगवान। यह उसी का तो सामान है जिससे उन्होंने दुनिया को बना दिया। यहाँ जो कुछ भी वैभव आप देखते हैं, वह भगवान के भंडार का एक छोटा सा चमत्कार है। पृथ्वी के अलावा और भी लोक हैं। उन सबमें भी भगवान का भंडार भरा पड़ा हुआ है। बड़ा संपत्तिवान है भगवान। आपको यदि संपत्तियों की, सफलताओं की, विभूतियों की जरूरत है, तो अपना पुरुषार्थ इस काम में खरच करिए कि उस भगवान के साथ में अपना रिश्ता बना लीजिए। उसके साथ जुड़ने में अगर आप समर्थ हो सकें, तो यह सबसे बड़ा पुरुषार्थ होगा। आप भगवान के साथ में अपना रिश्ता बना लें तो मजा आ जाए।
मालदार आदमी से रिश्ता बना लेने पर क्या हो सकता है? लालबहादुर शास्त्री का नाम सुना है आपने, वे बिलकुल एक छोटे से आदमी थे, लेकिन पंडित नेहरू के साथ में उन्होंने अपने घनिष्ठ संबंध बना लिए जिसकी वजह से वे एम. पी. हो गए। उनकी सहायता से वे यूपी के मिनिस्टर भी हो गए और फिर मरने के पश्चात उनके उत्तराधिकारी भी हो गए। बहुत शानदार थे लालबहादुर शास्त्री, यह उनके अपने पुरुषार्थ का उतना फल नहीं था, जितना कि नेहरू जी के सहयोग का। उनकी निगाह में उनकी इज्जत जम गई थी। उन्होंने देख लिया था कि यह आदमी बड़ा उपयोगी है, उसकी सहायता करनी चाहिए। उसकी सहायता से उनने भी लाभ उठाया, इसलिए पंडित नेहरू ने उनकी भरपूर सहायता की। ठीक यही बात हर जगह लागू होती है। भगवान एक सर्वशक्तिमान सत्ता है। उसके साथ अगर आप अपना संबंध जोड़ लें, तब आपकी मालदारी का कोई ठिकाना न रहेगा, तब आप इतने संपन्न हो जाएँगे कि मैं आपसे क्या-क्या कहूँ? आप बापा जलाराम के तरीके से संपन्न हो सकते हैं, आप सुदामा के तरीके से मालदार भी हो सकते हैं, विभीषण और सुग्रीव के तरीके से मुसीबतों से बचकर के फिर से अपना खोया हुआ राजपाट पा सकते हैं। नरसी मेहता के तरीके से हुंडी भी आप पर बरस सकती है। यहाँ कुछ कमी है क्या? यहाँ कोई कमी नहीं है। इसलिए यहाँ जो आपको बुलाया गया है, उसका एक कारण यह भी है कि आप से कहा जाए कि आप भगवान से रिश्ता जोड़ लें। आप जो पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं, उसका मतलब यह है कि आप इन उपायों के माध्यम से अपना रिश्ता भगवान से जोड़ लें। एक गरीब घर की लड़की की यदि किसी मालदार पति के साथ में शादी हो जाए तो वह दूसरे ही दिन से उसकी मालकिन हो जाती है, क्योंकि उसने उससे रिश्ता मिला लिया।
रिश्ता मिलाने के लिए क्या करना पड़ता है? बस यही तो मुझे आपसे कहना था। रिश्ता मिलाने में आप ख्याल करते हैं कि रिश्वत देनी पड़ती है, चापलूसी करनी पड़ती है, पर इस ख्याल को आप हटा दीजिए। रिश्वत देकर के भगवान को अपना मित्र बना सकते हैं? उसका अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं? ऐसा मत कीजिए। साथ ही आप यह विचार मत कीजिए कि जीभ की नोक से कुछ मीठी बातें, कुछ चापलूसी की बातें और स्तोत्र पाठ करने के बाद में भगवान को आप अपना बना सकते हैं। भगवान की साझेदारी पर आप यकीन कीजिए और यह समझिए कि भगवान आपकी जुबान को नहीं, आपकी नीयत को देखता है, दृष्टिकोण को देखता है, चरित्र को देखता है, चिंतन को देखता है और आपकी भावनाओं को देखता है। अगर आप इस क्षेत्र में सूने हैं तो आपके कर्मकाण्ड कोई बहुत ज्यादा कारगर नहीं हो सकते। आप देखते हैं न कि कितने पंडित लोग हैं जो तरह-तरह के विधि-विधान और कर्मकाण्ड जानते हैं, पर सब खाली हाथ रहते हैं। आपने देखा है कि साधु महात्मा तरह-तरह के जाप करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, स्नान-ध्यान करते हैं, तीर्थयात्रा करते हैं, लेकिन उनकी नीयत, भावना और दृष्टिकोण अगर ऊँचा न हुआ, व्यक्तित्व ऊँचा न हुआ, अंतःकरण ऊँचा न हुआ, तब उनका लाल-पीले कपड़े पहन लेना, तरह-तरह के आडम्बर बना लेना और तरह-तरह के क्रिया-कृत्य कर लेना बिलकुल बेकार चला जाता है और सामान्य स्तर के नागरिकों से भी गई-बीती जिंदगी जीते हैं।
भगवान की कृपा कहाँ मिलती है? भगवान को प्राप्त करने का जो असली रहस्य है, उसे आपको जानना ही चाहिए। क्या करना होगा? आपको भगवान के साथ जुड़ जाना होगा। जुड़ जाने को ही उपासना कहते हैं। उपासना का मतलब ही है-जुड़ जाना-पास बैठना। किस तरह से जुड़ जाएँ? मैं आपको कुछ थोड़े से उदाहरण बताऊँगा। जुड़ना किसे कहते हैं? आपने आग में लकड़ी को गिरते हुए देखा है न। उस लकड़ी की क्या कीमत है-दो कौड़ी की जिसे आप पैर के नीचे फेंक दीजिए तो क्या या तोड़कर फेंक दीजिए तो क्या इधर से उधर करते रहिए। उसकी कोई कीमत नहीं हो सकती, पर आग के साथ में यदि उसको मिला दिया जाए तो आप देखेंगे कि थोड़ी ही देर में लकड़ी गरम होने लगती है और आग हो जाती है। तब आप उसे छू भी नहीं सकते और जो गुण अग्निदेवता के हैं, वही गुण उस नाचीज लकड़ी में भी आ जाते हैं। ठीक यही तरीका व्यक्ति को, जीवात्मा को परमात्मा के साथ मिलाने का है। क्या करें? नजदीक तो आइए आप। नजदीक आने का बस एक ही तरीका है-अपने आप को सौंप देना, होम देना। भगवान की इच्छा पर चलना। लकड़ी अपने आप को सौंप देती है और होम देती है। आग जब उसको जलाती है तो जलने में वह रजामंद हो जाती है। उसी के साथ जब वह घुल गई तो वह उसी का रूप हो जाती है। हमारी और आपकी नियति यह हो कि हम भगवान के साथ में घुल जाएँ। घुलने का मतलब है सौंप देंगे। उनको अपने में नहीं मिला लेंगे, अपनी मरजी के ऊपर नहीं चलाएँगे, वरन हम अपने को उनकी मरजी के मुताबिक़ चलाएँगे। इसी का नाम ''समर्पण'' है। इसी का नाम विलय और विसर्जन है। इसी का नाम शरणागति है। बहुत से नाम इसको दिए गए हैं। उपासना का तत्त्वज्ञान इसी पर टिका हुआ है कि आप भगवान के अनुयायी होते हैं कि नहीं, उसका अनुशासन मानते हैं कि नहीं। आप भगवान की इच्छानुसार चलते हैं कि नहीं, उसके बताए हुए इशारे एवं संकेत पर चलते हैं कि नहीं। उपासना के साथ जुड़ा हुआ एकमात्र यही प्रश्न है और कोई दूसरा नहीं।
यह ख्याल ठीक नहीं है कि आप अपनी मनमरजी पर चला सकते हैं और चलाएँगे। भगवान आपकी मरजी पर क्यों चलने लगे? भगवान के अपने कुछ नीति-नियम हैं, मर्यादा और कायदे हैं। आपकी खुशामद की वजह से आपकी मनोकामना पूरी करने के लिए भगवान अपने नीति-नियम को छोड़ देंगे, मर्यादा और कायदे-कानून को छोड़ देंगे और अपने आप को पक्षपाती होने का इल्जाम लगवाएँगे-कलंक लेंगे क्या? नहीं ऐसा भगवान कर नहीं सकेंगे। अगर आपके मन में यह ख्याल हो कि मिन्नतों और खुशामदों से भगवान को कहीं नजदीक ला सकते हैं और उपासना कर सकते हैं तो आप यह ख्याल छोड़ दीजिए। तब क्या करना पड़ेगा? तब एक ही काम करना पड़ेगा कि आप अपने आप को भगवान को सौंप दीजिए। अपने आप को उनके हाथ की कठपुतली बना लीजिए फिर देखिए भगवान क्या से क्या करवाते हैं। पानी दूध में मिल जाता है और उसकी हैसियत दूध के बराबर हो जाती है। छोटी सी नाचीज बूँद समुद्र में गिरती है और अपनी हस्ती को उसी में विसर्जित कर देती है और समुद्र की कीमत की हो जाती है। छोटी सी बूँद की हैसियत समुद्र के बराबर हो जाती है। दो कौड़ी का गंदा, कीचड़ से भरा हुआ नाला जब नदी में शामिल हो जाता है, तब वह नदी हो जाता है। उसका पानी नदी की तरह से पूजा जाता है। गंगा में गिरे हुए नाले का गंदा जल भी गंगाजल कहलाता है। यह कैसे हो गया? नाले ने अपने आप को समर्पित कर दिया। किसको? नदी को। यदि समर्पित न करता तब? तब आपकी मनःस्थिति का होता और गंगा जी से कहता-आप नाला बन जाइए और हमारी मरजी पूरी कीजिए। हमारे साथ-साथ रहिए पर ऐसा हो नहीं सकता। भगवान को आप अपने जैसा नहीं बना सकते। अपनी मरजियाँ पूरी कराने के लिए उन्हें मजबूर नहीं कर सकते। आपको ही उनके पीछे चलना पड़ेगा।
मित्रो, पारस के बारे में आप लोगों ने सुना होगा कि पारस को छूकर लोहा सोना हो जाता है, बदल जाता है। यदि लोहा वैसा ही रहे और पारस से कहे कि आप लोहा बन जाइए तो यह संभव नहीं। पारस लोहा नहीं बन सकता। लोहे को ही बदलना पड़ेगा। चंदन के पास उगे हुए पौधे चंदन की खुशबू देते हैं और चंदन बन जाते हैं, पर आप तो यह चाहते हैं कि चंदन को ही हम जैसा बनना चाहिए। चंदन आप जैसा नहीं बन सकता। छोटी झाड़ियों को ही चंदन जैसा खुशबूदार बनना चाहिए। चंदन बदबूदार झाड़ी नहीं बन सकता। भगवान पर दबाव मत डालिए। तब क्या करना पड़ेगा? आप उसके साथ में घुल जाइए लिपट जाइए। बेल देखी है न आपने, वह पेड़ के साथ में लिपट जाती है और जितना ऊँचा पेड़ है, उतनी ऊँची होती चली जाती है। यदि बेल अपनी मनमरजी से फैलती तो सिर्फ जमीन पर फैल सकती थी और ऊँचा उठना मुमकिन नहीं था, परंतु इतनी ऊँची कैसे हो गई? क्योंकि वह पेड़ से गुँथ गई, लिपट गई। आप भी भगवान से गुँथ जाइए लिपट जाइए फिर देखिए कि आपकी ऊँचाई भी पेड़ पर लिपटी हुई बेल के बराबर होती है कि नहीं। भगवान बहुत ऊँचा है, आप उसके साथ जुड़कर देखिए उसके अनुशासन को पालिए। उसकी इच्छा के साथ चलिए फिर आप देखिए कि भगवान के बराबर बन जाते हैं कि नहीं। पतंग अपने आप को बच्चे के हाथ में सौंप देती है। बच्चे के हाथ में उस बँधी हुई डोरी का एक सिरा होता है जिसे वह झटका देता रहता है और पतंग आसमान में जा पहुँचती है। पतंग अपनी डोरी को बच्चे के सुपुर्द न करे तब, उसे जमीन पर पड़ा रहना पड़ेगा।
आप अपने जीवन की बागडोर और जीवन का आधार भगवान के हाथ में न सौंपे, उसकी मरजी के अनुसार न चलें तो आप पतंग के तरीके से आसमान पर उड़ने की अपेक्षा मत कीजिए। आपने दर्पण देखा है न, उसके सामने जो चीज आती है वह दर्पण में वैसे ही दिखाई पड़ने लगती है। आपके जीवन में चारों ओर से दोष-दुर्गुण एवं कल्मष छाए हुए हैं, इसलिए आपका दर्पण भी-मानसिक स्तर भी वैसा ही बन गया है, लेकिन अगर आप भगवान को सामने रखें, उसके नजदीक जाएँ तो आप देखेंगे कि आपके जीवन में भी भगवान की आभा-भगवान की शक्ति उसी तरीके से बन जाती है जैसे कि दर्पण के सामने खड़े हुए आदमी की बन जाती है। वंशी अपने आप को पोली कर देती है और खाली कर देती है। पोली और खाली कर देने के बाद में फिर बजाने वाले के पास जा पहुँचती है और उससे कहती है कि आप बजाइए जो आप कहेंगे वही मैं गाऊँगी। बजाने वाला फूँक मारता जाता है और वह बजती जाती है। भगवान को फूँक मारने दीजिए और आप बजने के लिए तैयार हो जाइए।
कठपुतली को आपने देखा होगा। उसके धागे बाजीगर के हाथ में लगे होते हैं। बाजीगर इशारे करता जाता है और कठपुतली बिना कुछ कहे नाचना शुरू कर देती है। दुनिया को दिखाई पड़ता है कि कठपुतली का नाच कितना शानदार हुआ? पर वस्तुत: यह कठपुतली का नाच नहीं वरन बाजीगर का कमाल है। कठपुतली ने तो अपने शरीर के हिस्सों में धागे बँधवाए और उनको बाजीगर के हाथ में सौंप दिया समर्पण कर दिया। बस, यही आपको भी करना पड़ेगा। कठपुतली के तरीके से अगर आप बाजीगर के हाथ में अपनी जिंदगी की नाव सौंप सकते हों, अपने विचार और चिंतन सौंप सकते हों, अपनी इच्छाएँ और आकांक्षाएँ सौंप सकते हों, तो फिर देखिए कि कैसा मजा आ जाता है। आप उस जेनरेटर से संबद्ध हो जाइए जिसके साथ में जुड़ने के बाद ही बल्ब जलता है। पंखे तभी चलते हैं, जब उनका संबंध बिजलीघर से जुड़ जाता है। अगर आप सुनेंगे नहीं, जुड़ेंगे नहीं, तब आप रखे रहिए आपकी कीमत ढाई रुपए है। आप प्रकाश नहीं दे सकते। आपकी हैसियत है तो ठीक है, वह आपको मुबारक, लेकिन अगर आप अनंत शक्ति के साथ न जुड़े तो सब बेकार है। अनंत शक्ति के साथ अगर आप जुड़ेंगे तो फिर देखेंगे कि कितना कमाल कर सकते हैं। इसलिए आदमी की सबसे बड़ी समझदारी यह है कि अपने आप को भगवान के साथ में जोड़ लें। उसकी शक्तियों के साथ में अपनी सत्ता को मिला दें। यह काम जरा भी कठिन नहीं है, वरन बहुत सरल है। नल आपने देखा है न, जब वह टंकी के साथ जुड़ जाता है जिसमें पानी भरा हुआ है तो उसको बराबर पानी मिलता रहता है। अपने आप में अकेला नल कुछ भी तो नहीं है, लेकिन जब टंकी के साथ में रिश्ता मिला लिया तो उसकी कीमत बढ़ गई। उस नल से अब आपको बराबर पानी मिलता रहेगा।
वक्त छोटा हो तो क्या, नाचीज हो तो क्या, यदि आपने सच्चे मन से भगवान के साथ अपने आपको जोड़कर रखा है, तो भगवान की जो संपदा है, जो विभूतियाँ हैं, वह भक्त की अपनी हो जाती हैं और बराबर उसको मिलती चली जाती हैं। इसके लिए क्या करना पड़ेगा? अपने आप को सौंपना पड़ेगा और क्या करना पड़ेगा। भगवान को बहकाना, फुसलाना और अपनी मरजी पर चलाना बंद करना पड़ेगा, आपको ही उसका कहना मानना पड़ेगा आपको ही समर्पण करना पड़ेगा। बीज अपने आप को ही बनाना पड़ेगा। भगवान के खेत में अपने आप को बोइए फिर देखिए कैसी फसल आती है? मक्का का एक दाना खेत में बो देते हैं और उसका पौधा खड़ा हो जाता है, भुट्टे आ जाते हैं और एक-एक भुट्टे में हजार-हजार दाने होते हैं। इस तरह एक बीज के हजारों दाने हो जाते हैं। आप अपने आप को भगवान के खेत में बोइए गलिए फिर देखिए आपकी स्थिति कहाँ से कहाँ पहुँच जाती है। गलने का मन है नहीं, हिम्मत है नहीं, तो फिर काम कैसे चलेगा? आप गलने की हिम्मत नहीं करेंगे, बीज को जिंदगी भर अपनी पोटली में रखे रहेंगे और यह अपेक्षा करते रहेंगे कि जमीन हमारे खेत लहलहा दे और हमको नहीं गलना पड़े, ऐसा कहीं हुआ है क्या? ऐसा नहीं होगा। आपको गलना पड़ेगा। अगर आप नहीं गलेंगे, तब आप भगवान से क्या उम्मीद करेंगे?
आपने सुना है न कि भगवान की आदत कुछ ऐसी है कि माँगते रहते हैं। पहले हाथ पसारते हैं, बाद में कुछ देने की बात कहते हैं। उनके हाथ पर आप कुछ रख नहीं सकते तो फिर आप क्या पाएँगे? चावलों से, धूपबत्ती से आप भगवान को खरीद नहीं सकेंगे। आप आरती करके पा नहीं सकेंगे। जीभ की नोक से स्तोत्र पाठ करके या छोटे-बड़े कर्मकाण्ड करके भगवान के अनुग्रहों के आप अधिकारी नहीं हो पाएँगे। तो फिर क्या करना पड़ेगा? आपको अपना दृष्टिकोण, चिंतन और चरित्र, भावना और लक्ष्य सब का सब भगवान के साथ में जोड़ना पड़ेगा। जिस दिन आप यह करने को तैयार हो जाएँगे तो उस दिन आप देखिएगा क्या-क्या होता है? भगवान की मरजी तो पूरी करिए फिर देखिए आपको कुछ मिलता है या नहीं। भगवान नीयत देखते हैं। अभी मैंने सुदामा का नाम लिया था। सुदामा ने अपनी पोटली दे दी थी, बाद में भगवान ने उन्हें जो दिया वह आप जानते हैं। जिसके पास भी भगवान जाते हैं, माँगते जाते हैं, देते हुए नहीं। शबरी के पास भगवान गए थे तो कोई सोना-चाँदी या हीरे-मोती लेकर नहीं गए थे। वे माँगते हुए गए थे कि अरे हम बहुत भूखे हैं कुछ खाना खिलाइए। शबरी के पास जूठे बेर थे, जो कुछ भी था भगवान के सुपुर्द कर दिया। गोपियों के पास भी गए थे। गोपियों से भगवान प्यार करते थे और उनसे यही पूछते थे-लाइए आप कुछ दीजिए। कुछ नहीं तो छाछ ही माँगते थे। कर्ण से भी माँगने गए थे, बलि से भी माँगने गए थे। हर जगह भगवान माँगते ही चले आते हैं। भगवान कहीं भी जाते हैं तो मनुष्य की पात्रता को परखने के लिए उसकी महानता को विकसित करने के लिए एक ही दबाव डालते हैं कि आपके पास क्या है, उसे सुपुर्द कीजिए। भगवान की आदत को आप जानेंगे नहीं तो मुश्किल पड़ेगा और अपने आप को सौंपने के लिए आमादा न होंगे तो आप भगवान को अपना नहीं बना सकेंगे।
भगवान की भक्ति किसे कहते हैं? समर्पण को, पर आपने तो उसे कठपुतली के तरीके से चलाने और भक्ति से उचित और अनुचित जो कुछ भी फायदे होते हों, उठा लेने को मान लिया है। आप अपनी भक्ति की इस परिभाषा को बदल दीजिए। भक्ति कैसी होती है? इसकी एक कहानी सुनाता हूँ आपको। लैला-मजनूँ की कहानी सुनी है न आपने, न सुनी हो तो सुनिए। एक मजनूँ था जो लैला को प्यार करता था और चाहता था कि उससे शादी हो जाए लेकिन उसका बाप तैयार नहीं था। उसने कहा-हम भिखारी के साथ अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे। तब लैला ने सोचा-चलो मैं ही अपनी मरजी से शादी कर लेती हूँ लेकिन पहले देखूँ तो सही कि ऐसे ही अपनी खुदगर्जी के लिए मतलब के लिए ही मुझे अपने शिकंजे में कसना चाहता है, या वास्तव में मुझे प्यार करता है। प्यार करने का अर्थ होता है-देना। सो उसने सोचा चलो उसकी परीक्षा लेनी चाहिए। उसने अपनी एक बाँदी को भेजा। उसने मजनूँ से कहा कि लैला बहुत बीमार है, तो वह बहुत दुखी हुआ। बाँदी ने कहा-दुखी होने से क्या फायदा कर सकते हो तो कुछ मदद कीजिए। अगर प्यार करते हैं तो कुछ कीजिए न। तो उसने कहा, क्या दूँ? बाँदी ने कहा कि डॉक्टरों ने कहा है कि लैला की नसों में खून चढ़ाया जाएगा। तो क्या आप अपना खून देंगे जिससे लैला की जान बचाई जा सके। मजनूँ फौरन तैयार हो गया और चाँदी का जो कटोरा बाँदी लाई थी उसे अपने खून से लबालब भर दिया और बोला-बाँदी जल्दी आना अभी मेरे शरीर में जितना भी रक्त है, मैं सब उसके सुपुर्द कर दूँगा। मैं उसे मुहब्बत करता हूँ और मुहब्बत का अर्थ होता है-देना। इसलिए मैं तो देने ही देने वाला हूँ। बाँदी रक्त का कटोरा लेकर चली गई। शेष नकली मजनुओं को भगा दिया गया लैला ने अपने बाप से कहा कि जो मुझसे इतनी मुहब्बत करता है और जो मुहब्बत की कीमत को समझता है उसके साथ तो मैं रहूँगी ही। लैला की मजनूँ के साथ शादी हुई थी। आपकी भी शादी भगवान के साथ हो सकती है, आप जरूर भगवान के साथ शादी कर सकते हैं।
इसके लिए करना क्या चाहिए? एक ही बात करनी चाहिए-भगवान की मरजी पर चलने के लिए आमादा हो जाइए। जो कुछ वह आपसे चाहते हैं, वह आप कीजिए। आप चाहते हैं ठीक है, लेकिन जो आप चाहते हैं उससे पहले भगवान ने बहुत कुछ दे दिया है। उसने आपको इनसान की ऐसी बेहतरीन और समर्थ जिंदगी दी है कि इसके आधार पर आप अपनी मनमरजी पूरी कर सकते हैं। मनमरजी के लिए कोई कमी नहीं है। आपके हाथ कितने बड़े हैं, अक्ल कितनी बड़ी है, आपकी आँखें और जुबान कितनी शानदार हैं? आप अपनी दैनिक जरूरतों की, जिनकी भगवान से अपेक्षा करते हैं, उनके लिए अपेक्षा मत कीजिए। आप जो पुरुषार्थ से कमाते हैं उसमें संतोष कर सकते हैं अथवा कम में काम चला सकते हैं आप अपनी हवस और अपनी ख्वाहिशें, तमन्नाएँ और इच्छाएँ अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए क्या भगवान को दबोचेंगे, भगवान को मजबूर करेंगे क्या? क्या वह कर्तव्य की बात को छोड़ दें और आपके लिए पक्षपात करने लगें और कर्मफल की महत्ता का परित्याग कर दें। आप ऐसा मत कीजिए भगवान को न्यायाधीश रहने दीजिए। आप भगवान को बेइज्जत मत कीजिए। आप अपनी मरजी के लिए उनको पक्षपाती मत बनाइए। ऐसा वे करेंगे भी नहीं। आप बनाना चाहें तो भी वे नहीं करेंगे।
इसलिए तरीका सिर्फ एक ही है कि आप उस शक्ति के भंडार के साथ में अपने आप को मिला लीजिए जोड़ लीजिए। मिलाने और जोड़ने का तरीका वही है अर्थात आपको उनकी मरजी पर चलना पड़ेगा। आप अपनी मर्जियाँ खतम कीजिए अपनी आकांक्षाएँ खतम कीजिए अपनी इच्छाएँ खतम कीजिए। आप उन्हीं के हो जाइए और उन्हीं के साथ रहिए। जब आप भगवान के साथ हो जाते हैं तो वे आपके हो जाते हैं। आप उनके हो जाइए और अपना बना लीजिए। राजा हरिश्चंद्र बिके थे एक बार, डोमराजा खरीद ले गया था उन्हें। भगवान भी चौराहे पर बिकने के लिए खड़े हैं। वे आवाज लगाते है कि हम बिकने के लिए खड़े हैं कि हमको खरीद लिया जाए। जो हमको खरीद लेगा, उसी की सेवा करेंगे, उसी के साथ-साथ रहेंगे। आप चाहें तो उनको खरीद सकते हैं। क्या कीमत है? आप अपने आप को उनके हाथों बेच दीजिए और उन्हें अपने हाथों खरीद लीजिए। स्त्री अपने हाथों अपने आप को अपने पति के हाथों सौंप देती है, अपने आप को बेच देती है और इसकी कीमत पर पति को खरीद लेती है। बस यही मित्रता का रास्ता है, यही भगवान की भक्ति का रास्ता है। आपको अपने जीवन में हेर-फेर करना ही पड़ेगा और करना ही चाहिए। आप अपने घिनौने चिंतन को बदल दीजिए छोटे दृष्टिकोण को बदल दीजिए। लोभ और लालच से बाज आइए और भगवान की सुंदर दुनिया को ऊँचा बनाने के लिए शानदार बनाने के लिए उनके राजकुमार के तरीके से उनकी संपदा को, उनकी सृष्टि को ऊँचा और अच्छा बनाने के लिए कमर कसकर खड़े हो जाइए। आप समर्पित हो जाइए शरणागति में आइए विलय कीजिए विसर्जन कीजिए फिर देखिए आप क्या पाते हैं? बीज के तरीके से गल जाएँ और पेड़ के तरीके से उगने की तैयारी कीजिए। आप त्याग नहीं करेंगे तो पा कैसे लेंगे? जो त्याग करना है, उसमें जप करना ही काफी नहीं है, जरूरी तो है, पर काफी नहीं। भगवान को चावल चढ़ा देना, धूपबत्ती उतार देना, आरती उतारना जरूरी तो है, पर काफी नहीं है। ज्यादा करने के लिए आप अपना कलेजा चौड़ा कीजिए और तैयारी कीजिए। आज मुझे यही निवेदन करना था, आप सब लोगों से।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥