Books - श्रावणी पर्व पर प्रज्ञा परिजनों के नाम संदेश
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Language: HINDI
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श्रावणी पर्व पर प्रज्ञा परिजनों के नाम संदेश
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हमारे ध्यान के दो ही केन्द्र हैं। एक तो भगवान् जिसने हमको रास्ता बताया जो हमारी पीठ पर है जो हमको धकेलता रहता है। खींचता रहता है एक भगवान् वह। एक भगवान् आप लोग हैं जो हमारे कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं हाथ- पाँव के तरीके से काम करते हैं आँख, कान, दाँत की तरीके से हमारे क्रियाकलापों में सहयोगी रहते हैं। आप लोग भी एक तरह के भगवान् हैं दो भगवान् हैं एक निराकार है एक साकार है आप लोग साकार भगवान् के रूप में दिखाई पड़ते हैं। आज अनायास ही ध्यान हो आया कि आप लोगों से अपने जी की बात कहूँ। हमने बहुत काम किया है अभी तो लोगों को नहीं मालूम पड़ता इस समय पर। पीछे जो मूल्यांकन करेंगे तब लोगों को पता चलेगा कि एक छोटे से मिशन ने जिसने विज्ञापन बाजी भी नहीं की। अखबारों में भी लेख नहीं छपायें कुछ और भी नहीं किया मुनादियाँ भी नहीं पीटी पर इतना बड़ा काम कर लिया जितना कि शायद ही किसी और संस्था ने किया होगा। न केवल हिन्दुस्तान में बल्कि हिन्दुस्तान से बाहर भी बहुत काम किया है हमने, ठोस काम किया है। ठोस काम कैसे किया है हमने। हमने जो ठोस काम किया है हम में आप सब लोग शामिल हैं। यह कैसे उठाया, यह बर्तन कैसे साफ किये हाथ की सहायता से किये। हाथ न होता तो? तो नहीं कर सकते थे। आप हमारे सहयोगी हैं। साथी है मित्र हैं सबने मिलजुलकर एक बड़ा काम किया है एकाकी यह काम कर सकना संभव नहीं था हमारे लिये। किसी के लिए भी संभव नहीं था। भगवानों के लिए भी संभव नहीं हुआ।
गाँधी जी के लिये संभव नहीं हुआ।गाँधी जी ने सत्याग्रहियों की एक सेना खड़ी की और सत्याग्रहियों के माध्यम से अंग्रेजों को भगाया और हिन्दुस्तान को स्वराज्य दिलाया। भगवान् बुद्ध के लिये भी संभव न हुआ। उनके मन में वातावरण के परिष्कार का मन में था फिर उन्होंने एक लाख अपने परिव्राजक बनाये और परिव्राजकों के माध्यम से वह काम संभव हो सका। विनोबा ने अकेले काम किया भूदान का। नहीं अकेले नहीं किया। उनके बहुत सारे सर्वोदयी कार्यकर्ता उनके साथ- साथ काम करते थे उन सबने मिलकर के पृष्ठभूमियाँ बनाई और विनोबा को आगे- आगे रखकर के बड़े काम करा लिये। समुद्र छलांगने का एक और रामराज्य की स्थापना का दो काम किसने किये भगवान् राम ने? नहीं भगवान् राम ने नहीं किये थे। उनके साथ में हनुमान् थे, अंगद थे, रीछ थे, वानर थे उनने मिलकर के काम किया था अकेले क्या कर सकते थे। श्रीकृष्ण भगवान् ने महाभारत, ग्रेटर इण्डिया विशाल भारत बनाने के लिये जो कोशिश की थी महान् भारत यह जो पहले लड़ाई लड़ी गयी थी या पीछे और भी जो काम हुये थे भगवान् ने कर लिये थे? नहीं। गोवर्धन अकेले उठा लिया था नहीं संभव नहीं था इसलिये उन्होंने जगत की परंपराओं को जारी रखने के लिये जो वास्तविकता को उजागर करने के लिये अपने साथी और सहयोगियों को इकट्ठा किया। आप हमारे लिये इसी तरीके से हैं। आप लोगों को हमने बड़ी मुश्किल से ढूँढ़ पाया है। कैसे? आप यह समझते होंगे कि हमने पत्रिका का चंदा भेज दिया इसलिये हम इनके मेम्बर हो गये ना। यह बात नहीं है। हमने ढूँढ़ा है बीसों बार संदेश भेजे हैं और वह संदेश आपको मिले कि नहीं मिले। आपको ध्यान है कि नहीं ध्यान है। चिट्ठी पोस्ट कार्ड, नहीं चिट्ठी पोस्ट कार्ड नहीं। आप लोगों को हमने हिलाया है झकझोरा है तब इस मिशन की ओर लाने का प्रयत्न किया है। तब हमको सफलता मिली है। यह कैसे आपने संदेश भेजे? हमने पहले जन्मों के ऊपर आपके दृष्टि डाली कौन संस्कारवान है, कौन संस्कारवान नहीं है। जिनके अंदर संस्कार नहीं है उनको हजार बार हम कथा कहते रहें, पोथी पढ़ाते रहें, व्याख्यान देते रहें कुछ बनेगा क्या? क्या बनेगा कितने बाबाजी आते हैं संत आते हैं कैसी कैसी अच्छी अच्छी ज्ञान ध्यान की बातें करते हैं पर कोई सुनता है क्या? नहीं इस कान सुनकर उस कान निकाल देते हैं। पर आपने इस कान सुनकर उस कान निकाला नहीं है। अपने हृदय में जमा लिया। हृदय में ही नहीं जमा लिया बल्कि अपने क्रियाकलाप का अंग भी बना लिया। यह बड़ी बात है। यह किसका बड़प्पन है। हमारा? हमारा प्रभाव है ? नहीं।
आपके पूर्व जन्मों के संस्कारों की महत्ता। शेर ने एक बच्चे को जो भेड़ों के झुण्ड में घूमता रहता था पानी में उसकी छाया दिखाई और छाया देखकर उसको ज्ञान हो गया कि हम सिंह हैं। आप सिंह है वास्तव में ईमानदारी की बात यह है सिंह नहीं होते भेड़ होते तो आपने भेड़ चाल प्राप्त की होती। भेड़चाल क्या है। पेट पर चौबीस घंटे ध्यान बनाये रहना। औलाद पर चौबीसों घंटे ध्यान बनाये रहना। ईमानदारी और बेईमानी से पैसे कमाना और अहंकार की पूर्ति करना यह भेड़ चाल है और आप इस भेड़चाल से दो कदम आगे बढ़े हुये हैं आप लोगों ने जो विचार है और जो किया है बड़ा शानदार विचारा और शानदार किया है आप लोगों के सहयोग से ही तो यह संभव हुआ है। हमने आपको बड़ा ढूँढ़ निकाला है। हमने गहरे पानी में डुबकी लगाई है और डुबकी लगाकर मोतियों को ढूँढ़कर निकाला है। मोती सड़क पर पड़े थे आपने बीन लिये नहीं सड़क पर नहीं पड़े थे आपने संगठन के लिये अखबार में लेख छापा बस संगठन बन गया? नहीं ऐसा नहीं है इसके लिये हमको बहुत गहरी डुबकी लगानी पड़ी हैं और आप हीरे और मोतियों को बड़ी मुश्किल से जोड़कर जमा करना पड़ा है। अब आगे क्या करना चाहिये। आगे आपको हमारा सहयोगी बना रहना चाहिये। हम एकान्त साधना में लगे हुये हैं, बड़ा काम हमारे सामने है दुनिया के सामने एक ऐसी मुसीबत है कि या तो वह तबाह हो जायेगी या खुशहाल हो जायेगी। इसलिये तबाही और खुशहाली के समय पर हम एकान्त और चुप नहीं बैठ सकते इसलिये हमने बड़ा कदम उठाया। कितना बड़ा कदम? जितना कि भागीरथ ने गंगा को जमीन पर लाने के लिये उठाया था एक और जितना दधीचि ने अपनी हड्डियों को वज्र बनाने के लिये उठाया था ताकि समय की मुसीबतों को दूर किया जा सके। लगभग हम उसी प्रयास में लगे रहे हैं। तो आपका भी कोई फर्ज हो जाता है हम कुछ करें तो उसमें आपको सहयोगी और सहभागी बनना ही चाहिये बनना ही पड़ेगा। क्या करना चाहिये। दो काम तो हमने आपको पहले बता दिये थे। इसको आपको भूलना नहीं है। एक काम तो यह आपको भूलना नहीं है प्रात: काल के समय या किसी भी समय प्रात: काल सूर्योदय के समय आप एक माला गायत्री मंत्र की जरूर जप कर लिया करें जप किया करेंगे तो चौबीस लाख जो हमारे व्यक्ति हैं चौबीस लाख व्यक्तियों की चौबीस लाख मालाएँ अर्थात् २४० करोड़ जप नित्य हो जाया करेगा। वह हमारा संकल्प खंडित नहीं होना चाहिये और आपकी भागीदारी उसमें बराबर रहनी चाहिये। भूलना मत आप भूल जायेंगे तो हमको अच्छा नहीं लगेगा। एक दूसरी बात यह कि आपको कभी यह मन आ जाता है कि गुरुजी के साथ संपर्क मिला लें बातचीत तो कर लें टेलीफोन तो मिला लें तो बेतार का तार एक बनाकर के हमने रखा है।
यह सूर्योदय से एक घंटा पहले से लेकर के सूर्योदय के समय तक अगर आप एकान्त में जहाँ स्थिरचित्त होकर के बैठेंगे और यह अनुभव करेंगे कि हमारे साथ आप जुड़ गये मिल गये आप हमारे पास बैठे हुये हैं तो हमारे संदेश आपके भीतर जाना शुरू कर देंगे। हमारे गुरुदेव के संदेश भी हमारे भीतर आते हैं। कान से कहते हैं नहीं। तार देते हैं चिट्ठी डालते हैं नहीं ऐसा नहीं करते उनके संदेश हमारे भीतर आना शुरू हो जाते हैं और हम यह मान लेते हैं कि यह संदेश सही हैं। आप भी ऐसा कर सकते हैं यह दोनों ही रास्ते आपके लिए खुले हुये हैं। आप क्या चाहते हैं हम क्या चाहते हैं। आपसे क्या चाहेंगे हमारे बच्चे हैं जो हम करें वह आप कीजिये। जुलाहे का बेटा जुलाहा होता है लोहार का बेटा लोहार होता है पंडित का बेटा पंडित होता है आपको भी वह करना चाहिये जिस परंपरा पर हम चले हैं उसी परंपरा पर आपके कदम बढ़ने चाहिये। हमने ऋषि परंपरा अख्तियार की है ऋषियों का वंश खतम हो गया ब्राह्मण का वंश खतम हो गया। साधू का वंश खतम हो गया साधू तो अस्सी लाख हैं नहीं भाई यह साधू थोड़े हैं यह तो स्वामी जी हैं बाबाजी हैं संत नहीं हैं। संतों की पहचान अलग होती है।
संत जो होते हैं तो दुनिया को हिला देते हैं। गाँधी ने दुनिया को हिला दिया था बुद्ध ने दुनिया को हिला दिया था। कबीर ने दुनिया को हिला दिया था। समर्थ गुरु रामदास ने दुनिया को हिला दिया था। रामकृष्ण परमहंस ने दुनिया को हिला दिया था। बड़े जबरदस्त होते हैं संत। गाँजा पीते रहे कहीं ऐसे संत होते हैं। नहीं ऐसे नहीं होते इसलिये हमने संत परंपरा की ओर कदम बढ़ाया ब्राह्मण परंपरा की ओर कदम बढ़ाया आप भी कदम बढ़ाइये। ब्राह्मण अपरिग्रही होता है और संत सेवाभावी होता है बस दो कसौटियाँ होती हैं। ब्राह्मण वो जिसके पास संपदा न हो और संत वो जो निरंतर सेवा कार्य में लगा रहे। इन दोनों की परिभाषा यही है। हमने अपने लिये यही रास्ता अख्तियार किया और आप लोगों से प्रार्थना की कि आप लोगों से जितना भी कुछ बन सके कदम उठाना संभव हो सके उतना आप करें। आपकी निजी महत्त्वाकाँक्षा बहुत बड़ी नहीं होनी चाहिये। आपकी विलासिता बड़ी नहीं होनी चाहिये आपकी इच्छाएँ बड़ी नहीं होनी चाहिये। आपकी इच्छाएँ कम होना चाहिये। औसत नागरिक के हिसाब से ।। औसत नागरिक जिस हिसाब से गुजारा कर लेते हैं। सांसारिक जीवन आपका लगभग उसी से मिलता जुलता होना चाहिये। बहुत धन जमा करेंगे बहुत बहुत ऐय्याशी करेंगे नहीं भाई साहब यह आपको शोभा नहीं देगा खासकर तब जब आप हमारी बिरादरी में शामिल हो गये हैं। महत्त्वाकाँक्षाओं के अलावा एक ओर है घर वाले बढ़ायेंगे क्यों तो उनकी संख्या बढ़ाते हैं आप क्यों उनको निकम्मा बनाते हैं। स्वावलम्बी बनने दीजिये। जो हैं जो बड़े होते जाते हैं थोड़ा थोड़ा स्वावलम्बन सीखने दीजिये। थोड़ा थोड़ा घर के काम में मदद करने दीजिये। थोड़ा थोड़ा उनको सुसंस्कारी बनने दीजिये बस परिवार भार नहीं रहेगा। परिवार भार तब होता है जब उनको बैठकर अपंगों की तरह से खिलाना चाहते हैं और सारा बहुत सारा धन दौलत उनके लिए छोड़ देना चाहते हैं। तब परिवार भार हो जाता है। आपके ऊपर परिवार भार नहीं हो सकता आपके ऊपर आपका गुजारा भार नहीं हो सकता भार तो केवल आपकी महत्त्वाकाँक्षाएँ हैं। एषणाएँ हैं इनके कम कर ले तो फिर हमारे साथ जल्दी जल्दी चल सकेंगे।
आप थोड़ा हमारा हाथ बटाना शुरू कर दीजिये। हाथ आप बँटाते रहे हैं पर वह बटाने के लिये एक शिकायत है हमको कि क्रमबद्धता नहीं रही है। जब आपको उत्साह आ गया तो आपने छलांग लगाई जब आपका उत्साह ठंडा हो गया तो मगर की घड़ियाल की तरह से पानी में जा बैठे। नहीं भाई साहब यह नहीं पानी के बुलबुलों की तरीके से उछलकूद करना और फिर दो मिनट बाद ठंडे हो जाना यह कोई शोभा की बात है यह कोई शान की बात है नहीं चलना है तो चलना ही है चलते ही रहें चलते ही रहेंगे आपको चलते ही रहना चाहिये। दूध में झाग आते है और वह एकदम मालूम पड़ता है कि सारा बर्तन भरा और पानी की बूँदें पड़ते ही जमीन पर जा बैठता है दूध। यह शोभा देता है आपको नहीं। हमारी जिंदगी को देखिये न। गाँधी की जिंदगी को देखिये न आप। विनोबा की जिंदगी को देखिये न आप। संतों की जिंदगी को देखिये न आप। वह सब जिस दिन से संकल्प लिया उस दिन से आखिरी दिन तक बने रहे और आखिरी तक चले बीच बीच में से वह भागे नहीं हैं बीच बीच में से भाग जायेंगे तो बड़ा मुश्किल पड़ेगा।
पहले तो एक था बैल ढाँय-ढाँय ऐसे ऐसे करता था उन्होंने कहाँ क्यों भाई साहब क्या बात है अरे साहब सामने वाला बैल कभी आयेगा तो टक्कर मारूँगा जब एक बहुत मोटा तगड़ा बैल सामने आ गया टक्कर मारने के लिये तब वह गोबर करने लगा लोगों ने कहा क्यों भाई साहब क्या बात है कैसे गोबर करते हैं तो उनने कहा डर लगता है। जब आपका उत्साह आता है उमंग आती है कभी कोई लेख पढ़ लेते हैं हमारे संपर्क में आते हैं तो आपका उत्साह बढ़ा हो जाता है और जैसे ही आप अपनी घर गृहस्थी के काम में लगे आप उस काम को छोड़ देते हैं नहीं भाई साहब यह मत कीजिये कीजिये तो पूरा कीजिये न कीजिये तो मत कीजिये। थोड़ा शुभारम्भ करना फिर बंद कर देना यह क्या शान है यह क्या शोभा है आपकी। बस इसी तरह से कहता हूँ।
हमारी जिंदगी एक रास्ते पर एक निष्ठ होकर जैसे अर्जुन को दिखाई पड़ता था उसी तरह से हमको दिखाई पड़ा है। उसी तरीके से काम में लगे रहे हैं। आप भी जितना त्याग कर सकते हों बलिदान कर सकते हों युगसंधि की बेला में जितना भी कुछ अपने आपको जो आपसे बनता हो कि हम समय के लिये युग के लिये महाकाल के लिये कुछ त्याग कर पायेंगे तो आप उसको करने का संकल्प कर लीजिये उसको निभाते रहिये। उसको छोड़िये मत। बीच में छोड़ देंगे तब बुरी बात है। ढीले हो जाते हैं तो बुरी बात है। यह शानदार बात नहीं है। शानदार आदमी एक जैसे रहते हैं एकनिष्ठ रहते हैं एक मन रहते हैं एक संकल्प लेकर रहते हैं। एक चाल चलते हैं। धीमी चाल हो या तेज चाल हो पर चलते ही रहते हैं वह रुकते नहीं है। बस यही आपसे मुझे कहना था।
आप उस प्रयास को जारी रखेंगे जो हमने बार-बार आपसे कहा है बार बार बताया है कि युग परिवर्तन के लिये जनमानस का परिष्कार आवश्यक है। जनमानस के परिष्कार के लिये परिजनों को जिन तरीकों को काम में लाना चाहिये हम अखण्ड ज्योति में और दूसरी पत्रिकाओं में बार-बार छापते रहे हैं। यह करना चाहिये। जन्मदिन मनाना चाहिये। झोला पुस्तकालय चलाना चाहिये। टेपरिकार्डर से गीत और संदेश सुनाना चाहिये। यह सब बातें हमने बीसों बार बता दी हैं उन्हीं को कहें। नहीं अब कहाँ तक कहेंगे। दो बार कह दिया। चार बार कह दिया। बीस बार कह दिया उसी बात को फिर प्रवचन में कह दीजिये नहीं उनको नहीं कह सकते आपको मालूम है न मालूम हो तो चलिये हम प्रवचन में भी कह देते।
इस तरीके से आप सबसे प्रार्थना है कि अपनपी मुस्तैदी को बढ़ाइये और अपनी जिम्मेदारी समझिये और अपनी चाल में तीखापन लाइये और आप बार-बार जो धीमा हो जाते हैं तो हमको निराशा होती है हैरानी होती है यह मत कीजिये कुछ बैल होते हैं कभी कभी रस्से में बैठ जाते हैं। हल में चल रहे हैं हल में चलते चलते बैठ गये अब पिटाई करो उसकी उठाओ बड़ी मुश्किल से उठता है फिर चलता है। गाड़ी में बैल चल रहा है फिर उसने चलना बंद कर दिया बैठ गया फिर उसको मारा पीटा जैसे तैसे खड़ा किया नहीं यह मत कीजिये। आप एकरस एक निष्ठा से एक श्रद्धा से हमारी ही तरीके से सारा जीवन एक लक्ष्य के लिये नियोजित कीजिये पूरा कीजिये।
और क्या कहना है और एक बात आ गई संयोग की बात इसी साल में हीरक जयंती हमारी शुरू हो गई। यह हमारा पचहत्तरवाँ वर्ष है। आप पचहत्तर वर्ष के हैं हम करोड़ों वर्ष के हैं भगवान ने सृष्टि बनाई थी तभी जीवात्मा के रूप में जन्म लिया था करोड़ों वर्ष पहले आये थे और करोड़ों वर्ष तक जिंदा रहेंगे। आपकी तो मुक्ति हो जाने वाली है सुना है हमने नहीं हमारी मुक्ति नहीं हो सकती जब तक कि संसार के बंधन में एक भी प्राणी बंधा हुआ है तब तक हम मुक्ति की अपेक्षा नहीं कर सकते। बार बार जनम लेंगे और दुनिया के सारे आदमी जब मुक्ति में चले जायेंगे तब सबसे आखिरी आदमी हम होंगे कोशिश करें कि हम मुक्ति में जायेंगे और भगवान के यहाँ जायेंगे और वहाँ बैठेंगे और स्वर्ग में मजा उड़ायेंगे यह हमारे सपने में कहीं नहीं है। तो फिर काय बात की हीरक जयंती।
हीरक जयंती इस बात की आ गई कि दुनियाँ का रिवाज है कुछ क्या रिवाज है यह रिवाज है कि साठ वर्ष हो जाते हैं तो हीरक जयंती मनाई जाती है और ७५ वर्ष जब आदमी के हो जाते हैं ता हीरक जयंती मनाई जाती है। हमारा जब आपके साथ विवाह हुआ था उस बात को साठ वर्ष हो गये भगवान के साथ जो विवाह हुआ था पंद्रह वर्ष की उम्र में उसके बाद साठ वर्ष हो गये। पंद्रह वर्ष की उम्र में हमने अनुष्ठानों का सिलसिला चलाया था पचहत्तर वर्ष की उम्र में साठ वर्ष पूरे हो जाते हैं और शरीर के हिसाब से पच्चीस साल में रजत जयंती मनाई जाती है पचास साल में हीरक जयंती मनाई जाती है और पचहत्तर साल में हीरक जयंती मनाई जाती है और १०० वर्ष में शताब्दी मनाई जाती है। सौ वर्ष आपका जीने का मन है नहीं अब नहीं अब हमारे पास बहुत काम हैं। अब यह स्थूल शरीर हमको रुकावट डालता है अब हम बिना स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर से काम करेंगे जो स्थूल शरीर के बंधन में बँधकर नहीं कर कर सकते इसलिये बहुत दिन ज्यादा दिन जियेंगे नहीं हम हम ज्यादा दिन नहीं जियेंगे। अब हम अपने पाँच शरीरों से काम करेंगे और पाँच मोर्चों पर लड़ेंगे। अभी तो हमारा शरीर एक ही मोर्चे पर लड़ाई करता है। बुढ़ापा भी आने लगा है बुढ़ापे के भी लक्षण दिखाई पड़ने लगे हैं। दिखाई नहीं पड़ते आपको दाँत पहले नकली लगाये रहते थे चेहरा कैसा अच्छा लगता था अब नकली दाँत उतार दिये हैं हमने चेहरा भी फीका मालूम पड़ता है। जरा जरा कोई बीमारी मालूम पड़ती है नहीं भाई बीमारी नहीं है हमको हमको तो एक ही बीमारी है वह यह है कि आपसे हम जो उम्मीद रखते थे उसमें थोड़ी कमी है बस एक ही चिन्ता एक ही बीमारी एक ही व्यथा एक ही हमारा है कि आपसे ज्यादा चाहते हैं। तो आप क्या चाहते हैं?
हीरक जयंती जो वर्ष है वसंत पंचमी से शुरू हुई थी और अगली वसंत पंचमी फरवरी तक है शायद फरवरी तक हीरक जयंती चलेगी। इस तरीके से यह हीरक जयंती का वर्ष है। हीरक जयंती में क्या करना चाहिये। लोगों की ढेरों चिट्ठियाँ आयी। उसमें किसी का आया हम जुलूस निकालेंगे। प्रदर्शनी करेंगे। और हम बड़ी सभा करेंगे। बड़ा सम्मेलन करेंगे। बड़ा प्रीतिभोज करेंगे। हमने हर एक को मना कर दिया है। यह काम सारी जिंदगी भर हमने करे हैं और कराये हैं लेकिन करे और कराये होने के पश्चात् भी कोई परिणाम निकला क्या। कुछ परिणाम नहीं निकला धूम धड़ाका होता रहा लोगों में यह चर्चाएँ होती रहीं और दो चार दिन बाद सारा खेल खतम हो गया। लोग भूल गये।
हजार कुण्डीय यज्ञ हमने मथुरा में किया था चार लाख आदमी आये थे। लोग यह कहते थे कि इतना विशाल आयोजन हमने नहीं देखा जिंदगी भर में। महाभारत के बाद में हुआ लेकिन उस समय ऐसी चर्चा थी कि रिक्शे वाले से लेकर साग भाजी वाले बेचने वाले तक कहते थे माला माल हो गये निहाल हो गये। उसके एक वर्ष बाद दो वर्ष बाद किसी को ध्यान भी नहीं है कि गुरुजी कोई थे क्या और उनने हजार कुण्डीय यज्ञ किया था क्या। इतने बड़े आदमी आये थे क्या इतना भोज हुआ किसी को याद नहीं। सब भूल गये। तो फिर आप कोई धूम धड़ाका कर लें उससे फिर कोई बात बनेगी क्या नहीं दो पाँच दिन चर्चा का विषय बना रहेगा काय का जुलूस निकल रहा था गुरुजी की हीरक जयंती का जुलूस निकल रहा था और वहाँ देखिये सभा होगी पार्क में जनता आयी थी और सब लोग जयकारे बोल रहे थे यह काम करें। न यह काम करने होते तो फिर मैं एकान्त में क्यों बैठता। फिर मैं सबसे मिलना जुलना क्यों बंद करता। यह जगह जगह जाने वाली बात और फूलमाला पहनाने वाली बात को मैं क्यों बंद करता। नहीं उससे मेरा मन भर गया है।
तब फिर क्यों साहब हीरक जयंती पर कुछ नहीं करना चाहिये। नहीं यह नहीं भाई साहब हीरक जयंती का वर्ष और आप न करें हमारे लिये तो यह खराब बात है। आपके जन्मदिन होते हैं तो हम आपको उत्साहवर्धक कार्ड भेजते हैं। दीवाली होती है तो आपको उत्साह वर्धक कार्ड भेजते हैं और हमारी हीरक जयंती हो और आपका कोई योगदान उसमें न हो तो यह खराब बात है। आपका योगदान होना चाहिये और जरूर होना चाहिये। क्या योगदान होना चाहिये। क्या योगदान? आप अपने मन से बतायेंगे कि हम अपने मन से बतायें। आप ही अपने मन से बता दीजिये। अच्छा।
हमारी एक कामना रह गयी है कि क्या कामना रह गयी है। फूलमालायें हमने सारी जिंदगी भर पहनी हैं। कितनी फूलमाला पहनी होगी आपने। सब मिलाकर के जबसे यज्ञ हुये थे और बाहर दौरे पर निकले थे तो कितने फूल पहन लिये होंगे। मैं सोचता हूँ सौ मन पहन लिये होंगे या सौ मन से और ज्यादा पहन लिये होंगे। अब फूलमाला पहनने का कोई मन नहीं है। तो क्या पहनने का मन है हमारा अब एक जेवर पहनने का मन है कौन सा जेवर हमारा जेवर यह पहनने का मन है हमारा कुटुम्ब तो बहुत बड़ा है उसमें चौबीस लाख आदमी हैं लेकिन चौबीस लाख आदमी हमारे रजिस्टरों में लिखे हुये हैं। उसमें से किसी किसी की मौज आ जाती है उमंग आ जाती है तो कुछ कर बैठता है पर निरंतर चलता रहता है हमारे कदम से कदम कंधे से कंधा मिलाकर चलता है ऐसे आदमी उसमें से हमारा ऐसा मन है कि कितने आदमी हो जायें हमने शक्तिपीठें बनाई थी तो चौबीस सौ शक्तिपीठें बनाकर तैयार कर दी। अब क्या मन है।
अब हमारा वो जो शक्तिपीठें थीं उनसे तो हमारा मन खूब भर गया। क्यों क्योंकि वह मंदिर बनकर रह गये। हमने बनाये थे जनजाग्रति के केन्द्र तो वहाँ न जन की बात है न जागृति की बात है। किसी की बात है केवल एक देवी पत्थर की बैठी हुई है और उसके ऊपर सबेरे शाम आरती उतार देते है और ताले में बंद कर देते हैं। यही चलता रहता है। उससे आपको प्रसन्नता है नहीं हमको प्रसन्नता नहीं है। हमको दुःख है हमने शक्तिपीठ बनाई हैं उनके प्रति हमको दुःख है कारण यह कि जनता का इतना पैसा चला गया। तब एक नई इच्छा गायत्री जयंती के समय पर पैदा हुई है क्या इच्छा हुई कि चौबीस लाख खैर मरने दीजिये। चौबीस हजार मरने दीजिये। दस हजार यदि हमारे सहयोगी ऐसे हो जायें तो हम पूरी संतोष की साँस लेते हुये जायेंगे। कैसे हो जायें जो कदम से कदम मिलाकर के चले और नियमित रूप से चले नियमित रूप का महत्त्व होता है। अनुष्ठान किसे कहते हैं जो नियमित रूप से होता है। नहीं साहब पाँच माला सोमवार को कर दीं इक्कीस माला शुक्र को कर दी और तीन माला बुध का कर दी नहीं यो नहीं वो तो नियमित रूप से बैठ गये तो ठीक टाइम पर बैठना पड़ता है इसलिये इस साल हमारी यह इच्छा हुई है हमारी हीरक जयंती के अवसर पर कि दस हजार हीरों का हार पहने। हीरे देखे हैं आपने हीरे देखे तो हैं पर पहने नहीं हैं। अबकी बार पहनने का हमारा मन है कि हीरों का हार हम पहने सकें तो फिर समझना चाहिये हमारी मनोकामना पूरी हो गई और जब यह कहते हैं न किसी से कोई मरने को होता है तो क्यों साहब ताऊ जी क्या चाहिये अरे बेटा जरा सा मिठाई खिला दे कहो भाई फाँसी पर जाता है कोई आदमी और पूछता है जेलर क्यों साहब कोई इच्छा तो बाकी नहीं रह गयी आपकी हाँ साहब एक सिगरेट पिला दीजिये हाँ साहब अच्छा अच्छा साहब सिगरेट जलाकर मुँह में दे देता है और फाँसी पर जाने वाला सिगरेट पीकर बस साहब अब हमारी मनोकामना पूरी हो गई और अब हम जा रहे हैं।
हमारी एक ही मनोकामना रह गई है अब चौबीस लाख बना लिये हाँ बना लिये चौबीस सौ शक्तिपीठें बना दी हाँ बना दीं। बस एक और बाकी रह गया है। दस हजार हीरों का हार पहनकर के हम निकलें बाजार में के आदमी कंधा लगा रहे होंगे के आदमी गुलाल फेंक रहे होंगे के आदमी फुल फुला रहे होंगे। के आदमी लकड़ियाँ चुन रहे होंगे इस तरीके से जब हमारा जुलूस निकले तब उसमें फिर हम क्या पहनकर निकलें दस हजार हीरों का हार पहन कर निकले लोग कहें भाई यह तो कोई बड़ा मालदार आदमी था सेठ था यह तो कोई अरे साहब सेठ इसके मुकाबले क्या सेठ हो सकता है। यह बड़ा शानदार आदमी था इसलिये इसके लिये हमने दस हजार हीरों का हार पहनाया।
तो क्या बात हमारे समझ नहीं नहीं आयी हाँ बेटे में ऐसी कुछ पहेली जैसी कहने लगा। कबीर के जमाने में भी पहेलियाँ कहने का मुझे अच्छा मालूम पड़ता था और अभी भी मुझे अच्छा मालूम पड़ता है। दस हजार हीरों से मेरा मतलब यह है कि दस हजार साथी ऐसे हो जायें जो नियमित रूप से नियमित रूप से नियमित रूप से समय दिया करें अपना। समय की मुझे जरूरत है पैसों की नहीं पैसों को मैं क्या करूँगा पैसे इकट्ठा करने को मैं खड़ा हो जाऊँ तो चोर और चालाक ठग और बेईमान और बदमाश महल इकट्ठे कर लेते हैं उनके घर में देखते हैं तो कितना करोड़ों का धन निकलता है मैं अगर खड़ा हो जाऊँ इसी बात पर कि मुझे धन इकट्ठा करना है तो बहुत इकट्ठा कर सकता हूँ या कर लेता या कर सकता हूँ चलिये।
लेकिन नहीं वह मेरी इच्छा नहीं है मेरी इच्छा सिर्फ एक है कि मेरे हाथ पाँव मजबूत हो जायें। हाथ-पाँव अच्छे अच्छे हो जायें तब काम चले हाथ पाँव से किससे मतलब है आपसे है मेरा मतलब आप उन दस हजार आदमियों में से हो जायें जिनको मैं यह कहूँ कि शक्तिपीठ बनाना मेरा बेकार गया चौबीस लाख का कुटुम्ब बनाना परिवार बनाना यह बेकार गया पर दस हजार बनाये ईमानदारी की बात यह है। आप चलते फिरते शक्तिपीठ बन जाइये। चलते फिरते शक्तिपीठ हाड़-मांस के शक्तिपीठ। वह शक्तिपीठें तो चूने से बनी हैं ईंटों से बनी हैं। सीमेंट से बनी है लकड़ी लोहे से बनी हैं और आप हाड़ के बने हुये, माँस के बने हुये लकड़ी के बने हुये और चीजें से बने हुये शक्तिपीठ स्वयं अपने आपको बना लें मैं जो उम्मीदें शक्तिपीठों से लगाये हुये था वह उम्मीदें आप पूरी करना शुरू कर दें।
आप अपना समय निकालें। नहीं साहब हमने तो नौकर रक्खा था। नहीं साहब नौकर नहीं हमको आपका समय चाहिये। हमको गाँधी चाहिये। नहीं साहब हम गाँधी के बदले का एक नौकर रख लेंगे। नई भाई साहब गाँधी का काम गाँधी ही कर सकता था नौकर नहीं कर सकता था। विनोबा का विनोबा ही करते थे। जय प्रकाश नारायण का काम जय प्रकाश नारायण ने ही किया। नहीं साहब हम दो नौकर रख लेंगे वही सब काम चलाते रहेंगे नहीं ऐसा नहीं होगा। लोगों को यह गलत फहमी हो गई है। लोगों को यह गलतफहमी हो गई है कि गुरुजी का जो काम है वह हम नौकरों से करा सकते हैं। नौकरों से नहीं करा सकते आपसे ही करा सकते हैं। देखिये २४ घंटे का समय आपके पास है। आप अगर मान लीजिये मजूरी से काम करते हैं तो ८ घंटे आपके गुजारे के लिये काफी होना चाहिये। सात घंटे सोने के लिये काफी होने चाहिये। ५ घंटे में नित्यकर्म और इधर उधर के काम कर लेने चाहिये। आप चाहे तो आप चार घंटे बचा सकते हैं घर गृहस्थी का पूरा काम करते हुये भी। निश्चित रूप से बचा सकते हैं। आप मान लीजिये बीमार हो जायें तब। तो समय बचेगा कि नहीं बचेगा। आप यही समझ लेना चार घंटे रोज बीमार हो जाते हैं। आप चार घंटे रोज समय निकाल पाये तो मेरे उन हीरों में आप शुमार हो जायें जिनको मैं बहुत संभाल संभाल कर रखूँ डिब्बी में बंद करके रखूँ। छाती से चिपकाकर रखूँ। गले में माला पहनाकर रखूँ। समय दीजिये आप।
किस काम के लिये समय जनजाग्रति के लिये समय और काहे के लिये समय चाहिये। गुरुजी आपके पैर दबाये पंखा झला करें नहीं भाई साहब न हमको पैर दबाने की जरूरत है न पंखा झलने की जरूरत है। नहीं आप कमजोर बुड्ढे हो गये हैं मालिश कर दिया करें। नहीं भाई साहब न हमको मालिश कराने की जरूरत है न कुछ जरूरत है। हमें तो सिर्फ इसी बात की जरूरत है कि समय है उस समय की पुकार और समय की माँग इतनी तेज होती जाती है कि हमारे कान फटे जाते हैं। इसको हम अकेले जिस सीमा तक करते हैं वह कम पड़ता है इसलिये आपके सहयोग की बहुत जरूरत है। आप चार घंटे रोज, चार घंटे नहीं तीन घंटे दीजिये, तीन घंटे नहीं तो दो घंटे से कम में कहीं काम चलने वाला नहीं है दो घंटे से कम समय देना तो फिर बिलकुल बेकार है। उससे तो कोई काम ही नहीं बनता। फिर तो आप उन्हीं में शामिल हो रहिये चौबीस लाखों में जो वसंत पंचमी होती है तो हवन करने आ जाते हैं और जब कुछ और होता है गायत्री जयंती तो जुलूस में शामिल हो जाते हैं फिर आप उन्हीं में रहिये नहीं मेरी आपसे कामना है लोग बाग पहले गुरु दक्षिणा माँगते रहे हैं स्वामी दयानंद से गुरुदक्षिणा विरजानन्द ने माँगी थी। और कइयों ने माँगी थी शिवाजी ने अपने गुरु को गुरुदक्षिणा दी थी। अपना राजपाट उनके सुपुर्द कर दिया था। विश्वामित्र को हरिश्चंद्र ने गुरुदक्षिणा दी थी। सारा राजपाट उनके सुपुर्द कर दिया था। सारा राजपाट तो मत कीजिये पर चार घंटे हमारे कहने के हिसाब से दिया कीजिये। उससे काम बन जायेगा। और क्या करें। चार घंटे समय के लिये। बेटा खाली हाथ घूमेगा तो कैसे काम चलेगा। कुछ सामान तो चाहिये। लड़ाई के लिये जाते हैं तो सामान लेकर तो जाते हैं। नहीं मैं तो लड़ाई के मैदान पर जा रहा हूँ मैदान फतह कर लूँगा। नहीं बेटा कुछ सामान लेकर जा कुछ तलवार लेकर जा लाठी लेकर जा साधन लेकर जा। साधन शक्तिपीठों को जो चलते फिरते शक्तिपीठें हैं हाड़-माँस की शक्तिपीठें हैं वो जो शक्तिपीठें थी उनमें तो लाखों रुपये लगे हैं। जो हमारी अहमदाबाद की शक्तिपीठ है भिलाई की शक्तिपीठ है जूनागढ़ की शक्तिपीठ है यह कई शक्तिपीठ ऐसी हैं जिनमें दस-दस बीस-बीस लाख रुपया लग गये होंगे।
आपकी शक्तिपीठ में कितना लगना चाहिये हमारे वही जो प्रचार के माध्यम हैं वह आप इकट्ठे कर लीजिये। उनकी लागत क्या है मैं सोचता हूँ कुल मिलाकर पाँच हजार के लगभग उसकी वीडियो कर रहे हैं उसका एक कैसेट भी आ जाता है दो सौ रुपये के आसपास की आती होगी। एक यज्ञशाला भी आ जाती है। गाने बजाने का सामान भी आ जाता है। स्लाइड प्रोजेक्टर भी आ जाता है। ऐसे सब मिलाकर के कुल मिलाकर के पाँच हजार रुपये के भीतर सब सामान इकट्ठा हो जाता है जिसे आप किसी तरह इकट्ठा कर सकते हैं। जब इन लोगों ने बीस-बीस लाख रुपये में शक्तिपीठ बनाली तो आप पाँच हजार रुपया नहीं कर सकते आप चाहे तो अपने घर से ही कर सकते हैं आप चाहे तो बर्तन भी बेच सकते हैं। जूनागढ़ के पथिक जी ने जब शक्तिपीठ बनाई थी तो एक कानी कोढ़ी हाथ में नहीं थी ग्राम सेवक थे तो उन्होंने अपने स्टनलेस स्टील के बर्तन घर में जितने थे सब बेच दिये थे। मिट्टी के बर्तन ले आये और पाँच हजार रुपया मिल गया उनको और उससे उनने शक्तिपीठ बनाना शुंग कर दिया। आप भी इतनी छोटी रकम कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है कोई लड़के लड़की का विवाह करना होता है उसमें भी इतना खर्च हो जाता है। किसी बुड्ढे की मृत्यु हो जाये तो उसमें भी इतना खर्च हो जाता है। कोई एक आदमी बीमार हो जाये किसी का मुकदमा चल जाये इतना खर्च हो जाता है।
आप इतना खर्च स्वेच्छा से उठा लीजिये हमारे कहने से उठा लीजिये। आप घाटे में पड़ेंगे नहीं हम घाटा पूरा करा देंगे। हमारे गुरु ने घाटा पूरा करा दिया आपका घाटा हम पूरा करा देंगे। कहीं से करा देंगे। इस तरह से आपको समय, समय के अलावा साधन लगाने चाहिये। आगे के लिये क्या करें फिर। आगे के लिये इसी के लिये कुछ सामान मँगाते रहेंगे। किताबें झोला पुस्तकालय की खतम हो जायेंगी फिर आपको मँगाना पड़ेगी। बीस पैसे रोज का ज्ञानघट आपके यहाँ रखा ही होगा। अभी तो ऐसे ही पड़ा रहता है कहीं बच्चे उठा ले जाते हैं कभी पैसे फेंक देते हैं कभी डालते नहीं है। अब आप नियमित रूप से बीस पैसे डालिये। बीस पैसे भी कम नहीं होते। बीस पैसे रोज खर्च कर दें तो जो आगे वाला मिशन है जो आपका शक्तिपीठ बनाया है उसका दैनिक खर्च भी तो चाहिये। मेन्टेनेंस भी तो चाहिये। पूजा आरती भी तो रोज करना पड़ती है। बत्ती भी तो रोज जलाना पड़ती है। इसलिये रोजाना का खर्च। इंसान रोज का खर्च लिये बैठा है हम पानी पीते हैं खाना खाते हैं यह रोज का खर्च कपड़े पहनते है यह पुराने हो जाते हैं फिर नये पहनना पड़ते हैं। रोजाना का जो खर्चा है इसको आप स्वयं ही करें। अकेले करें। अकेले करें।
अब मैं अकेले शक्तिपीठों को देखना चाहता हूँ। अकेला चलो रे, अकेला चलो रवीन्द्रनाथ टैगोर का वह गीत मुझे बहुत प्यारा है। मैं भी अकेला चला हूँ। घर से भी अकेला चला। किसी का कहना माना? मैंने किसी का कहना नहीं माना न मैंने अपने भाइयों का कहना माना न बाप का कहना माना न माँ का कहना माना न भतीजों का कहना माना न सालों का कहना माना न बहनोई का कहना माना किसी का कहना नहीं माना और अपनी आत्मा का और परमात्मा का दो का कहना माना आप भी ऐसा कर सकते हैं। तो आप कुछ समय नियमित रूप से लगाकर के आप अपने आपको चलती फिरती शक्तिपीठों के रूप में बदल सकते हैं। चलती फिरती शक्तिपीठें कितनी चाहिये। हमको दस हजार चाहिये। हमारा मन है। वास्तव में मन है। चौबीस लाख आदमियों से दस हजार आदमी नहीं मिलेंगे हमको। मिलने चाहिये।
मेरे ख्याल से दस हजार प्रतिज्ञा वाले आदमी वचन के धनी आदमी सच्ची लगन वाले आदमी ईमानदार आदमी लोकहित के लिये अपने आपको समर्पित कर सकें ऐसे आदमी मेरे ख्याल से मुझे दस हजार मिल जाने चाहिये मेरी एक ही महत्त्वाकाँक्षा और कामना रह गयी है कि मेरी गायत्री जयंती मन जाये ऐसी गायत्री जयंती मने, ऐसी गायत्री जयंती मने जिसे हम परलोक में भी याद किया करें आप लोगों को। अब यह युगसंधि के दिन है थोड़े से दिन है क्या पता आप कितने दिन जिये न जिये। लेकिन युगसंधि के लिये पंद्रह वर्ष हैं इसलिये आपसे बराबर समय माँग रहे हैं पंद्रह वर्ष छुट्टी भी कर सकते हैं आप। पंद्रह वर्ष काम कर दीजिये आप हमारा। पच्चीस वर्ष गवर्नमेंट के यहाँ नौकरी करनी पड़ती है आप पंद्रह वर्ष हमारी कर दीजिये। चार घंटे रोज के हिसाब से या दो घंटे रोज के हिसाब से नियमित रूप से लगा दीजिये।
एक नंबर दो आपके पास कुछ सामान होगा एकाध टेपरिकार्डर वगैरह पड़ा होगा तो उसके दाम कम हो जायेंगे। यह दिल्ली से सब सामान मिल जाता है। आप पाँच हजार के लगभग अथवा जो सामान हो उसको काटकर के दो हजार तीन हजार जो भी कुछ हो एक मुश्त रकम का इंतजार कर लीजिये। और ज्ञानघट को फिर से आप शुरू कर दीजिये और अपने ही काम में लगाइये। यहाँ भेज दीजिये नहीं यहाँ मत भेजना अपने ही संस्था को आप भी तो एक शक्तिपीठ हो गये। अब हम दस हजार शक्तिपीठें बनायेंगे। हाड़ माँस की शक्तिपीठें बनायेंगे चलती फिरती शक्तिपीठें बनायेंगे। बोलती चलती शक्तिपीठें बनायेंगे। भावनाशील शक्तिपीठ बनायेंगे। पत्थरों की चूने की और ईंट की तो बन गयी।
आप स्वयं काम करना शुरू कर दीजिये। हमारे यहाँ कार्यकर्ता यह कहते हैं कार्यकर्ताओं की ओर आप देखिये मत। सिर्फ हमारी ओर देखिये और अपनी ओर देखिये। दो की ओर देखिये मत आप कमेटी की ओर देखिये मीटिंग की ओर देखिये मत शक्तिपीठ की ओर देखिये न सम्मेलन की ओर देखिये न सभा की ओर देखिये आप अकेले काम शुरू कर दीजिये। बस अकेले। अब अकेला मैं अकेले आप दो पागल जब मिलजुलकर बैठेंगे तो कैसा मजा आयेगा कैसी मस्ती आयेगी। मियाँ बीबी भी दो आदमी होते हैं उनमें भी कोई शामिल होता है? नहीं न दो मियाँ होते हैं न दो बीबियाँ होती हैं। एक मियाँ एक बीबी होती है।
इसलिये आपसे एकाकी अपील है आपसे आपसे व्यक्तिगत अपील है मेरी। आप व्यक्तिगत रूप से अकेले एकाकी बिना किसी की सहायता और अपेक्षा के पहले हमने स्वाध्याय मण्डल बनाये थे उसमें यह शर्त थी की पाँच सहयोगी इकट्ठे कर लीजिये। अब इसमें क्या शर्त है कोई शर्त नहीं है आप अकेले काम कीजिये। बस अकेले काम कीजिये। अकेले काम कर सकेंगे तो आप हीरों के हार हो जायेंगे। हीरों का हार पहनकर अपनी छाती से लगाये रहेंगे आपको अपने कलेजे से लगाये रहेंगे आपको। आपको भूल जायेंगे। अरे हम आपको सम्भालकर रखेंगे बाबा रात को कोई चोर चुराकर ले गया तो कैसे हो जायेगा। इसको हम तिजोरी में रखेंगे। लाकर में रखेंगे बहुत संभालकर रखेंगे। इसका दिन-रात ध्यान रखेंगे। इतने हीरे हमारे पास हैं। हीरे की अंगूठी होती है तो आदमी ध्यान रखते हैं हीरे की नाक की लोग औरतों के पास होती है उसका ध्यान रखती हैं हर वखत उसका ध्यान आता रहता है। और आप हीरे अगर हमारी निगाह में रहेंगे और सामने रहेंगे तो आपको याद नहीं करेंगे आपको सम्भालेंगे नहीं। फिर आपके लिये कुछ देंगे नहीं आपके लिये भी देंगे।
हमारे पास कुछ चीजें हैं तो हम बहुत दिन से तलाश करते फिर रहे हैं इस बार एकान्त साधना से भी कुछ प्राप्त कर रहे हैं। पहले भी हम प्राप्त करते रहे हैं। पहले भी हमने दिया है लोगों को। पर क्या दिया है किसी को बेटा दे दिया किसी का मुकदमा जितवा दिया। किसी की खाँसी दूर कर दी अरे तो इससे क्या बना कुछ बना क्या? इससे क्या बना दो वर्ष पहले मर जाता तो क्या। नौकरी में तरक्की करा दी अगर आपको १०० रुपये ज्यादा दिला दे अगर सौ रुपये कम मिलते तो जिंदा रहते कि नहीं रहते। और गरीब लोग जिंदा है कि नहीं है। वह तो मखौल था। जो आपको दिया और जो आपने लिया अब तक हमसे वह तो दिल्लगी बाजी थी। बच्चों को बहका देते हैं गुब्बारा लाकर के। गुब्बारा के तरीके से आपको बहका दिया सीटी देकर बहका दिया। छोटी छोटी टाफी और लेमचूस देकर बहका दिया। पर अब हमारे पास कुछ ज्यादा माल है। ज्यादा संपत्ति है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मरे थे विवेकानंद के ऊपर अपनी लात रखकर के और यह कह गये थे हमारे पास जो शक्ति है तेरे को समर्पित कर दी। पर पात्रता तो चाहिये। पात्रता तो इतनी भी नहीं करना चाहते।
आप तो बहकाना चाहते हैं प्रणाम करना चाहते हैं और फूलमाला पहनाना चाहते हैं हमारे फोटो के ऊपर आरती उतारना चाहते हैं। और यह करना चाहते हैं बेकार की बातें डंड कमण्डल तो आप करना चाहते हैं जैसे बच्चों को बहकाते हैं। भगवान को बहकाइये भगवान तो पागल आदमी है। शंकर जी बहकाइये। बेल के पत्ते लीजिये और मनोकामना पूरी करा लीजिये। हमको बहकाने मत। हम तो कीमत चाहते हैं आपसे। गिव एण्ड टेक का व्यवहार हमको पसंद है। हमारे गुरु को भी यही पसंद है। हमने दिया है और उसने हमको दिया है। हमने उसको दिया है और उसने हमको दिया है। दोनों में लड़ाइयाँ होती रहीं उनने कहा तुझे कुछ चाहिये। हमने कहा तुझे कुछ चाहिये। तेरे को कुछ चाहिये तो हमने हमारे पास जो कुछ था उसको लाकर उसके हवाले कर दिया। उसने कहा हमारा जो तप है ६०० वर्ष का वह हमने तेरे हवाले कर दिया। हवाले कर दिया तो मित्रों हम इस हिसाब से कुछ बड़े बने बैठे हैं। शरीर में क्या है हमारे माँस में क्या है हम इतना बड़ा जो काम कर बैठे वह सारे का सारा काम कर बैठना भगवान की शक्तियों का स्थानान्तरण होने का काम है।
आप भी कुछ चाहते हैं क्या हमसे स्वाति की बूँदों का ब्यौरा सुना है क्या कि स्वाति की बूँदें सीप में पड़ जाती हैं मोती बन जाती हैं बाँस में पड़ती है वंशलोचन बन जाती हैं। केले में कपूर बन जाती हैं सुना है क्या आपने। पारस पत्थर की कहानी सुनी है क्या आपने। पारस पत्थर की कहानी सुनी है तो फिर आइये। अगर आप लोहा हैं तो हम छाती से लगाएँगे। कलेजे से लगाएँगे। तो लगा लीजिये। कीमत तो चुका। प्रणाम करता है और दुनिया भर के वरदान माँगता है ऐसे पागल कहीं और से देखना। रामकृष्ण परमहंस ने कीमत वसूल करके दिया था। चाणक्य ने कीमत वसूल करके दिया था। समर्थ गुरु रामदास ने कीमत वसूल करके दिया था और हम भी भाई साहब उस परंपरा को बिगाड़ नहीं सकते। बिना कीमत के देकर के मुफ्तखोरों को लूटमारों को जेबकटों को अपनी दौलत दे जाये, कैसे दे जायेंगे। प्यार दे जायें कैसे दे जायेंगे। जेबकटों को नहीं दे सकते हम देंगे उनको जो हमारे लिये पसीना बहायेंगे। जो हमारे लिये श्रम बहायेंगे हमारे लिये अपना मन बहायेंगे। हमारे लिये अपने जीवन का अंश बहायेंगे उनको हम देंगे। बस श्रावणी का रक्षाबंधन आप हमारी रक्षा कीजिये हमारी भावनाओं की रक्षा कीजिये हम आपकी रक्षा करेंगे। यह श्रावणी का पर्व कितना शानदार पर्व कितना खुशी का पर्व यह पर्व हम भी मनाते हैं इस उम्मीद के साथ कि हम दस हजार लोग निकाल लेंगे। इस साल हरिद्वार का कुम्भ भी है। फिर हम उन दस हजार लोगों को कुम्भ के मौके पर देख भी लेंगे। ढाई महीने का है बारह साल बाद आता है वह है यह। यह ढाई महीने चलेगा। जनवरी से मार्च अप्रैल तक चलेगा। तो उस कुम्भ के मेले के मौके पर हम आपको बुलाएँगे कैसे हीरे हैं हीरों को एक बार फिर चलते हुये देखेंगे। पहले आप शिविरों में आ गये तो आ गये लेकिन आप हीरे हैं तो आप हीरे होकर के फिर एक दिन के लिये कुम्भ के मौके पर आना फिर हम आपको देखेंगे और छाती से लगा लेंगे। बस अब यही हमारी कामना है।
यह रक्षाबंधन का आज का संदेश यहीं समाप्त।
गाँधी जी के लिये संभव नहीं हुआ।गाँधी जी ने सत्याग्रहियों की एक सेना खड़ी की और सत्याग्रहियों के माध्यम से अंग्रेजों को भगाया और हिन्दुस्तान को स्वराज्य दिलाया। भगवान् बुद्ध के लिये भी संभव न हुआ। उनके मन में वातावरण के परिष्कार का मन में था फिर उन्होंने एक लाख अपने परिव्राजक बनाये और परिव्राजकों के माध्यम से वह काम संभव हो सका। विनोबा ने अकेले काम किया भूदान का। नहीं अकेले नहीं किया। उनके बहुत सारे सर्वोदयी कार्यकर्ता उनके साथ- साथ काम करते थे उन सबने मिलकर के पृष्ठभूमियाँ बनाई और विनोबा को आगे- आगे रखकर के बड़े काम करा लिये। समुद्र छलांगने का एक और रामराज्य की स्थापना का दो काम किसने किये भगवान् राम ने? नहीं भगवान् राम ने नहीं किये थे। उनके साथ में हनुमान् थे, अंगद थे, रीछ थे, वानर थे उनने मिलकर के काम किया था अकेले क्या कर सकते थे। श्रीकृष्ण भगवान् ने महाभारत, ग्रेटर इण्डिया विशाल भारत बनाने के लिये जो कोशिश की थी महान् भारत यह जो पहले लड़ाई लड़ी गयी थी या पीछे और भी जो काम हुये थे भगवान् ने कर लिये थे? नहीं। गोवर्धन अकेले उठा लिया था नहीं संभव नहीं था इसलिये उन्होंने जगत की परंपराओं को जारी रखने के लिये जो वास्तविकता को उजागर करने के लिये अपने साथी और सहयोगियों को इकट्ठा किया। आप हमारे लिये इसी तरीके से हैं। आप लोगों को हमने बड़ी मुश्किल से ढूँढ़ पाया है। कैसे? आप यह समझते होंगे कि हमने पत्रिका का चंदा भेज दिया इसलिये हम इनके मेम्बर हो गये ना। यह बात नहीं है। हमने ढूँढ़ा है बीसों बार संदेश भेजे हैं और वह संदेश आपको मिले कि नहीं मिले। आपको ध्यान है कि नहीं ध्यान है। चिट्ठी पोस्ट कार्ड, नहीं चिट्ठी पोस्ट कार्ड नहीं। आप लोगों को हमने हिलाया है झकझोरा है तब इस मिशन की ओर लाने का प्रयत्न किया है। तब हमको सफलता मिली है। यह कैसे आपने संदेश भेजे? हमने पहले जन्मों के ऊपर आपके दृष्टि डाली कौन संस्कारवान है, कौन संस्कारवान नहीं है। जिनके अंदर संस्कार नहीं है उनको हजार बार हम कथा कहते रहें, पोथी पढ़ाते रहें, व्याख्यान देते रहें कुछ बनेगा क्या? क्या बनेगा कितने बाबाजी आते हैं संत आते हैं कैसी कैसी अच्छी अच्छी ज्ञान ध्यान की बातें करते हैं पर कोई सुनता है क्या? नहीं इस कान सुनकर उस कान निकाल देते हैं। पर आपने इस कान सुनकर उस कान निकाला नहीं है। अपने हृदय में जमा लिया। हृदय में ही नहीं जमा लिया बल्कि अपने क्रियाकलाप का अंग भी बना लिया। यह बड़ी बात है। यह किसका बड़प्पन है। हमारा? हमारा प्रभाव है ? नहीं।
आपके पूर्व जन्मों के संस्कारों की महत्ता। शेर ने एक बच्चे को जो भेड़ों के झुण्ड में घूमता रहता था पानी में उसकी छाया दिखाई और छाया देखकर उसको ज्ञान हो गया कि हम सिंह हैं। आप सिंह है वास्तव में ईमानदारी की बात यह है सिंह नहीं होते भेड़ होते तो आपने भेड़ चाल प्राप्त की होती। भेड़चाल क्या है। पेट पर चौबीस घंटे ध्यान बनाये रहना। औलाद पर चौबीसों घंटे ध्यान बनाये रहना। ईमानदारी और बेईमानी से पैसे कमाना और अहंकार की पूर्ति करना यह भेड़ चाल है और आप इस भेड़चाल से दो कदम आगे बढ़े हुये हैं आप लोगों ने जो विचार है और जो किया है बड़ा शानदार विचारा और शानदार किया है आप लोगों के सहयोग से ही तो यह संभव हुआ है। हमने आपको बड़ा ढूँढ़ निकाला है। हमने गहरे पानी में डुबकी लगाई है और डुबकी लगाकर मोतियों को ढूँढ़कर निकाला है। मोती सड़क पर पड़े थे आपने बीन लिये नहीं सड़क पर नहीं पड़े थे आपने संगठन के लिये अखबार में लेख छापा बस संगठन बन गया? नहीं ऐसा नहीं है इसके लिये हमको बहुत गहरी डुबकी लगानी पड़ी हैं और आप हीरे और मोतियों को बड़ी मुश्किल से जोड़कर जमा करना पड़ा है। अब आगे क्या करना चाहिये। आगे आपको हमारा सहयोगी बना रहना चाहिये। हम एकान्त साधना में लगे हुये हैं, बड़ा काम हमारे सामने है दुनिया के सामने एक ऐसी मुसीबत है कि या तो वह तबाह हो जायेगी या खुशहाल हो जायेगी। इसलिये तबाही और खुशहाली के समय पर हम एकान्त और चुप नहीं बैठ सकते इसलिये हमने बड़ा कदम उठाया। कितना बड़ा कदम? जितना कि भागीरथ ने गंगा को जमीन पर लाने के लिये उठाया था एक और जितना दधीचि ने अपनी हड्डियों को वज्र बनाने के लिये उठाया था ताकि समय की मुसीबतों को दूर किया जा सके। लगभग हम उसी प्रयास में लगे रहे हैं। तो आपका भी कोई फर्ज हो जाता है हम कुछ करें तो उसमें आपको सहयोगी और सहभागी बनना ही चाहिये बनना ही पड़ेगा। क्या करना चाहिये। दो काम तो हमने आपको पहले बता दिये थे। इसको आपको भूलना नहीं है। एक काम तो यह आपको भूलना नहीं है प्रात: काल के समय या किसी भी समय प्रात: काल सूर्योदय के समय आप एक माला गायत्री मंत्र की जरूर जप कर लिया करें जप किया करेंगे तो चौबीस लाख जो हमारे व्यक्ति हैं चौबीस लाख व्यक्तियों की चौबीस लाख मालाएँ अर्थात् २४० करोड़ जप नित्य हो जाया करेगा। वह हमारा संकल्प खंडित नहीं होना चाहिये और आपकी भागीदारी उसमें बराबर रहनी चाहिये। भूलना मत आप भूल जायेंगे तो हमको अच्छा नहीं लगेगा। एक दूसरी बात यह कि आपको कभी यह मन आ जाता है कि गुरुजी के साथ संपर्क मिला लें बातचीत तो कर लें टेलीफोन तो मिला लें तो बेतार का तार एक बनाकर के हमने रखा है।
यह सूर्योदय से एक घंटा पहले से लेकर के सूर्योदय के समय तक अगर आप एकान्त में जहाँ स्थिरचित्त होकर के बैठेंगे और यह अनुभव करेंगे कि हमारे साथ आप जुड़ गये मिल गये आप हमारे पास बैठे हुये हैं तो हमारे संदेश आपके भीतर जाना शुरू कर देंगे। हमारे गुरुदेव के संदेश भी हमारे भीतर आते हैं। कान से कहते हैं नहीं। तार देते हैं चिट्ठी डालते हैं नहीं ऐसा नहीं करते उनके संदेश हमारे भीतर आना शुरू हो जाते हैं और हम यह मान लेते हैं कि यह संदेश सही हैं। आप भी ऐसा कर सकते हैं यह दोनों ही रास्ते आपके लिए खुले हुये हैं। आप क्या चाहते हैं हम क्या चाहते हैं। आपसे क्या चाहेंगे हमारे बच्चे हैं जो हम करें वह आप कीजिये। जुलाहे का बेटा जुलाहा होता है लोहार का बेटा लोहार होता है पंडित का बेटा पंडित होता है आपको भी वह करना चाहिये जिस परंपरा पर हम चले हैं उसी परंपरा पर आपके कदम बढ़ने चाहिये। हमने ऋषि परंपरा अख्तियार की है ऋषियों का वंश खतम हो गया ब्राह्मण का वंश खतम हो गया। साधू का वंश खतम हो गया साधू तो अस्सी लाख हैं नहीं भाई यह साधू थोड़े हैं यह तो स्वामी जी हैं बाबाजी हैं संत नहीं हैं। संतों की पहचान अलग होती है।
संत जो होते हैं तो दुनिया को हिला देते हैं। गाँधी ने दुनिया को हिला दिया था बुद्ध ने दुनिया को हिला दिया था। कबीर ने दुनिया को हिला दिया था। समर्थ गुरु रामदास ने दुनिया को हिला दिया था। रामकृष्ण परमहंस ने दुनिया को हिला दिया था। बड़े जबरदस्त होते हैं संत। गाँजा पीते रहे कहीं ऐसे संत होते हैं। नहीं ऐसे नहीं होते इसलिये हमने संत परंपरा की ओर कदम बढ़ाया ब्राह्मण परंपरा की ओर कदम बढ़ाया आप भी कदम बढ़ाइये। ब्राह्मण अपरिग्रही होता है और संत सेवाभावी होता है बस दो कसौटियाँ होती हैं। ब्राह्मण वो जिसके पास संपदा न हो और संत वो जो निरंतर सेवा कार्य में लगा रहे। इन दोनों की परिभाषा यही है। हमने अपने लिये यही रास्ता अख्तियार किया और आप लोगों से प्रार्थना की कि आप लोगों से जितना भी कुछ बन सके कदम उठाना संभव हो सके उतना आप करें। आपकी निजी महत्त्वाकाँक्षा बहुत बड़ी नहीं होनी चाहिये। आपकी विलासिता बड़ी नहीं होनी चाहिये आपकी इच्छाएँ बड़ी नहीं होनी चाहिये। आपकी इच्छाएँ कम होना चाहिये। औसत नागरिक के हिसाब से ।। औसत नागरिक जिस हिसाब से गुजारा कर लेते हैं। सांसारिक जीवन आपका लगभग उसी से मिलता जुलता होना चाहिये। बहुत धन जमा करेंगे बहुत बहुत ऐय्याशी करेंगे नहीं भाई साहब यह आपको शोभा नहीं देगा खासकर तब जब आप हमारी बिरादरी में शामिल हो गये हैं। महत्त्वाकाँक्षाओं के अलावा एक ओर है घर वाले बढ़ायेंगे क्यों तो उनकी संख्या बढ़ाते हैं आप क्यों उनको निकम्मा बनाते हैं। स्वावलम्बी बनने दीजिये। जो हैं जो बड़े होते जाते हैं थोड़ा थोड़ा स्वावलम्बन सीखने दीजिये। थोड़ा थोड़ा घर के काम में मदद करने दीजिये। थोड़ा थोड़ा उनको सुसंस्कारी बनने दीजिये बस परिवार भार नहीं रहेगा। परिवार भार तब होता है जब उनको बैठकर अपंगों की तरह से खिलाना चाहते हैं और सारा बहुत सारा धन दौलत उनके लिए छोड़ देना चाहते हैं। तब परिवार भार हो जाता है। आपके ऊपर परिवार भार नहीं हो सकता आपके ऊपर आपका गुजारा भार नहीं हो सकता भार तो केवल आपकी महत्त्वाकाँक्षाएँ हैं। एषणाएँ हैं इनके कम कर ले तो फिर हमारे साथ जल्दी जल्दी चल सकेंगे।
आप थोड़ा हमारा हाथ बटाना शुरू कर दीजिये। हाथ आप बँटाते रहे हैं पर वह बटाने के लिये एक शिकायत है हमको कि क्रमबद्धता नहीं रही है। जब आपको उत्साह आ गया तो आपने छलांग लगाई जब आपका उत्साह ठंडा हो गया तो मगर की घड़ियाल की तरह से पानी में जा बैठे। नहीं भाई साहब यह नहीं पानी के बुलबुलों की तरीके से उछलकूद करना और फिर दो मिनट बाद ठंडे हो जाना यह कोई शोभा की बात है यह कोई शान की बात है नहीं चलना है तो चलना ही है चलते ही रहें चलते ही रहेंगे आपको चलते ही रहना चाहिये। दूध में झाग आते है और वह एकदम मालूम पड़ता है कि सारा बर्तन भरा और पानी की बूँदें पड़ते ही जमीन पर जा बैठता है दूध। यह शोभा देता है आपको नहीं। हमारी जिंदगी को देखिये न। गाँधी की जिंदगी को देखिये न आप। विनोबा की जिंदगी को देखिये न आप। संतों की जिंदगी को देखिये न आप। वह सब जिस दिन से संकल्प लिया उस दिन से आखिरी दिन तक बने रहे और आखिरी तक चले बीच बीच में से वह भागे नहीं हैं बीच बीच में से भाग जायेंगे तो बड़ा मुश्किल पड़ेगा।
पहले तो एक था बैल ढाँय-ढाँय ऐसे ऐसे करता था उन्होंने कहाँ क्यों भाई साहब क्या बात है अरे साहब सामने वाला बैल कभी आयेगा तो टक्कर मारूँगा जब एक बहुत मोटा तगड़ा बैल सामने आ गया टक्कर मारने के लिये तब वह गोबर करने लगा लोगों ने कहा क्यों भाई साहब क्या बात है कैसे गोबर करते हैं तो उनने कहा डर लगता है। जब आपका उत्साह आता है उमंग आती है कभी कोई लेख पढ़ लेते हैं हमारे संपर्क में आते हैं तो आपका उत्साह बढ़ा हो जाता है और जैसे ही आप अपनी घर गृहस्थी के काम में लगे आप उस काम को छोड़ देते हैं नहीं भाई साहब यह मत कीजिये कीजिये तो पूरा कीजिये न कीजिये तो मत कीजिये। थोड़ा शुभारम्भ करना फिर बंद कर देना यह क्या शान है यह क्या शोभा है आपकी। बस इसी तरह से कहता हूँ।
हमारी जिंदगी एक रास्ते पर एक निष्ठ होकर जैसे अर्जुन को दिखाई पड़ता था उसी तरह से हमको दिखाई पड़ा है। उसी तरीके से काम में लगे रहे हैं। आप भी जितना त्याग कर सकते हों बलिदान कर सकते हों युगसंधि की बेला में जितना भी कुछ अपने आपको जो आपसे बनता हो कि हम समय के लिये युग के लिये महाकाल के लिये कुछ त्याग कर पायेंगे तो आप उसको करने का संकल्प कर लीजिये उसको निभाते रहिये। उसको छोड़िये मत। बीच में छोड़ देंगे तब बुरी बात है। ढीले हो जाते हैं तो बुरी बात है। यह शानदार बात नहीं है। शानदार आदमी एक जैसे रहते हैं एकनिष्ठ रहते हैं एक मन रहते हैं एक संकल्प लेकर रहते हैं। एक चाल चलते हैं। धीमी चाल हो या तेज चाल हो पर चलते ही रहते हैं वह रुकते नहीं है। बस यही आपसे मुझे कहना था।
आप उस प्रयास को जारी रखेंगे जो हमने बार-बार आपसे कहा है बार बार बताया है कि युग परिवर्तन के लिये जनमानस का परिष्कार आवश्यक है। जनमानस के परिष्कार के लिये परिजनों को जिन तरीकों को काम में लाना चाहिये हम अखण्ड ज्योति में और दूसरी पत्रिकाओं में बार-बार छापते रहे हैं। यह करना चाहिये। जन्मदिन मनाना चाहिये। झोला पुस्तकालय चलाना चाहिये। टेपरिकार्डर से गीत और संदेश सुनाना चाहिये। यह सब बातें हमने बीसों बार बता दी हैं उन्हीं को कहें। नहीं अब कहाँ तक कहेंगे। दो बार कह दिया। चार बार कह दिया। बीस बार कह दिया उसी बात को फिर प्रवचन में कह दीजिये नहीं उनको नहीं कह सकते आपको मालूम है न मालूम हो तो चलिये हम प्रवचन में भी कह देते।
इस तरीके से आप सबसे प्रार्थना है कि अपनपी मुस्तैदी को बढ़ाइये और अपनी जिम्मेदारी समझिये और अपनी चाल में तीखापन लाइये और आप बार-बार जो धीमा हो जाते हैं तो हमको निराशा होती है हैरानी होती है यह मत कीजिये कुछ बैल होते हैं कभी कभी रस्से में बैठ जाते हैं। हल में चल रहे हैं हल में चलते चलते बैठ गये अब पिटाई करो उसकी उठाओ बड़ी मुश्किल से उठता है फिर चलता है। गाड़ी में बैल चल रहा है फिर उसने चलना बंद कर दिया बैठ गया फिर उसको मारा पीटा जैसे तैसे खड़ा किया नहीं यह मत कीजिये। आप एकरस एक निष्ठा से एक श्रद्धा से हमारी ही तरीके से सारा जीवन एक लक्ष्य के लिये नियोजित कीजिये पूरा कीजिये।
और क्या कहना है और एक बात आ गई संयोग की बात इसी साल में हीरक जयंती हमारी शुरू हो गई। यह हमारा पचहत्तरवाँ वर्ष है। आप पचहत्तर वर्ष के हैं हम करोड़ों वर्ष के हैं भगवान ने सृष्टि बनाई थी तभी जीवात्मा के रूप में जन्म लिया था करोड़ों वर्ष पहले आये थे और करोड़ों वर्ष तक जिंदा रहेंगे। आपकी तो मुक्ति हो जाने वाली है सुना है हमने नहीं हमारी मुक्ति नहीं हो सकती जब तक कि संसार के बंधन में एक भी प्राणी बंधा हुआ है तब तक हम मुक्ति की अपेक्षा नहीं कर सकते। बार बार जनम लेंगे और दुनिया के सारे आदमी जब मुक्ति में चले जायेंगे तब सबसे आखिरी आदमी हम होंगे कोशिश करें कि हम मुक्ति में जायेंगे और भगवान के यहाँ जायेंगे और वहाँ बैठेंगे और स्वर्ग में मजा उड़ायेंगे यह हमारे सपने में कहीं नहीं है। तो फिर काय बात की हीरक जयंती।
हीरक जयंती इस बात की आ गई कि दुनियाँ का रिवाज है कुछ क्या रिवाज है यह रिवाज है कि साठ वर्ष हो जाते हैं तो हीरक जयंती मनाई जाती है और ७५ वर्ष जब आदमी के हो जाते हैं ता हीरक जयंती मनाई जाती है। हमारा जब आपके साथ विवाह हुआ था उस बात को साठ वर्ष हो गये भगवान के साथ जो विवाह हुआ था पंद्रह वर्ष की उम्र में उसके बाद साठ वर्ष हो गये। पंद्रह वर्ष की उम्र में हमने अनुष्ठानों का सिलसिला चलाया था पचहत्तर वर्ष की उम्र में साठ वर्ष पूरे हो जाते हैं और शरीर के हिसाब से पच्चीस साल में रजत जयंती मनाई जाती है पचास साल में हीरक जयंती मनाई जाती है और पचहत्तर साल में हीरक जयंती मनाई जाती है और १०० वर्ष में शताब्दी मनाई जाती है। सौ वर्ष आपका जीने का मन है नहीं अब नहीं अब हमारे पास बहुत काम हैं। अब यह स्थूल शरीर हमको रुकावट डालता है अब हम बिना स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर से काम करेंगे जो स्थूल शरीर के बंधन में बँधकर नहीं कर कर सकते इसलिये बहुत दिन ज्यादा दिन जियेंगे नहीं हम हम ज्यादा दिन नहीं जियेंगे। अब हम अपने पाँच शरीरों से काम करेंगे और पाँच मोर्चों पर लड़ेंगे। अभी तो हमारा शरीर एक ही मोर्चे पर लड़ाई करता है। बुढ़ापा भी आने लगा है बुढ़ापे के भी लक्षण दिखाई पड़ने लगे हैं। दिखाई नहीं पड़ते आपको दाँत पहले नकली लगाये रहते थे चेहरा कैसा अच्छा लगता था अब नकली दाँत उतार दिये हैं हमने चेहरा भी फीका मालूम पड़ता है। जरा जरा कोई बीमारी मालूम पड़ती है नहीं भाई बीमारी नहीं है हमको हमको तो एक ही बीमारी है वह यह है कि आपसे हम जो उम्मीद रखते थे उसमें थोड़ी कमी है बस एक ही चिन्ता एक ही बीमारी एक ही व्यथा एक ही हमारा है कि आपसे ज्यादा चाहते हैं। तो आप क्या चाहते हैं?
हीरक जयंती जो वर्ष है वसंत पंचमी से शुरू हुई थी और अगली वसंत पंचमी फरवरी तक है शायद फरवरी तक हीरक जयंती चलेगी। इस तरीके से यह हीरक जयंती का वर्ष है। हीरक जयंती में क्या करना चाहिये। लोगों की ढेरों चिट्ठियाँ आयी। उसमें किसी का आया हम जुलूस निकालेंगे। प्रदर्शनी करेंगे। और हम बड़ी सभा करेंगे। बड़ा सम्मेलन करेंगे। बड़ा प्रीतिभोज करेंगे। हमने हर एक को मना कर दिया है। यह काम सारी जिंदगी भर हमने करे हैं और कराये हैं लेकिन करे और कराये होने के पश्चात् भी कोई परिणाम निकला क्या। कुछ परिणाम नहीं निकला धूम धड़ाका होता रहा लोगों में यह चर्चाएँ होती रहीं और दो चार दिन बाद सारा खेल खतम हो गया। लोग भूल गये।
हजार कुण्डीय यज्ञ हमने मथुरा में किया था चार लाख आदमी आये थे। लोग यह कहते थे कि इतना विशाल आयोजन हमने नहीं देखा जिंदगी भर में। महाभारत के बाद में हुआ लेकिन उस समय ऐसी चर्चा थी कि रिक्शे वाले से लेकर साग भाजी वाले बेचने वाले तक कहते थे माला माल हो गये निहाल हो गये। उसके एक वर्ष बाद दो वर्ष बाद किसी को ध्यान भी नहीं है कि गुरुजी कोई थे क्या और उनने हजार कुण्डीय यज्ञ किया था क्या। इतने बड़े आदमी आये थे क्या इतना भोज हुआ किसी को याद नहीं। सब भूल गये। तो फिर आप कोई धूम धड़ाका कर लें उससे फिर कोई बात बनेगी क्या नहीं दो पाँच दिन चर्चा का विषय बना रहेगा काय का जुलूस निकल रहा था गुरुजी की हीरक जयंती का जुलूस निकल रहा था और वहाँ देखिये सभा होगी पार्क में जनता आयी थी और सब लोग जयकारे बोल रहे थे यह काम करें। न यह काम करने होते तो फिर मैं एकान्त में क्यों बैठता। फिर मैं सबसे मिलना जुलना क्यों बंद करता। यह जगह जगह जाने वाली बात और फूलमाला पहनाने वाली बात को मैं क्यों बंद करता। नहीं उससे मेरा मन भर गया है।
तब फिर क्यों साहब हीरक जयंती पर कुछ नहीं करना चाहिये। नहीं यह नहीं भाई साहब हीरक जयंती का वर्ष और आप न करें हमारे लिये तो यह खराब बात है। आपके जन्मदिन होते हैं तो हम आपको उत्साहवर्धक कार्ड भेजते हैं। दीवाली होती है तो आपको उत्साह वर्धक कार्ड भेजते हैं और हमारी हीरक जयंती हो और आपका कोई योगदान उसमें न हो तो यह खराब बात है। आपका योगदान होना चाहिये और जरूर होना चाहिये। क्या योगदान होना चाहिये। क्या योगदान? आप अपने मन से बतायेंगे कि हम अपने मन से बतायें। आप ही अपने मन से बता दीजिये। अच्छा।
हमारी एक कामना रह गयी है कि क्या कामना रह गयी है। फूलमालायें हमने सारी जिंदगी भर पहनी हैं। कितनी फूलमाला पहनी होगी आपने। सब मिलाकर के जबसे यज्ञ हुये थे और बाहर दौरे पर निकले थे तो कितने फूल पहन लिये होंगे। मैं सोचता हूँ सौ मन पहन लिये होंगे या सौ मन से और ज्यादा पहन लिये होंगे। अब फूलमाला पहनने का कोई मन नहीं है। तो क्या पहनने का मन है हमारा अब एक जेवर पहनने का मन है कौन सा जेवर हमारा जेवर यह पहनने का मन है हमारा कुटुम्ब तो बहुत बड़ा है उसमें चौबीस लाख आदमी हैं लेकिन चौबीस लाख आदमी हमारे रजिस्टरों में लिखे हुये हैं। उसमें से किसी किसी की मौज आ जाती है उमंग आ जाती है तो कुछ कर बैठता है पर निरंतर चलता रहता है हमारे कदम से कदम कंधे से कंधा मिलाकर चलता है ऐसे आदमी उसमें से हमारा ऐसा मन है कि कितने आदमी हो जायें हमने शक्तिपीठें बनाई थी तो चौबीस सौ शक्तिपीठें बनाकर तैयार कर दी। अब क्या मन है।
अब हमारा वो जो शक्तिपीठें थीं उनसे तो हमारा मन खूब भर गया। क्यों क्योंकि वह मंदिर बनकर रह गये। हमने बनाये थे जनजाग्रति के केन्द्र तो वहाँ न जन की बात है न जागृति की बात है। किसी की बात है केवल एक देवी पत्थर की बैठी हुई है और उसके ऊपर सबेरे शाम आरती उतार देते है और ताले में बंद कर देते हैं। यही चलता रहता है। उससे आपको प्रसन्नता है नहीं हमको प्रसन्नता नहीं है। हमको दुःख है हमने शक्तिपीठ बनाई हैं उनके प्रति हमको दुःख है कारण यह कि जनता का इतना पैसा चला गया। तब एक नई इच्छा गायत्री जयंती के समय पर पैदा हुई है क्या इच्छा हुई कि चौबीस लाख खैर मरने दीजिये। चौबीस हजार मरने दीजिये। दस हजार यदि हमारे सहयोगी ऐसे हो जायें तो हम पूरी संतोष की साँस लेते हुये जायेंगे। कैसे हो जायें जो कदम से कदम मिलाकर के चले और नियमित रूप से चले नियमित रूप का महत्त्व होता है। अनुष्ठान किसे कहते हैं जो नियमित रूप से होता है। नहीं साहब पाँच माला सोमवार को कर दीं इक्कीस माला शुक्र को कर दी और तीन माला बुध का कर दी नहीं यो नहीं वो तो नियमित रूप से बैठ गये तो ठीक टाइम पर बैठना पड़ता है इसलिये इस साल हमारी यह इच्छा हुई है हमारी हीरक जयंती के अवसर पर कि दस हजार हीरों का हार पहने। हीरे देखे हैं आपने हीरे देखे तो हैं पर पहने नहीं हैं। अबकी बार पहनने का हमारा मन है कि हीरों का हार हम पहने सकें तो फिर समझना चाहिये हमारी मनोकामना पूरी हो गई और जब यह कहते हैं न किसी से कोई मरने को होता है तो क्यों साहब ताऊ जी क्या चाहिये अरे बेटा जरा सा मिठाई खिला दे कहो भाई फाँसी पर जाता है कोई आदमी और पूछता है जेलर क्यों साहब कोई इच्छा तो बाकी नहीं रह गयी आपकी हाँ साहब एक सिगरेट पिला दीजिये हाँ साहब अच्छा अच्छा साहब सिगरेट जलाकर मुँह में दे देता है और फाँसी पर जाने वाला सिगरेट पीकर बस साहब अब हमारी मनोकामना पूरी हो गई और अब हम जा रहे हैं।
हमारी एक ही मनोकामना रह गई है अब चौबीस लाख बना लिये हाँ बना लिये चौबीस सौ शक्तिपीठें बना दी हाँ बना दीं। बस एक और बाकी रह गया है। दस हजार हीरों का हार पहनकर के हम निकलें बाजार में के आदमी कंधा लगा रहे होंगे के आदमी गुलाल फेंक रहे होंगे के आदमी फुल फुला रहे होंगे। के आदमी लकड़ियाँ चुन रहे होंगे इस तरीके से जब हमारा जुलूस निकले तब उसमें फिर हम क्या पहनकर निकलें दस हजार हीरों का हार पहन कर निकले लोग कहें भाई यह तो कोई बड़ा मालदार आदमी था सेठ था यह तो कोई अरे साहब सेठ इसके मुकाबले क्या सेठ हो सकता है। यह बड़ा शानदार आदमी था इसलिये इसके लिये हमने दस हजार हीरों का हार पहनाया।
तो क्या बात हमारे समझ नहीं नहीं आयी हाँ बेटे में ऐसी कुछ पहेली जैसी कहने लगा। कबीर के जमाने में भी पहेलियाँ कहने का मुझे अच्छा मालूम पड़ता था और अभी भी मुझे अच्छा मालूम पड़ता है। दस हजार हीरों से मेरा मतलब यह है कि दस हजार साथी ऐसे हो जायें जो नियमित रूप से नियमित रूप से नियमित रूप से समय दिया करें अपना। समय की मुझे जरूरत है पैसों की नहीं पैसों को मैं क्या करूँगा पैसे इकट्ठा करने को मैं खड़ा हो जाऊँ तो चोर और चालाक ठग और बेईमान और बदमाश महल इकट्ठे कर लेते हैं उनके घर में देखते हैं तो कितना करोड़ों का धन निकलता है मैं अगर खड़ा हो जाऊँ इसी बात पर कि मुझे धन इकट्ठा करना है तो बहुत इकट्ठा कर सकता हूँ या कर लेता या कर सकता हूँ चलिये।
लेकिन नहीं वह मेरी इच्छा नहीं है मेरी इच्छा सिर्फ एक है कि मेरे हाथ पाँव मजबूत हो जायें। हाथ-पाँव अच्छे अच्छे हो जायें तब काम चले हाथ पाँव से किससे मतलब है आपसे है मेरा मतलब आप उन दस हजार आदमियों में से हो जायें जिनको मैं यह कहूँ कि शक्तिपीठ बनाना मेरा बेकार गया चौबीस लाख का कुटुम्ब बनाना परिवार बनाना यह बेकार गया पर दस हजार बनाये ईमानदारी की बात यह है। आप चलते फिरते शक्तिपीठ बन जाइये। चलते फिरते शक्तिपीठ हाड़-मांस के शक्तिपीठ। वह शक्तिपीठें तो चूने से बनी हैं ईंटों से बनी हैं। सीमेंट से बनी है लकड़ी लोहे से बनी हैं और आप हाड़ के बने हुये, माँस के बने हुये लकड़ी के बने हुये और चीजें से बने हुये शक्तिपीठ स्वयं अपने आपको बना लें मैं जो उम्मीदें शक्तिपीठों से लगाये हुये था वह उम्मीदें आप पूरी करना शुरू कर दें।
आप अपना समय निकालें। नहीं साहब हमने तो नौकर रक्खा था। नहीं साहब नौकर नहीं हमको आपका समय चाहिये। हमको गाँधी चाहिये। नहीं साहब हम गाँधी के बदले का एक नौकर रख लेंगे। नई भाई साहब गाँधी का काम गाँधी ही कर सकता था नौकर नहीं कर सकता था। विनोबा का विनोबा ही करते थे। जय प्रकाश नारायण का काम जय प्रकाश नारायण ने ही किया। नहीं साहब हम दो नौकर रख लेंगे वही सब काम चलाते रहेंगे नहीं ऐसा नहीं होगा। लोगों को यह गलत फहमी हो गई है। लोगों को यह गलतफहमी हो गई है कि गुरुजी का जो काम है वह हम नौकरों से करा सकते हैं। नौकरों से नहीं करा सकते आपसे ही करा सकते हैं। देखिये २४ घंटे का समय आपके पास है। आप अगर मान लीजिये मजूरी से काम करते हैं तो ८ घंटे आपके गुजारे के लिये काफी होना चाहिये। सात घंटे सोने के लिये काफी होने चाहिये। ५ घंटे में नित्यकर्म और इधर उधर के काम कर लेने चाहिये। आप चाहे तो आप चार घंटे बचा सकते हैं घर गृहस्थी का पूरा काम करते हुये भी। निश्चित रूप से बचा सकते हैं। आप मान लीजिये बीमार हो जायें तब। तो समय बचेगा कि नहीं बचेगा। आप यही समझ लेना चार घंटे रोज बीमार हो जाते हैं। आप चार घंटे रोज समय निकाल पाये तो मेरे उन हीरों में आप शुमार हो जायें जिनको मैं बहुत संभाल संभाल कर रखूँ डिब्बी में बंद करके रखूँ। छाती से चिपकाकर रखूँ। गले में माला पहनाकर रखूँ। समय दीजिये आप।
किस काम के लिये समय जनजाग्रति के लिये समय और काहे के लिये समय चाहिये। गुरुजी आपके पैर दबाये पंखा झला करें नहीं भाई साहब न हमको पैर दबाने की जरूरत है न पंखा झलने की जरूरत है। नहीं आप कमजोर बुड्ढे हो गये हैं मालिश कर दिया करें। नहीं भाई साहब न हमको मालिश कराने की जरूरत है न कुछ जरूरत है। हमें तो सिर्फ इसी बात की जरूरत है कि समय है उस समय की पुकार और समय की माँग इतनी तेज होती जाती है कि हमारे कान फटे जाते हैं। इसको हम अकेले जिस सीमा तक करते हैं वह कम पड़ता है इसलिये आपके सहयोग की बहुत जरूरत है। आप चार घंटे रोज, चार घंटे नहीं तीन घंटे दीजिये, तीन घंटे नहीं तो दो घंटे से कम में कहीं काम चलने वाला नहीं है दो घंटे से कम समय देना तो फिर बिलकुल बेकार है। उससे तो कोई काम ही नहीं बनता। फिर तो आप उन्हीं में शामिल हो रहिये चौबीस लाखों में जो वसंत पंचमी होती है तो हवन करने आ जाते हैं और जब कुछ और होता है गायत्री जयंती तो जुलूस में शामिल हो जाते हैं फिर आप उन्हीं में रहिये नहीं मेरी आपसे कामना है लोग बाग पहले गुरु दक्षिणा माँगते रहे हैं स्वामी दयानंद से गुरुदक्षिणा विरजानन्द ने माँगी थी। और कइयों ने माँगी थी शिवाजी ने अपने गुरु को गुरुदक्षिणा दी थी। अपना राजपाट उनके सुपुर्द कर दिया था। विश्वामित्र को हरिश्चंद्र ने गुरुदक्षिणा दी थी। सारा राजपाट उनके सुपुर्द कर दिया था। सारा राजपाट तो मत कीजिये पर चार घंटे हमारे कहने के हिसाब से दिया कीजिये। उससे काम बन जायेगा। और क्या करें। चार घंटे समय के लिये। बेटा खाली हाथ घूमेगा तो कैसे काम चलेगा। कुछ सामान तो चाहिये। लड़ाई के लिये जाते हैं तो सामान लेकर तो जाते हैं। नहीं मैं तो लड़ाई के मैदान पर जा रहा हूँ मैदान फतह कर लूँगा। नहीं बेटा कुछ सामान लेकर जा कुछ तलवार लेकर जा लाठी लेकर जा साधन लेकर जा। साधन शक्तिपीठों को जो चलते फिरते शक्तिपीठें हैं हाड़-माँस की शक्तिपीठें हैं वो जो शक्तिपीठें थी उनमें तो लाखों रुपये लगे हैं। जो हमारी अहमदाबाद की शक्तिपीठ है भिलाई की शक्तिपीठ है जूनागढ़ की शक्तिपीठ है यह कई शक्तिपीठ ऐसी हैं जिनमें दस-दस बीस-बीस लाख रुपया लग गये होंगे।
आपकी शक्तिपीठ में कितना लगना चाहिये हमारे वही जो प्रचार के माध्यम हैं वह आप इकट्ठे कर लीजिये। उनकी लागत क्या है मैं सोचता हूँ कुल मिलाकर पाँच हजार के लगभग उसकी वीडियो कर रहे हैं उसका एक कैसेट भी आ जाता है दो सौ रुपये के आसपास की आती होगी। एक यज्ञशाला भी आ जाती है। गाने बजाने का सामान भी आ जाता है। स्लाइड प्रोजेक्टर भी आ जाता है। ऐसे सब मिलाकर के कुल मिलाकर के पाँच हजार रुपये के भीतर सब सामान इकट्ठा हो जाता है जिसे आप किसी तरह इकट्ठा कर सकते हैं। जब इन लोगों ने बीस-बीस लाख रुपये में शक्तिपीठ बनाली तो आप पाँच हजार रुपया नहीं कर सकते आप चाहे तो अपने घर से ही कर सकते हैं आप चाहे तो बर्तन भी बेच सकते हैं। जूनागढ़ के पथिक जी ने जब शक्तिपीठ बनाई थी तो एक कानी कोढ़ी हाथ में नहीं थी ग्राम सेवक थे तो उन्होंने अपने स्टनलेस स्टील के बर्तन घर में जितने थे सब बेच दिये थे। मिट्टी के बर्तन ले आये और पाँच हजार रुपया मिल गया उनको और उससे उनने शक्तिपीठ बनाना शुंग कर दिया। आप भी इतनी छोटी रकम कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है कोई लड़के लड़की का विवाह करना होता है उसमें भी इतना खर्च हो जाता है। किसी बुड्ढे की मृत्यु हो जाये तो उसमें भी इतना खर्च हो जाता है। कोई एक आदमी बीमार हो जाये किसी का मुकदमा चल जाये इतना खर्च हो जाता है।
आप इतना खर्च स्वेच्छा से उठा लीजिये हमारे कहने से उठा लीजिये। आप घाटे में पड़ेंगे नहीं हम घाटा पूरा करा देंगे। हमारे गुरु ने घाटा पूरा करा दिया आपका घाटा हम पूरा करा देंगे। कहीं से करा देंगे। इस तरह से आपको समय, समय के अलावा साधन लगाने चाहिये। आगे के लिये क्या करें फिर। आगे के लिये इसी के लिये कुछ सामान मँगाते रहेंगे। किताबें झोला पुस्तकालय की खतम हो जायेंगी फिर आपको मँगाना पड़ेगी। बीस पैसे रोज का ज्ञानघट आपके यहाँ रखा ही होगा। अभी तो ऐसे ही पड़ा रहता है कहीं बच्चे उठा ले जाते हैं कभी पैसे फेंक देते हैं कभी डालते नहीं है। अब आप नियमित रूप से बीस पैसे डालिये। बीस पैसे भी कम नहीं होते। बीस पैसे रोज खर्च कर दें तो जो आगे वाला मिशन है जो आपका शक्तिपीठ बनाया है उसका दैनिक खर्च भी तो चाहिये। मेन्टेनेंस भी तो चाहिये। पूजा आरती भी तो रोज करना पड़ती है। बत्ती भी तो रोज जलाना पड़ती है। इसलिये रोजाना का खर्च। इंसान रोज का खर्च लिये बैठा है हम पानी पीते हैं खाना खाते हैं यह रोज का खर्च कपड़े पहनते है यह पुराने हो जाते हैं फिर नये पहनना पड़ते हैं। रोजाना का जो खर्चा है इसको आप स्वयं ही करें। अकेले करें। अकेले करें।
अब मैं अकेले शक्तिपीठों को देखना चाहता हूँ। अकेला चलो रे, अकेला चलो रवीन्द्रनाथ टैगोर का वह गीत मुझे बहुत प्यारा है। मैं भी अकेला चला हूँ। घर से भी अकेला चला। किसी का कहना माना? मैंने किसी का कहना नहीं माना न मैंने अपने भाइयों का कहना माना न बाप का कहना माना न माँ का कहना माना न भतीजों का कहना माना न सालों का कहना माना न बहनोई का कहना माना किसी का कहना नहीं माना और अपनी आत्मा का और परमात्मा का दो का कहना माना आप भी ऐसा कर सकते हैं। तो आप कुछ समय नियमित रूप से लगाकर के आप अपने आपको चलती फिरती शक्तिपीठों के रूप में बदल सकते हैं। चलती फिरती शक्तिपीठें कितनी चाहिये। हमको दस हजार चाहिये। हमारा मन है। वास्तव में मन है। चौबीस लाख आदमियों से दस हजार आदमी नहीं मिलेंगे हमको। मिलने चाहिये।
मेरे ख्याल से दस हजार प्रतिज्ञा वाले आदमी वचन के धनी आदमी सच्ची लगन वाले आदमी ईमानदार आदमी लोकहित के लिये अपने आपको समर्पित कर सकें ऐसे आदमी मेरे ख्याल से मुझे दस हजार मिल जाने चाहिये मेरी एक ही महत्त्वाकाँक्षा और कामना रह गयी है कि मेरी गायत्री जयंती मन जाये ऐसी गायत्री जयंती मने, ऐसी गायत्री जयंती मने जिसे हम परलोक में भी याद किया करें आप लोगों को। अब यह युगसंधि के दिन है थोड़े से दिन है क्या पता आप कितने दिन जिये न जिये। लेकिन युगसंधि के लिये पंद्रह वर्ष हैं इसलिये आपसे बराबर समय माँग रहे हैं पंद्रह वर्ष छुट्टी भी कर सकते हैं आप। पंद्रह वर्ष काम कर दीजिये आप हमारा। पच्चीस वर्ष गवर्नमेंट के यहाँ नौकरी करनी पड़ती है आप पंद्रह वर्ष हमारी कर दीजिये। चार घंटे रोज के हिसाब से या दो घंटे रोज के हिसाब से नियमित रूप से लगा दीजिये।
एक नंबर दो आपके पास कुछ सामान होगा एकाध टेपरिकार्डर वगैरह पड़ा होगा तो उसके दाम कम हो जायेंगे। यह दिल्ली से सब सामान मिल जाता है। आप पाँच हजार के लगभग अथवा जो सामान हो उसको काटकर के दो हजार तीन हजार जो भी कुछ हो एक मुश्त रकम का इंतजार कर लीजिये। और ज्ञानघट को फिर से आप शुरू कर दीजिये और अपने ही काम में लगाइये। यहाँ भेज दीजिये नहीं यहाँ मत भेजना अपने ही संस्था को आप भी तो एक शक्तिपीठ हो गये। अब हम दस हजार शक्तिपीठें बनायेंगे। हाड़ माँस की शक्तिपीठें बनायेंगे चलती फिरती शक्तिपीठें बनायेंगे। बोलती चलती शक्तिपीठें बनायेंगे। भावनाशील शक्तिपीठ बनायेंगे। पत्थरों की चूने की और ईंट की तो बन गयी।
आप स्वयं काम करना शुरू कर दीजिये। हमारे यहाँ कार्यकर्ता यह कहते हैं कार्यकर्ताओं की ओर आप देखिये मत। सिर्फ हमारी ओर देखिये और अपनी ओर देखिये। दो की ओर देखिये मत आप कमेटी की ओर देखिये मीटिंग की ओर देखिये मत शक्तिपीठ की ओर देखिये न सम्मेलन की ओर देखिये न सभा की ओर देखिये आप अकेले काम शुरू कर दीजिये। बस अकेले। अब अकेला मैं अकेले आप दो पागल जब मिलजुलकर बैठेंगे तो कैसा मजा आयेगा कैसी मस्ती आयेगी। मियाँ बीबी भी दो आदमी होते हैं उनमें भी कोई शामिल होता है? नहीं न दो मियाँ होते हैं न दो बीबियाँ होती हैं। एक मियाँ एक बीबी होती है।
इसलिये आपसे एकाकी अपील है आपसे आपसे व्यक्तिगत अपील है मेरी। आप व्यक्तिगत रूप से अकेले एकाकी बिना किसी की सहायता और अपेक्षा के पहले हमने स्वाध्याय मण्डल बनाये थे उसमें यह शर्त थी की पाँच सहयोगी इकट्ठे कर लीजिये। अब इसमें क्या शर्त है कोई शर्त नहीं है आप अकेले काम कीजिये। बस अकेले काम कीजिये। अकेले काम कर सकेंगे तो आप हीरों के हार हो जायेंगे। हीरों का हार पहनकर अपनी छाती से लगाये रहेंगे आपको अपने कलेजे से लगाये रहेंगे आपको। आपको भूल जायेंगे। अरे हम आपको सम्भालकर रखेंगे बाबा रात को कोई चोर चुराकर ले गया तो कैसे हो जायेगा। इसको हम तिजोरी में रखेंगे। लाकर में रखेंगे बहुत संभालकर रखेंगे। इसका दिन-रात ध्यान रखेंगे। इतने हीरे हमारे पास हैं। हीरे की अंगूठी होती है तो आदमी ध्यान रखते हैं हीरे की नाक की लोग औरतों के पास होती है उसका ध्यान रखती हैं हर वखत उसका ध्यान आता रहता है। और आप हीरे अगर हमारी निगाह में रहेंगे और सामने रहेंगे तो आपको याद नहीं करेंगे आपको सम्भालेंगे नहीं। फिर आपके लिये कुछ देंगे नहीं आपके लिये भी देंगे।
हमारे पास कुछ चीजें हैं तो हम बहुत दिन से तलाश करते फिर रहे हैं इस बार एकान्त साधना से भी कुछ प्राप्त कर रहे हैं। पहले भी हम प्राप्त करते रहे हैं। पहले भी हमने दिया है लोगों को। पर क्या दिया है किसी को बेटा दे दिया किसी का मुकदमा जितवा दिया। किसी की खाँसी दूर कर दी अरे तो इससे क्या बना कुछ बना क्या? इससे क्या बना दो वर्ष पहले मर जाता तो क्या। नौकरी में तरक्की करा दी अगर आपको १०० रुपये ज्यादा दिला दे अगर सौ रुपये कम मिलते तो जिंदा रहते कि नहीं रहते। और गरीब लोग जिंदा है कि नहीं है। वह तो मखौल था। जो आपको दिया और जो आपने लिया अब तक हमसे वह तो दिल्लगी बाजी थी। बच्चों को बहका देते हैं गुब्बारा लाकर के। गुब्बारा के तरीके से आपको बहका दिया सीटी देकर बहका दिया। छोटी छोटी टाफी और लेमचूस देकर बहका दिया। पर अब हमारे पास कुछ ज्यादा माल है। ज्यादा संपत्ति है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मरे थे विवेकानंद के ऊपर अपनी लात रखकर के और यह कह गये थे हमारे पास जो शक्ति है तेरे को समर्पित कर दी। पर पात्रता तो चाहिये। पात्रता तो इतनी भी नहीं करना चाहते।
आप तो बहकाना चाहते हैं प्रणाम करना चाहते हैं और फूलमाला पहनाना चाहते हैं हमारे फोटो के ऊपर आरती उतारना चाहते हैं। और यह करना चाहते हैं बेकार की बातें डंड कमण्डल तो आप करना चाहते हैं जैसे बच्चों को बहकाते हैं। भगवान को बहकाइये भगवान तो पागल आदमी है। शंकर जी बहकाइये। बेल के पत्ते लीजिये और मनोकामना पूरी करा लीजिये। हमको बहकाने मत। हम तो कीमत चाहते हैं आपसे। गिव एण्ड टेक का व्यवहार हमको पसंद है। हमारे गुरु को भी यही पसंद है। हमने दिया है और उसने हमको दिया है। हमने उसको दिया है और उसने हमको दिया है। दोनों में लड़ाइयाँ होती रहीं उनने कहा तुझे कुछ चाहिये। हमने कहा तुझे कुछ चाहिये। तेरे को कुछ चाहिये तो हमने हमारे पास जो कुछ था उसको लाकर उसके हवाले कर दिया। उसने कहा हमारा जो तप है ६०० वर्ष का वह हमने तेरे हवाले कर दिया। हवाले कर दिया तो मित्रों हम इस हिसाब से कुछ बड़े बने बैठे हैं। शरीर में क्या है हमारे माँस में क्या है हम इतना बड़ा जो काम कर बैठे वह सारे का सारा काम कर बैठना भगवान की शक्तियों का स्थानान्तरण होने का काम है।
आप भी कुछ चाहते हैं क्या हमसे स्वाति की बूँदों का ब्यौरा सुना है क्या कि स्वाति की बूँदें सीप में पड़ जाती हैं मोती बन जाती हैं बाँस में पड़ती है वंशलोचन बन जाती हैं। केले में कपूर बन जाती हैं सुना है क्या आपने। पारस पत्थर की कहानी सुनी है क्या आपने। पारस पत्थर की कहानी सुनी है तो फिर आइये। अगर आप लोहा हैं तो हम छाती से लगाएँगे। कलेजे से लगाएँगे। तो लगा लीजिये। कीमत तो चुका। प्रणाम करता है और दुनिया भर के वरदान माँगता है ऐसे पागल कहीं और से देखना। रामकृष्ण परमहंस ने कीमत वसूल करके दिया था। चाणक्य ने कीमत वसूल करके दिया था। समर्थ गुरु रामदास ने कीमत वसूल करके दिया था और हम भी भाई साहब उस परंपरा को बिगाड़ नहीं सकते। बिना कीमत के देकर के मुफ्तखोरों को लूटमारों को जेबकटों को अपनी दौलत दे जाये, कैसे दे जायेंगे। प्यार दे जायें कैसे दे जायेंगे। जेबकटों को नहीं दे सकते हम देंगे उनको जो हमारे लिये पसीना बहायेंगे। जो हमारे लिये श्रम बहायेंगे हमारे लिये अपना मन बहायेंगे। हमारे लिये अपने जीवन का अंश बहायेंगे उनको हम देंगे। बस श्रावणी का रक्षाबंधन आप हमारी रक्षा कीजिये हमारी भावनाओं की रक्षा कीजिये हम आपकी रक्षा करेंगे। यह श्रावणी का पर्व कितना शानदार पर्व कितना खुशी का पर्व यह पर्व हम भी मनाते हैं इस उम्मीद के साथ कि हम दस हजार लोग निकाल लेंगे। इस साल हरिद्वार का कुम्भ भी है। फिर हम उन दस हजार लोगों को कुम्भ के मौके पर देख भी लेंगे। ढाई महीने का है बारह साल बाद आता है वह है यह। यह ढाई महीने चलेगा। जनवरी से मार्च अप्रैल तक चलेगा। तो उस कुम्भ के मेले के मौके पर हम आपको बुलाएँगे कैसे हीरे हैं हीरों को एक बार फिर चलते हुये देखेंगे। पहले आप शिविरों में आ गये तो आ गये लेकिन आप हीरे हैं तो आप हीरे होकर के फिर एक दिन के लिये कुम्भ के मौके पर आना फिर हम आपको देखेंगे और छाती से लगा लेंगे। बस अब यही हमारी कामना है।
यह रक्षाबंधन का आज का संदेश यहीं समाप्त।