Books - स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
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Language: HINDI
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मानवी पुरुषार्थ एवं दैवी शक्ति का युग्म
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कठिनाईयों को निरस्त करने वाला साहस अपने आप में ईश्वरीय अनुग्रह है। राजनैतिक, सामाजिक, बौद्धिक क्रान्तिकारियों की सफलतायें उनके साहस के साथ जुड़ी हैं। दुस्साहसियों में नेपोलियन जैसे मनुष्यों की गणना प्रायः होती रहती है। इंग्लैण्ड के ऊपर जब जर्मनी की बेतहाशा बमबारी हो रही थी और उस देश के पराजित होने का अंदेशा नागरिकों के मन पर बुरी तरह छाया हुआ था तो तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने एक नारा दिया था—‘‘वी’’ फार विक्ट्री। यह नारा घर-घर पर अंकित कर दिया गया और जनता में नये सिरे से उत्साह जगाया गया कि जीतेगा अन्ततः इंग्लैंड ही। इन दिनों बातों से जन जीवन में नया मनोबल उभरा और उसके सहारे उभरते पराक्रम ने इंग्लैण्ड ही हारती बाजी को जिताकर दिखाया। दुष्प्रयोजनों के लिए तो लुटेरे हत्यारे भी साहस दिखाते रहते हैं, पर ऊंचे उद्देश्यों के लिए जब भी साहस उभरता है जब उसके पीछे साधनों की कमी होते हुए भी मनोबल का ऐसा प्रचण्ड प्रवाह उभरता है जिसके सहारे पराजय विजय में बदल जाती है। ऐसा सत्साहस प्रायः दैवी ही होता है। क्षुद्र स्तर के प्राणी तो स्वार्थ सिद्धि की लड़ाई ही लड़ते देखे गये हैं। मुहल्लों में कुत्तों जैसी लड़ाई होती तो कहीं भी देखी जाती है।
अगले दिनों प्रतिभाओं को युग परिवर्तन के लिए ऐसा कुछ पराक्रम करना पड़ेगा जिसे अभूतपूर्व और ऐतिहासिक कहा जा सके। क्योंकि इतने व्यापक क्षेत्र में इतने बड़े और इतने कष्ट साध्य परिवर्तन प्रस्तुत करने का अवसर कदाचित पृथ्वी में पहली बार ही मिला है। राजाओं— सामंतों की सेना अपने साधनों के बल पर लड़कर हारती और जीतती रही है, पर ऐसा प्रथम अवसर है जब अधिकांश राजा प्रजा का विकृत चिन्तन और चरित्र नये सिरे से अभ्यास से पूर्व ही उत्कृष्टता की दिशा में ढाला गया है और उसके लिए वरिष्ठ प्रतिभाओं को आगे बढ़कर बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन जैसी भूमिका निभाने के लिये सामूहिक रूप से समुद्यत होना पड़ेगा। इसके लिये दैवी अनुदान आवश्यक है। यदि वह न बन पड़े तो मौसम की प्रतिकूलता ही बड़ी सैन्य सज्जा को आगे बढ़ने से रोक देती है। फिर इतने बड़े अभियान में तो साधन रहित वर्ग के लिये छोटी-छोटी कठिनाइयां ही प्रगति का पथ अवरुद्ध कर सकती हैं। उलटे संकट खड़े कर सकती हैं। पीछे की हवा हो तो पैदल अथवा वाहन सरलतापूर्वक तेज दौड़ लेते हैं, जबकि सामने की तेज हवा का दबाव पथ में पग-पग पर रोकथाम करता है।
अगले दिनों प्रतिभाओं को युग परिवर्तन के लिए ऐसा कुछ पराक्रम करना पड़ेगा जिसे अभूतपूर्व और ऐतिहासिक कहा जा सके। क्योंकि इतने व्यापक क्षेत्र में इतने बड़े और इतने कष्ट साध्य परिवर्तन प्रस्तुत करने का अवसर कदाचित पृथ्वी में पहली बार ही मिला है। राजाओं— सामंतों की सेना अपने साधनों के बल पर लड़कर हारती और जीतती रही है, पर ऐसा प्रथम अवसर है जब अधिकांश राजा प्रजा का विकृत चिन्तन और चरित्र नये सिरे से अभ्यास से पूर्व ही उत्कृष्टता की दिशा में ढाला गया है और उसके लिए वरिष्ठ प्रतिभाओं को आगे बढ़कर बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन जैसी भूमिका निभाने के लिये सामूहिक रूप से समुद्यत होना पड़ेगा। इसके लिये दैवी अनुदान आवश्यक है। यदि वह न बन पड़े तो मौसम की प्रतिकूलता ही बड़ी सैन्य सज्जा को आगे बढ़ने से रोक देती है। फिर इतने बड़े अभियान में तो साधन रहित वर्ग के लिये छोटी-छोटी कठिनाइयां ही प्रगति का पथ अवरुद्ध कर सकती हैं। उलटे संकट खड़े कर सकती हैं। पीछे की हवा हो तो पैदल अथवा वाहन सरलतापूर्वक तेज दौड़ लेते हैं, जबकि सामने की तेज हवा का दबाव पथ में पग-पग पर रोकथाम करता है।