Books - विपत्ति निवारिणी गायत्री
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Language: HINDI
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भूमिका
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मनुष्य का जीवन अनेक असुविधाओं, आपत्तियों, अभावों तथा आशंकाओं से भरा रहता है। हमारे ऊपर कोई न कोई चिन्ता सदा सवार रहती है, अनिष्ट की आशंका नित्य ही बनी रहती है, चित्त को दुःखी बनाने वाले कारण कहीं न कहीं से सामने आ ही जाते हैं। इस प्रकार दुखदायक परिस्थितियों से पीछा नहीं छूटता।
आत्मा आनन्द स्वरूप है। इसलिए उसका उपकरण (शरीर) और क्रीड़ा विनोद (जीवन) भी स्वभावतः आनन्दमय होना चाहिए। वस्तुतः मानव जीवन आनन्द से परिपूर्ण है पर उसे विपरीत परिस्थितियों में डाल देने वाली जीव की एक बौद्धिक भूल है, इस भूल को आध्यात्मिक भाषा में ‘कुबुद्धि’ या ‘माया’ कहते हैं। स्वतंत्र, सच्चिदानंद स्वरूप आत्मा इस कुबुद्धि रूपी माया के बन्धन में बंध कर त्रास पाती रहती है।
इस कुबुद्धि को दूर करने का उपाय ‘सद्बुद्धि’ की आराधना ही है। सद्बुद्धि को ही गायत्री कहते हैं। गायत्री के आधार पर मानव जीवन के समस्त उलझनों को सुलझाया जा सकता है, समस्त कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। संसार की समस्त समस्याओं का समाधान गायत्री द्वारा हो सकता है। इसी तथ्य को इस पुस्तक में बताया गया है। आशा है कि यह पुस्तक अपने को दीन दुःखी समझने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण पथ प्रदर्शन करेगी।
—श्रीराम शर्मा आचार्य
आत्मा आनन्द स्वरूप है। इसलिए उसका उपकरण (शरीर) और क्रीड़ा विनोद (जीवन) भी स्वभावतः आनन्दमय होना चाहिए। वस्तुतः मानव जीवन आनन्द से परिपूर्ण है पर उसे विपरीत परिस्थितियों में डाल देने वाली जीव की एक बौद्धिक भूल है, इस भूल को आध्यात्मिक भाषा में ‘कुबुद्धि’ या ‘माया’ कहते हैं। स्वतंत्र, सच्चिदानंद स्वरूप आत्मा इस कुबुद्धि रूपी माया के बन्धन में बंध कर त्रास पाती रहती है।
इस कुबुद्धि को दूर करने का उपाय ‘सद्बुद्धि’ की आराधना ही है। सद्बुद्धि को ही गायत्री कहते हैं। गायत्री के आधार पर मानव जीवन के समस्त उलझनों को सुलझाया जा सकता है, समस्त कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। संसार की समस्त समस्याओं का समाधान गायत्री द्वारा हो सकता है। इसी तथ्य को इस पुस्तक में बताया गया है। आशा है कि यह पुस्तक अपने को दीन दुःखी समझने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण पथ प्रदर्शन करेगी।
—श्रीराम शर्मा आचार्य