Books - पाँच प्राण-पाँच देव
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Language: HINDI
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क्या हम उतने ही हैं जितना स्थूल शरीर
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प्रथम महायुद्ध के समय ‘डान और वाव’ नामक दो अमेरिकी सैनिक युद्ध के एक मोर्चे पर एक साथ ही घायल हो गये। वे दोनों गहरे मित्र भी थे। ‘डान’ तो तुरन्त मर गया किन्तु ‘वाव’ उपचार से ठीक हो गया। पर स्वस्थ होने पर ‘वाव’ के स्वभाव में भारी परिवर्तन देखा गया। वह अपने मित्र ‘डान’ जैसा व्यवहार करने लगा स्वयं को ‘डान’ कहता। युद्ध समाप्त होने पर वह घर के लिए रवाना हुआ किन्तु अपने घर न जाकर ‘डान’ के घर जा पहुंचा। वहां डान के माता-पिता से मिलकर उतना ही प्रसन्न हुआ जैसा ‘डान’ होता था। आचरण और व्यवहार में ‘डान’ से पूर्ण समानता होने पर भी ‘वाव’ का शरीर तो पूर्ववत् ही था। ‘डान’ के माता-पिता ने ‘वाव’ को अपना पुत्र मानने से इन्कार कर दिया। इस पर वाव रूपी डान को विशेष दुःख हुआ। उसने डान के माता-पिता को अतीत से सम्बन्धित ऐसी-ऐसी प्रामाणिक घटनाएं बतायीं जो उन्हीं से सम्बन्धित थीं। उस पर उनको विश्वास हो गया कि रूप की भिन्नता होते हुए भी उसके सारे क्रिया-कलाप डान जैसे हैं। तथा डान की आत्मा बाव के शरीर में प्रविष्ट हो गई है। यह घटना विज्ञान के लिये एक चुनौती जैसी है।
स्पेन में भी एक आश्चर्यजनक घटना ऐसी ही सामने आयी। दो लड़कियां एक बस से जा रही थीं। इनमें एक का नाम हाला तथा दूसरी का मितगोल था। बस रास्ते में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई। मितगोल दुर्घटना में पिस कर मर गई। हाला को चोट तो नहीं लगी किन्तु भय के कारण बेहोश हो गई। कुछ समय बाद उसे होश आया। दुर्घटना की सूचना दोनों लड़कियों के अभिभावकों को मिली। अपनी बच्चियों को देखने दोनों दुर्घटना-स्थल पर पहुंचे। हाला के पिता उसकी ओर बढ़े तथा उसका नाम लेकर पुकारा। पर आश्चर्य वह बोल पड़ी ‘‘मैं हाला नहीं मितगोल हूं।’’ यह कहकर वह मितगोल के पिता की ओर बढ़ी। अभिभावकों ने उसे स्मृति भ्रम समझकर उसे दर्पण दिखाया जिससे दर्पण देखकर भ्रम दूर कर सके। परन्तु दर्पण देखकर वह बोली ‘‘मितगोल (हमारा) रूप कैसे बदल गया।’’ हाला के पिता किसान थे। वह अधिक पढ़ भी नहीं पायी थी। मितगोल के पिता प्राचार्य थे। मितगोल कालेज में पढ़ती थी तथा विभिन्न विषयों की जानकार थी।
हाला के पिता समझा-बुझाकर लड़की को अपने साथ ले गये। वह इस विद्यालय में पढ़ने गई जहां पहले हाला पढ़ती थी किन्तु वहां उसके व्यवहार में पूरी तरह परिवर्तन देखा गया। एक दिन वह उस विद्यालय में जा पहुंची जहां मितगोल पढ़ती थी। वहां छात्रों को सम्बोधित करते हुए स्पिनोजा के तत्वज्ञान पर भाषण दिया। ऐसे अनेकों प्रमाणों से प्राचार्य महोदय को यह विश्वास हो चला कि ‘हाला’ का शरीर होते हुए भी उसमें मितगोल की आत्मा है। जो भी प्रयोग परीक्षण हुए उनसे यह एक ही बात सिद्ध हुई। विश्व-विख्यात चित्रकार ‘गोया’ की आत्मा अमेरिका की एक विधवा हैनरोट के भीतर प्रविष्ट हो गई। यह घटना अमेरिका में प्रसिद्ध है। नये शरीर में ‘गोया’ ने ‘ग्वालन’ नामक एक सुन्दर कलाकृति का निर्माण किया। विधवा ‘हैनरोट’ ने अपने जीवन काल में कभी चित्र नहीं बनाया था। अमेरिकी विशेषज्ञों को विधवा के व्यवहार में गोया की आत्मा झांकती दिखायी दी।
घटना 7 नवम्बर 1918 की है। तब पहला विश्वयुद्ध चल रहा था। एक फ्रान्सीसी लड़का टैड जिसका पिता फ्रान्स के मोर्चे पर लड़ रहा था, खेलते-खेलते एक दम चिल्लाया—मेरे पिता का दम घुट रहा है। वे एक तंग कोठरी में बन्द हो गये हैं और उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। घर के लोग कुछ भी नहीं समझ पाये। टैड इतना कह कर बेहोश हो गया था। कुछ देर बेहोश रहने के बाद उसे होश आया और वह बोला—अब वे ठीक हो जायेंगे। घर के लोगों ने टैड के बेहोश होने से पूर्व कहे गये शब्दों और बाद में होश आने पर कहे शब्दों से इतना ही अन्दाज लगाया कि टैड ने अपने पिता के सम्बन्ध में कोई दुःस्वप्न देखा होगा। बात जहां की तहां समाप्त हो गयी।
प्रथम विश्वयुद्ध, जब समाप्त हुआ और टैड के पिता घर लौटे तो स्वजनों को उस दिन की घटना याद आ गयी, जब टैड के पिता ने बताया कि 7 नवम्बर को मैं मरते-मरते बचा। पूछा गया कि क्या बात हुई थी तो उन्होंने बताया कि मैं उस दिन एक गैस चैम्बर में फंस गया था, जिसमें मेरा दम घुटने लगा था। मुझे दिखायी देना भी बन्द हो गया था। तभी मैंने देखा कि टैड जैसा एक लड़का उस युद्ध की विभीषिका में न जाने कहां से आ पहुंचा और उसने चैम्बर का मुंह खोल कर, मुझे हाथ पकड़ कर बाहर खींचा और उसने चैम्बर का मुंह खोल कर, मुझे हाथ पकड़ कर बाहर खींचा। तभी मेरी यूनिट के सैनिकों की दृष्टि मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे अस्पताल पहुंचाया। यह विवरण सुन कर ही घर वालों को उस दिन टैड के चीखने, बेहोश होने तथा होश में आने पर आश्वस्त ढंग से बात करने की घटना याद आयी।
इटली के एक पादरी अलफोन्सेस लिगाडरी के साथ 21 सितम्बर 1974 को ऐसी ही घटना घटी। उस दिन वे ऐसी गहरी नींद में सोये कि जगाने की बहुत कोशिशें करने के बाद भी न जगाये जा सके। यह भ्रम हुआ कि कहीं वे मर तो नहीं गये हैं। इस भ्रम की परीक्षा के लिए उनकी जांच की गयी तो पता चला कि वे पूरी तरह जीवित हैं। कई घण्टों तक वे इसी स्थिति में रहे। उन्हें जब होश आया तो देखा कि आस-पास लगभग सभी साथी सहयोगी खड़े हुए हैं। उन्होंने अपने साथियों से कहा—‘‘मैं आपको एक बहुत ही दुःखद समाचार सुना रहा हूं कि हमारे पूजनीय पोप का अभी-अभी देहान्त हो गया है।’’ साथियों ने कहा—‘‘आप तो कई घण्टों से अचेत हैं, आपको कैसे यह मालूम हुआ।’’ लिगाडरी ने कहा—मैं इस देह को छोड़कर रोम गया हुआ था और अभी-अभी वहां से ही लौटा हूं। उनके साथियों ने समझाया कि वे कोई सपना देख कर उठे हैं और सपने में ही उन्होंने पोप की मृत्यु देखी होगी। चार दिन बाद ही यह खबर लगी कि पोप का देहान्त हो गया है और वह उसी समय हुआ जब कि लिगाडरी अचेत थे तो उनके मित्र साथी चकित रह गये।
एक स्थान पर रहते हुए भी मनुष्य अपनी आत्मा की शक्ति द्वारा दूरवर्ती क्षेत्रों में संदेश पहुंचा सकता है। उपरोक्त घटनाओं में जाने अनजाने सूक्ष्म शरीर ही सक्रिय रहा है। यदि सूक्ष्म शरीर की शक्ति को जागृत कर लिया जाय तो उससे जब चाहें तब मन चाहे करतब किये जा सकते हैं। 1929 में अल्जीरिया में कैप्टन दुबो के साथ ऐसी ही घटना घटी, जिससे सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व और उसकी शक्तिमत्ता का प्रमाण मिलता है। कैप्टन दुबो जल अल्जीरिया के एक छोटे से गांव से कुछ रोगियों को देख कर लौट रहे थे, गांव का मुखिया अब्दुल उन्हें धन्यवाद देने के लिए उनके साथ-साथ आया, बातों ही बातों में अब्दुल ने कैप्टन से सूक्ष्म शरीर के अनेक चमत्कारों का उल्लेख कर दिया। दुबो ने अब्दुल की बातों में कोई रुचि नहीं दिखाई और उल्टे इसे गप्पबाजी कहा। इस पर अब्दुल ने कहा कि मैं इसे प्रमाणित कर सकता हूं। कैप्टन ने जब उसकी यह बात सुनकर भी अविश्वास से सिर हिलाया तो अब्दुल कुछ देर के लिए ध्यानस्थ हुआ और फिर आंखें खोलकर बोला—आप अपने पीछे मुड़कर देखिए। जैसे ही उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उन्होंने दीवार पर एक ऐसी कलाकृति टंगी पायी जो उन्हें बहुत प्रिय थी और इस समय वहां से हजारों मील दूर पेरिस में उनके घर पर थी।
उसी दिन कैप्टन दुबो के पिता पियरे ने पेरिस की पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि उनके घर से 10 लाख रुपये मूल्य की अद्वितीय कलाकृति चोरी चली गयी। पुलिस कमिश्नर पियरे के अच्छे मित्र थे, उन्होंने शिकायत मिलते ही अपने सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर कलाकृति की खोज में लगा दिये। कई दिन तक लगातार खोज चली, पर कलाकृति की खोज न की जा सकी। जिस कमरे में कलाकृति टंगी थी, उसमें किसी के जबरन प्रवेश करने या उंगलियों के निशान नहीं मिले थे। पियरे ने इस कलाकृति की चोरी की खबर अपने पुत्र को भी दी। तब सारी बात जान कर कैप्ट। दुबो, पुलिस कमिश्नर और अन्य अधिकारियों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ।
इन सारी घटनाओं का विश्लेषण किया जाये तो उससे प्रेरणाएं, दिशाएं तथा मन्तव्य अनेक प्रकार से निकाले जा सकते हैं किन्तु इन सबका निष्कर्ष एक ही निकलता है वह है स्थूल शरीर से परे मनुष्य का एक और भिन्न अस्तित्व स्थूल शरीर की इकाई है—‘‘प्रोटोप्लाजा’’ इस सूक्ष्म शरीर की इकाई क्या है यह अन्वेषण का विषय है किन्तु यह तथ्य निर्विवाद है कि शरीर में एक और शरीर जिसे—भारतीय तत्व दर्शन—सूक्ष्म शरीर कहते हैं; निवास करता है। यह शरीर स्थूल से कहीं अधिक समर्थ, और चमत्कारी है, सच तो यह है कि स्थूल शरीर के सारे क्रिया कलाप उसी के द्वारा संचालित होते हैं उस के दूकान बन्द करते ही स्थूल शरीर की तिजारत हमेशा के लिए बन्द हो जाती है। यह सूक्ष्म शरीर जिस प्राण स्फुल्लिंग के समुच्चय से बना है वह अपने आप में अनन्त शक्तियों के स्रोत समाहित किये हुये हैं इसलिये शरीर पांच प्राणों को पांच देवता कहते हैं एक देवता की सहायता मनुष्य को अगर अमर बना देती है तो यदि कोई इन पंचदेवों को सिद्ध करले तो वह कितना समर्थ हो सकता है उसे प्रस्तुत घटनाओं से अनुभव भर किया जा सकता है उसका पूरी तरह अनुमान लगा सकना कठिन है।
सूक्ष्म शरीर का शक्तिशाली व्यक्तित्व
आंखों देखी को ही प्रमाण मानने वालों के समक्ष भी आये दिन ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं जो यह स्पष्ट कर देती हैं कि सामान्यतः जितना विदित है उससे अनेक गुनी क्षमताएं मनुष्य के भीतर सन्निहित हैं और ये सभी क्षमताएं उसमें एक व्यापक विराट चैतन्य सत्ता के अंश होने के कारण ही हैं। जब भी कोई व्यक्ति उस अदृश्य सत्ता से गहराई में जुड़ जाता है, उसकी वे विलक्षणताएं उभर पड़ती हैं, जिनकी व्याख्या अब तक ज्ञात भौतिक-विज्ञान के नियमों के सहारे नहीं हो सकती।
अपने सामान्य चेतन मस्तिष्क के संकल्प-बल से मनुष्य स्थूल शरीर को तरह-तरह की गतिविधियों में नियोजित करता है। चेतना की गहराई से संचालित सूक्ष्म शरीर की गतिविधियों का क्षेत्र इस इन्द्रिय-जगत के आगे का सूक्ष्म-जगत है। सूक्ष्म शरीर द्वारा इस सूक्ष्म जगत में हलचलें-क्रियाएं की जा सकती हैं। जिस प्रकार सूक्ष्म जगत की शक्ति स्थूल जगत से कहीं अधिक है, उसी प्रकार सूक्ष्म-शरीर की सामर्थ्य स्थूल शरीर से बहुत अधिक है। वह मानव-मन की तरह तीव्रगति वाला तो है ही, अज्ञात क्षेत्रों का परिचय प्राप्त करने और अनजानी वस्तुओं की भी जानकारी पाने में समर्थ है। अविज्ञात सूक्ष्म जगत से जुड़े सूक्ष्म शरीर की क्षमताएं अभी पूरी तरह अविज्ञात ही हैं। किन्तु उनके जो स्थूल प्रमाण मिले हैं, वे भी कम विलक्षण नहीं हैं। उनसे मनुष्य के भीतर सन्निहित प्रचंड सामर्थ्य स्रोत का आभास तो मिलता ही है।
आयरलैण्ड की एक घटना है। वहां बटलर—दम्पत्ति रहते थे। श्रीमती बटलर प्रायः रात्रि में स्वप्न में एक सुन्दर इमारत देखती थीं, जो चारों ओर के उद्यानों के बीच होती। सपने में वे उस मकान के भीतर घूमती। यह स्वप्न उन्हें इतनी बार आया कि वे उस मकान के बाहरी ढांचे से ही नहीं, उसके कमरों की भीतरी बनावट से भी परिचित हो गईं। घर वालों से वे इन स्वप्नों की एक सूत्रता की चर्चा भी करतीं। पर वे लोग इसे एक विनोद-प्रसंग बनाने के सिवाय और क्या सोचते?
हुआ यह कि एक बार पति-पत्नी को लन्दन जाना पड़ा। वहां आवास—योग्य मकान की खोज शुरू हुई। एक दिन कार में शहर घूमते समय सहसा, श्रीमती बटलर एक मकान को देखकर चौंक उठी। पति से बोलीं ‘‘यही वह मकान है जो मुझे अक्सर स्वप्नों में दिखता था।’’
पति भी उत्सुक हो उठे। कार रोकी। मकान की बाबत पूछताछ की पता चला वह बिक सकता है, खाली पड़ा है। श्रीमती बटलर ने सोचा ‘‘यही मकान मिल जाये तो अच्छा हो। खरीद लिया जाये।’’
बटलर-दम्पति एजेण्ट के पास गये और उस मकान की जानकारी दी। एजेन्ट ने समझाया—‘‘आप लोग इस चक्कर में न पड़ें। मैं और अच्छे मकानों के विवरण देता हूं। देख लें। उनमें जो पसन्द आयें, ले लें। यह मकान न लें। यह भुतहा मकान है।’’
पर श्रीमती बटलर के मन में तो उस मकान के प्रति आत्मीयता घर कर गई थी। उन्होंने उसे ही लेने का आग्रह किया। अतः एजेन्ट उन्हें लेकर मकान-मालिक के पास गया। पर मकान मालिक ने अपने फाटक जैसे ही श्रीमती बटलर को देखा, कुर्सी से उठकर भाग खड़े हुए। ‘‘भूत, भूत’’ चिल्लाते वे भीतर घुस गये।
एजेन्ट उसी शहर का होने से उनसे परिचित था। अतः उनके पास गया। भीतर वे महाशय भय से कांप रहे थे। घर वाले भी तब तक जमा हो गये थे। वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे। एजेंट ने मकान-मालिक को समझाया कि ये लोग मकान खरीदने जाये हैं। अमुक विभाग में कार्य करते हैं। कोई भूत नहीं हैं। तब वे सज्जन आये। उन्होंने बताया कि—‘‘वह मकान हमें छोड़कर यहां आना पड़ा। यों, हमें वही अधिक पसन्द था। इस वाले मकान को तो हमने किराये में उठा रखा था। पर वहां रात को एक औरत जब-तब आ धमकती और घूमने लगती। घर वाले तो रात की उस आहट को सुनते ही डर के मारे मुंह ढक कर दुबके रहते। उन्हें बस यह आभास दूर से दो एक बार हो गया था कि कोई स्त्री—छाया वहां टहलने आई है। मैंने उसे देखने की कोशिश की। बार-बार देखने के कारण मैं उसे भली-भांति पहचान गया। वह आप ही थीं। मैंने पहली बार तो आप से बातचीत की कोशिश की। क्योंकि आप में भयावहता जैसी कोई बात नहीं थीं। मैं चकित जरूर हुआ था कि रात में आप अन्दर आईं कैसे। पर सोचा पूछूं, टोकूं। लेकिन जब आप पर मेरी बात का कोई असर ही नहीं हुआ, मानो आप सुन ही नहीं रही हैं। तब मैं घबराया। आगे, जब आप बार-बार आ धमकने लगीं, तो हमें वहां खतरा महसूस हुआ। इसके पहले कि हमें भूत यानी आप कोई हानि पहुंचायें, हमने वह मकान छोड़ देना ही ठीक समझा।’’
सुनकर श्रीमती बटलर चकित हुईं उन्होंने बताया कि मैं स्वप्न में जरूर यह सब देखती थी, पर इसका अर्थ नहीं समझ पाती थी। मकान-मालिक का भूत-भय तो मिट गया, पर एक नया ही रहस्य सामने आया-उसने सोचा कि इस मकान से इन महिला का कोई रहस्यमय सम्बन्ध है। अतः उसने उन्हें काफी सस्ते में वह बेंच दिया।
ऐसी ही एक घटना 1863 में दो अमरीकी नागरिकों के साथ घटी। उनमें से एक का नाम था टेट, दूसरे का विल्मोट। दोनों समुद्री जहाज से साथ-साथ यात्रा कर रहे थे। जब उनका जहाज रात में अन्धमहासागर से गुजर रहा था, उस समय तेज तूफान आया। जहाज हिचकोले खाने लगा। विल्मोट उस समय सो रहा था टेट बैठा था। सहसा टेट आश्चर्य से भर उठा। दरवाजा बन्द था। पर एक महिला गाउन पहने दरवाजे पर खड़ी थी। टेट अचकचा गया। किन्तु महिला के चेहरे पर शालीनता थी और वह संकोच से भरी थी। अतः वह डरा नहीं, न चीखा। चुपचाप देखता रहा।
वह गाउन - धारिणी महिला सोते हुए विल्मोट की ओर धीरे-धीरे बढ़ी। मानो टेट की उपस्थिति से हिचक रही हो। उसने विल्मोट का माथा सहलाया। कुछ बोली, जो टेट नहीं सुन सका। फिर उसी प्रकार लौट पड़ी दरवाजे पर पहुंचकर गुम हो गई। केबिक का दरवाजा अभी भी बन्द था। टेट आंखें फाड़े यह देख रहा था।
उधर महिला अदृश्य हुई इधर विल्मोट नींद से जागकर हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसने अभी-अभी एक सपना देखा था। सपने में उसकी पत्नी आई, माथा सहलाया कुछ बोली जो वह समझ नहीं सका। फिर चली गई। विल्मोट उठा, तो टेट उसे ही देख रहा था। उसने बताया कि तुम तो सो रहे थे, पर मैंने अभी-अभी यह दृश्य देखा। उसका विवरण सुनकर विल्मोट ने बताया—‘‘बिल्कुल इसी तरह मैंने स्वप्न में देखा।’’ दोनों द्वारा देखे गये दृश्य की समानता से विल्मोट ने सोचा—‘‘इसमें जरूर कोई अर्थ निहित है। शायद मेरी पत्नी अस्वस्थ हो।’’
जब तक वह घर नहीं पहुंच गया, चिन्तातुर बना रहा। घर जाकर देखा कि पत्नी सामान्य रीति से काम कर रही है। समय पाकर उसने उस रात की विचित्र घटना बताई। तब वह बताने लगी—‘‘उस रात मुझे जब रेडियो पर खबर सुनाई पड़ी कि अटलांटिक में तूफान आया है, तब मैं परेशान हो गई। तुम्हारे बारे में सोचती-सोचती मैं सो गई। स्वप्न में मैंने महसूस किया कि मैं पता नहीं कैसे चलकर एक समुद्री जहाज के भीतर पहुंच गयी हूं। तुम उस केबिन में सो रहे हो। वहीं एक और व्यक्ति दिखा। परन्तु वह जाग रहा था। उसे देखकर मैं ठिठकी। फिर, तुम्हारे पास जाकर माथा सहलाया। पूछा कि ‘‘तुम्हें दिक्कत तो नहीं हुई?’’ इसके बाद मेरी नींद खुल गई। विल्मोट ने यह सब सुना तो उस रात स्वयं को जहाज में दिखे स्वप्न और टेट के बताये विवरण से पत्नी के विवरण का पूर्ण सादृश्य देखकर विस्मित रह गया।
स्पष्ट है कि ये घटनाएं मात्र विचारों के दूर-सम्प्रेषण का मामला नहीं है। यदि मात्र विचार ही उतनी दूर तक फैल कर सम्बद्ध व्यक्ति तक पहुंच गये होते तो यह ‘टेलीपैथी’ के अन्तर्गत आ सकता था। किन्तु प्रस्तुत घटनायें उससे भिन्न हैं। यहां विचारों के साथ व्यक्तित्व ने भी सम्बद्ध व्यक्तियों तक देश की परिधि लांघ कर यात्रा की थी। इसके बाद शब्द-वेधी बाण की तरह वापस लौट आया था। जैसे पक्षी दूर-दूर तक उड़कर आयें वैसे ही ये व्यक्तित्व भी मानो उड़कर अभीप्सित स्थान एवं व्यक्ति तक जा पहुंचे थे और फिर इच्छित कार्य कर लौट आये थे।
यह कार्य स्थूल-जगत में ज्ञात तथ्यों और विधियों द्वारा सम्भव नहीं। जिस समय विल्मोट की पत्नी दूर अन्ध-महासागर में जहाज पर उसके पास गई थी उस समय उसका स्थूल शरीर अमरीका के अपने निवास स्थान में ही था। यही स्थिति श्रीमती वटलर के स्थूल शरीर की स्वप्नों के समय होती थी। उन लोगों के स्थूल-शरीर वहीं रहते हुए भी हू-बहू उन्हीं जैसी प्रतिकृति अन्यत्र देखी जाती थी। यह सूक्ष्म शरीर का ही कार्य हो सकता है, जो सूक्ष्म जगत के नियमों से परिचालित होता है। भारतीय मनीषियों को प्रत्येक मनुष्य के भीतर सन्निहित इन अद्भुत क्षमताओं की हजारों वर्ष पूर्व जानकारी थी और उन्होंने विस्तार से इन सब शक्तियों सामर्थ्यों की चर्चाएं की हैं तथा इनके विकास की विधि-व्यवस्थाएं भी निरूपित-निर्धारित की हैं। कुछ अपवाद व्यक्तियों में पूर्वजन्मों की संग्रहीत सामर्थ्य सहसा इस प्रकार अनायास प्रकट हो जाती है। किसी समर्थ सत्ता के स्नेह-अनुदान से भी ऐसी क्षमताएं विकसित देखी जा सकती हैं। योगाभ्यास से प्रयत्न पूर्वक प्रत्येक व्यक्तित्व इन्हें विकसित कर सकता है। अनायास प्राप्त सामर्थ्य के बारे में सम्बद्ध व्यक्ति कम जान पाते हैं, उस क्षमता के इच्छानुसार उपयोग की प्रक्रिया उन्हें प्रायः नहीं ज्ञात होती। किन्तु योग-साधक अपनी ऐसी क्षमताओं के इच्छित उपयोग में समर्थ होती हैं। क्योंकि वे उसके पीछे क्रियाशील सूक्ष्मसत्ताओं को जानते होते हैं।
तन्त्र-विज्ञान में छाया-पुरुष का साधना-विधान है। सूक्ष्म शरीरधारी सजीव छाया-पुरुष अपना ही अंश होता है। उसकी सिद्धि में अपना ही एक और शरीर अपने हाथ में अपने अधिकार में प्रकट होकर आ जाता है जो अपने ही जीवित भूत की तरह होता है और भूतों जैसी अतीन्द्रिय शक्तियों से सम्पन्न होता है। योगी अपने सूक्ष्म-शरीर से और अस्मिता से विनिर्मिति निर्माण-चित्रों द्वारा एक ही साथ अनेक कार्य करने में समर्थ होते हैं। यह शक्तिशाली व्यक्तित्व है तो हममें से हर एक के पास, किन्तु उसे जागृत-विकसित करने लायक साधना-प्रयास सब कर नहीं पाते। जो कर लेते हैं वे न केवल इस एक अद्वितीय उपकरण के स्वामी हो जाते हैं, अपितु सूक्ष्म जगत के नियमों के भी ज्ञाता हो जाते हैं और उनकी बौद्धिक-भावनात्मक सीमाएं बहुत विस्तृत हो जाती हैं। संकीर्णता उनमें नहीं रह जाती।
स्थूल शरीर से परे मनुष्य के सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व अब विज्ञान द्वारा भी प्रमाणित होने लगा है। सन् 1963 से अब तक रूस के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कई सफल प्रयोग किये हैं। वहां के एक इलेक्ट्रान विशेषज्ञ सेमयोन किर्लियान ने अपनी वैज्ञानिक पत्नी वेलिण्टाना के सहयोग से फोटोग्राफी एक विशिष्ट प्रविधि का आविष्कार किया। इस विधि द्वारा सजीव प्राणियों के आस-पास होने वाले सूक्ष्म कम्पनों और देह ऊर्जा के क्रिया-कलापों का छायांकन किया जा सकता है।
एक दूसरे प्रयोग में किर्लियान दम्पत्ति ने एक रुग्ण पत्नी की फिल्म खींची। इसमें प्रकाश कणों का वह वलय आरम्भ से जीर्ण था और वह शीघ्र ही समाप्त भी हो गया। अगले प्रयोग में किर्लियान दम्पत्ति ने एक मनुष्य के पास से उसके शरीर के चित्र इसी विशेष विधि से लिये। ये छाया चित्र उसके शरीर के विभिन्न भागों के लिये गये थे। गर्दन, हृदय और उदर प्रदेश के अत्यन्त निकट से खींचे गये इन चित्रों में बहुत ही सूक्ष्म धब्बे दिखाई दिये, जो इन अंगों से विसर्जित होने वाली विद्युतीय ऊर्जा के द्योतक थे। इन छाया चित्र से यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रत्येक प्राणी के दो शरीर होते हैं पहला प्राकृतिक अथवा भौतिक जो आंखों से दिखाई देता है। और दूसरा सूक्ष्म शरीर जिसकी सब विशेषतायें प्राकृतिक शरीर जैसी होती हैं, पर जो दिखाई नहीं देता। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह सूक्ष्म शरीर ऐसे सूक्ष्म पदार्थों का बना होता है जिनके इलेक्ट्रान ठोस शरीर के इलेक्ट्रानों की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से चलायमान होते हैं। उनके अनुसार सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर से अलग होकर कहीं भी विचरण कर सकता है।
रूस के अतिरिक्त अमेरिका में भी इस विषय पर काफी वैज्ञानिक खोजें चल रही हैं। न्यूयार्क राज्य विश्व विद्यालय ने परा-मानसिक तत्वों की खोज के लिए एक स्वतंत्र विभाग ही खोला है जिसके अध्यक्ष डा. राबर्ट बेफर हैं। अधिकांश लोगों का दृष्टि केन्द्र चर्मचक्षुओं से दिखाई पड़ने वाला भौतिक शरीर है और वे इसी की सुख सुविधा के लिए सारे जोड़-तोड़ बिठाते रहते हैं। सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व और उसकी आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जाय तो काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। क्योंकि जब मनुष्य केवल इस शरीर को ही सुखी बनाने के लिए प्रयत्न नहीं करेगा वरन् वह अपनी आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील होगा। भारतीय आध्यात्म इस क्षेत्र में पहले ही काफी आगे बढ़ चुका है। कहना न होगा, प्राचीन काल में जन-सामान्य का सदाचार निष्ठ और सत्परायण होना अध्यात्म के गहन आधारों पर अवलम्बित रहने का सुपरिणाम ही था।
स्पेन में भी एक आश्चर्यजनक घटना ऐसी ही सामने आयी। दो लड़कियां एक बस से जा रही थीं। इनमें एक का नाम हाला तथा दूसरी का मितगोल था। बस रास्ते में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई। मितगोल दुर्घटना में पिस कर मर गई। हाला को चोट तो नहीं लगी किन्तु भय के कारण बेहोश हो गई। कुछ समय बाद उसे होश आया। दुर्घटना की सूचना दोनों लड़कियों के अभिभावकों को मिली। अपनी बच्चियों को देखने दोनों दुर्घटना-स्थल पर पहुंचे। हाला के पिता उसकी ओर बढ़े तथा उसका नाम लेकर पुकारा। पर आश्चर्य वह बोल पड़ी ‘‘मैं हाला नहीं मितगोल हूं।’’ यह कहकर वह मितगोल के पिता की ओर बढ़ी। अभिभावकों ने उसे स्मृति भ्रम समझकर उसे दर्पण दिखाया जिससे दर्पण देखकर भ्रम दूर कर सके। परन्तु दर्पण देखकर वह बोली ‘‘मितगोल (हमारा) रूप कैसे बदल गया।’’ हाला के पिता किसान थे। वह अधिक पढ़ भी नहीं पायी थी। मितगोल के पिता प्राचार्य थे। मितगोल कालेज में पढ़ती थी तथा विभिन्न विषयों की जानकार थी।
हाला के पिता समझा-बुझाकर लड़की को अपने साथ ले गये। वह इस विद्यालय में पढ़ने गई जहां पहले हाला पढ़ती थी किन्तु वहां उसके व्यवहार में पूरी तरह परिवर्तन देखा गया। एक दिन वह उस विद्यालय में जा पहुंची जहां मितगोल पढ़ती थी। वहां छात्रों को सम्बोधित करते हुए स्पिनोजा के तत्वज्ञान पर भाषण दिया। ऐसे अनेकों प्रमाणों से प्राचार्य महोदय को यह विश्वास हो चला कि ‘हाला’ का शरीर होते हुए भी उसमें मितगोल की आत्मा है। जो भी प्रयोग परीक्षण हुए उनसे यह एक ही बात सिद्ध हुई। विश्व-विख्यात चित्रकार ‘गोया’ की आत्मा अमेरिका की एक विधवा हैनरोट के भीतर प्रविष्ट हो गई। यह घटना अमेरिका में प्रसिद्ध है। नये शरीर में ‘गोया’ ने ‘ग्वालन’ नामक एक सुन्दर कलाकृति का निर्माण किया। विधवा ‘हैनरोट’ ने अपने जीवन काल में कभी चित्र नहीं बनाया था। अमेरिकी विशेषज्ञों को विधवा के व्यवहार में गोया की आत्मा झांकती दिखायी दी।
घटना 7 नवम्बर 1918 की है। तब पहला विश्वयुद्ध चल रहा था। एक फ्रान्सीसी लड़का टैड जिसका पिता फ्रान्स के मोर्चे पर लड़ रहा था, खेलते-खेलते एक दम चिल्लाया—मेरे पिता का दम घुट रहा है। वे एक तंग कोठरी में बन्द हो गये हैं और उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। घर के लोग कुछ भी नहीं समझ पाये। टैड इतना कह कर बेहोश हो गया था। कुछ देर बेहोश रहने के बाद उसे होश आया और वह बोला—अब वे ठीक हो जायेंगे। घर के लोगों ने टैड के बेहोश होने से पूर्व कहे गये शब्दों और बाद में होश आने पर कहे शब्दों से इतना ही अन्दाज लगाया कि टैड ने अपने पिता के सम्बन्ध में कोई दुःस्वप्न देखा होगा। बात जहां की तहां समाप्त हो गयी।
प्रथम विश्वयुद्ध, जब समाप्त हुआ और टैड के पिता घर लौटे तो स्वजनों को उस दिन की घटना याद आ गयी, जब टैड के पिता ने बताया कि 7 नवम्बर को मैं मरते-मरते बचा। पूछा गया कि क्या बात हुई थी तो उन्होंने बताया कि मैं उस दिन एक गैस चैम्बर में फंस गया था, जिसमें मेरा दम घुटने लगा था। मुझे दिखायी देना भी बन्द हो गया था। तभी मैंने देखा कि टैड जैसा एक लड़का उस युद्ध की विभीषिका में न जाने कहां से आ पहुंचा और उसने चैम्बर का मुंह खोल कर, मुझे हाथ पकड़ कर बाहर खींचा और उसने चैम्बर का मुंह खोल कर, मुझे हाथ पकड़ कर बाहर खींचा। तभी मेरी यूनिट के सैनिकों की दृष्टि मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे अस्पताल पहुंचाया। यह विवरण सुन कर ही घर वालों को उस दिन टैड के चीखने, बेहोश होने तथा होश में आने पर आश्वस्त ढंग से बात करने की घटना याद आयी।
इटली के एक पादरी अलफोन्सेस लिगाडरी के साथ 21 सितम्बर 1974 को ऐसी ही घटना घटी। उस दिन वे ऐसी गहरी नींद में सोये कि जगाने की बहुत कोशिशें करने के बाद भी न जगाये जा सके। यह भ्रम हुआ कि कहीं वे मर तो नहीं गये हैं। इस भ्रम की परीक्षा के लिए उनकी जांच की गयी तो पता चला कि वे पूरी तरह जीवित हैं। कई घण्टों तक वे इसी स्थिति में रहे। उन्हें जब होश आया तो देखा कि आस-पास लगभग सभी साथी सहयोगी खड़े हुए हैं। उन्होंने अपने साथियों से कहा—‘‘मैं आपको एक बहुत ही दुःखद समाचार सुना रहा हूं कि हमारे पूजनीय पोप का अभी-अभी देहान्त हो गया है।’’ साथियों ने कहा—‘‘आप तो कई घण्टों से अचेत हैं, आपको कैसे यह मालूम हुआ।’’ लिगाडरी ने कहा—मैं इस देह को छोड़कर रोम गया हुआ था और अभी-अभी वहां से ही लौटा हूं। उनके साथियों ने समझाया कि वे कोई सपना देख कर उठे हैं और सपने में ही उन्होंने पोप की मृत्यु देखी होगी। चार दिन बाद ही यह खबर लगी कि पोप का देहान्त हो गया है और वह उसी समय हुआ जब कि लिगाडरी अचेत थे तो उनके मित्र साथी चकित रह गये।
एक स्थान पर रहते हुए भी मनुष्य अपनी आत्मा की शक्ति द्वारा दूरवर्ती क्षेत्रों में संदेश पहुंचा सकता है। उपरोक्त घटनाओं में जाने अनजाने सूक्ष्म शरीर ही सक्रिय रहा है। यदि सूक्ष्म शरीर की शक्ति को जागृत कर लिया जाय तो उससे जब चाहें तब मन चाहे करतब किये जा सकते हैं। 1929 में अल्जीरिया में कैप्टन दुबो के साथ ऐसी ही घटना घटी, जिससे सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व और उसकी शक्तिमत्ता का प्रमाण मिलता है। कैप्टन दुबो जल अल्जीरिया के एक छोटे से गांव से कुछ रोगियों को देख कर लौट रहे थे, गांव का मुखिया अब्दुल उन्हें धन्यवाद देने के लिए उनके साथ-साथ आया, बातों ही बातों में अब्दुल ने कैप्टन से सूक्ष्म शरीर के अनेक चमत्कारों का उल्लेख कर दिया। दुबो ने अब्दुल की बातों में कोई रुचि नहीं दिखाई और उल्टे इसे गप्पबाजी कहा। इस पर अब्दुल ने कहा कि मैं इसे प्रमाणित कर सकता हूं। कैप्टन ने जब उसकी यह बात सुनकर भी अविश्वास से सिर हिलाया तो अब्दुल कुछ देर के लिए ध्यानस्थ हुआ और फिर आंखें खोलकर बोला—आप अपने पीछे मुड़कर देखिए। जैसे ही उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उन्होंने दीवार पर एक ऐसी कलाकृति टंगी पायी जो उन्हें बहुत प्रिय थी और इस समय वहां से हजारों मील दूर पेरिस में उनके घर पर थी।
उसी दिन कैप्टन दुबो के पिता पियरे ने पेरिस की पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि उनके घर से 10 लाख रुपये मूल्य की अद्वितीय कलाकृति चोरी चली गयी। पुलिस कमिश्नर पियरे के अच्छे मित्र थे, उन्होंने शिकायत मिलते ही अपने सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर कलाकृति की खोज में लगा दिये। कई दिन तक लगातार खोज चली, पर कलाकृति की खोज न की जा सकी। जिस कमरे में कलाकृति टंगी थी, उसमें किसी के जबरन प्रवेश करने या उंगलियों के निशान नहीं मिले थे। पियरे ने इस कलाकृति की चोरी की खबर अपने पुत्र को भी दी। तब सारी बात जान कर कैप्ट। दुबो, पुलिस कमिश्नर और अन्य अधिकारियों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ।
इन सारी घटनाओं का विश्लेषण किया जाये तो उससे प्रेरणाएं, दिशाएं तथा मन्तव्य अनेक प्रकार से निकाले जा सकते हैं किन्तु इन सबका निष्कर्ष एक ही निकलता है वह है स्थूल शरीर से परे मनुष्य का एक और भिन्न अस्तित्व स्थूल शरीर की इकाई है—‘‘प्रोटोप्लाजा’’ इस सूक्ष्म शरीर की इकाई क्या है यह अन्वेषण का विषय है किन्तु यह तथ्य निर्विवाद है कि शरीर में एक और शरीर जिसे—भारतीय तत्व दर्शन—सूक्ष्म शरीर कहते हैं; निवास करता है। यह शरीर स्थूल से कहीं अधिक समर्थ, और चमत्कारी है, सच तो यह है कि स्थूल शरीर के सारे क्रिया कलाप उसी के द्वारा संचालित होते हैं उस के दूकान बन्द करते ही स्थूल शरीर की तिजारत हमेशा के लिए बन्द हो जाती है। यह सूक्ष्म शरीर जिस प्राण स्फुल्लिंग के समुच्चय से बना है वह अपने आप में अनन्त शक्तियों के स्रोत समाहित किये हुये हैं इसलिये शरीर पांच प्राणों को पांच देवता कहते हैं एक देवता की सहायता मनुष्य को अगर अमर बना देती है तो यदि कोई इन पंचदेवों को सिद्ध करले तो वह कितना समर्थ हो सकता है उसे प्रस्तुत घटनाओं से अनुभव भर किया जा सकता है उसका पूरी तरह अनुमान लगा सकना कठिन है।
सूक्ष्म शरीर का शक्तिशाली व्यक्तित्व
आंखों देखी को ही प्रमाण मानने वालों के समक्ष भी आये दिन ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं जो यह स्पष्ट कर देती हैं कि सामान्यतः जितना विदित है उससे अनेक गुनी क्षमताएं मनुष्य के भीतर सन्निहित हैं और ये सभी क्षमताएं उसमें एक व्यापक विराट चैतन्य सत्ता के अंश होने के कारण ही हैं। जब भी कोई व्यक्ति उस अदृश्य सत्ता से गहराई में जुड़ जाता है, उसकी वे विलक्षणताएं उभर पड़ती हैं, जिनकी व्याख्या अब तक ज्ञात भौतिक-विज्ञान के नियमों के सहारे नहीं हो सकती।
अपने सामान्य चेतन मस्तिष्क के संकल्प-बल से मनुष्य स्थूल शरीर को तरह-तरह की गतिविधियों में नियोजित करता है। चेतना की गहराई से संचालित सूक्ष्म शरीर की गतिविधियों का क्षेत्र इस इन्द्रिय-जगत के आगे का सूक्ष्म-जगत है। सूक्ष्म शरीर द्वारा इस सूक्ष्म जगत में हलचलें-क्रियाएं की जा सकती हैं। जिस प्रकार सूक्ष्म जगत की शक्ति स्थूल जगत से कहीं अधिक है, उसी प्रकार सूक्ष्म-शरीर की सामर्थ्य स्थूल शरीर से बहुत अधिक है। वह मानव-मन की तरह तीव्रगति वाला तो है ही, अज्ञात क्षेत्रों का परिचय प्राप्त करने और अनजानी वस्तुओं की भी जानकारी पाने में समर्थ है। अविज्ञात सूक्ष्म जगत से जुड़े सूक्ष्म शरीर की क्षमताएं अभी पूरी तरह अविज्ञात ही हैं। किन्तु उनके जो स्थूल प्रमाण मिले हैं, वे भी कम विलक्षण नहीं हैं। उनसे मनुष्य के भीतर सन्निहित प्रचंड सामर्थ्य स्रोत का आभास तो मिलता ही है।
आयरलैण्ड की एक घटना है। वहां बटलर—दम्पत्ति रहते थे। श्रीमती बटलर प्रायः रात्रि में स्वप्न में एक सुन्दर इमारत देखती थीं, जो चारों ओर के उद्यानों के बीच होती। सपने में वे उस मकान के भीतर घूमती। यह स्वप्न उन्हें इतनी बार आया कि वे उस मकान के बाहरी ढांचे से ही नहीं, उसके कमरों की भीतरी बनावट से भी परिचित हो गईं। घर वालों से वे इन स्वप्नों की एक सूत्रता की चर्चा भी करतीं। पर वे लोग इसे एक विनोद-प्रसंग बनाने के सिवाय और क्या सोचते?
हुआ यह कि एक बार पति-पत्नी को लन्दन जाना पड़ा। वहां आवास—योग्य मकान की खोज शुरू हुई। एक दिन कार में शहर घूमते समय सहसा, श्रीमती बटलर एक मकान को देखकर चौंक उठी। पति से बोलीं ‘‘यही वह मकान है जो मुझे अक्सर स्वप्नों में दिखता था।’’
पति भी उत्सुक हो उठे। कार रोकी। मकान की बाबत पूछताछ की पता चला वह बिक सकता है, खाली पड़ा है। श्रीमती बटलर ने सोचा ‘‘यही मकान मिल जाये तो अच्छा हो। खरीद लिया जाये।’’
बटलर-दम्पति एजेण्ट के पास गये और उस मकान की जानकारी दी। एजेन्ट ने समझाया—‘‘आप लोग इस चक्कर में न पड़ें। मैं और अच्छे मकानों के विवरण देता हूं। देख लें। उनमें जो पसन्द आयें, ले लें। यह मकान न लें। यह भुतहा मकान है।’’
पर श्रीमती बटलर के मन में तो उस मकान के प्रति आत्मीयता घर कर गई थी। उन्होंने उसे ही लेने का आग्रह किया। अतः एजेन्ट उन्हें लेकर मकान-मालिक के पास गया। पर मकान मालिक ने अपने फाटक जैसे ही श्रीमती बटलर को देखा, कुर्सी से उठकर भाग खड़े हुए। ‘‘भूत, भूत’’ चिल्लाते वे भीतर घुस गये।
एजेन्ट उसी शहर का होने से उनसे परिचित था। अतः उनके पास गया। भीतर वे महाशय भय से कांप रहे थे। घर वाले भी तब तक जमा हो गये थे। वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे। एजेंट ने मकान-मालिक को समझाया कि ये लोग मकान खरीदने जाये हैं। अमुक विभाग में कार्य करते हैं। कोई भूत नहीं हैं। तब वे सज्जन आये। उन्होंने बताया कि—‘‘वह मकान हमें छोड़कर यहां आना पड़ा। यों, हमें वही अधिक पसन्द था। इस वाले मकान को तो हमने किराये में उठा रखा था। पर वहां रात को एक औरत जब-तब आ धमकती और घूमने लगती। घर वाले तो रात की उस आहट को सुनते ही डर के मारे मुंह ढक कर दुबके रहते। उन्हें बस यह आभास दूर से दो एक बार हो गया था कि कोई स्त्री—छाया वहां टहलने आई है। मैंने उसे देखने की कोशिश की। बार-बार देखने के कारण मैं उसे भली-भांति पहचान गया। वह आप ही थीं। मैंने पहली बार तो आप से बातचीत की कोशिश की। क्योंकि आप में भयावहता जैसी कोई बात नहीं थीं। मैं चकित जरूर हुआ था कि रात में आप अन्दर आईं कैसे। पर सोचा पूछूं, टोकूं। लेकिन जब आप पर मेरी बात का कोई असर ही नहीं हुआ, मानो आप सुन ही नहीं रही हैं। तब मैं घबराया। आगे, जब आप बार-बार आ धमकने लगीं, तो हमें वहां खतरा महसूस हुआ। इसके पहले कि हमें भूत यानी आप कोई हानि पहुंचायें, हमने वह मकान छोड़ देना ही ठीक समझा।’’
सुनकर श्रीमती बटलर चकित हुईं उन्होंने बताया कि मैं स्वप्न में जरूर यह सब देखती थी, पर इसका अर्थ नहीं समझ पाती थी। मकान-मालिक का भूत-भय तो मिट गया, पर एक नया ही रहस्य सामने आया-उसने सोचा कि इस मकान से इन महिला का कोई रहस्यमय सम्बन्ध है। अतः उसने उन्हें काफी सस्ते में वह बेंच दिया।
ऐसी ही एक घटना 1863 में दो अमरीकी नागरिकों के साथ घटी। उनमें से एक का नाम था टेट, दूसरे का विल्मोट। दोनों समुद्री जहाज से साथ-साथ यात्रा कर रहे थे। जब उनका जहाज रात में अन्धमहासागर से गुजर रहा था, उस समय तेज तूफान आया। जहाज हिचकोले खाने लगा। विल्मोट उस समय सो रहा था टेट बैठा था। सहसा टेट आश्चर्य से भर उठा। दरवाजा बन्द था। पर एक महिला गाउन पहने दरवाजे पर खड़ी थी। टेट अचकचा गया। किन्तु महिला के चेहरे पर शालीनता थी और वह संकोच से भरी थी। अतः वह डरा नहीं, न चीखा। चुपचाप देखता रहा।
वह गाउन - धारिणी महिला सोते हुए विल्मोट की ओर धीरे-धीरे बढ़ी। मानो टेट की उपस्थिति से हिचक रही हो। उसने विल्मोट का माथा सहलाया। कुछ बोली, जो टेट नहीं सुन सका। फिर उसी प्रकार लौट पड़ी दरवाजे पर पहुंचकर गुम हो गई। केबिक का दरवाजा अभी भी बन्द था। टेट आंखें फाड़े यह देख रहा था।
उधर महिला अदृश्य हुई इधर विल्मोट नींद से जागकर हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसने अभी-अभी एक सपना देखा था। सपने में उसकी पत्नी आई, माथा सहलाया कुछ बोली जो वह समझ नहीं सका। फिर चली गई। विल्मोट उठा, तो टेट उसे ही देख रहा था। उसने बताया कि तुम तो सो रहे थे, पर मैंने अभी-अभी यह दृश्य देखा। उसका विवरण सुनकर विल्मोट ने बताया—‘‘बिल्कुल इसी तरह मैंने स्वप्न में देखा।’’ दोनों द्वारा देखे गये दृश्य की समानता से विल्मोट ने सोचा—‘‘इसमें जरूर कोई अर्थ निहित है। शायद मेरी पत्नी अस्वस्थ हो।’’
जब तक वह घर नहीं पहुंच गया, चिन्तातुर बना रहा। घर जाकर देखा कि पत्नी सामान्य रीति से काम कर रही है। समय पाकर उसने उस रात की विचित्र घटना बताई। तब वह बताने लगी—‘‘उस रात मुझे जब रेडियो पर खबर सुनाई पड़ी कि अटलांटिक में तूफान आया है, तब मैं परेशान हो गई। तुम्हारे बारे में सोचती-सोचती मैं सो गई। स्वप्न में मैंने महसूस किया कि मैं पता नहीं कैसे चलकर एक समुद्री जहाज के भीतर पहुंच गयी हूं। तुम उस केबिन में सो रहे हो। वहीं एक और व्यक्ति दिखा। परन्तु वह जाग रहा था। उसे देखकर मैं ठिठकी। फिर, तुम्हारे पास जाकर माथा सहलाया। पूछा कि ‘‘तुम्हें दिक्कत तो नहीं हुई?’’ इसके बाद मेरी नींद खुल गई। विल्मोट ने यह सब सुना तो उस रात स्वयं को जहाज में दिखे स्वप्न और टेट के बताये विवरण से पत्नी के विवरण का पूर्ण सादृश्य देखकर विस्मित रह गया।
स्पष्ट है कि ये घटनाएं मात्र विचारों के दूर-सम्प्रेषण का मामला नहीं है। यदि मात्र विचार ही उतनी दूर तक फैल कर सम्बद्ध व्यक्ति तक पहुंच गये होते तो यह ‘टेलीपैथी’ के अन्तर्गत आ सकता था। किन्तु प्रस्तुत घटनायें उससे भिन्न हैं। यहां विचारों के साथ व्यक्तित्व ने भी सम्बद्ध व्यक्तियों तक देश की परिधि लांघ कर यात्रा की थी। इसके बाद शब्द-वेधी बाण की तरह वापस लौट आया था। जैसे पक्षी दूर-दूर तक उड़कर आयें वैसे ही ये व्यक्तित्व भी मानो उड़कर अभीप्सित स्थान एवं व्यक्ति तक जा पहुंचे थे और फिर इच्छित कार्य कर लौट आये थे।
यह कार्य स्थूल-जगत में ज्ञात तथ्यों और विधियों द्वारा सम्भव नहीं। जिस समय विल्मोट की पत्नी दूर अन्ध-महासागर में जहाज पर उसके पास गई थी उस समय उसका स्थूल शरीर अमरीका के अपने निवास स्थान में ही था। यही स्थिति श्रीमती वटलर के स्थूल शरीर की स्वप्नों के समय होती थी। उन लोगों के स्थूल-शरीर वहीं रहते हुए भी हू-बहू उन्हीं जैसी प्रतिकृति अन्यत्र देखी जाती थी। यह सूक्ष्म शरीर का ही कार्य हो सकता है, जो सूक्ष्म जगत के नियमों से परिचालित होता है। भारतीय मनीषियों को प्रत्येक मनुष्य के भीतर सन्निहित इन अद्भुत क्षमताओं की हजारों वर्ष पूर्व जानकारी थी और उन्होंने विस्तार से इन सब शक्तियों सामर्थ्यों की चर्चाएं की हैं तथा इनके विकास की विधि-व्यवस्थाएं भी निरूपित-निर्धारित की हैं। कुछ अपवाद व्यक्तियों में पूर्वजन्मों की संग्रहीत सामर्थ्य सहसा इस प्रकार अनायास प्रकट हो जाती है। किसी समर्थ सत्ता के स्नेह-अनुदान से भी ऐसी क्षमताएं विकसित देखी जा सकती हैं। योगाभ्यास से प्रयत्न पूर्वक प्रत्येक व्यक्तित्व इन्हें विकसित कर सकता है। अनायास प्राप्त सामर्थ्य के बारे में सम्बद्ध व्यक्ति कम जान पाते हैं, उस क्षमता के इच्छानुसार उपयोग की प्रक्रिया उन्हें प्रायः नहीं ज्ञात होती। किन्तु योग-साधक अपनी ऐसी क्षमताओं के इच्छित उपयोग में समर्थ होती हैं। क्योंकि वे उसके पीछे क्रियाशील सूक्ष्मसत्ताओं को जानते होते हैं।
तन्त्र-विज्ञान में छाया-पुरुष का साधना-विधान है। सूक्ष्म शरीरधारी सजीव छाया-पुरुष अपना ही अंश होता है। उसकी सिद्धि में अपना ही एक और शरीर अपने हाथ में अपने अधिकार में प्रकट होकर आ जाता है जो अपने ही जीवित भूत की तरह होता है और भूतों जैसी अतीन्द्रिय शक्तियों से सम्पन्न होता है। योगी अपने सूक्ष्म-शरीर से और अस्मिता से विनिर्मिति निर्माण-चित्रों द्वारा एक ही साथ अनेक कार्य करने में समर्थ होते हैं। यह शक्तिशाली व्यक्तित्व है तो हममें से हर एक के पास, किन्तु उसे जागृत-विकसित करने लायक साधना-प्रयास सब कर नहीं पाते। जो कर लेते हैं वे न केवल इस एक अद्वितीय उपकरण के स्वामी हो जाते हैं, अपितु सूक्ष्म जगत के नियमों के भी ज्ञाता हो जाते हैं और उनकी बौद्धिक-भावनात्मक सीमाएं बहुत विस्तृत हो जाती हैं। संकीर्णता उनमें नहीं रह जाती।
स्थूल शरीर से परे मनुष्य के सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व अब विज्ञान द्वारा भी प्रमाणित होने लगा है। सन् 1963 से अब तक रूस के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कई सफल प्रयोग किये हैं। वहां के एक इलेक्ट्रान विशेषज्ञ सेमयोन किर्लियान ने अपनी वैज्ञानिक पत्नी वेलिण्टाना के सहयोग से फोटोग्राफी एक विशिष्ट प्रविधि का आविष्कार किया। इस विधि द्वारा सजीव प्राणियों के आस-पास होने वाले सूक्ष्म कम्पनों और देह ऊर्जा के क्रिया-कलापों का छायांकन किया जा सकता है।
एक दूसरे प्रयोग में किर्लियान दम्पत्ति ने एक रुग्ण पत्नी की फिल्म खींची। इसमें प्रकाश कणों का वह वलय आरम्भ से जीर्ण था और वह शीघ्र ही समाप्त भी हो गया। अगले प्रयोग में किर्लियान दम्पत्ति ने एक मनुष्य के पास से उसके शरीर के चित्र इसी विशेष विधि से लिये। ये छाया चित्र उसके शरीर के विभिन्न भागों के लिये गये थे। गर्दन, हृदय और उदर प्रदेश के अत्यन्त निकट से खींचे गये इन चित्रों में बहुत ही सूक्ष्म धब्बे दिखाई दिये, जो इन अंगों से विसर्जित होने वाली विद्युतीय ऊर्जा के द्योतक थे। इन छाया चित्र से यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रत्येक प्राणी के दो शरीर होते हैं पहला प्राकृतिक अथवा भौतिक जो आंखों से दिखाई देता है। और दूसरा सूक्ष्म शरीर जिसकी सब विशेषतायें प्राकृतिक शरीर जैसी होती हैं, पर जो दिखाई नहीं देता। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह सूक्ष्म शरीर ऐसे सूक्ष्म पदार्थों का बना होता है जिनके इलेक्ट्रान ठोस शरीर के इलेक्ट्रानों की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से चलायमान होते हैं। उनके अनुसार सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर से अलग होकर कहीं भी विचरण कर सकता है।
रूस के अतिरिक्त अमेरिका में भी इस विषय पर काफी वैज्ञानिक खोजें चल रही हैं। न्यूयार्क राज्य विश्व विद्यालय ने परा-मानसिक तत्वों की खोज के लिए एक स्वतंत्र विभाग ही खोला है जिसके अध्यक्ष डा. राबर्ट बेफर हैं। अधिकांश लोगों का दृष्टि केन्द्र चर्मचक्षुओं से दिखाई पड़ने वाला भौतिक शरीर है और वे इसी की सुख सुविधा के लिए सारे जोड़-तोड़ बिठाते रहते हैं। सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व और उसकी आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जाय तो काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। क्योंकि जब मनुष्य केवल इस शरीर को ही सुखी बनाने के लिए प्रयत्न नहीं करेगा वरन् वह अपनी आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील होगा। भारतीय आध्यात्म इस क्षेत्र में पहले ही काफी आगे बढ़ चुका है। कहना न होगा, प्राचीन काल में जन-सामान्य का सदाचार निष्ठ और सत्परायण होना अध्यात्म के गहन आधारों पर अवलम्बित रहने का सुपरिणाम ही था।