Books - विशिष्ठ वेला में विशिष्ट साधना
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विशिष्ठ वेला में विशिष्ट साधना
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सूक्ष्मीकरण साधना की अवधि में जुलाई, १९८४ में दिया वीडियो संदेश
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
जीवन का नया मोड़
देवियो, भाइयो! अब हमारा जीवन एक नया मोड़ लेकर आया है। इतनी लंबी जिंदगी हमने अपने मित्रों से, भाइयों से, कुटुम्बियों से, भतीजों से, बच्चों से मिल जुलकर साथ- साथ में व्यतीत की है। ऐसा नहीं हुआ कि हम कभी अकेले रहे हों। रात को भी सोते रहे हैं, तो आप लोगों का चिंतन बराबर करते रहे हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का ख्याल करते रहे हैं। जनता के साथ हम बराबर रहे हैं। हमने अब अपने जीवन में एक नया मोड़ दिया है। नया मोड़ क्या है? अब आपके और हमारे मिलने- जुलने का क्रम बंद हो जाएगा। अब आप यह उम्मीद करें कि आप हमसे बात करेंगे, हमारी बात सुनेंगे, कठिनाइयों की अथवा जिज्ञासाओं की कोई बात हमारे सामने रखेंगे और हम उनका समाधान करेंगे। नहीं, अब यह संभव नहीं हो सकेगा। हमने अपना एक नया कार्यक्रम बना लिया है।
मित्रो, हमारे गुरु ने जो आदेश भेजा, उसी के आधार पर ही हमारा सारा- का जीवनक्रम चला है। अब तक की जिंदगी को हमने अपनी मर्जी से व्यतीत नहीं किया है। अपने कार्यक्रम स्वयं नहीं बनाये हैं। हमारे मास्टर, हमारे गुरु जिस ढंग से हमसे जो कराते हैं, हम करते हैं। इसी तरीके से हमारी सारी जिंदगी की गतिविधियाँ चलती रही हैं। अभी- अभी हमारा जो एक नया कार्यक्रम बना है। उन्हीं के आदेश के अनुसार बना है। क्या बना है? अब हमारा आपका संपर्क नहीं रहेगा। रहेंगे, तो हम जमीन पर ही, आसमान में थोड़े ही जाएँगे, लेकिन आप लोगों से संपर्क की जो जरूरत है, वह संभव नहीं हो सकेगी। आप लोग नीचे बैठे होंगे, हम ऊपर बैठे होंगे, तो क्या बातचीत नहीं करेंगे? नहीं, अब यह संभव नहीं हो सकेगा। यह हमारे जीवन का नया मोड़ है।
सकारण है जीवन का यह नया मोड़
आप लोग यह ख्याल कर सकते हैं कि इसका क्या कारण हो सकता है? आमतौर से कारण ऐसे ही होते हैं। कोई आदमी डर जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं, शर्म के मारे बोलना बंद हो जाता है। कुछ व्यक्ति आलसी होते हैं और जगे पड़े रहते हैं। जब घर वाले आवाज देते हैं कि उठो भाई, कुछ करो, तब भी वे झूठमूठ खर्राटे लेते रहते हैं। ऐसे होते हैं—आलसी और डरपोंक आदमी। सुना है कि जो मिलेट्री में भर्ती होते हैं, उनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं कि जब लड़ाई का मौका आता है, दनादन गोलियाँ चलती हैं, तो कोई- न बहाना बनाते हैं, जैसे पेटदर्द हो गया, पुट्ठे में दर्द हो गया। चला नहीं जाता है, ये बात हो गयी है, वो बात हो गई है आदि। दुनिया भर की बातें बना लेते हैं और युद्ध से भागने की कोशिश करते हैं। इन्हें पलायनवादी कहा जाता है। इस तरह आलसी एक, डरपोक दो और पलायनवादी तीन श्रेणी के व्यक्ति हुए।
तो क्या हम भी इन्हीं में से हैं? नहीं, हम इनमें से कोई भी नहीं हैं। जिन लोगों ने हमको नजदीक से देखा है, उनको स्पष्ट मालूम है कि उन तीनों में से एक भी ऐब गुरुजी के भीतर नहीं है। इन खराबियों को हमने शुरू से ही अपने भीतर से उखाड़ फेंका है। अब तो पचहत्तर साल होने को आये हैं; तो क्या इतने लंबे समय में वह बुराइयाँ कहीं छिपकर बैठ गयी होंगी? नहीं, हमने उन्हें कहीं छिपकर बैठने नहीं दिया है, साफ कर दिया है। फिर क्या कारण है कि हमको अलग एकांत में रहना पड़ा? अगले दिनों संकटों के घटाटोप और अधिक सघन होंगे, इसलिए उन्हें निरस्त करने और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने के लिए हमको अपनी शक्तियों के फैलाव को रोककर एक जगह इकट्ठा करना पड़ रहा है, ताकि वह इकट्ठी हुई शक्तियाँ आपके ज्यादा काम आ सकें। आप से मतलब है- समाज से, धर्म से, देश से, मानव जाति से, संस्कृति से। इसलिए फैलाव को- बिखराव को हमने बंद कर दिया है।
बिखराव को रोककर एक दिशा में सुनियोजन
मित्रो, आपने देखा होगा कि सूर्य की किरणें जब एक आतिशी शीशे के ऊपर एकत्रित कर देते हैं, तो वे कितनी पैनी हो जाती हैं। हमारी शक्ति भी वैसी ही हो जाएगी। इस संदर्भ में आप कहेंगे कि गुरुजी! आप तो फिर कमजोर हो जाएँगे? नहीं, बेटे! हम कमजोर नहीं होंगे। मान लीजिए, अगर हम कमजोर हो गये, तो भी हमारे जो बच्चे होने वाले हैं, वे बहुत ताकतवार होंगे। आपने महाभारत पढ़ा होगा कि कुन्ती तो कमजोर हो गयी थी और अपनी जिठानी गांधारी के साथ जंगल में तप करने चली गयी थी। लेकिन उनके बच्चे कितने शानदार थे, अर्जुन, भीम और दूसरे सब बच्चे एक- से समर्थ थे। कुन्ती मरी नहीं थी, वरन् अपनी जगह दूसरों को छोड़ गयी थी। हम भी अपनी जगह पर दूसरों को छोड़ जाने की कोशिश में लग रहे हैं, ताकि हमारी परंपरा बंद न होने पाये।
यों तो स्थूल रूप से हमारी परंपरा बंद भी हो सकती है। पिचहत्तर साल की उम्र के बाद में आदमी कहाँ तक जिएगा? अधिक- से पाँच वर्ष और चुस्ती व फुर्ती के साथ। उसके बाद कोई जिएगा, तो बुड्ढा हो जाता है, कमजोर हो जाता है, इन्द्रियाँ साथ देना बंद कर देती हैं। बुढ़ापे में किसी को जवान देखा है, फिर हम कैसे जवान रह सकते हैं? स्वयं भागदौड़ करके कैसे काम कर सकते हैं? इस भाग- दौड़ के लिए हमने नये आदमी तलाश किये हैं और उनको ही बनाने में लग रहे हैं।
तप एकांत में ही क्यों?
आपने बिल्ली देखी है। बिल्ली जब बच्चा देती है, तो क्या सड़क पर देती है? नहीं, कोई ऐसा स्थान तलाश करती है, जहाँ कोई आदमी न हो और उसे देखता न हो। ये छिपकर करने वाले काम हैं- एकांत के काम हैं। हम भी अब आप लोगों से अलग हटकर एकांत में जा रहे हैं, ताकि अपनी शक्तियों को एकत्र कर सकें और शक्तिशाली बन जाएँ। एकांत होने का मतलब यह है कि आपको हम दिखाई न पड़ें। दिखाई न देने से क्या आपको कोई नुकसान है? और दिखाई पड़ें, तो आपको कुछ फायदा है क्या? बताइये, क्या आपको अपना दिल दिखाई पड़ता है? नहीं दिखाई पड़ता। आपने अपने गुर्दे देखे हैं? किसी और के भले ही देखे होंगे, पर अपने नहीं देखे होंगे। फेफड़े आपने देखे हैं क्या? वह भी नहीं देखे हैं। शीशे में आपने अपने आँख और कान देखे हों तो देखे हों और वह भी प्रत्यक्ष नहीं देखे होंगे। इस प्रकार आप हर चीज को नहीं देख सकते। देखना कोई बहुत जरूरी नहीं ।। यदि जरूरी होता, तो भगवान् शंकर और पार्वती जी कैलाश पर्वत पर मानसरोवर, जो यहाँ से बहुत दूर है, तप करने क्यों जाते? दिल्ली के चावड़ी बाजार में क्यों नहीं बैठ जाते? तब उनके पास देखने वाले- दर्शन करने वाले हजारों आदमी आते? विष्णु भगवान् के बारे में मैंने आपको बताया है कि वे कहाँ रहते हैं। वे क्षीरसागर में शेषशैया पर सोये रहते हैं और एकांत में रहते हैं। कोई काम नहीं करते।
मित्रो! एकांत का मतलब यहाँ वह भी नहीं है, जो अभी मैंने बताया है- भाग खड़े होना, आलसी हो जाना। यद्यपि एक मतलब यह भी होता है दूसरा मतलब एकांत का है- अपनी शक्तियों को एकत्रित करना। माँ के पेट में जब बच्चा रहता है। न किसी से बात करता है, न बोलता है और न हिलता- डुलता है। न अपनी आवश्यकता कहता है, न लड़ता है, न चिल्लाता है। चुपचाप नौ महीने तक माँ के पेट में बैठा रहता है। इससे क्या फायदा है? इससे यह फायदा है कि पानी की एक नन्हीं बूँद एक पूरे बच्चे के रूप में विकसित हो जाती है।
आजकल हमारा जो एकांत चल रहा है- सूक्ष्मीकरण चल रहा है, इसके बारे में आप उसी तरीके से समझिये। आप यह न सोचिये कि हम भाग खड़े हुए। आप यह भी न सोचिये कि हमने आपसे मुहब्बत खत्म कर दी। मुहब्बत हमारी जिंदगी से खत्म नहीं हो सकती। उन लोगों के बारे में सोचिये, जो बैरागी हो जाते हैं, माँ- बाप को छोड़ देते हैं। भाइयों को, बच्चों को बिलखता छोड़ जाते हैं। ऐसे बैरागी हम कहाँ हो सकते हैं? ऐसा हमारे लिए संभव नहीं है, क्योंकि वह रास्ता जिन लोगों ने अख्तियार किया है, उन लोगों में से सभी को हमने रोका है। सबको मना कर दिया है और कहा है कि नहीं भाई, यह रास्ता गलत है। समाज की सेवा कीजिए, समाज के साथ रहिए। समाज के साथ में स्वयं भी आगे बढ़िये, अपने गुणों को बढ़ाइये और दूसरों को आगे बढ़ाइये। हमारी यही मनोकामना है।
अभी मैं आप से अलग होने की सफाई दे रहा था। इस संबंध में क्षीरसागर में बैठे भगवान् विष्णु की सफाई दी, कैलाशवासी भगवान् शंकर की सफाई दी- अकेले एकांत में रहने की। चलिए अभी मैं आपको और उदाहरण बताता हूँ। पांडिचेरी के अरविंद घोष का नाम सुना है न आपने, उन्होंने अपने सब काम कर लिये थे। अपनी ताकत, जितनी भी थी, सब खर्च कर ली थी। ताकतवार नौजवानों को साथ लेकर अँग्रेजों को भगाने का उनका मकसद था, पर वह पूरा न हो सका। फिर उन्होंने एक नेशनल कॉलेज खोला, उसमें विद्यार्थी पढ़ाये। इस नयी पीढ़ी के लोगों को समझाया कि आजादी की लड़ाई लड़नी चाहिए। वह प्रयास भी यूँ ही नकारा साबित हुआ। इसके बाद उन्होंने एक राजनैतिक पार्टी बनायी, बम चलाये। बम चलाकर अँग्रेजों को भगाने- डराने की बात कही, लेकिन वह बात भी उनकी सफल नहीं हुई।
फिर उनको दिखाई पड़ा कि सबसे बड़ी ताकत कौन- सी है, जिससे कि बड़ी- से हुकूमतों से टक्कर लेना संभव है। जब उनको दिखाई पड़ा कि वह शक्ति केवल तप में है। तप कहाँ होता है? तप के लिए एकांत चाहिए। पांडिचेरी के अरविंद घोष तप के लिए एकांत में चले गये। मालूम है न आपको। उनके साथ जो माताजी रहती थीं, वह भी एकांत में रहती थीं। दिन भर में एक बार दर्शन देने के लिए माताजी बाहर आती थीं। अरविंद साल भर बाद- छह माह बाद- जब उनका मन होता था, दर्शन दे जाते थे। उसमें भी दूर ही रहते थे। इससे क्या फायदा हुआ? इसका फायदा यह हुआ कि उन्होंने सारे- के वातावरण को गरम कर दिया। ऐसा वातावरण गरम हुआ, जैसे गर्मी में चक्रवात आते हैं और धूल- मिट्टी के बवंडर उठते हैं और लगातार आकाश की ओर उठते रहते हैं। ऐसे ही कितने सारे चक्रवात यहाँ हिन्दुस्तान में तैयार हुए। उनमें से एक का नाम गाँधी, एक का नाम नेहरू, एक का नाम पटेल, एक का नाम सुभाष, एक का नाम मालवीय था। एक साथ इतने सारे महामानव कहीं दुनिया के पर्दें पर पैदा नहीं हुए। आजादी की लड़ाई में, आन्दोलनों में लोग तो बहुत सारे एक साथ हुए हैं, पर जब से जमीन बनी है, तब से कभी भी ऐसा नहीं हुआ, जब एक साथ किसी भी मुल्क में इतने सारे महापुरुष पैदा हुए हों, जितने कि अरविंद घोष के जमाने में हुए हैं।
महर्षि रमण का मौन तप
ठीक इसी तरह से महर्षि रमण का वाक्य है। वे भी अकेले में रहते थे, मौन रहते थे, बात नहीं करते थे। उनका सत्संग होता था, हवन होता था। चिड़ियाँ आती थीं, दूसरे जानवर आते थे, उनके नजदीक बैठ जाते थे और उनकी मौनवाणी को सुना करते थे। आप भी हमारी मौन वाणी को बराबर सुनते रहेंगे। तब वाणी को आपके कान बर्दाश्त कर सकेंगे कि नहीं, यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन हमारी यह आवाज जो दूसरी और तीसरी वाणी में होगी, अब वह बोलेगी। यह वैसी ही वाणी है, जिसे हम अभी आपके सामने बोल रहे हैं। इन्हीं वाणियों से हम आप से जिंदगी भर बात करते रहेंगे। इसके अलावा भी आदमी की तीन और वाणी हैं। एक है- मध्यमा वाणी, जो व्यक्ति के चेहरे से टपकती है। दूसरी है- परा वाणी, जो आदमी के विचारों से, दिमाग- से, निकलती है। तीसरी- पश्यन्ति वाणी है, जो मनुष्य के अंतरात्मा के अन्दर रहती है। यह सत्संग की वाणी है। इन तीन वाणियों को कोई बंद नहीं कर सकता, इनमें कोई रुकावट नहीं डाली जा सकती है। मौन रहकर भी- एकांत में रहकर भी ये तीन वाणियाँ बराबर काम करती रहती हैं। हमारी भी ये तीनों वाणियाँ बराबर काम करती रहेंगी और आपको फायदा देती रहेंगी।
हमसे कुछ पाने का प्रयास कीजिए
मित्रो! यह कब फायदा देंगी? यह तब फायदा देंगी, जब आप हमारे साथ घुलेंगे- मिलेंगे। अगर आप दूर- दूर रहेंगे, तो बात कैसे बनेगी? दूर रहने से काम नहीं बनेगा, आपको हमारे पास आना पड़ेगा। पास आने का केवल यही मतलब नहीं है कि आप शांतिकुञ्ज में, हमारे कमरे में आ जाते हैं, मिल जाते हैं, वरन् पास आने का मतलब यह है कि आप हमारे विचारों के साथ में कितनी गहराई से जुड़ते हैं। हमारे पास क्या रखा है? हमने जो त्याग, तपश्चर्याएँ, उपासनाएँ की हैं, ऐसे ढेरों आदमियों के नाम बता सकता हूँ, जिन्होंने इस तरह की उपासनाएँ की हैं। लेकिन सही बात- ईमानदारी की बात यह है कि हमारे गुरु की शक्ति- गुरु की सामर्थ्य हमें बराबर मिलती रही है और उसी के आधार पर कठपुतली की तरह हम तमाशा करते रहे हैं। आप भी आइये, आपके लिए भी रास्ता खुला हुआ है।
हमसे पहले भी बहुत से आदमियों ने इस तरह से रास्ता खोल दिया है। रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के जोड़े का नाम सुना है आपने। रामकृष्ण परमहंस केवल ध्यान करते थे। उन्होंने न कोई अनुष्ठान किया, न कोई विशिष्ट जप किया, न हिमालय गये, रामकृष्ण परमहंस की सारी आध्यात्मिक संपदा उनके शिष्य नरेन्द्र (विवेकानन्द) को मिल गयी। उसी को लेकर विवेकानन्द ने वह काम किया, जो रामकृष्ण परमहंस अपने शरीर से नहीं कर सकते थे।
आपने विरजानन्द और महर्षि दयानन्द का नाम सुना है। कौन दयानंद? आर्य समाज वाले। उनके गुरु स्वामी विरजानंद मथुरा में रहते थे। वे आँखों से अंधे थे। उन्होंने अपनी सामर्थ्य को स्वामी दयानन्द को हस्तान्तरित कर दिया। इसके बाद स्वामी दयानंद ने वह काम कर दिखाया, जिसे हजार आदमी भी एक समय में नहीं कर सकते। आपके लिए भी रास्ता खुला हुआ है। आप हमारी शक्ति का फायदा उठाना चाहें, जो आगे चलकर और भी ज्यादा हो जायेगी, तो उठा लीजिए। पहले से भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो हमारे साथ चलते रहे हैं। हमारा कहना मानते रहे हैं, उन्हें लाभ ही हुआ है। गाँधीजी के साथ में मीरा बहिन चलती थीं, नेहरू जी चलते थे, सुभाष चलते थे, विनोबा चलते थे उन्हें क्या मिला? सबको फायदा ही हुआ है।
आपने स्वामी रामदास और शिवाजी का नाम सुना है। शिवाजी कौन थे? शिवाजी वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिंदुस्तान को आजाद कराने की तवारीख में पहला कदम उठाया और समर्थ गुरु रामदास वह थे, जो संत प्रकृति के हो गये थे और इस बात की तलाश में थे कि संत के लिए आजादी की लड़ाई लड़ना, खून- खच्चर करना आदि मुनासिब नहीं है, इसलिए कोई दूसरा रास्ता तलाश करना चाहिए। उन्होंने शिवाजी को तलाश लिया। उनका इम्तिहान सिंहनी का दूध मँगाकर लिया और इसके बाद उन्हें भवानी के हाथ से- देवी के हाथ से एक ऐसी तलवार दिलायी, जिसे लेकर के वे अक्षय हो गये, अजेय हो गये। जहाँ कहीं भी वह तलवार गयी, उन्हीं की विजय हुई।
जिस तरह शिवाजी और समर्थ गुरु रामदास का जोड़ा है, उसी तरीके से चाणक्य और चन्द्रगुप्त का जोड़ा है। चाणक्य के पास बहुत सामर्थ्य थी- शक्ति थी, किंतु चन्द्रगुप्त जो एक दासी का बेटा था, कुछ नहीं कर पाता था। लेकिन चाणक्य की शक्ति को जब उसने स्वीकार कर लिया, तो वह चक्रवर्ती सम्राट बन गया। ‘‘मैं आपकी शक्ति को स्वीकार करता हूँ’’ का मतलब यह होता है कि मैं आपके कहने पर चलूँगा। अगर आप यह कहते हैं कि क्या यह शक्ति हमें भी मिल जाएगी तो यह बेकार की बात है, क्योंकि शक्तियाँ ऐसे कहीं किसी को नहीं मिली हैं। वे उद्देश्यों के लिए मिलती हैं। किसी काम के लिए मिलती हैं, किसी खास मकसद के लिए, किसी वजह के लिए मिलती हैं और किसी खास आदमी को मिलती हैं।
शक्ति- अनुदान विशेष उद्देश्यों के लिए
मित्रो! हम खास आदमी भी हैं और हमें जो शक्तियाँ मिली हैं, वे किसी खास मकसद में लगाने के लिए मिली हैं। हमारे गुरु से तीन बार हमारा मिलना हुआ है, लेकिन वे निरंतर हमारा मार्गदर्शन किया करते हैं। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने धीरे से कान में आकर या जोर से कोई बात कही हो और हमने गौर से उनकी बात सुनी न हो। नाव को और राहगीर को जानते हैं न आप। नाव पार होती है, तो क्या राहगीर जो उस पर बैठा हुआ है, पार नहीं होगा? जिस राहगीर को तैरना नहीं आता वह कैसे पार होगा? लेकिन जो नाव में सवार हो जाता है, उस नाव का मल्लाह नाव को भी पार लगा देता है और बैठे हुए मुसाफिरों को भी पार लगा देता है। आप सब हमारी नाव में बैठे हैं, हम उसको भी पार लगा देंगे और आपकी जिंदगी को भी पार लगा देंगे। आपको निश्चित रूप से हमारी शक्ति मिलती रहेगी, हमारा सहयोग मिलता रहेगा। यह काम हम पहले भी करते रहे हैं और अब एकांत में भी बराबर करते रहेंगे।
समय की विभीषिका बड़ी विकट
साथियो! अब कुछ ऐसा वक्त आ गया है कि इस भयंकर वक्त में कुछ बड़ा कदम उठाये बगैर काम चलने वाला था नहीं। इन्हीं दिनों समय की विभीषिका ऐसी हुई है, जिसे आप पढ़ते होंगे। भविष्यवाणियाँ पढ़ते होंगे। टोरंटो की भविष्यवक्ता कॉन्फ्रेन्स- समाचार आपने पढ़ा है न, कोरिया का समाचार पढ़ा है न। सारी परिस्थितियाँ यह बताती हैं कि यह समय बड़ा भयंकर है। इन दिनों हवा में इतना जहर मिल रहा है, पानी में इतना जहर मिल रहा है, खाद्य पदार्थों में जहर मिल रहा है। आप जानते हैं कि परमाणु- भट्टियों से, परमाणु- विस्फोटों से कितनी तेजी से जहर फैल रहा है, जिन- जिन देशों ने बिजली पैदा करने के लिए अपने यहाँ अणु भट्टियाँ लगायी हैं, उनसे विकिरण निकल रहा है। जनसंख्या में कितनी अंधाधुंध वृद्धि हो रही है। मक्खी- मच्छरों से भी ज्यादा मनुष्यों की वृद्धि हो रही है। अगले दिनों खड़े होने के लिए उन्हें कहीं एक जगह भी नहीं मिलने वाली है। सड़क पर चलना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। खाना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा।
यह सब मुसीबते नहीं- बहुत बड़ी मुसीबतें हैं। एटमी युद्ध से भी ज्यादा भयावह है, ज्यादा बच्चों का पैदा होना। यह क्राइम को- अपराध को जन्म देगा। आपने देखा नहीं, आज आदमी की मनोवृत्ति अपराध करने की हो गयी है। ईमानदारी व भलमनसाहत किसी की समझ में नहीं आती। लाला जी दुकान पर बैठे हुए तो जरूर हैं, पर मिर्च में गेरू मिला रहे हैं। लोग मन्दिर में दर्शन करने जरूर जाते हैं, हनुमान् चालीसा का पाठ जरूर करते हैं, लेकिन नियत उनकी भी खराब है। आज सबकी नीयत खराब हो गयी है। यदि आदमी की नीयत खराब हो जाए, तो उससे भयंकर भला कौन हो सकता है?
ये सारी- की चीजें एक साथ मिल क्या गयी हैं, विश्व- मानवता के सामने मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। अब आप ही बताइये भला इतनी चीजों से टक्कर कौन ले? हर आदमी ले लेगा? आप ले लेंगे? चौराहे पर खड़े होकर भाषण देने वाले नेता लोग टक्कर ले लेंगे? न, यह बिल्कुल भी संभव नहीं है। इसके लिए तो कोई सामर्थ्यवान व्यक्ति चाहिए। जब तक कोई सामर्थ्यवान न हो, तो इतनी बड़ी शक्तियों से टक्कर नहीं ली जा सकती। फिर टक्कर लेने वाले बहुत सारे तैयार भी तो करने हैं। दो काम करने हैं। एक तो जो भयंकरता हमारी आपकी ओर घनघोर घटाओं के तरीके से बढ़ती चली आ रही है, उससे टक्कर लेनी है। टकराव के लिए मजबूत आदमी चाहिए, मजबूत हस्तियाँ चाहिए, मजबूत आध्यात्मिक शक्ति चाहिए।
भागीरथी पुरुषार्थ की वेला
आपने पढ़ा होगा- सृष्टि के इतिहास में दो बार ऐसी ही घटनाएँ हो चुकी हैं। एक बार सब जगह पानी की कमी पड़ गयी। पानी कहीं था ही नहीं। भागीरथ स्वर्ग से गंगा को जमीन पर लाने के लिए तप करने लगे। गंगा जमीन पर आयी और धरा चहुँ ओर लहलहा उठी। यह क्या है तप की शक्ति। इसी तरह दूसरी घटना है। बहुत समय पहले की बात है- वृत्रासुर नामक एक ऐसा राक्षस हुआ है, जिसने सारे देवताओं को मारकर भगा दिया था। तब उसका मुकाबला करने के लिए महर्षि दधीचि को अपनी हड्डियाँ देनी पड़ी थीं। उसका जो वज्र बना, उससे वृत्रासुर मारा गया। जब यह सब आपने सुना है, तो एक बात और सुन लीजिए कि आप चाहें तो हमारी भी संगति उसी से बिठा सकते हैं।
वृत्रासुर हनन हेतु दधीचि ने दिया वज्र
आज इस तरह का समय आ गया है कि भगीरथ को फिर से इस धरती पर ज्ञान की गंगा लानी है, जिससे दुनिया में शांति पैदा हो। दूसरी ओर दधीचि का वज्र, जो इंद्र के हाथ में रहा था और जिसके प्रहार से वृत्रासुर का चूरा हो गया था, चूरा कर देने वाली ऐसी शक्ति चाहिए। वज्र की शक्ति और ज्ञान गंगा की शक्ति। इन दोनों शक्तियों का संतुलन करने के लिए हमारा कार्यक्रम चल पड़ा है। हम उसी के लिए तप कर रहे हैं। आप यह मत सोचिए कि हम भाग रहे हैं। हम भाग नहीं रहे। हम माँ के पेट में बैठ रहे हैं, ताकि अपनी शक्ति को बढ़ा करके और ज्यादा कर सकें। क्या आप यही ख्याल करते हैं कि औरों की तरीके से हम भी स्वर्ग प्राप्ति के लिए कोशिश कर रहे हैं? या मुक्ति के लिए कुछ कर रहे हैं? आपका क्या यही ख्याल है कि सिद्धियाँ और ऋद्धियाँ पाने के लिए हम तप कर रहे हैं? नहीं बेटे, यह तो हमने बहुत पहले से ही प्राप्त कर लिए थे। स्वर्ग हमारी निगाहों में है। हमारी आँखों में है। स्वर्ग हमें हर जगह दिखाई पड़ता है।
इसी तरह मुक्ति का बंधन हम न जाने कब से काटकर फेंक चुके हैं, लोभ हमारे पास फटकता भी नहीं है। हमारे पास आता भी नहीं है। वासनाओं की सलाखें, अहंकार की जंजीरें जाने कब की तोड़कर फेंक चुके हैं। मुक्ति के लिए भी प्रयास तो हम तब करें, जब यहाँ रहना हो और सिद्धियाँ? सिद्धियों के लिए उसी को कोशिश करनी चाहिए जिसके पास यह न हों। हमारे पास सिद्धियाँ भी हैं और हम मुक्ति भी प्राप्त कर सकते हैं। हमारे पास स्वर्ग चारों ओर नजदीक ही घूमा करता है। हम अब अपने आपको तपा रहे हैं। हीरा देखा है। वह कोयला होता है और इसी कोयले को जब ज्यादा गर्मी दी जाती है, तो वह हीरा बन जाता है। एटम देखा है न आपने? वह एक धूल का कण है, जो जमीन पर पड़ा रहता है, लेकिन जब उसी को वैज्ञानिक विधि से अलग कर लिया जाता है और उसका विस्फोट किया जाता है, तो वह हिरोशिमा और नागासाकी जैसा विध्वंसकारी बन जाता है।
पंचमुखी गायत्री की उपासना पाँच वीरभद्रों का जागरण
मित्रो! अब हम पंचमुखी गायत्री की साधना करने जा रहे हैं। अब तक हमने एकमुखी गायत्री की उपासना की है। तो आपने हमें क्यों नहीं बताई पंचमुखी गायत्री की उपासना? इसलिए कि आप इसे नहीं कर सकते हैं। आपको तो एकमुखी गायत्री की उपासना करना ही मुश्किल है। माँ और बेटे का सम्बंध निभाना ही मुश्किल है। अब हम पंचमुखी गायत्री की, पाँच देवताओं की उपासना कर रहे हैं। पाँच इष्टों की उपासना कर रहे हैं। पाँच शक्तियों की उपासना कर रहे हैं, क्योंकि हमें पाँच क्षेत्रों में काम करना है। बुद्धिजीवियों के साथ काम करना है। हमको राजनेताओं की अक्ल ठिकाने लगानी है। हम कलाकारों को एक खास रास्ते पर ले जाएँगे। हम संपन्न आदमियों से कुछ काम कराएँगे और आप जैसे लोगों से जिनको हम भावनाशील कहते हैं। आप बुद्धिजीवी न सही, राजनेता न सही, किसी देश के प्रभानमंत्री न सही, उससे हमें क्या लेना- देना। कलाकार आप नहीं हैं, आपकी वाणी में जोश- खरोश और दूसरी अन्य गायन संबंधी विशेषताएँ नहीं हैं, तो न सही? आप संपन्न नहीं हैं, तो न सही, मरने दीजिए पैसे को, भावनाशील तो हैं आप। यह संसार की, सबसे बड़ी दौलत है। हमें आपको अग्रिम मोर्चे पर खड़ा करना है।
इसी तरह भावनाशीलों को, बुद्धिजीवियों को, कलाकारों को, राजनेताओं को, संपन्न व्यक्तियों को आगे से जाकर के हमको झकझोरना है और इस तरीके से रास्ते पर लाना है कि वे लड़ाई के मोर्चें पर हमारे साथ- साथ चलें। कंध- से मिलाकर चलें। पाण्डवों का नाम आपने सुना है न? वे पाँच भाई थे। अर्जुन धर्नुधर था, उसके साथ- साथ सभी भाई चलते थे। क्या मजाल कि कहीं कोई अलग हो जाए। हम इसी तरीके से प्रबंध कर रहे हैं। हमारी पाँच गुनी शक्ति बढ़ने जा रही है। हम पाँच वीरभद्र पैदा करने में जुट रहे हैं। हम आपसे दूसरे नहीं जा रहे हैं और न आपसे अलग हो रहे हैं।
मित्रो, अभी हम आपको अपनी सफाई दे रहे थे कि कहीं आप इस तरीके से न सोच लें कि गुरुजी अपनी मुक्ति के लिए स्वर्ग प्राप्ति के लिए हमको दगा दे रहे हैं और हमसे जो बातचीत करते थे, उस तरीके को भी उन्होंने बंद कर दिया। ऐसी बात नहीं है, हम तो आपके पीछे भूत के तरीके से लगे हैं। इसी तरह अब हम कलाकारों के पीछे, राजनेताओं के पीछे, बुद्धिजीवियों और संपन्न व्यक्तियों के पीछे भूत की तरह से लगेंगे। नया युग लाने के लिए हमें जिन भी शक्तियों की आवश्यकता पड़ेगी, उन्हें इस कार्य में नियोजित करेंगे। उसके लिए तब क्या करना पड़ेगा? हम आपसे अलग चले जाएँगे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं समझना कि अलग चले जाने से कोई दुश्मनी होती है। माँ अपने बच्चे को गुरुकुल में पढ़ाने के लिए भेज देती है, तो क्या माँ बच्चे की दुश्मन होती है? धन कमाने के लिए कोई परदेश चला जाता है और परदेश में दो पैसे कमाकर अपने बच्चे को मनीआर्डर से भेजता रहता है। आप क्या समझते हैं कि बाप, जो परदेश चला गया था, उसने अपने बच्चों से प्रेम- मुहब्बत कम कर दी? अपने माता- पिता से मुहब्बत कम कर दी? न, ऐसा मत कहिए। अलग होने का मतलब मुहब्बत कम करना नहीं होता। इस मुहब्बत को सार्थक करने के लिए ही हमारे ये नये कदम उठे हैं।
देते ही रहेंगे हम जीवन भर
आप हमको देख नहीं पाएँगे, तो कोई हर्ज की बात नहीं। जब आप अपने आमाशय, गुर्दे, जिगर, हृदय आदि को नहीं देख सकते, फिर भी वे काम करते हैं। आपका दिल आपके साथ धड़कता तो है, फिर आप क्या शिकायत करते हैं। यह ऐसा भयंकर समय है, जिसमें कि आदमी की मुस्तैदी- चौकीदारी की बराबर जरूरत है। इस संधिकाल की संकट की वेला में हम बराबर काम करेंगे और आपके साथ रहेंगे। यह हमारी आवश्यकता भी है, इसमें कभी कमी नहीं आने देंगे। हमने जिंदगी भर दिया है और देते रहेंगे। आपके नजदीक न रहेंगे, तो क्या? सूर्य आपके नजदीक है क्या? फिर भी आप धूप में बैठे हैं और वह आपके कपड़े सुखा जाता है। चन्द्रमा आपके नजदीक है क्या? हजारों मील दूर है। समुद्र आपके नजदीक है क्या? समुद्र जाने कितनी दूर है आपसे, फिर भी वह बराबर आपका ख्याल रखता है। आप जो पानी पीते हैं, स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं, वह पानी कहाँ से आता है? बादलों से आता है। बादल कहाँ से आते हैं? समुद्र से। समुद्र का दिया हुआ पानी आप पीते हैं, परंतु समुद्र को शायद ही आपने देखा हो। सूर्य और चन्द्रमा की शक्ल तो आपने देखी है, पर उसके नजदीक गये हैं क्या? उसके पास तक पहुँचे हैं कभी? नहीं पहुँचे हैं। वह आपसे बहुत दूर है। जब सब चीजें आप से बहुत दूर हैं, लेकिन दूर रहते हुए भी आपकी इतनी सेवा करते हैं कि आपकी जिंदगी को सँवारे बैठी हैं। यदि हवा आपको न मिले, तो आपके प्राण निकल जाएँगे। हवा आपने देखी नहीं। अतः देखने की बात आप अपने दिमाग से हटा दें। आप हमको न देख पायें या हम आपको, इससे कुछ बनता- बिगड़ता नहीं है। हम एकांत में रहकर ज्यादा मजबूती से काम करेंगे और आपसे भी यही उम्मीद करेंगे कि आप भी ज्यादा मजबूती के साथ हमारे साथ- साथ कदम उठाएँगे।
आप हमारे विचारों के समीप आएँ
मित्रो! हम चाहते हैं कि आप हमारे नजदीक आयें, साथ- साथ कंधे- से मिलाकर चलें। हमारे नजदीक और पास नहीं आयेंगे और दूर बने रहेंगे, तो फिर हमारा शक्ति एकत्रित करना भी बेकार है। अगर आप बुद्धिजीवी हैं, राजनेता हैं, कलाकार हैं, संपन्न हैं, लेकिन भावनाशील नहीं हैं, तो हमारे किस काम के? आपको भावनाशील होना चाहिए। हमें भावनाशीलों की जरूरत है। अन्यथा हमारे मुहल्ले- पड़ोस में ढेरों मजदूर काम करते हैं, तो किसी की कृपा या अनुग्रह उन पर हुई है क्या? हम अपने गुरुदेव के नजदीक हैं। तीन बार उनके पास गये हैं। बाकी चौबीसों घंटे उन्हीं का हुक्म बजाते हैं और कहते है कि आप आदेश दीजिए।
हम क्या कहते और चाहते हैं, उस बात को आप गौर से सुनना। अगर आप नहीं सुनेंगे, तो फिर हमारे नजदीक रहने, न रहने से कोई फायदा नहीं। शंकर भगवान् और पार्वती बहुत दूर रहते हैं—कैलाश पर्वत पर, परंतु इतनी दूर रहते हुए भी आपकी सेवा में कोई कमी नहीं आने देते हैं। जब भी आप ध्यान करते हैं, वे कैलाश पर्वत से उतर करके आप तक आ जाते हैं। विष्णु भगवान् क्षीरसागर छोड़ करके आप तक आ जाते हैं। अतः आप सिद्धांतों को सुनिये, सिद्धांतों को समझिये। बच्चों का सा मुँह मत देखिये कि आप हमारी शक्ल देखें और हम आपकी शक्ल देखें। दर्पण थोड़े ही हैं, जिसमें आप हमारी शक्ल देखें और हम आपकी शक्ल को देख लें। देखना हो तो देख भी लेना, इंतजाम भी किये देते हैं। आप आमने- सामने से आवाज न सुन सकेंगे न सही, हम टेप कराये देते हैं, इसे आप सुन लेना। आपको संतोष तो हो। आपको संतोष हो जायेगा, तो हमको बहुत प्रसन्नता होगी।
आज आपको सफाई देने के लिए और आगे का काम बताने के लिए ही बुलाया है। सफाई इसके लिए नहीं कि अभी हमको जीवित रहना है। इस शरीर से न भी रहें तो सूक्ष्म शरीर से रहेंगे। मनुष्य के तीन शरीर होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। स्थूल शरीर मर भी जाए, तो इससे क्या बिगड़ता है। जिंदा आदमी भी बहुत काम कर सकते हैं किंतु स्थूल शरीर के न रहने पर उससे कई गुना अधिक काम सूक्ष्म शरीर से किया जा सकता है। गुरुजी तो फिर क्या आप हिमालय चले जाएँगे? हिमालय चले जायेंगे, तो आपको क्या दिक्कत आयेगी? हमारे गुरुजी भी तो हिमालय में रहते हैं और हिमालय में रहते हुए भी हमारी बहुत सेवा करते हैं। हम कहीं भी चले जाएँ, हिमालय चले जाएँ, शांतिकुंज में रहें, या इस शरीर को छोड़ जाएँ, पर आप यह विश्वास रखिये कि हम यहीं शान्तिकुञ्ज में मौजूद रहेंगे। आप हमको बराबर अपने समीप पायेंगे और हम आपके लिए बराबर काम कर रहे होंगे। बस आपसे इतनी ही प्रार्थना है कि आप भी हमारे लिए कुछ काम कीजिए, तो मजा आ जायेगा। और क्या कहूँ आगे।
आज की बात खत्म करता हूँ।
ॐ शान्तिः
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
जीवन का नया मोड़
देवियो, भाइयो! अब हमारा जीवन एक नया मोड़ लेकर आया है। इतनी लंबी जिंदगी हमने अपने मित्रों से, भाइयों से, कुटुम्बियों से, भतीजों से, बच्चों से मिल जुलकर साथ- साथ में व्यतीत की है। ऐसा नहीं हुआ कि हम कभी अकेले रहे हों। रात को भी सोते रहे हैं, तो आप लोगों का चिंतन बराबर करते रहे हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का ख्याल करते रहे हैं। जनता के साथ हम बराबर रहे हैं। हमने अब अपने जीवन में एक नया मोड़ दिया है। नया मोड़ क्या है? अब आपके और हमारे मिलने- जुलने का क्रम बंद हो जाएगा। अब आप यह उम्मीद करें कि आप हमसे बात करेंगे, हमारी बात सुनेंगे, कठिनाइयों की अथवा जिज्ञासाओं की कोई बात हमारे सामने रखेंगे और हम उनका समाधान करेंगे। नहीं, अब यह संभव नहीं हो सकेगा। हमने अपना एक नया कार्यक्रम बना लिया है।
मित्रो, हमारे गुरु ने जो आदेश भेजा, उसी के आधार पर ही हमारा सारा- का जीवनक्रम चला है। अब तक की जिंदगी को हमने अपनी मर्जी से व्यतीत नहीं किया है। अपने कार्यक्रम स्वयं नहीं बनाये हैं। हमारे मास्टर, हमारे गुरु जिस ढंग से हमसे जो कराते हैं, हम करते हैं। इसी तरीके से हमारी सारी जिंदगी की गतिविधियाँ चलती रही हैं। अभी- अभी हमारा जो एक नया कार्यक्रम बना है। उन्हीं के आदेश के अनुसार बना है। क्या बना है? अब हमारा आपका संपर्क नहीं रहेगा। रहेंगे, तो हम जमीन पर ही, आसमान में थोड़े ही जाएँगे, लेकिन आप लोगों से संपर्क की जो जरूरत है, वह संभव नहीं हो सकेगी। आप लोग नीचे बैठे होंगे, हम ऊपर बैठे होंगे, तो क्या बातचीत नहीं करेंगे? नहीं, अब यह संभव नहीं हो सकेगा। यह हमारे जीवन का नया मोड़ है।
सकारण है जीवन का यह नया मोड़
आप लोग यह ख्याल कर सकते हैं कि इसका क्या कारण हो सकता है? आमतौर से कारण ऐसे ही होते हैं। कोई आदमी डर जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं, शर्म के मारे बोलना बंद हो जाता है। कुछ व्यक्ति आलसी होते हैं और जगे पड़े रहते हैं। जब घर वाले आवाज देते हैं कि उठो भाई, कुछ करो, तब भी वे झूठमूठ खर्राटे लेते रहते हैं। ऐसे होते हैं—आलसी और डरपोंक आदमी। सुना है कि जो मिलेट्री में भर्ती होते हैं, उनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं कि जब लड़ाई का मौका आता है, दनादन गोलियाँ चलती हैं, तो कोई- न बहाना बनाते हैं, जैसे पेटदर्द हो गया, पुट्ठे में दर्द हो गया। चला नहीं जाता है, ये बात हो गयी है, वो बात हो गई है आदि। दुनिया भर की बातें बना लेते हैं और युद्ध से भागने की कोशिश करते हैं। इन्हें पलायनवादी कहा जाता है। इस तरह आलसी एक, डरपोक दो और पलायनवादी तीन श्रेणी के व्यक्ति हुए।
तो क्या हम भी इन्हीं में से हैं? नहीं, हम इनमें से कोई भी नहीं हैं। जिन लोगों ने हमको नजदीक से देखा है, उनको स्पष्ट मालूम है कि उन तीनों में से एक भी ऐब गुरुजी के भीतर नहीं है। इन खराबियों को हमने शुरू से ही अपने भीतर से उखाड़ फेंका है। अब तो पचहत्तर साल होने को आये हैं; तो क्या इतने लंबे समय में वह बुराइयाँ कहीं छिपकर बैठ गयी होंगी? नहीं, हमने उन्हें कहीं छिपकर बैठने नहीं दिया है, साफ कर दिया है। फिर क्या कारण है कि हमको अलग एकांत में रहना पड़ा? अगले दिनों संकटों के घटाटोप और अधिक सघन होंगे, इसलिए उन्हें निरस्त करने और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने के लिए हमको अपनी शक्तियों के फैलाव को रोककर एक जगह इकट्ठा करना पड़ रहा है, ताकि वह इकट्ठी हुई शक्तियाँ आपके ज्यादा काम आ सकें। आप से मतलब है- समाज से, धर्म से, देश से, मानव जाति से, संस्कृति से। इसलिए फैलाव को- बिखराव को हमने बंद कर दिया है।
बिखराव को रोककर एक दिशा में सुनियोजन
मित्रो, आपने देखा होगा कि सूर्य की किरणें जब एक आतिशी शीशे के ऊपर एकत्रित कर देते हैं, तो वे कितनी पैनी हो जाती हैं। हमारी शक्ति भी वैसी ही हो जाएगी। इस संदर्भ में आप कहेंगे कि गुरुजी! आप तो फिर कमजोर हो जाएँगे? नहीं, बेटे! हम कमजोर नहीं होंगे। मान लीजिए, अगर हम कमजोर हो गये, तो भी हमारे जो बच्चे होने वाले हैं, वे बहुत ताकतवार होंगे। आपने महाभारत पढ़ा होगा कि कुन्ती तो कमजोर हो गयी थी और अपनी जिठानी गांधारी के साथ जंगल में तप करने चली गयी थी। लेकिन उनके बच्चे कितने शानदार थे, अर्जुन, भीम और दूसरे सब बच्चे एक- से समर्थ थे। कुन्ती मरी नहीं थी, वरन् अपनी जगह दूसरों को छोड़ गयी थी। हम भी अपनी जगह पर दूसरों को छोड़ जाने की कोशिश में लग रहे हैं, ताकि हमारी परंपरा बंद न होने पाये।
यों तो स्थूल रूप से हमारी परंपरा बंद भी हो सकती है। पिचहत्तर साल की उम्र के बाद में आदमी कहाँ तक जिएगा? अधिक- से पाँच वर्ष और चुस्ती व फुर्ती के साथ। उसके बाद कोई जिएगा, तो बुड्ढा हो जाता है, कमजोर हो जाता है, इन्द्रियाँ साथ देना बंद कर देती हैं। बुढ़ापे में किसी को जवान देखा है, फिर हम कैसे जवान रह सकते हैं? स्वयं भागदौड़ करके कैसे काम कर सकते हैं? इस भाग- दौड़ के लिए हमने नये आदमी तलाश किये हैं और उनको ही बनाने में लग रहे हैं।
तप एकांत में ही क्यों?
आपने बिल्ली देखी है। बिल्ली जब बच्चा देती है, तो क्या सड़क पर देती है? नहीं, कोई ऐसा स्थान तलाश करती है, जहाँ कोई आदमी न हो और उसे देखता न हो। ये छिपकर करने वाले काम हैं- एकांत के काम हैं। हम भी अब आप लोगों से अलग हटकर एकांत में जा रहे हैं, ताकि अपनी शक्तियों को एकत्र कर सकें और शक्तिशाली बन जाएँ। एकांत होने का मतलब यह है कि आपको हम दिखाई न पड़ें। दिखाई न देने से क्या आपको कोई नुकसान है? और दिखाई पड़ें, तो आपको कुछ फायदा है क्या? बताइये, क्या आपको अपना दिल दिखाई पड़ता है? नहीं दिखाई पड़ता। आपने अपने गुर्दे देखे हैं? किसी और के भले ही देखे होंगे, पर अपने नहीं देखे होंगे। फेफड़े आपने देखे हैं क्या? वह भी नहीं देखे हैं। शीशे में आपने अपने आँख और कान देखे हों तो देखे हों और वह भी प्रत्यक्ष नहीं देखे होंगे। इस प्रकार आप हर चीज को नहीं देख सकते। देखना कोई बहुत जरूरी नहीं ।। यदि जरूरी होता, तो भगवान् शंकर और पार्वती जी कैलाश पर्वत पर मानसरोवर, जो यहाँ से बहुत दूर है, तप करने क्यों जाते? दिल्ली के चावड़ी बाजार में क्यों नहीं बैठ जाते? तब उनके पास देखने वाले- दर्शन करने वाले हजारों आदमी आते? विष्णु भगवान् के बारे में मैंने आपको बताया है कि वे कहाँ रहते हैं। वे क्षीरसागर में शेषशैया पर सोये रहते हैं और एकांत में रहते हैं। कोई काम नहीं करते।
मित्रो! एकांत का मतलब यहाँ वह भी नहीं है, जो अभी मैंने बताया है- भाग खड़े होना, आलसी हो जाना। यद्यपि एक मतलब यह भी होता है दूसरा मतलब एकांत का है- अपनी शक्तियों को एकत्रित करना। माँ के पेट में जब बच्चा रहता है। न किसी से बात करता है, न बोलता है और न हिलता- डुलता है। न अपनी आवश्यकता कहता है, न लड़ता है, न चिल्लाता है। चुपचाप नौ महीने तक माँ के पेट में बैठा रहता है। इससे क्या फायदा है? इससे यह फायदा है कि पानी की एक नन्हीं बूँद एक पूरे बच्चे के रूप में विकसित हो जाती है।
आजकल हमारा जो एकांत चल रहा है- सूक्ष्मीकरण चल रहा है, इसके बारे में आप उसी तरीके से समझिये। आप यह न सोचिये कि हम भाग खड़े हुए। आप यह भी न सोचिये कि हमने आपसे मुहब्बत खत्म कर दी। मुहब्बत हमारी जिंदगी से खत्म नहीं हो सकती। उन लोगों के बारे में सोचिये, जो बैरागी हो जाते हैं, माँ- बाप को छोड़ देते हैं। भाइयों को, बच्चों को बिलखता छोड़ जाते हैं। ऐसे बैरागी हम कहाँ हो सकते हैं? ऐसा हमारे लिए संभव नहीं है, क्योंकि वह रास्ता जिन लोगों ने अख्तियार किया है, उन लोगों में से सभी को हमने रोका है। सबको मना कर दिया है और कहा है कि नहीं भाई, यह रास्ता गलत है। समाज की सेवा कीजिए, समाज के साथ रहिए। समाज के साथ में स्वयं भी आगे बढ़िये, अपने गुणों को बढ़ाइये और दूसरों को आगे बढ़ाइये। हमारी यही मनोकामना है।
अभी मैं आप से अलग होने की सफाई दे रहा था। इस संबंध में क्षीरसागर में बैठे भगवान् विष्णु की सफाई दी, कैलाशवासी भगवान् शंकर की सफाई दी- अकेले एकांत में रहने की। चलिए अभी मैं आपको और उदाहरण बताता हूँ। पांडिचेरी के अरविंद घोष का नाम सुना है न आपने, उन्होंने अपने सब काम कर लिये थे। अपनी ताकत, जितनी भी थी, सब खर्च कर ली थी। ताकतवार नौजवानों को साथ लेकर अँग्रेजों को भगाने का उनका मकसद था, पर वह पूरा न हो सका। फिर उन्होंने एक नेशनल कॉलेज खोला, उसमें विद्यार्थी पढ़ाये। इस नयी पीढ़ी के लोगों को समझाया कि आजादी की लड़ाई लड़नी चाहिए। वह प्रयास भी यूँ ही नकारा साबित हुआ। इसके बाद उन्होंने एक राजनैतिक पार्टी बनायी, बम चलाये। बम चलाकर अँग्रेजों को भगाने- डराने की बात कही, लेकिन वह बात भी उनकी सफल नहीं हुई।
फिर उनको दिखाई पड़ा कि सबसे बड़ी ताकत कौन- सी है, जिससे कि बड़ी- से हुकूमतों से टक्कर लेना संभव है। जब उनको दिखाई पड़ा कि वह शक्ति केवल तप में है। तप कहाँ होता है? तप के लिए एकांत चाहिए। पांडिचेरी के अरविंद घोष तप के लिए एकांत में चले गये। मालूम है न आपको। उनके साथ जो माताजी रहती थीं, वह भी एकांत में रहती थीं। दिन भर में एक बार दर्शन देने के लिए माताजी बाहर आती थीं। अरविंद साल भर बाद- छह माह बाद- जब उनका मन होता था, दर्शन दे जाते थे। उसमें भी दूर ही रहते थे। इससे क्या फायदा हुआ? इसका फायदा यह हुआ कि उन्होंने सारे- के वातावरण को गरम कर दिया। ऐसा वातावरण गरम हुआ, जैसे गर्मी में चक्रवात आते हैं और धूल- मिट्टी के बवंडर उठते हैं और लगातार आकाश की ओर उठते रहते हैं। ऐसे ही कितने सारे चक्रवात यहाँ हिन्दुस्तान में तैयार हुए। उनमें से एक का नाम गाँधी, एक का नाम नेहरू, एक का नाम पटेल, एक का नाम सुभाष, एक का नाम मालवीय था। एक साथ इतने सारे महामानव कहीं दुनिया के पर्दें पर पैदा नहीं हुए। आजादी की लड़ाई में, आन्दोलनों में लोग तो बहुत सारे एक साथ हुए हैं, पर जब से जमीन बनी है, तब से कभी भी ऐसा नहीं हुआ, जब एक साथ किसी भी मुल्क में इतने सारे महापुरुष पैदा हुए हों, जितने कि अरविंद घोष के जमाने में हुए हैं।
महर्षि रमण का मौन तप
ठीक इसी तरह से महर्षि रमण का वाक्य है। वे भी अकेले में रहते थे, मौन रहते थे, बात नहीं करते थे। उनका सत्संग होता था, हवन होता था। चिड़ियाँ आती थीं, दूसरे जानवर आते थे, उनके नजदीक बैठ जाते थे और उनकी मौनवाणी को सुना करते थे। आप भी हमारी मौन वाणी को बराबर सुनते रहेंगे। तब वाणी को आपके कान बर्दाश्त कर सकेंगे कि नहीं, यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन हमारी यह आवाज जो दूसरी और तीसरी वाणी में होगी, अब वह बोलेगी। यह वैसी ही वाणी है, जिसे हम अभी आपके सामने बोल रहे हैं। इन्हीं वाणियों से हम आप से जिंदगी भर बात करते रहेंगे। इसके अलावा भी आदमी की तीन और वाणी हैं। एक है- मध्यमा वाणी, जो व्यक्ति के चेहरे से टपकती है। दूसरी है- परा वाणी, जो आदमी के विचारों से, दिमाग- से, निकलती है। तीसरी- पश्यन्ति वाणी है, जो मनुष्य के अंतरात्मा के अन्दर रहती है। यह सत्संग की वाणी है। इन तीन वाणियों को कोई बंद नहीं कर सकता, इनमें कोई रुकावट नहीं डाली जा सकती है। मौन रहकर भी- एकांत में रहकर भी ये तीन वाणियाँ बराबर काम करती रहती हैं। हमारी भी ये तीनों वाणियाँ बराबर काम करती रहेंगी और आपको फायदा देती रहेंगी।
हमसे कुछ पाने का प्रयास कीजिए
मित्रो! यह कब फायदा देंगी? यह तब फायदा देंगी, जब आप हमारे साथ घुलेंगे- मिलेंगे। अगर आप दूर- दूर रहेंगे, तो बात कैसे बनेगी? दूर रहने से काम नहीं बनेगा, आपको हमारे पास आना पड़ेगा। पास आने का केवल यही मतलब नहीं है कि आप शांतिकुञ्ज में, हमारे कमरे में आ जाते हैं, मिल जाते हैं, वरन् पास आने का मतलब यह है कि आप हमारे विचारों के साथ में कितनी गहराई से जुड़ते हैं। हमारे पास क्या रखा है? हमने जो त्याग, तपश्चर्याएँ, उपासनाएँ की हैं, ऐसे ढेरों आदमियों के नाम बता सकता हूँ, जिन्होंने इस तरह की उपासनाएँ की हैं। लेकिन सही बात- ईमानदारी की बात यह है कि हमारे गुरु की शक्ति- गुरु की सामर्थ्य हमें बराबर मिलती रही है और उसी के आधार पर कठपुतली की तरह हम तमाशा करते रहे हैं। आप भी आइये, आपके लिए भी रास्ता खुला हुआ है।
हमसे पहले भी बहुत से आदमियों ने इस तरह से रास्ता खोल दिया है। रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के जोड़े का नाम सुना है आपने। रामकृष्ण परमहंस केवल ध्यान करते थे। उन्होंने न कोई अनुष्ठान किया, न कोई विशिष्ट जप किया, न हिमालय गये, रामकृष्ण परमहंस की सारी आध्यात्मिक संपदा उनके शिष्य नरेन्द्र (विवेकानन्द) को मिल गयी। उसी को लेकर विवेकानन्द ने वह काम किया, जो रामकृष्ण परमहंस अपने शरीर से नहीं कर सकते थे।
आपने विरजानन्द और महर्षि दयानन्द का नाम सुना है। कौन दयानंद? आर्य समाज वाले। उनके गुरु स्वामी विरजानंद मथुरा में रहते थे। वे आँखों से अंधे थे। उन्होंने अपनी सामर्थ्य को स्वामी दयानन्द को हस्तान्तरित कर दिया। इसके बाद स्वामी दयानंद ने वह काम कर दिखाया, जिसे हजार आदमी भी एक समय में नहीं कर सकते। आपके लिए भी रास्ता खुला हुआ है। आप हमारी शक्ति का फायदा उठाना चाहें, जो आगे चलकर और भी ज्यादा हो जायेगी, तो उठा लीजिए। पहले से भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो हमारे साथ चलते रहे हैं। हमारा कहना मानते रहे हैं, उन्हें लाभ ही हुआ है। गाँधीजी के साथ में मीरा बहिन चलती थीं, नेहरू जी चलते थे, सुभाष चलते थे, विनोबा चलते थे उन्हें क्या मिला? सबको फायदा ही हुआ है।
आपने स्वामी रामदास और शिवाजी का नाम सुना है। शिवाजी कौन थे? शिवाजी वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिंदुस्तान को आजाद कराने की तवारीख में पहला कदम उठाया और समर्थ गुरु रामदास वह थे, जो संत प्रकृति के हो गये थे और इस बात की तलाश में थे कि संत के लिए आजादी की लड़ाई लड़ना, खून- खच्चर करना आदि मुनासिब नहीं है, इसलिए कोई दूसरा रास्ता तलाश करना चाहिए। उन्होंने शिवाजी को तलाश लिया। उनका इम्तिहान सिंहनी का दूध मँगाकर लिया और इसके बाद उन्हें भवानी के हाथ से- देवी के हाथ से एक ऐसी तलवार दिलायी, जिसे लेकर के वे अक्षय हो गये, अजेय हो गये। जहाँ कहीं भी वह तलवार गयी, उन्हीं की विजय हुई।
जिस तरह शिवाजी और समर्थ गुरु रामदास का जोड़ा है, उसी तरीके से चाणक्य और चन्द्रगुप्त का जोड़ा है। चाणक्य के पास बहुत सामर्थ्य थी- शक्ति थी, किंतु चन्द्रगुप्त जो एक दासी का बेटा था, कुछ नहीं कर पाता था। लेकिन चाणक्य की शक्ति को जब उसने स्वीकार कर लिया, तो वह चक्रवर्ती सम्राट बन गया। ‘‘मैं आपकी शक्ति को स्वीकार करता हूँ’’ का मतलब यह होता है कि मैं आपके कहने पर चलूँगा। अगर आप यह कहते हैं कि क्या यह शक्ति हमें भी मिल जाएगी तो यह बेकार की बात है, क्योंकि शक्तियाँ ऐसे कहीं किसी को नहीं मिली हैं। वे उद्देश्यों के लिए मिलती हैं। किसी काम के लिए मिलती हैं, किसी खास मकसद के लिए, किसी वजह के लिए मिलती हैं और किसी खास आदमी को मिलती हैं।
शक्ति- अनुदान विशेष उद्देश्यों के लिए
मित्रो! हम खास आदमी भी हैं और हमें जो शक्तियाँ मिली हैं, वे किसी खास मकसद में लगाने के लिए मिली हैं। हमारे गुरु से तीन बार हमारा मिलना हुआ है, लेकिन वे निरंतर हमारा मार्गदर्शन किया करते हैं। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने धीरे से कान में आकर या जोर से कोई बात कही हो और हमने गौर से उनकी बात सुनी न हो। नाव को और राहगीर को जानते हैं न आप। नाव पार होती है, तो क्या राहगीर जो उस पर बैठा हुआ है, पार नहीं होगा? जिस राहगीर को तैरना नहीं आता वह कैसे पार होगा? लेकिन जो नाव में सवार हो जाता है, उस नाव का मल्लाह नाव को भी पार लगा देता है और बैठे हुए मुसाफिरों को भी पार लगा देता है। आप सब हमारी नाव में बैठे हैं, हम उसको भी पार लगा देंगे और आपकी जिंदगी को भी पार लगा देंगे। आपको निश्चित रूप से हमारी शक्ति मिलती रहेगी, हमारा सहयोग मिलता रहेगा। यह काम हम पहले भी करते रहे हैं और अब एकांत में भी बराबर करते रहेंगे।
समय की विभीषिका बड़ी विकट
साथियो! अब कुछ ऐसा वक्त आ गया है कि इस भयंकर वक्त में कुछ बड़ा कदम उठाये बगैर काम चलने वाला था नहीं। इन्हीं दिनों समय की विभीषिका ऐसी हुई है, जिसे आप पढ़ते होंगे। भविष्यवाणियाँ पढ़ते होंगे। टोरंटो की भविष्यवक्ता कॉन्फ्रेन्स- समाचार आपने पढ़ा है न, कोरिया का समाचार पढ़ा है न। सारी परिस्थितियाँ यह बताती हैं कि यह समय बड़ा भयंकर है। इन दिनों हवा में इतना जहर मिल रहा है, पानी में इतना जहर मिल रहा है, खाद्य पदार्थों में जहर मिल रहा है। आप जानते हैं कि परमाणु- भट्टियों से, परमाणु- विस्फोटों से कितनी तेजी से जहर फैल रहा है, जिन- जिन देशों ने बिजली पैदा करने के लिए अपने यहाँ अणु भट्टियाँ लगायी हैं, उनसे विकिरण निकल रहा है। जनसंख्या में कितनी अंधाधुंध वृद्धि हो रही है। मक्खी- मच्छरों से भी ज्यादा मनुष्यों की वृद्धि हो रही है। अगले दिनों खड़े होने के लिए उन्हें कहीं एक जगह भी नहीं मिलने वाली है। सड़क पर चलना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। खाना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा।
यह सब मुसीबते नहीं- बहुत बड़ी मुसीबतें हैं। एटमी युद्ध से भी ज्यादा भयावह है, ज्यादा बच्चों का पैदा होना। यह क्राइम को- अपराध को जन्म देगा। आपने देखा नहीं, आज आदमी की मनोवृत्ति अपराध करने की हो गयी है। ईमानदारी व भलमनसाहत किसी की समझ में नहीं आती। लाला जी दुकान पर बैठे हुए तो जरूर हैं, पर मिर्च में गेरू मिला रहे हैं। लोग मन्दिर में दर्शन करने जरूर जाते हैं, हनुमान् चालीसा का पाठ जरूर करते हैं, लेकिन नियत उनकी भी खराब है। आज सबकी नीयत खराब हो गयी है। यदि आदमी की नीयत खराब हो जाए, तो उससे भयंकर भला कौन हो सकता है?
ये सारी- की चीजें एक साथ मिल क्या गयी हैं, विश्व- मानवता के सामने मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। अब आप ही बताइये भला इतनी चीजों से टक्कर कौन ले? हर आदमी ले लेगा? आप ले लेंगे? चौराहे पर खड़े होकर भाषण देने वाले नेता लोग टक्कर ले लेंगे? न, यह बिल्कुल भी संभव नहीं है। इसके लिए तो कोई सामर्थ्यवान व्यक्ति चाहिए। जब तक कोई सामर्थ्यवान न हो, तो इतनी बड़ी शक्तियों से टक्कर नहीं ली जा सकती। फिर टक्कर लेने वाले बहुत सारे तैयार भी तो करने हैं। दो काम करने हैं। एक तो जो भयंकरता हमारी आपकी ओर घनघोर घटाओं के तरीके से बढ़ती चली आ रही है, उससे टक्कर लेनी है। टकराव के लिए मजबूत आदमी चाहिए, मजबूत हस्तियाँ चाहिए, मजबूत आध्यात्मिक शक्ति चाहिए।
भागीरथी पुरुषार्थ की वेला
आपने पढ़ा होगा- सृष्टि के इतिहास में दो बार ऐसी ही घटनाएँ हो चुकी हैं। एक बार सब जगह पानी की कमी पड़ गयी। पानी कहीं था ही नहीं। भागीरथ स्वर्ग से गंगा को जमीन पर लाने के लिए तप करने लगे। गंगा जमीन पर आयी और धरा चहुँ ओर लहलहा उठी। यह क्या है तप की शक्ति। इसी तरह दूसरी घटना है। बहुत समय पहले की बात है- वृत्रासुर नामक एक ऐसा राक्षस हुआ है, जिसने सारे देवताओं को मारकर भगा दिया था। तब उसका मुकाबला करने के लिए महर्षि दधीचि को अपनी हड्डियाँ देनी पड़ी थीं। उसका जो वज्र बना, उससे वृत्रासुर मारा गया। जब यह सब आपने सुना है, तो एक बात और सुन लीजिए कि आप चाहें तो हमारी भी संगति उसी से बिठा सकते हैं।
वृत्रासुर हनन हेतु दधीचि ने दिया वज्र
आज इस तरह का समय आ गया है कि भगीरथ को फिर से इस धरती पर ज्ञान की गंगा लानी है, जिससे दुनिया में शांति पैदा हो। दूसरी ओर दधीचि का वज्र, जो इंद्र के हाथ में रहा था और जिसके प्रहार से वृत्रासुर का चूरा हो गया था, चूरा कर देने वाली ऐसी शक्ति चाहिए। वज्र की शक्ति और ज्ञान गंगा की शक्ति। इन दोनों शक्तियों का संतुलन करने के लिए हमारा कार्यक्रम चल पड़ा है। हम उसी के लिए तप कर रहे हैं। आप यह मत सोचिए कि हम भाग रहे हैं। हम भाग नहीं रहे। हम माँ के पेट में बैठ रहे हैं, ताकि अपनी शक्ति को बढ़ा करके और ज्यादा कर सकें। क्या आप यही ख्याल करते हैं कि औरों की तरीके से हम भी स्वर्ग प्राप्ति के लिए कोशिश कर रहे हैं? या मुक्ति के लिए कुछ कर रहे हैं? आपका क्या यही ख्याल है कि सिद्धियाँ और ऋद्धियाँ पाने के लिए हम तप कर रहे हैं? नहीं बेटे, यह तो हमने बहुत पहले से ही प्राप्त कर लिए थे। स्वर्ग हमारी निगाहों में है। हमारी आँखों में है। स्वर्ग हमें हर जगह दिखाई पड़ता है।
इसी तरह मुक्ति का बंधन हम न जाने कब से काटकर फेंक चुके हैं, लोभ हमारे पास फटकता भी नहीं है। हमारे पास आता भी नहीं है। वासनाओं की सलाखें, अहंकार की जंजीरें जाने कब की तोड़कर फेंक चुके हैं। मुक्ति के लिए भी प्रयास तो हम तब करें, जब यहाँ रहना हो और सिद्धियाँ? सिद्धियों के लिए उसी को कोशिश करनी चाहिए जिसके पास यह न हों। हमारे पास सिद्धियाँ भी हैं और हम मुक्ति भी प्राप्त कर सकते हैं। हमारे पास स्वर्ग चारों ओर नजदीक ही घूमा करता है। हम अब अपने आपको तपा रहे हैं। हीरा देखा है। वह कोयला होता है और इसी कोयले को जब ज्यादा गर्मी दी जाती है, तो वह हीरा बन जाता है। एटम देखा है न आपने? वह एक धूल का कण है, जो जमीन पर पड़ा रहता है, लेकिन जब उसी को वैज्ञानिक विधि से अलग कर लिया जाता है और उसका विस्फोट किया जाता है, तो वह हिरोशिमा और नागासाकी जैसा विध्वंसकारी बन जाता है।
पंचमुखी गायत्री की उपासना पाँच वीरभद्रों का जागरण
मित्रो! अब हम पंचमुखी गायत्री की साधना करने जा रहे हैं। अब तक हमने एकमुखी गायत्री की उपासना की है। तो आपने हमें क्यों नहीं बताई पंचमुखी गायत्री की उपासना? इसलिए कि आप इसे नहीं कर सकते हैं। आपको तो एकमुखी गायत्री की उपासना करना ही मुश्किल है। माँ और बेटे का सम्बंध निभाना ही मुश्किल है। अब हम पंचमुखी गायत्री की, पाँच देवताओं की उपासना कर रहे हैं। पाँच इष्टों की उपासना कर रहे हैं। पाँच शक्तियों की उपासना कर रहे हैं, क्योंकि हमें पाँच क्षेत्रों में काम करना है। बुद्धिजीवियों के साथ काम करना है। हमको राजनेताओं की अक्ल ठिकाने लगानी है। हम कलाकारों को एक खास रास्ते पर ले जाएँगे। हम संपन्न आदमियों से कुछ काम कराएँगे और आप जैसे लोगों से जिनको हम भावनाशील कहते हैं। आप बुद्धिजीवी न सही, राजनेता न सही, किसी देश के प्रभानमंत्री न सही, उससे हमें क्या लेना- देना। कलाकार आप नहीं हैं, आपकी वाणी में जोश- खरोश और दूसरी अन्य गायन संबंधी विशेषताएँ नहीं हैं, तो न सही? आप संपन्न नहीं हैं, तो न सही, मरने दीजिए पैसे को, भावनाशील तो हैं आप। यह संसार की, सबसे बड़ी दौलत है। हमें आपको अग्रिम मोर्चे पर खड़ा करना है।
इसी तरह भावनाशीलों को, बुद्धिजीवियों को, कलाकारों को, राजनेताओं को, संपन्न व्यक्तियों को आगे से जाकर के हमको झकझोरना है और इस तरीके से रास्ते पर लाना है कि वे लड़ाई के मोर्चें पर हमारे साथ- साथ चलें। कंध- से मिलाकर चलें। पाण्डवों का नाम आपने सुना है न? वे पाँच भाई थे। अर्जुन धर्नुधर था, उसके साथ- साथ सभी भाई चलते थे। क्या मजाल कि कहीं कोई अलग हो जाए। हम इसी तरीके से प्रबंध कर रहे हैं। हमारी पाँच गुनी शक्ति बढ़ने जा रही है। हम पाँच वीरभद्र पैदा करने में जुट रहे हैं। हम आपसे दूसरे नहीं जा रहे हैं और न आपसे अलग हो रहे हैं।
मित्रो, अभी हम आपको अपनी सफाई दे रहे थे कि कहीं आप इस तरीके से न सोच लें कि गुरुजी अपनी मुक्ति के लिए स्वर्ग प्राप्ति के लिए हमको दगा दे रहे हैं और हमसे जो बातचीत करते थे, उस तरीके को भी उन्होंने बंद कर दिया। ऐसी बात नहीं है, हम तो आपके पीछे भूत के तरीके से लगे हैं। इसी तरह अब हम कलाकारों के पीछे, राजनेताओं के पीछे, बुद्धिजीवियों और संपन्न व्यक्तियों के पीछे भूत की तरह से लगेंगे। नया युग लाने के लिए हमें जिन भी शक्तियों की आवश्यकता पड़ेगी, उन्हें इस कार्य में नियोजित करेंगे। उसके लिए तब क्या करना पड़ेगा? हम आपसे अलग चले जाएँगे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं समझना कि अलग चले जाने से कोई दुश्मनी होती है। माँ अपने बच्चे को गुरुकुल में पढ़ाने के लिए भेज देती है, तो क्या माँ बच्चे की दुश्मन होती है? धन कमाने के लिए कोई परदेश चला जाता है और परदेश में दो पैसे कमाकर अपने बच्चे को मनीआर्डर से भेजता रहता है। आप क्या समझते हैं कि बाप, जो परदेश चला गया था, उसने अपने बच्चों से प्रेम- मुहब्बत कम कर दी? अपने माता- पिता से मुहब्बत कम कर दी? न, ऐसा मत कहिए। अलग होने का मतलब मुहब्बत कम करना नहीं होता। इस मुहब्बत को सार्थक करने के लिए ही हमारे ये नये कदम उठे हैं।
देते ही रहेंगे हम जीवन भर
आप हमको देख नहीं पाएँगे, तो कोई हर्ज की बात नहीं। जब आप अपने आमाशय, गुर्दे, जिगर, हृदय आदि को नहीं देख सकते, फिर भी वे काम करते हैं। आपका दिल आपके साथ धड़कता तो है, फिर आप क्या शिकायत करते हैं। यह ऐसा भयंकर समय है, जिसमें कि आदमी की मुस्तैदी- चौकीदारी की बराबर जरूरत है। इस संधिकाल की संकट की वेला में हम बराबर काम करेंगे और आपके साथ रहेंगे। यह हमारी आवश्यकता भी है, इसमें कभी कमी नहीं आने देंगे। हमने जिंदगी भर दिया है और देते रहेंगे। आपके नजदीक न रहेंगे, तो क्या? सूर्य आपके नजदीक है क्या? फिर भी आप धूप में बैठे हैं और वह आपके कपड़े सुखा जाता है। चन्द्रमा आपके नजदीक है क्या? हजारों मील दूर है। समुद्र आपके नजदीक है क्या? समुद्र जाने कितनी दूर है आपसे, फिर भी वह बराबर आपका ख्याल रखता है। आप जो पानी पीते हैं, स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं, वह पानी कहाँ से आता है? बादलों से आता है। बादल कहाँ से आते हैं? समुद्र से। समुद्र का दिया हुआ पानी आप पीते हैं, परंतु समुद्र को शायद ही आपने देखा हो। सूर्य और चन्द्रमा की शक्ल तो आपने देखी है, पर उसके नजदीक गये हैं क्या? उसके पास तक पहुँचे हैं कभी? नहीं पहुँचे हैं। वह आपसे बहुत दूर है। जब सब चीजें आप से बहुत दूर हैं, लेकिन दूर रहते हुए भी आपकी इतनी सेवा करते हैं कि आपकी जिंदगी को सँवारे बैठी हैं। यदि हवा आपको न मिले, तो आपके प्राण निकल जाएँगे। हवा आपने देखी नहीं। अतः देखने की बात आप अपने दिमाग से हटा दें। आप हमको न देख पायें या हम आपको, इससे कुछ बनता- बिगड़ता नहीं है। हम एकांत में रहकर ज्यादा मजबूती से काम करेंगे और आपसे भी यही उम्मीद करेंगे कि आप भी ज्यादा मजबूती के साथ हमारे साथ- साथ कदम उठाएँगे।
आप हमारे विचारों के समीप आएँ
मित्रो! हम चाहते हैं कि आप हमारे नजदीक आयें, साथ- साथ कंधे- से मिलाकर चलें। हमारे नजदीक और पास नहीं आयेंगे और दूर बने रहेंगे, तो फिर हमारा शक्ति एकत्रित करना भी बेकार है। अगर आप बुद्धिजीवी हैं, राजनेता हैं, कलाकार हैं, संपन्न हैं, लेकिन भावनाशील नहीं हैं, तो हमारे किस काम के? आपको भावनाशील होना चाहिए। हमें भावनाशीलों की जरूरत है। अन्यथा हमारे मुहल्ले- पड़ोस में ढेरों मजदूर काम करते हैं, तो किसी की कृपा या अनुग्रह उन पर हुई है क्या? हम अपने गुरुदेव के नजदीक हैं। तीन बार उनके पास गये हैं। बाकी चौबीसों घंटे उन्हीं का हुक्म बजाते हैं और कहते है कि आप आदेश दीजिए।
हम क्या कहते और चाहते हैं, उस बात को आप गौर से सुनना। अगर आप नहीं सुनेंगे, तो फिर हमारे नजदीक रहने, न रहने से कोई फायदा नहीं। शंकर भगवान् और पार्वती बहुत दूर रहते हैं—कैलाश पर्वत पर, परंतु इतनी दूर रहते हुए भी आपकी सेवा में कोई कमी नहीं आने देते हैं। जब भी आप ध्यान करते हैं, वे कैलाश पर्वत से उतर करके आप तक आ जाते हैं। विष्णु भगवान् क्षीरसागर छोड़ करके आप तक आ जाते हैं। अतः आप सिद्धांतों को सुनिये, सिद्धांतों को समझिये। बच्चों का सा मुँह मत देखिये कि आप हमारी शक्ल देखें और हम आपकी शक्ल देखें। दर्पण थोड़े ही हैं, जिसमें आप हमारी शक्ल देखें और हम आपकी शक्ल को देख लें। देखना हो तो देख भी लेना, इंतजाम भी किये देते हैं। आप आमने- सामने से आवाज न सुन सकेंगे न सही, हम टेप कराये देते हैं, इसे आप सुन लेना। आपको संतोष तो हो। आपको संतोष हो जायेगा, तो हमको बहुत प्रसन्नता होगी।
आज आपको सफाई देने के लिए और आगे का काम बताने के लिए ही बुलाया है। सफाई इसके लिए नहीं कि अभी हमको जीवित रहना है। इस शरीर से न भी रहें तो सूक्ष्म शरीर से रहेंगे। मनुष्य के तीन शरीर होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। स्थूल शरीर मर भी जाए, तो इससे क्या बिगड़ता है। जिंदा आदमी भी बहुत काम कर सकते हैं किंतु स्थूल शरीर के न रहने पर उससे कई गुना अधिक काम सूक्ष्म शरीर से किया जा सकता है। गुरुजी तो फिर क्या आप हिमालय चले जाएँगे? हिमालय चले जायेंगे, तो आपको क्या दिक्कत आयेगी? हमारे गुरुजी भी तो हिमालय में रहते हैं और हिमालय में रहते हुए भी हमारी बहुत सेवा करते हैं। हम कहीं भी चले जाएँ, हिमालय चले जाएँ, शांतिकुंज में रहें, या इस शरीर को छोड़ जाएँ, पर आप यह विश्वास रखिये कि हम यहीं शान्तिकुञ्ज में मौजूद रहेंगे। आप हमको बराबर अपने समीप पायेंगे और हम आपके लिए बराबर काम कर रहे होंगे। बस आपसे इतनी ही प्रार्थना है कि आप भी हमारे लिए कुछ काम कीजिए, तो मजा आ जायेगा। और क्या कहूँ आगे।
आज की बात खत्म करता हूँ।
ॐ शान्तिः