Books - युगऋषि की सूक्ष्मीकरण साधना
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हो रहे प्रयास ना काफी
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अनिष्ट का प्रतिकार करने के लिए हर कोई अपनी- अपनी सूझबूझ और सामर्थ्य के अनुरूप काम करता है, पर स्थिर समाधान के लिए ताला खोलने वाली ताली ही तलाश करनी पड़ती है। लोग प्रयत्नशील न हों, सो बात नहीं है। सरकारें धन खर्च करने, वैज्ञानिक दिन- रात प्रयोगशालाओं में तत्पर रहने, अर्थशास्त्री सम्पन्नता बढ़ाने और विज्ञान सोचने, खोजने में संलग्न है। संकट को निरस्त करने के लिए बरते जा रहे उपाय कुछ भी कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं। रस्सी दो गज जुड़ पाती नहीं कि चार गज टूट जाती है। ‘अंधी पीसे कुत्ता खाय’ वाली उक्ति लागू हो रही है। राजनैतिक मोर्चे पर न धमकी काम दे रही है, न कानाफूसी। विग्रह के बादल सघन ही होते चले जा रहे हैं। क्षेत्रीय समस्याओं में भाषावाद, सम्प्रदायवाद, उग्रवाद, यूनियनवाद, हड़ताल, तोड़- फोड़ के उपद्रव आये दिन खड़े रहते हैं। अस्पतालों और डॉक्टरों की संख्या वृद्धि के साथ बीमारों और बीमारियों की संख्या और भी बड़े अनुपात के साथ बढ़ रही है। पुलिस बढ़ रही है, पर अपराधों की वृद्धि पर तनिक भी अंकुश नहीं लग रहा है। मँहगाई के साथ- साथ मिलावट, भ्रष्टाचार का भी पूरा जोर और दौर है। नशेबाजी जैसे दुर्व्यसन, दहेज जैसे कुप्रचलन, दिन- दूने रात चौगुने वेग से उभर रहे हैं। प्रचार- प्रस्तावों का उन पर कोई असर नहीं। व्यक्ति खोखला होता हुआ चला जा रहा है और समाज जर्जर। विपत्तियों और समस्याओं का ओर- छोर नहीं।
कुछ कुचक्री और स्वेच्छाचारी दोनों हाथों से दौलत भी बटोर रहे हैं, किन्तु वे भी ईर्ष्यालुओं, अपराधियों और रिश्वत माँगने वालों से हैरान ही बने रहते हैं। खोटी कमाई इस हाथ आकर दुर्व्यसनों में उस हाथ फुलझड़ी की तरह जल जाती है।
यह अत्युक्तिवादी कल्पना चित्र नहीं है। आँख उठाकर इर्द- गिर्द देखने पर दृष्टिगोचर होने वाला वातावरण है। इसके प्रमाण परिचय कहीं भी, कभी भी मिल सकते हैं। चिन्ता की बात अनर्थों का- संकटों का बढ़ना तो है ही, पर उससे भी अधिक हैरानी की बात यह है कि किसी क्षेत्र में कोई समाधान निकल नहीं रहे हैं। सुधारवादी प्रयास जलते तवे पर कुछ बूँदें पानी पड़ने की तरह अपने अस्तित्व का परिचय देकर समाप्त हो जाते हैं। सर्वोदय जैसे उत्साहवर्धक आंदोलन दम तोड़ गये। कुरीति निवारण में आर्यसमाज को कितनी सफलता मिली? नशा निवारण और भ्रष्टाचार उन्मूलन के काम करने वाले संगठन कितने सफल हो रहे हैं? यह उन्हीं से उन्हीं के मुँह- से कच्चा चिट्ठा पूछकर भली- भाँति जाना जा सकता है। धर्मोपदेशक और कथा कीर्तनकारों के बूते भी एक प्रकार का विनोद मनोरंजन ही बन पड़ता है। अनाथालयों, नारी ग्रहों, भिक्षुक ग्रहों, अपंग आश्रमों, गौशाला में कितनों की, कितनों को, कितनी- कितनी राहत मिली, इसका पर्यवेक्षण बताता है कि सारा आवा ही बिगड़ गया। पूरे कुएँ में भाँग पड़ गई, जो सुधार का जिम्मा उठाते हैं, वे अधिकारी भी दूध के धुले कहाँ है? पक्षपात और भ्रष्टाचार को कहाँ प्रश्रय नहीं मिल रहा है? ऐसी दशा में हर विचारशील की आँखों के आगे अँधेरा छाता है और लगता है कि बुरे दिन तेजी से बढ़ते आ रहे हैं। रोकथाम करने वाले प्रयत्न दूसरों को उत्साह दिलाते हैं, पर स्वयं निराशा से ही ग्रसित रहते हैं।
कुछ कुचक्री और स्वेच्छाचारी दोनों हाथों से दौलत भी बटोर रहे हैं, किन्तु वे भी ईर्ष्यालुओं, अपराधियों और रिश्वत माँगने वालों से हैरान ही बने रहते हैं। खोटी कमाई इस हाथ आकर दुर्व्यसनों में उस हाथ फुलझड़ी की तरह जल जाती है।
यह अत्युक्तिवादी कल्पना चित्र नहीं है। आँख उठाकर इर्द- गिर्द देखने पर दृष्टिगोचर होने वाला वातावरण है। इसके प्रमाण परिचय कहीं भी, कभी भी मिल सकते हैं। चिन्ता की बात अनर्थों का- संकटों का बढ़ना तो है ही, पर उससे भी अधिक हैरानी की बात यह है कि किसी क्षेत्र में कोई समाधान निकल नहीं रहे हैं। सुधारवादी प्रयास जलते तवे पर कुछ बूँदें पानी पड़ने की तरह अपने अस्तित्व का परिचय देकर समाप्त हो जाते हैं। सर्वोदय जैसे उत्साहवर्धक आंदोलन दम तोड़ गये। कुरीति निवारण में आर्यसमाज को कितनी सफलता मिली? नशा निवारण और भ्रष्टाचार उन्मूलन के काम करने वाले संगठन कितने सफल हो रहे हैं? यह उन्हीं से उन्हीं के मुँह- से कच्चा चिट्ठा पूछकर भली- भाँति जाना जा सकता है। धर्मोपदेशक और कथा कीर्तनकारों के बूते भी एक प्रकार का विनोद मनोरंजन ही बन पड़ता है। अनाथालयों, नारी ग्रहों, भिक्षुक ग्रहों, अपंग आश्रमों, गौशाला में कितनों की, कितनों को, कितनी- कितनी राहत मिली, इसका पर्यवेक्षण बताता है कि सारा आवा ही बिगड़ गया। पूरे कुएँ में भाँग पड़ गई, जो सुधार का जिम्मा उठाते हैं, वे अधिकारी भी दूध के धुले कहाँ है? पक्षपात और भ्रष्टाचार को कहाँ प्रश्रय नहीं मिल रहा है? ऐसी दशा में हर विचारशील की आँखों के आगे अँधेरा छाता है और लगता है कि बुरे दिन तेजी से बढ़ते आ रहे हैं। रोकथाम करने वाले प्रयत्न दूसरों को उत्साह दिलाते हैं, पर स्वयं निराशा से ही ग्रसित रहते हैं।