Friday 01, November 2024
कृष्ण पक्ष अमावस्या, कार्तिक 2081
पंचांग 01/11/2024 • November 01, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | अमावस्या तिथि 06:16 PM तक उपरांत प्रतिपदा | नक्षत्र स्वाति 03:31 AM तक उपरांत विशाखा | प्रीति योग 10:40 AM तक, उसके बाद आयुष्मान योग | करण नाग 06:17 PM तक, बाद किस्तुघन |
नवम्बर 01 शुक्रवार को राहु 10:39 AM से 12:00 PM तक है | चन्द्रमा तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:35 AM सूर्यास्त 5:26 PM चन्द्रोदय 6:11 AM चन्द्रास्त 5:14 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष अमावस्या - Oct 31 03:53 PM – Nov 01 06:16 PM
- शुक्ल पक्ष प्रतिपदा - Nov 01 06:16 PM – Nov 02 08:22 PM
नक्षत्र
- स्वाति - Nov 01 12:44 AM – Nov 02 03:31 AM
- विशाखा - Nov 02 03:31 AM – Nov 03 05:58 AM
कठिनाईयां आपकी सहायक भी तो है।
जीवन-यज्ञ.mp4
गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 01 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
एक आदमी कमाए सब बैठ कर खाएं यह बुरी बात है।हर आदमी को आप स्वावलंबन क्यों नहीं सिखा सकते है।आप आपको तो परिवार का पोषण इसलिए भारी पड़ रहा है कि आप अकेले कमा कर के और सबको बैठकर खिलाना चाहते हैं सबको निकम्मा बनाना चाहते हैं अगर सारे कुटुंबियों को जो छोटे बच्चों को छोड़कर के जो समर्थ व्यक्ति हैं किसी न किसी तरीके से किसी काम में लगाए रखने की बात को आप विचार कर ले तो आपको कुटुंब पालन में क्या दिक्कत पड़ सकती है। कुटुंब परिवार आपका भारी क्यों पड़ना चाहिए। आपको पेट भरने में दिक्कत क्यों होनी चाहिए आप औसत नागरिक भारतीय की तरीके से अगर जिंदगी जियें और किफायतचारी से रहें तो आप यकीन रखिए तो आप थोड़े में बहुत गुजारा कर सकते हैं और आपको सारी मुसीबतों से बड़ी आसानी के साथ में बचाव होना संभव है भगवान के काम करने के लिए तो आपको ढेरों के ढेरों समय मिलने चाहिए आपको अगर कोई पुरानी स्थाई आमदनी नहीं है तो आठ घंटे की मेहनत और मशक्कत करने के बाद में आपका गुजारा भली तरीके से हो जाना चाहिए
अखण्ड-ज्योति से
मानव-जीवन संघर्षपूर्ण है। जीवन में नित्य ही नये-नये उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ता है। सुख-दुःख, लाभ-हानि, प्रसन्नता-शोक, जन्म-मरण, आदि द्वन्द्व जीवन में आते-जाते रहते है। लेकिन हम केवल सुख, प्रसन्नता, लाभ, सफलता की ही आकाँक्षा रखते हैं। इसके विपरीत दुःख, कठिनाईयाँ, परेशानियाँ, समस्याओं से हम कतराते हैं। उनसे घबराकर उनकी कल्पना भी जीवन में नहीं करना चाहते, किन्तु हममें से प्रत्येक को अपनी इच्छा के विरुद्ध भी जीवन में इनका सामना करना ही पड़ता है।
उस स्थिति में हममें से बहुत से रोने लगते हैं जो इन कठिनाईयों को ही अपने विकास, उत्थान, महानता तथा प्रगति का साधन बना लेते हैं। महर्षि व्यास ने कहा है - “क्षुद्रमना लोग ही दुःख के वशीभूत होकर अपना तप-तेज, शक्ति को नष्ट कर लेते हैं। किन्तु पुरुषार्थी, महामना लोग कष्टों को भी अपनी सफलता और विकास का आधार बना लेते हैं।”
रोना-धोना, शोक करना, चिन्ता, विषाद में खिन्न हो बैठना, हार मान लेना, कठिनाइयों, दुःखों का कोई समाधान नहीं है। ऐसी स्थिति में तो कठिनाइयाँ सुरसा की तरह बढ़कर समस्त जीवन को ही छिन्न-भिन्न कर देती हैं। यह भी निश्चित है जीवन के साथ दुःख और कठिनाइयाँ सदैव रहे हैं और रहेंगे। इनसे कभी छुटकारा नहीं पाया जाता है। उपनिषद्कार ने कहा है “न ह वै सशरीरस्य सतः प्रियाप्रिययोर पद्धति रस्ति।” (छान्दोग्य) निश्चय ही जब तक यह शरीर बना हुआ है तब तक सुख और दुःख निवारण नहीं हो सकता। कठिनाइयाँ, जीवन का उसी तरह एक अनिवार्य अंग है जिस तरह रात्रि का होना, ऋतुओं का बदलते रहना।
अतः आवश्यकता इस बात की है कि कठिनाइयों के रहते हुए भी आगे बढ़ा जाये। इन्हें जीवन को विकसित और महान् बनाने का आधार क्यों न बना लिया जाय? हार मान बैठने पर तो ये हमें मटियामेट ही कर देंगी।
दृढ़ साहस निष्ठा से काम लेने पर, अविचल भाव से अपने पथ पर बढ़ते रहने से ये समस्यायें ही मनुष्य की सहायक और सहयोगी बन जाती हैं। स्मरण रखिये उन्नति एवं सफलता का मार्ग कष्ट एवं मुसीबतों के कंकड़-पत्थरों से ही बना है। प्रत्येक महान् बनने वाले व्यक्ति को इसी मार्ग का अवलम्बन लेना पड़ता है। जिस तरह विष को शुद्ध करके अमृत के गुण प्राप्त कर लिये जाते हैं उसी प्रकार कठिनाइयों का भी शोधन कर इन्हें आत्मोत्थान का आधार बनाया जा सकता है।
कठिनाइयाँ एक रूप में उस स्थिति का नाम हैं जहाँ मनुष्य अपना पूरा-पूरा समाधान प्राप्त नहीं कर पाता। ‘क्या करूं? क्या न करूं’ का निर्णय नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में एक रास्ता तो उन लोगों का है जो रो-रोकर, शोक करके, चिन्ता विषाद में डूब कर अपना समय बिताते हैं। दूसरे प्रकार के व्यक्ति वे होते हैं जो समस्या के समाधान में अधिक मनोयोगपूर्वक विचारमग्न होते हैं। समाधान जल्दी ही मिले इसके लिये व्यस्त रहते हैं। यही मार्ग उत्तम है। कठिनाइयों में रोने के बजाय उनके समाधान का मार्ग ढूँढ़ना ही रोग का सही इलाज है। रोगी को औषधि न देकर, उसके इलाज की व्यवस्था न करके रोग और रोगी के लिये रोते रहने से तो संकट बढ़ेगा ही। इसलिये कष्ट के वक्त अपने समस्त बुद्धि, विवेक, और प्रयत्नों को, इनके हल करने में लगा देना चाहिये। इससे तीन लाभ होंगे।
(1) जब समस्त शक्तियाँ एकाग्र होकर किसी क्षेत्र में काम करेंगी तो सन्तोषजनक समाधान भी मिलेगा।
(2) साथ-ही शक्तियाँ अधिक सूक्ष्म और विकसित होंगी। (3) बुद्धि, विवेक, अनुभव, बढ़ेंगे। मनुष्य के व्यस्त रहने से कठिनाइयों के प्रति शोक, चिन्ता, एवं उद्विग्नता में डूबने के लिए कोई समय ही नहीं मिलेगा। स्वामी विवेकानन्द ने लिखा है - “व्यस्त मनुष्य को आँसू बहाने के लिये समय नहीं रहता।”
... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, जनवरी 1964
मानव-जीवन भगवान् की दी हुई सर्वोत्तम विभूति है। इससे बड़ा वरदान और कुछ हो ही नहीं सकता। सृष्टि के समस्त प्राणियों को जैसे शरीर मिले हैं, जैसे सुविधा साधन प्राप्त हैं। उनकी तुलना में मनुष्य की स्थिति असंख्यों गुनी श्रेष्ठ है। दूसरे जीवों का सारा समय और श्रम केवल शरीर रक्षा में ही लग जाता है। फिर भी वे ठीक तरह उस समस्या को हल नहीं कर पाते इसके विपरीत मनुष्य को ऐसा अद्भुत शरीर मिला है जिसकी प्रत्येक इन्द्रिय आनन्द और उल्लास से भरी पूरी है, उसे ऐसा मन मिला है जो पग-पग पर हर्षोल्लास का लाभ ले सकता है। उसे ऐसी बुद्धि मिली है जो साधारण पदार्थों से अपनी सुख सुविधा के साधन विनिर्मित कर सकती है। मानव-प्राणी को जैसा परिवार, समाज साहित्य तथा सुख सुविधाओं से भरा पूरा वातावरण मिला है वैसा और किसी जीव का प्राप्त नहीं हो सकता।
इतना बड़ा सौभाग्य उसे अकारण ही नहीं मिला है। भगवान की इच्छा है कि मनुष्य उसकी इस सृष्टि को अधिक सुन्दर, अधिक सुखी, अधिक समृद्ध और अधिक समुचित बनाने में उसका हाथ बंटाये। अपनी बुद्धि, क्षमता और विशेषता से अन्य पिछड़े हुये जीवों की सुविधा को सृजन करे और परस्पर इस तरह का सद्व्यवहार बरते जिससे इस संसार में सर्वत्र स्वर्गीय वातावरण दृष्टिगोचर होने लगे।
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