Saturday 02, November 2024
शुक्ल पक्ष प्रथमा, कार्तिक 2081
पंचांग 02/11/2024 • November 02, 2024
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | प्रतिपदा तिथि 08:22 PM तक उपरांत द्वितीया | नक्षत्र विशाखा 05:58 AM तक उपरांत अनुराधा | आयुष्मान योग 11:18 AM तक, उसके बाद सौभाग्य योग | करण किस्तुघन 07:22 AM तक, बाद बव 08:22 PM तक, बाद बालव |
नवम्बर 02 शनिवार को राहु 09:18 AM से 10:39 AM तक है | 11:23 PM तक चन्द्रमा तुला उपरांत वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:36 AM सूर्यास्त 5:25 PM चन्द्रोदय 7:08 AM चन्द्रास्त 5:46 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- शुक्ल पक्ष प्रतिपदा - Nov 01 06:16 PM – Nov 02 08:22 PM
- शुक्ल पक्ष द्वितीया - Nov 02 08:22 PM – Nov 03 10:05 PM
नक्षत्र
- विशाखा - Nov 02 03:31 AM – Nov 03 05:58 AM
- अनुराधा - Nov 03 05:58 AM – Nov 04 08:04 AM
आत्मविश्वास कैसे बढ़ाएं
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आप सभी को गोवर्धन पूजा की हार्दिक मंगलकामनाएँ
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!! आज के दिव्य दर्शन 02 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
Aap Tirth Yatra Kijiye |
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
Aap Tirth Yatra Kijiye
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
काम करने के घंटे आठ घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए आठ घंटा अंतर्राष्ट्रीय शारीरिक श्रम आजीविका के लिए निर्धारण अगर आदमी मेहनत और ईमानदारी के साथ काम करें तो आठ घंटे में गुजारा कर सकता है फिर इसके बाद में सात घंटे सोने को मान लीजिए और आठ घंटा काम करने के लिए पंद्रह घंटे हुए पांच घंटे आप फालतू कामों के लिए रखिए शौच स्नान और खाने में क्या देर लगती है एक घंटा मानिए सवेरे का एक शाम का मान लीजिए यह तो काम दैनिक जरूरतों में और कौन सी है और जरा बताना दो ही तीन तो काम है टट्टी जाना नहाना रोटी खाना यह इन कामों में एक-एक घंटा दो बार के लिए मान ले तो दो घंटे हो गए तीन घंटे और फालतू कामों के लिए रख लीजिए। कभी क्या कभी क्या कभी क्या इस तरीके से पांच घंटे आप दैनिक कार्यों में लगाने के बाद में आपको कुल मिलाकर के बीस घंटे अपने दैनिक कामों में और पारिवारिक कामों में खर्च करने के लिए काफी होने चाहिए।इसके बाद में जो आपके पास चार घंटे बचते हैं आप भगवान के कामों को कर सकते हैं जिससे कि आपकी जिंदगी सार्थक मानी जा सके |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
आज का संसार अन्धविश्वासों और मूढ़ मान्यताओं की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। इन जंजीरों से जकड़े हुए लोगों की दयनीय स्थिति पर मुझे तरस आता है। एक विचार जो मुझे दिन में निकले सूरज की तरह स्पष्ट दिखाई दे रहा है, वह यह है कि- व्यक्ति तथा समाज के समस्त दुःख उनमें समाये हुए अज्ञान के कारण ही हैं। अज्ञान का अन्धकार मिटे बिना सब लोग ऐसे ही भटकते और ठोकरें खाते रहेंगे।
संसार में प्रकाश कहाँ से उत्पन्न हो? यह प्रक्रिया बलिदानों द्वारा सम्भव होती रही है। बलिदानी वीर अपना उदाहरण प्रस्तुत कर लोगों के सामने एक परम्परा उपस्थित करते हैं, फिर दूसरे उन पदचिन्हों पर चलने लगते हैं। प्रकाश उत्पन्न करने की यही परम्परा अनादि काल से चली आ रही है। इस धरती पर जो सच्चे शूरवीर अथवा उत्तम व्यक्ति उत्पन्न होते रहे हैं उन्होंने त्याग और बलिदान का मार्ग ही अपनाया है क्योंकि अपने सुख को बलिदान करने से ही दूसरे के सुख की सम्भावना उत्पन्न होती है। इस युग में शाश्वत प्रेम और अनन्त करुणा से भरे प्रबुद्ध हृदयों की जितनी अधिक आवश्यकता है, उतनी पहले कभी नहीं रही। साहसपूर्ण कदम उठाने की आज जितनी आवश्यकता है उतनी पहले कभी नहीं रही।
इसलिये ए, प्रबुद्ध आत्माओ! उठो, संसार दुःख दारिद्रय की ज्वाला में झुलस रहा है। क्या तुम्हें ऐसे समय में भी सोते रहना शोभा दे सकता है? प्रकाश आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है और वह तुम्हारे जागरण एवं बलिदान ये ही उत्पन्न होगा।
स्वामी विवेकानन्द
कठिनाइयाँ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति सुदृढ़, प्रबुद्ध एवं अनुभवी बनता है। प्रारंभिक कठिनाइयाँ मनुष्य को बहुत ही भयंकर जान पड़ती हैं। किन्तु धीरे-धीरे वही व्यक्ति कठिनाइयों में पलते-पलते इतना दृढ़ एवं परिपक्व हो जाता है कि जिन स्थितियों में वह भयभीत रहा करता था चिन्ता और विवाद में डूबा रहता था उन्हीं स्थितियों में वह बेधड़क हो जीवनपथ पर चलने लगता है।
आप कठिन परिस्थितियों से घबरावें नहीं न इनसे शोकातुर ही हों। ये तो आप के जीवन को विकसित और परिपुष्ट बनाने के लिये आती हैं। सोना तपकर ही निखरता है। इसी तरह मनुष्य का जीवन भी कठिनाइयों में पलकर ही खिलता है।
कठिनाइयाँ जीवन की कसौटी हैं, जिनमें हमारे आदर्श, नैतिकता एवं शक्तियों का मूल्याँकन होता है। दुःख और कठिनाइयाँ ही जीवन का एक ऐसा अवसर हैं जिसमें मनुष्य अपने आन्तरिक जीवन की ओर अभिमुख होता है। विपत्तियों में ही मनुष्य अपने जीवन, जगत, प्रकृति, आत्मा परमात्मा के बारे में सोचने को बाध्य होता है। सुखद् परिस्थितियों में और तो और मनुष्य अपना आपा भी भूल जाता है। नैतिकता, धर्म, ईश्वर आदर्शों के प्रति उदासीन हो जाता है। सुख की मादक मस्ती में मनुष्य के बुद्धि, विवेक, विचारशीलता नीति एवं सदाचार तिरोहित हो जाते हैं। इसलिये महाभारत में वेद-व्यासजी ने लिखा है “दुःख में ही दुःखियों के प्रति हमदर्दी पैदा होती है और मनुष्य भगवान का चिन्तन करता है। सुख में मनुष्य का हृदय संवेदना रहित कठोर बन जाता है और मनुष्य ईश्वर को भूल जाता है।” दुखों में ही अपने भले-बुरे विचार सकने का विवेक पैदा होता है। रहीम जी ने कहा है-
रहिमन विपदाहू भली जो थोड़ दिन होय।
हित अनहित या जगत में जान परत सब कोय॥
जब मनुष्य सुख की नींद में सोया रहता है तो और तो और अपने जीवन के शाश्वत लाभ तथा संसार में अपने कर्त्तव्य को भूला रहता है। किन्तु दुःख का झटका उसे इस नींद से जगाता है और मनुष्य को क्या करना है, वह किस लिये आया है, संसार में उसका क्या कर्त्तव्य धर्म है इसका पाठ मजबूरन सिखाता है। दुःख के झकझोर डालने पर जब हम अपने ध्येय और कर्त्तव्य में एकाग्र होकर लग जाते हैं, जीवन को सक्रिय बना लेते हैं तो वही दुःख कालान्तर में सुखद परिणाम लेकर आता है। आन्तरिक बाह्य जीवन में सुख का संचार होता है। दुःख, सुखों का सन्देश लेकर आता है यह कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
हम व्यर्थ ही दुखों में रोते हैं। अपने भाग्य या ईश्वर को कोसते हैं। दुःख तो प्रकृति माता की वह प्रक्रिया है ईश्वर का वह वरदान है जिसमें हम सचेष्ट होते हैं, जीवन की शक्तियों को उपयोग में लाते हैं और इससे हमारे सुन्दर और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण होता है।
सुख को हम प्यार करते हैं किन्तु दुःख में रोते हैं चिंता, शोक, में डूब जाते हैं। यह हमारे एकाँगी दृष्टिकोण और अज्ञान का परिणाम है। सुख की तरह ही दुःख भी जीवन का अभिन्न पहलू है। यदि दुःख न रहें तो हम सुख से ऊब जायेंगे। सुख के मादक नशे में एक दूसरे का नाश कर लेंगे। इतना ही नहीं हम सुख का मूल्य ही नहीं समझ सकेंगे। रात्रि के अस्तित्व में ही दिन का जीवन है। रात्रि न हो तो दिन महत्वहीन हो जायेगा। जिस तरह रात और दिन एक ही काल के दो पहलू हैं उसी तरह सुख दुःख भी हमारे जीवन के दो पहलू हैं। जिस तरह रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती है उसी तरह दुःख के बाद सुख और सुख के बाद दुःख का क्रम चलता ही रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि सुख की तरह ही हम दुःख का भी स्वागत कर, उसमें शान्तमना, स्थिर, दृढ़ रहकर अपने कर्त्तव्य में लगे रहें।
स्मरण रखिये जीवन के शाश्वत मूल्यों को समझ लेने पर, कर्तव्य में जुट आने पर कठिनाई दुःख नाम की कोई वस्तु शेष नहीं रहती। सदा से धरती पर दुःख, द्वन्द्व, शोक है और आयेंगे। इनका सर्वथा निवारण नहीं हो सकता अतः इनमें रोने और शोक करने से, चिन्ता विषाद में डूबने से तो जीवन को पूर्ण विराम ही लग जायेगा। अतः हमें इन्हीं में आगे बढ़ना होगा।
.... समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, जनवरी 1964
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