Monday 04, November 2024
शुक्ल पक्ष तृतीया, कार्तिक 2081
पंचांग 04/11/2024 • November 04, 2024
कार्तिक शुक्ल पक्ष तृतीया, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | तृतीया तिथि 11:24 PM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र अनुराधा 08:04 AM तक उपरांत ज्येष्ठा | शोभन योग 11:43 AM तक, उसके बाद अतिगण्ड योग | करण तैतिल 10:48 AM तक, बाद गर 11:24 PM तक, बाद वणिज |
नवम्बर 04 सोमवार को राहु 07:58 AM से 09:19 AM तक है | चन्द्रमा वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:38 AM सूर्यास्त 5:23 PM चन्द्रोदय 9:06 AM चन्द्रास्त 7:09 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- शुक्ल पक्ष तृतीया - Nov 03 10:05 PM – Nov 04 11:24 PM
- शुक्ल पक्ष चतुर्थी - Nov 04 11:24 PM – Nov 06 12:17 AM
नक्षत्र
- अनुराधा - Nov 03 05:58 AM – Nov 04 08:04 AM
- ज्येष्ठा - Nov 04 08:04 AM – Nov 05 09:45 AM
अखंड ज्योति की प्रथम अंक की कथा गाथा |
अभिमन्यु के यशगान की विजय गाथा |
प्रभु की शरण में
तीर्थ प्रक्रिया प्राणवान बने |
कारण शरीर का उत्कर्ष भक्तियोग से |
आज की महाभारत मन की असुरता
परम पूज्य गुरुदेव का अन्तिम सन्देश |
परम वंदनीया माताजी का अंतिम संदेश
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 04 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
समय की स्थिति का संयम
हम इस युग के नारद हैं |
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
व्यायाम करने वाले लोग पहलवान लोग अपने व्यायाम करने के लिए सवेरे का प्रातःकाल का ही समय निर्धारित करते हैं अखाड़े में चले जाते हैं सवेरे सुबह जल्दी उठते हैं और व्यायाम करना शुरू करते हैं आपने कोई भी ऐसा पहलवान दुनिया में देखा ना होगा जो नौ बजे तक सोया रहता हो या साढ़े नौ बजे उठता हो टट्टी जाता हो दोपहर को 11 बजे दंड बैठक करता हो और बारह एक दो बजे से बैठक करता हो ऐसा कहीं देखा है कहीं नहीं होता है ऐसा अगर कोई पहलवान पहलवानी करना चाहेगा तो उसको कभी भी सफलता नहीं मिलेगी यही बात विद्या अध्ययन के संबंध में कई विद्यार्थी ऐसे भी होते हैं जो सवेरे नौ बजे तक आठ बजे तक सोया करते हैं और रात को बारह बजे तक पढ़ते रहते हैं ऐसे विद्यार्थियों के मस्तिष्क पर कितना दबाव पड़ता है और सफलता कम मिलती है उसका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है उन लोगों के साथ जो सवेरे जल्दी उठते हैं और शाम को जल्दी सो जाते हैं थका हुआ मस्तिष्क उतना अच्छा काम नहीं कर सकता जितना कि विश्राम लिया हुआ विश्राम के विश्राम में केवल निद्रा ही काफी नहीं है बल्कि समय की समय की स्थिति का संयम भी होना चाहिए |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
संसार में साधन कम नहीं हैं। अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, कनाडा आदि देशों में इतनी फालतू और बेकार जमीन पड़ी है कि उस पर भारत और चीन घने देशों की आबादी को बसा कर सबके लिए प्रचुर सुख-साधन जुटाये जा सकते हैं, जितना धन, जितना साधन संसार में है उसे मिल-बाँटकर खाया जाय तो हर मनुष्य बीमारी, बेकारी, अशिक्षाजन्य कठिनाइयों से मुक्ति पा सकता है। जो विज्ञानी मस्तिष्क अणु आयुध और विघातक गैसें और भी न जाने क्या-क्या बना रहे हैं वे समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने जैसे कार्यों में जुट जाय तो इस धरती पर स्वर्गीय परिस्थितियाँ हँसती-खेलती दिखाई पड़े और हम सब नन्दन वन में रह रहे हों।
एक-दूसरे को गिराने में, शोषण और दोहन में हमारी जो दुरभिसन्धियाँ निरन्तर क्रियान्वित रहती हैं। यदि वे उलट जायें और परस्पर सहयोग प्रदान करने-ऊँचा उठाने में लग जायें तो उससे सभी को राहत मिले। घृणा, द्वेष, प्रतिशोध के स्थान पर स्नेह, सौजन्य बिखर पड़े और दुनिया कितनी सुन्दर, सुहावनी बन जाय, हर व्यक्ति के इर्द-गिर्द हर्षोल्लास का वातावरण बिखरा दिखाई पड़ने लगें।
स्वर्ग जैसी समस्त सम्भावनाओं के रहते हुए भी अपनी दुनिया नारकीय यातनाओं में जल-भुन रही है इसके ऊपर कारण तो पेड़ पर लगे अनेक पत्तों की तरह अलग-अलग दिखाई पड़ सकते हैं पर विचारवान देख सकते हैं कि यह विष वृक्ष जिन गहरी जड़ों के कारण फल-फूल रहा है, वह हर क्षेत्र में छाया हुआ अज्ञान, अनाचार ही है। आदमी का सोचने का तरीका यदि बदला जा सका होता तो उसका परिणाम उससे सर्वथा विपरीत होता, जो आज हमारे सामने है। हर उलझी समस्या का-हर विपत्ति और दुर्गति का एक ही कारण है भ्रष्ट चिन्तन और तज्जनित दुष्ट कर्तव्य। इसका मूल्योच्छेदन किये बिना अन्याय उपायों से सुधार की-प्रगति की बाल-क्रीड़ा ही होती रहेगी पर बनेगा कुछ नहीं।
पेड़ मुरझा रहा है तो पत्ते छिड़कने से नहीं जड़ सींचने से काम चलेगा। चेचक की हर फुन्सी पर अलग-अलग पट्टी नहीं बंध सकती रक्त शोधक दवा से ही उसकी जड़ कटेगी। मनुष्य और समाज के सामने आज अगणित समस्यायें हैं, पर वे उत्पन्न एक ही कारण से हुई हैं और उनका निवारण भी एक ही केन्द्र से सम्बद्ध है। ताले के हर पुर्जे की तोड़-फोड़ जरूरी नहीं। ताली घुमाने से वे सभी घूम जायेंगे और ताला खुल जायेगा। शरीर गत रुग्णता, मनोगत उद्विग्नता, आर्थिक क्षेत्र की तंगी, अपराधों का आतंक, क्लेश, विग्रह, अशिक्षा, बेकारी, पिछड़ापन, पीड़ा आदि जो कुछ जहाँ कहीं भी अशुभ दिखाई पड़े समझना चाहिए यह सारा दावानल अवांछनीय चिन्तन की चिनगारी का उत्पन्न किया परिवार है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, मार्च 1975
अखण्ड ज्योति ने अपनी प्रिय परिजनों को सदा से यह कहा है- लोग बड़े निकम्मे हैं- लोक-प्रवाह पतन और नरक की दिशा में बह रहा है। तुम इनके साथ मत चलो-इनके प्रवाह में मत बहो- इनकी सलाह मत मानो अन्यथा इनके साथ-साथ तुम भी उस गर्त में औंधे मुँह गिरोगे जिसमें से उबरना अति कठिन है। लोग प्रशंसा करें तो समझना तुम किसी निन्दनीय आधार को पकड़े खड़े हो। लोग उपहास उड़ायें तो समझना, तुमने विवेकशीलता का परिचय देना आरम्भ कर दिया। मछली जल की धारा चीरकर उलटी चलने का साहस करती है तुम लोक-प्रवाह से-उलटे वही। अपना आदर्श उपस्थित करो और प्रकाश स्तम्भ बनो। माया और भ्रांति का सबसे बड़ा लक्षण ग्रह है कि मनुष्य लोगों का मुँह तके- उनसे प्रशंसा सुनने की आशा करे। लोगों ने कभी किसी को अच्छी सलाह नहीं दी। किसी के स्वजन सम्बन्धी कदाचित ही किसी को महान बनने का परामर्श देते हों। उनको बड़प्पन पसन्द है, भले ही वह कितने ही अवाँछनीय तरीकों से उपार्जित क्यों न किया गया हो जिसे ‘महान’ बनना है उसे पहला कदम यहाँ से उठाना पड़ेगा कि अपनी अन्तरात्मा को-अपने भगवान को और आदर्शवादी परम्पराओं के परामर्श को पर्याप्त मानें। जहाँ यह तीनों मिल सकें वहाँ फिर लोगों की सलाह को सर्वथा उपेक्षित करने का साहस सँजोलें। इन दिनों इससे कम में कोई सच्चा आध्यात्मवादी नहीं बन सकता। आत्मबल का अर्थ है- दिव्य प्रयोजनों के लिए बढ़ चलने के समस्त अवरोधों को कुचल सकने वाला प्रचण्ड शौर्य और अटूट साहस। हमें आत्मबल सलाह करना चाहिए और देव-मानव की भूमिका सम्पादित करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए।
प्रसन्नता की बात है कि विचारशील वर्ग द्वारा सैद्धान्तिक रूप से इसे सही माना गया। प्रतिपादन की यथार्थता को सराहा गया। इस पसन्दगी और समर्थन का ही प्रभाव है कि अखण्ड ज्योति इतनी बड़ी संख्या में लोकप्रिय हो सकी और उसकी अनुवाद रूप में अँग्रेजी, गुजराती, मराठी, उड़िया आदि भाषाओं में दूसरी पत्रिकाएँ, प्रकाशित करनी पड़ी। लाखों व्यक्ति अपने को युग-निर्माण मिशन का अनुयायी कहने लगे।
सफलता का प्रथम चरण समर्थन के रूप में सामने आया यह सन्तोष की बात है, पर इससे कुछ अधिक प्रयोजन सिद्ध न होगा। बात तब बनेगी जब लोग उस राह पर चलना आरम्भ करें। कुछ आध्यात्मवादी आगे आयें और बतायें कि इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाले देव मानव आखिर होते कैसे है। इस जीवन्त प्रतिभाओं के दर्शन करके ही लोग गहरी प्रेरणा प्राप्त करेंगे और उनके सान्निध्य में आकर अपने को उस साँचे में ढालने का प्रयत्न करेंगे। समर्थन को साकार होने के लिए आवश्यक है कि उस महान आदर्श को लोग अपने व्यवहार में उतारें और प्रेरणा की प्रत्यक्ष प्रतिमा बनकर दूसरों को अनुगमन का साहस प्रदान करें।
स्वजनों ने इस दिशा में कुछ-कुछ साहस भी किया है। न किया होता तो इतना बड़ा संगठन और उसकी उत्साहवर्धक गतिविधियाँ कैसे चल सकी होती। यदाकदा थोड़ा समय और थोड़ा पैसा खर्च कर देने से भी बूँद-बूँद घट भरता है और उस सम्मिलित प्रयास के फलस्वरूप कुछ न कुछ हलचल पैदा होती है। अभी उतना ही होता रहा है। ऐसे साहसी लोग उँगलियों गिनने जितने ही आगे आये हैं और अपने को लोभ, मोह की गहरी दलदल में से निकाल कर अपनी आन्तरिक विभूतियों और भौतिक सम्पत्तियों का इतना अंश आदर्श निष्ठा के लिए समर्पित कर सके जिससे उनकी साहसिकता सिद्ध होती है - जिसे देखकर दूसरों में अनुगमन की प्रेरणा दे सकने वाला प्रकाश उत्पन्न हो सके।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, फरवरी 1975
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