Wednesday 06, November 2024
शुक्ल पक्ष पंचमी, कार्तिक 2024
कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081,
शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर),
कार्तिक | पंचमी तिथि 12:41 AM तक उपरांत षष्ठी |
नक्षत्र मूल 11:00 AM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा |
सुकर्मा योग 10:50 AM तक, उसके बाद धृति योग |
करण बव 12:33 PM तक,बाद बालव 12:41 AM तक,
बाद कौलव | नवम्बर 06 बुधवार को राहु 12:00 PM से
01:21 PM तक है | चन्द्रमा धनु राशि पर संचार करेग
विक्रम संवत - 2081, पिंगल
शक सम्वत - 1946, क्रोधी
पूर्णिमांत - कार्तिक
अमांत - कार्तिक
तिथि
शुक्ल पक्ष पंचमी - Nov 06 12:17 AM – Nov 07 12:41 AM
शुक्ल पक्ष षष्ठी - Nov 07 12:41 AM – Nov 08 12:35 AM
नक्षत्र
मूल - Nov 05 09:45 AM – Nov 06 11:00 AM
पूर्वाषाढ़ा - Nov 06 11:00 AM – Nov 07 11:47 AM
जेवर बनवाने का प्रचलन कितना उचित है?
विचारों की प्रचंड शक्ति |
आप सभी को छठ महापर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
आप सभी को छठ महापर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
काँच ही बँस के बहँगिया, बहँगी लचकल जाए |
कर्मफल हमें काटना ही पड़ता है |
Book: 05, EP: 07, प्रत्येक परिस्थिति में आगे बढिए |
किसी परिस्थिति में विचलित न हों |
नवयुग की दिशाएँ |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 06 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
प्रातःकाल की वायु में अमृत होता हैं |
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
संयमी लोग और ब्रह्मचारी लोग हमेशा इस नियम का पालन करते रहे हैं कि रात्रि को जल्दी सोए जल्दी अगर सोएंगे तो उनको विषय विकारों से बचे रहने का बहुत मौका मिल जाएगा अगर उनको रात्रि में बहुत देर तक जागने की आदत है तो अपनी कामोत्ते जना और दूसरी बातों के लिए अधिक गुंजाइश और संभावनाएं रहेंगी यही बात प्रातःकाल के संबंध में हैं जो आदमी जल्दी सोएंगे वह प्रातःकाल जल्दी उठेंगे और जो जल्दी उठेंगे वो अपनी इन जाग्रत स्थिति का ही लाभ नहीं उठाएंगे बल्कि उस वातावरण का भी लाभ उठाएंगे जिसमें कि अमृत भरा होता है कुछ प्रकृति के ऐसे रहस्य हैं प्रातःकाल की वायु जो सुखद उल्लास और अपने भीतर अमृत भर के लाती है जो आदमी को जीवन में कितना आनंद से विभोर कर देती है और भी जो कुछ भी महत्वपूर्ण कार्य हैं वो सवेरे के ही समय अच्छे हो जाते हैंऔर अच्छे किए जा सकते हैं पूजा आपका आसन योगाभ्यास और तपश्चर्या इनके लिए एक निर्धारित और निश्चित समय प्रातःकाल का ही है अगर प्रातःकाल पूजा की जाए धर्म किया जाए तो मन लगेगा प्रातःकाल नहीं किया जाए उसका मन नहीं लगेगा |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
व्यक्ति लगता तो अपने में स्वतन्त्र है, पर वस्तुतः वह समष्टि का एक अवयव मात्र है। व्यक्ति के स्तर और कर्म से समूचा समाज प्रभावित होता है। इसी प्रकार समाज का वातावरण हर व्यक्ति को प्रभावित होता है इसी प्रकार समाज का वातावरण हर व्यक्ति को प्रभावित करके रहता है। दानों का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। दोनों का उत्थान और पतन एक दूसरे के सहयोग पर निर्भर रहता है।
व्यक्ति अपनी सुविधा और प्रगति की बात सोचे-इसमें हर्ज नहीं, पर जब वह समाज गत उर्त्कष एवं सामूहिक नियम अनुशासन का उल्लंन करता हे तो अनपे और समाज के लिए दूहरी विपत्ति खड़ी करने का कारण बनता है।
प्रकृति एक नियम है। विपत्ति एक अनुशासन है। इनमें व्यतिक्रम की छूट किसी को भी नहीं है। उच्छ्रंखलता यह असह्स हैं उद्धत आचरण अपनाने वाले आँतक उत्पन्न करते और अपरहण का प्रयास तो कई करते है, पर उसमें सफल नहीं होतें। उद्दण्डी की सफलता फुलझड़ी की तरह है, जो तनिक-सा कौतुत अपना अस्तितव गवाँ बैठने के मुल्य पर ही दिखा पाती है।
व्यक्ति का परस्पर सम्बन्ध है-शरीरगत कोश घटकों की तरह एक ही उद्दण्डतर सभी को कष्ट देती है, उसके लिए सबका प्रयत्न होना चाहिए कि किसी को एक को स्वेच्छाचार न बरतने दें। समूह जब अने इस उत्तदायित्व की उपेक्षा करता है और उच्छ्रंखलों का नियन्त्रण नहीं करता है तो प्रकृति उस समूचे क्लीव समाज को प्रताड़ना करती है। वैसी जैसी कि इन दिनों विपत्तियों, समस्याओं, विग्रहों एवं विभीषिकाओं के रुप में सर्वत्र सहन करनी पड़ रही है।
अखण्ड ज्योति, जनवरी 1980
अनादि काल से सृष्टि कर्म की धुरी में घूमती चली आ रही है। विश्व में कर्म को ही प्रधानता दी गई है, जो जैसा कार्य करता है; उसी के अनुरूप उसे फल भी भोगना पड़ता है। संसार एक कर्म भूमि है। यहाँ आकर मनुष्य जैसा बोता है उसे वैसा ही काटना पड़ता है।
अन्तःकरण रूपी खेत में विचार, बीज स्वरूप होते हैं। यही विचार अंकुरित होकर कर्मरूपी फसल का रूप धारण करते हैं। व्यक्ति जिस तरह के विचारों को मन में आश्रय देता है वे ही पुष्पित तथा पल्लवित होते रहते हैं तथा इस संसार में जो भी सुख-दुख की परिस्थितियाँ हमें दृष्टिगत होती है वह कुछ और नहीं हमारे ही बुरे या अच्छे विचारों का परिणाम होती है।
यदि कोई किसान अपने खेत में धान बोये और गेहूँ की फसल काटना चाहे तो यह उसी प्रकार असम्भव है जैसे व्यक्ति बुरे कर्म करके भगवान से यह आशा लगाये कि उसका जीवन सुखी एवं समृद्ध बने।
जीवन को श्रेष्ठ एवं समुन्नत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हम नित्यप्रति के जीवन में उच्च विचारों की दिव्य-ज्योति से अन्तःकरण को अलोकित करते रहे। मनुष्य महानता से उत्पन्न हुआ है; उसका लक्ष्य महान होना चाहिए। इसके लिए मनुष्य को कर्मरूपी गांडीव लेकर अपने मन में नित्यप्रति उत्पन्न होने वाले विकारों से युद्ध करना चाहिए और अपने को शुद्ध एवं सात्विक बनाते चलना चाहिए। शुभ कर्म तथा विचारों वह सीढ़ी है जिसका सहारा लेकर चढ़ने से मनुष्य उच्च आदर्शवादी एवं महान बन सकता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, अगस्त 1975
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