Thursday 07, November 2024
शुक्ल पक्ष षष्ठी, कार्तिक 2024
कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | षष्ठी तिथि 12:35 AM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा 11:47 AM तक उपरांत उत्तराषाढ़ा | धृति योग 09:51 AM तक, उसके बाद शूल योग | करण कौलव 12:42 PM तक, बाद तैतिल 12:35 AM तक, बाद गर |
नवम्बर 07 गुरुवार को राहु 01:21 PM से 02:41 PM तक है | 05:54 PM तक चन्द्रमा धनु उपरांत मकर राशि पर संचार करेगा |
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - कार्तिक
- शुक्ल पक्ष षष्ठी - Nov 07 12:41 AM – Nov 08 12:35 AM
- शुक्ल पक्ष सप्तमी - Nov 08 12:35 AM – Nov 08 11:56 PM
- पूर्वाषाढ़ा - Nov 06 11:00 AM – Nov 07 11:47 AM
- उत्तराषाढ़ा - Nov 07 11:47 AM – Nov 08 12:03 PM
कर्म फलों से कोई बच नही सकता |
अरे इस आसुरी संस्कृति को रोको,
अखंड ज्योति का कागज़ गुरुदेव स्वयं बनाते थे |
नव निर्माण के सपने साकार होंगे।
कर्म का फल सबको लेना पड़ता है |
ज्ञान की गरिमा का महत्व |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 07 November 2024 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 07 November 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! आज के दिव्य दर्शन 07 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्य को बुद्धिमान धनवान और शरीरवान सक्षमवान बनाता है दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं श्रेष्ठ व्यक्ति जिन्हों ने कोई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं उन्होंने एक आदत अपने भीतर डाली है सवेरे हम जल्दी उठेगें और शाम को जल्दी सोए यह आदत ऐसी है जिसे कि हम दूसरे लोगों में भी पैदा कर दें अपने अलावा तो हम उनकी बड़ी भारी सेवा कर सकते हैं समय का उपयोग समय का उपयोग सायंकाल के समय क्या हो सकता है थका आदमी सिवाय मटर गश्ती के अलावा क्या बड़ा काम कर लेगा लेकिन वह शाम को जल्दी सोगया है तो प्रातःकाल के लिए एक दिन का बड़ा ही महत्वपूर्ण समय बन जाता है मेरा स्वयं का भी ऐसा हुआ जल्दी सोने की आदत मुझे हमेशा से रही है आठ साढ़े आठ बजे सो जाता था जिस का परिणाम यह हुआ कि दो बजेतक नींद पूरी हो जाती दो बजे फिर उठने के बाद में संध्या वंदन और अपनी पूजा इत्यादि से निवृत्त होने के बादमें मैं ने जो कुछ भी लिखा है सब प्रातःकाल का लिखा है उन पर सारा जीवन व्यस्त ही व्यतीत करना पड़ा
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
अहंकार और अत्याचार संसार में आज तक किसी को बुरे कर्मफल से बचा न पाये। रावण का असुरत्व यों मिटा कि उसके सवा दो लाख सदस्यों के परिवार में दीपक जलाने वाला भी कोई न बचा। कंस, दुर्योधन, हिरण्यकशिपु की कहानियाँ पुरानी पड़ गयीं। हिटलर, सालाजार, चंगेज और सिकन्दर, नैपोलियन जैसे नर-संहारकों को किस प्रकार दुर्दिन देखने पड़े, उनके अन्त कितने भयंकर हुए, यह भी अब अतीत की गाथाओं में जा मिले हैं। नागासाकी पर बम गिराने वाले अमेरिकन वैमानिक फ्रेड ओलीपी और हिरोशिमा के विलेन (खलनायक) मेजर ईथरली का अन्त कितना बुरा हुआ, यह देखकर सुनकर सैंकड़ों लोगों ने अनुभव कर लिया कि संसार संरक्षक के बिना नहीं है। शुभ-अशुभ कर्मों का फल देने वाला न रहता होता, तो संसार में आज जो भी कुछ चहल-पहल, हंसी खुशी दिखाई दे रही है, वह कभी की नष्ट हो चुकी होती।
इन पंक्तियों में लिखी जा रही कहानी एक ऐसे खलनायक की है जिसने अपने दुष्कर्मों का बुरा अन्त अभी-अभी कुछ दिन पहले ही भोगा है। जलियावाला हत्याकाँड की जब तक याद रहेगी तब तक जनरल डायर का डरावना चेहरा भारतीय प्रजा के मस्तिष्क से न उतरेगा। पर बहुत कम लोग जानते होंगे कि डायर को भी अपनी करनी का फल वैसे ही मिला जैसे सहस्रबाहु, खर-दूषण, वृत्रासुर आदि को।
पंजाब में जन्मे, वहीं के अन्न और जल से पोषण पा कर अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में सिख धर्म में दीक्षित होकर भी जनरल डायर ने हजारों आत्माओं को निर्दोष पिसवा दिया था, उसे कौन नहीं जानता। इंग्लैंड उसकी कितनी ही प्रशंसा करता पर वह भगवान के दण्ड-विधान से उसी प्रकार नहीं बच सकता था, जैसे संसार का कोई भी व्यक्ति अपने किये हुए का फल भोगने से वंचित नहीं रहता। भगवान की हजार आँखें, हजार हाथ और कराल दाढ़ से छिपकर बचकर कोई जा नहीं सकता। जो जैसा करेगा, उसे वैसा भरना ही पड़ेगा। यह सनातन ईश्वरीय नीति कभी परिवर्तित न होगी।
हंटर कमेटी ने उसके कार्यों की सार्वजनिक निन्दा की, उससे उसका मन अशान्त हो उठा। तत्कालीन भारतीय सेनापति ने उसके किये हुए काम को बुरा ठहराकर त्यागपत्र देने का आदेश दिया। फलतः अच्छी खासी नौकरी हाथ से गई, पर इतने भर को नियति की विधि-व्यवस्था नहीं कहा जा सकता। आगे जो हुआ, प्रमाण तो वह है, जो यह बताता है कि करने के फल विलक्षण और रहस्यपूर्ण ढंग से मिलते हैं।
सन 1921 में जनरल डायर को पक्षाघात हो गया, उससे उसका आधा शरीर बेकार हो गया। प्रकृति इतने से ही सन्तुष्ट न हुई फिर उसे गठिया हो गया। उसके मित्र उसका साथ छोड़ गये। उसके संरक्षक माइकेल ओडायर की हत्या कर दी गई। उसे तो चलना-फिरना तक दूभर हो गया। ऐसी ही स्थिति में एक दिन उसके दिमाग की नस फट गई और लाख कोशिशों के बावजूद वह ठीक नहीं हुई। डायर सिसक-सिसक कर, तड़प-तड़प कर मर गया। अन्तिम शब्द उसके यह थे-
मनुष्य को परमात्मा ने यह जो जीवन दिया है, उसे बहुत सोच-समझ कर बिताने वाले ही व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं, पर जो अपने को मुझ जैसा चतुर और अहंकारी मानते हैं, जो कुछ भी करते न डरते हैं न लजाते हैं, उनका क्या अन्त हो सकता है? यह किसी को जानना हो तो इन प्रस्तुत क्षणों में मुझसे जान ले।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, अक्टूबर १९७० पृष्ठ २३
मनुष्य-जीवन एक खेत है, जिसमें कर्म बोये जाते है और उन्हीं के अच्छे-बुरे फल काटे जाते हैं। जो अच्छे कर्म करता है वह अच्छे फल पाता है, बुरे कर्म करने वाला बुराई समेटता है। कहावत है- ‘आम बोयेगा वह आम खायेगा, बबूल बोयेगा वह काँटे पायेगा।’ बबूल बोकर जिस तरह आम प्राप्त करना प्रकृति का सत्य नहीं, उसी प्रकार बुराई के बीज बोकर भलाई पा लेने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
मनुष्य-जीवन में भी इस सत्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। भलाई का फल सुख, शाँति और प्रगति के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता, वैसे ही बुराई का प्रतिफल बुराई न हो-ऐसा आज तक न कभी हुआ, न आगे होगा। इतिहास साक्षी है- कार्य कभी कारण रहित नहीं होते और उसी तरह कोई भी क्रिया परिणाम रहित नहीं होती। स्थूल और सूक्ष्म दोनों दृष्टि से सृष्टि का यह मौलिक नियम है कि भाग्य कभी अपने आप नहीं बनते वरन् वह व्यक्ति के कर्मों की कलम में लिखे जाते हैं। अच्छा या बुरा भाग्य सदैव अपने ही कर्म का फल होता है।
व्यक्ति हो, समाज या राष्ट्र हो-वह बुराई से पनपा, यह एक भ्रम है। जीवन हर क्षण का लेखा-जोखा रखता है। यदि कोई यह समझता है कि जाली नोट की तरह नकली सफलतायें प्राप्त की जा सकती हैं और वे चाहे जब बदली जा सकती हैं, तो यह मिथ्या कल्पना है। जल कीचड़ से बहेगा, वह दुर्गन्धरहित नहीं होगा-जल होने का भ्रम उत्पन्न करके भी वह पेय नहीं बन सकता। उसी तरह धोखे की असफलतायें अन्ततः पतन और अपयश का ही कारण बनती हैं। अन्त तक साथ देने वाली सफलता भलाई की है। उसी से मनुष्य का इहलोक और परलोक सुधरता है। कर्मफल तो अकाट्य है।
स्वामी विवेकानन्द
अखण्ड ज्योति, सितम्बर 1970
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