Sunday 15, December 2024
शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 15/12/2024 • December 15, 2024
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | पूर्णिमा तिथि 02:31 PM तक उपरांत प्रतिपदा | नक्षत्र म्रृगशीर्षा 02:20 AM तक उपरांत आद्रा | शुभ योग 02:03 AM तक, उसके बाद शुक्ल योग | करण बव 02:31 PM तक, बाद बालव 01:26 AM तक, बाद कौलव |
दिसम्बर 15 रविवार को राहु 03:59 PM से 05:14 PM तक है | 03:04 PM तक चन्द्रमा वृषभ उपरांत मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:10 AM सूर्यास्त 5:14 PM चन्द्रोदय 5:06 PM चन्द्रास्त 8:07 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा - Dec 14 04:58 PM – Dec 15 02:31 PM
- कृष्ण पक्ष प्रतिपदा - Dec 15 02:31 PM – Dec 16 12:27 PM
नक्षत्र
- म्रृगशीर्षा - Dec 15 03:54 AM – Dec 16 02:20 AM
- आद्रा - Dec 16 02:20 AM – Dec 17 01:13 AM
संतों का धर्म और मानव का भ्रम | Santo ka Dharam Aur Manav Ka Bharam
ध्यान:- जीवन के सुखद क्षणों का ध्यान, Jeevan Ke Sukhad Kashanon
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 15 December 2024 !!
!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 15 December 2024 !!
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 15 December 2024 !!
!! आज के दिव्य दर्शन 15 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 15 December 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 15 December 2024 !!
!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 15 December 2024 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हम भी इस युग के नारद हैं नारद के हृदय में भगवान की भक्ति थी हमारे हृदय में भी किसी की भक्ति है हमने युग की समस्याओं के ठीक समाधान विचारे दूसरे लोगों ने विचारे नहीं दूसरे लोगों ने नहीं विचारे कोई घर खोदता है कोई कुआं खोदता है कोई तालाब बनवाता है कोई धर्मशालाएं बनाता है कोई क्या करता है यह समस्याओं के समाधान है नहीं हैं समाधान तो वो है जो हमने बताएं है लोगों को इसीलिए इन समाधानो को बांटने बांटने के लिए फिर आपको कुछ काम करना पड़ेगा क्या काम करना पड़ेगा आपको जो बातें बताई गई थी अब आप यह कीजिए करेंगे अब तक तो यह आपने कहा था हमने सुना था आप एक झोला पुस्तकालय लेकर के छोटे-छोटे टेप हमने आजकल लिखे हैं तब हम पानी पीते हैं जब एक टेप रोज लिख लेते हैं जब तक एक टेप लिखा नहीं जाता तब तक पानी नहीं पीते उसमें हमारे प्राण हैं उसमें हमारा जीवन है उसमें चिंगारी है ऐसी चिंगारी है कि अगर आप उसमें जरा सी हवा लगा दे और आप जरा सा ईंधन डाल दें तो यह दावानल बन सकती है |
अखण्ड-ज्योति से
अध्यात्म क्षेत्र में ज्ञान को प्रकाश कहा जाता है। प्रकाश अर्थात् वह स्थिति जिसमें यथार्थता प्रत्यक्ष दृष्टि गोचर होने लगे। अन्धकार वह जिसमें भ्रान्तियों-भटकावों में मारे-मारे फिरना पड़े। यों दिन में प्रकाश और रात्रि में अन्धकार रहता है, पर तत्वज्ञान की दृष्टि से सत्य के निकटवर्ती पहुँची मान्यताओं को- आत्मबोध कहा जाता है। इसी को सत्यनारायण का परब्रह्म का साक्षात्कार भी कहते हैं। साधना का लक्ष्य यही है। स्वाध्याय और सत्संग-मनन और चिन्तन के सहारे साधक उस स्थिति तक पहुँचने का प्रयत्न करता है जिसमें माया से भ्रान्ति से छुटकारा मिल सके। यही मुक्ति की- जीवन मुक्ति की स्थिति है।
सत्य के लिए तर्क, तथ्य, प्रमाण, उदाहरण आदि के प्रत्यक्षवादी आधार तो चाहिए ही। इसके अतिरिक्त श्रद्धा की आवश्यकता होती है। उसी के सहारे प्रचलन के विपरीत आदर्शवादिता अपनाने के लिए विश्वास जाता और साहस उभरता है।
भय और अज्ञान यह दो अन्ध श्रद्धा के उत्पादन हैं। यह दोनों ही विवेक का कपाट बन्द करते हैं। सत्य तक पहुँचने के मार्ग में भारी बाधा प्रस्तुत करते हैं। ऐसे लोग आमतौर से दुराग्रही होते हैं। ‘मेरा सो सच- और का सो झूँठ’ यही उनकी मान्यता रहती है। अन्धश्रद्धा से पिछड़े लोगों की तरह तो प्रगतिशील भी ग्रसित पाये जाते हैं। अशिक्षितों की तरह शिक्षित भी उसके चंगुल में फँसे पाये जाते हैं। अन्तर इतना ही रहता है कि पिछड़े लोग जहाँ पुरातन को ही सब कुछ मानते हैं। उसी प्रकार तथाकथित प्रगतिशील को अर्वाचीनों का नव कथन ही सब कुछ प्रतीत होता है। आँखें खोलकर देखने और अन्याय प्रतिपादनों को धैर्यपूर्वक सुनने-समझने की विवेकशीलता दोनों की ही आवेशग्रस्त मनःस्थिति में टिक नहीं पाती।
अध्यात्मवादी और अन्धविश्वासी होना, इन दिनों समानार्थ बोधक बन गये हैं। पर वस्तुतः दोनों एक-दूसरे से सर्वथा पृथक हैं। गाँधी जी कहते हैं। “आध्यात्मिकता की पहली शर्त है निर्भयता। डरपोक मनुष्य कभी नैतिक नहीं हो सकता। इसलिए उसका अध्यात्मवादी होना भी कठिन है। विवेकानन्द कहते थे जिसे अपनी गरिमा पर आस्था नहीं वह अब्बल दर्जे का नास्तिक है। आत्मविश्वास ही मनुष्यता की पहली पहचान है। व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं ही है।”
पैराशूट की तरह मनुष्य का मस्तिष्क भी तभी अपना काम ठीक तरह करता है जब वह खुला हुआ है। जिसने पूर्वाग्रहों से अपने को जकड़ लिया है जो दूसरे की सुनना समझना ही नहीं चाहता उसे कोठरी में बन्द कैदी की उपमा दी जानी चाहिए।
श्रद्धा का सहोदर विश्वास है। विश्वास तर्क और तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। उसके पीछे नीति और विवेक का समर्थन जुड़ा रहना आवश्यक है। शास्त्र उल्लेख या आप्त वचन विचारणीय तो हो सकते हैं पर उन प्रतिपादनों पर आँखें बन्द करके नहीं चला जा सकता। पक्ष की तरह प्रतिपक्ष की बात भी सुनी जानी चाहिए। न्याय पीठ इसी आधार पर उपयुक्त निर्णय दे सकने की स्थिति तक पहुँचती है।
शास्त्र अपने ही वर्ग के लोगों द्वारा लिखे होने पर मान्य हों और दूसरे वर्ग द्वारा मान्यता प्राप्त झुठलाया दिया जाय? यह कहाँ का न्याय? अपने समुदाय के आप्त जन जो कह गये हैं, वही सत्य है और अन्य वर्गों के आप्त जन झूठे ही बोलते थे, ऐसा क्यों सोचा जाय? सत्य की शोध के लिए मानस पूरी तरह खुला रहना चाहिए और अपने पराये का भेद किये बिना यह समझने का प्रयत्न करना चाहिए कि औचित्य क्या कहता है? आदर्शों का समर्थन किस ओर से मिलता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति फरवरी 1984 पृष्ठ 8
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