Monday 16, December 2024
कृष्ण पक्ष प्रथमा, पौष 2024
पंचांग 16/12/2024 • December 16, 2024
पौष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | प्रतिपदा तिथि 12:27 PM तक उपरांत द्वितीया | नक्षत्र आद्रा 01:13 AM तक उपरांत पुनर्वसु | शुक्ल योग 11:22 PM तक, उसके बाद ब्रह्म योग | करण कौलव 12:27 PM तक, बाद तैतिल 11:37 PM तक, बाद गर |
दिसम्बर 16 सोमवार को राहु 08:26 AM से 09:41 AM तक है | चन्द्रमा मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:10 AM सूर्यास्त 5:15 PM चन्द्रोदय 6:09 PM चन्द्रास्त 9:03 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष प्रतिपदा - Dec 15 02:31 PM – Dec 16 12:27 PM
- कृष्ण पक्ष द्वितीया - Dec 16 12:27 PM – Dec 17 10:56 AM
नक्षत्र
- आद्रा - Dec 16 02:20 AM – Dec 17 01:13 AM
- पुनर्वसु - Dec 17 01:13 AM – Dec 18 12:44 AM
Vijay Diwas 16 December 1971 (Song change ).mp4
यम गायत्री, Yam Gayatri Mantra | मंत्र का सदैव जाप करने वाले प्राणियों में मृत्यु का भय नहीं रहता है
"कर्मकांड से नहीं, जीवन के परिष्कार से मिलता है अध्यात्मिक लाभ" |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 16 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
वह काम जो आपकी स्वयं करने का है वह स्वयं ही करने का है ज्ञान रथ आपके स्वयं चलाने का है किसी और के चलवाने का नहीं है नौकरों के लिए जिन जिन लोगो ने अब तक ज्ञान रथ मंगाए उन नौकरों के भरोसे नौकर मिलेंगे तो चलाएंगे नौकर बनेंगे तो घुमाएंगे नौकर बुलाएंगे तो यह क्या बात है ज्ञान रथ साग भाजी की बिक्री है साग बेचते हैं आप साबुन बेचते हैं चाय बेचते हैं चाट पकौड़ी बेचते हैं नौकर जाएगा तो चिल्लाता रहेगा चाट पकौड़ी खा लो चाट पकौड़ी खा लो नहीं यह चाट पकौड़ी खाने वाली चाट नहीं है ज्ञान रथ का महत्व आप समझिए उसके लिए आपको स्वयं ही जाना पड़ेगा और किसी को नहीं आप दो घंटे रोज सुबह नहीं निकाल पाएंगे नहीं निकाल दीजिए हमारी आपसे प्रार्थना है कि आपको 24 घंटे में से दो घंटे स्वयं निकाल दीजिए |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
राजा परीक्षत को भागवत सुनाते हुए जब शुकदेव को छह दिन बीत गये और सर्प के काटने से मृत्यु होने का एक दिन रह गया तब भी राजा का शोक और मृत्यु भय दूर न हुआ। कातर भाव से अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा क्षुब्ध हो रहा था।
शुकदेव जी ने राजा को एक कथा सुनाई- राजन्! बहुत समय पहले की बात है। एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा निकला, रात्रि हो गई। वर्षा पड़ने लगी। सिंह व्याघ्र बोलने लगे। राजा बहुत डरा और किसी प्रकार रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूँढ़ने लगा। कुछ दूर पर उसे दीपक दिखाई दिया। वहाँ पहुँचकर उसने एक गन्दे बीमार बहेलिये की झोंपड़ी देखी। वह चल फिर नहीं सकता था इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिये जानवरों का माँस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गन्दी, छोटी, अन्धेरी और दुर्गन्ध युक्त वह कोठरी थी। उसे देखकर राजा पहले तो ठिठका पर पीछे उसने और कोई आश्रय न देखकर विवशतावश उस बहेलिये से अपनी कोठरी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।
बहेलिये ने कहा- “आश्रय हेतु कुछ राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं और मैं उन्हें ठहरा लेता हूँ। लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं। इस झोंपड़ी की गन्ध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर उसे छोड़ना ही नहीं चाहते। इसी में रहने की कोशिश करते हैं और अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ। अब किसी को नहीं ठहरने देता। आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूँगा।” राजा ने प्रतिज्ञा की- कसम खाई कि वह दूसरे दिन इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है। यहाँ तो वह संयोगवश ही आया है। सिर्फ एक रात ही काटनी है।
बहेलिये न अन्यमनस्क होकर राजा को झोंपड़ी के कोने में ठहर जाने दिया, पर दूसरे दिन प्रातःकाल ही बिना झंझट किये झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दुहरा दिया। राजा एक कोने में पड़ा रहा। रात भर सोया। सोने में झोंपड़ी की दुर्गन्ध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सवेरे उठा तो उसे वही सब परमप्रिय लगने लगा। राज-काज की बात भूल गया और वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।
प्रातःकाल जब राजा और ठहरने के लिये आग्रह करने लगा तो बहेलिये ने लाल पीली आँखें निकाली और झंझट शुरू हो गया। झंझट बढ़ा। उपद्रव और कलह का रूप धारण कर लिया। राजा मरने मारने पर उतारू हो गया। उसे छोड़ने में भारी कष्ट और शोक अनुभव करने लगा।”
शुकदेव जी ने पूछा- परीक्षित! बताओ, उस राजा के लिए क्या यह झंझट उचित था? परीक्षित ने कहा- “भगवान वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइए। वह तो बड़ा मूर्ख मालूम पड़ता है कि ऐसी गन्दी कोठरी में अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर राज-काज छोड़कर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता था। उसकी मूर्खता पर तो मुझे भी क्रोध आता है।”
शुकदेव जी ने कहा- परीक्षित! वह और कोई नहीं तुम स्वयं हो। इस मल मूत्र की कोठरी देह में जितने समय तुम्हारी आत्मा को रहना आवश्यक था वह अवधि पूरी हो गई। अब उस लोक को जाना है जहाँ से आप थे। इस पर भी आप झंझट फैला रहे हैं। मरना नहीं चाहते एवं मरने का शोक कर रहे हो। क्या यह उचित है?”
राजा ने कथा के मर्म को स्वयं पर आरोपित किया एवं मृत्यु भय को भुलाते हुए मानसिक रूप से निर्वाण की अपनी तैयारी कर ली। अन्तिम दिन का कथा श्रवण उन्होंने पूरे मन से किया।
वस्तुतः मरने के लिये हर मानव हो हर घड़ी तैयार रहना चाहिये। यह शरीर तो कभी न कभी विनष्ट होना ही है। लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती। उसी को ऊँचा उठाने के प्रयास जीवन पर्यन्त किये जाते रहें तो भागी जन्म सार्थक किया जा सकता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति फरवरी 1984 पृष्ठ 12
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