Thursday 24, October 2024
कृष्ण पक्ष अष्टमी, कार्तिक 2081
पंचांग 24/10/2024 • October 24, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | अष्टमी तिथि 01:58 AM तक उपरांत नवमी | नक्षत्र पुष्य | साध्य योग 05:22 AM तक, उसके बाद शुभ योग | करण बालव 01:33 PM तक, बाद कौलव 01:58 AM तक, बाद तैतिल |
अक्टूबर 24 गुरुवार को राहु 01:24 PM से 02:47 PM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:29 AM सूर्यास्त 5:33 PM चन्द्रोदय 11:48 PM चन्द्रास्त 1:23 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष अष्टमी - Oct 24 01:19 AM – Oct 25 01:58 AM
- कृष्ण पक्ष नवमी - Oct 25 01:58 AM – Oct 26 03:23 AM
नक्षत्र
- पुष्य - Oct 24 06:15 AM – Oct 25 07:40 AM
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 24 October 2024 !!
!! आज के दिव्य दर्शन 24 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 24 October 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 24 October 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
आप अपना दृष्टिकोण बदले
हम महानता के साथ जुड़ जाएं | Ham Mahanata Ke Sath Jud Jayen
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
संसार का इतिहास बताता है कि भगवान का पल्ला पकड़ने वाले और भगवान का अपना सहयोगी बनाने वाले कभी घाटे में नहीं रहेंगे विश्वास करें तो यह बहुत बड़ी बात है और सांसारिकता का पल्ला पकड़ लेने की अपेक्षा भगवान की शरण में जाना है आत्मिक उत्थान के लिए हमारी महत्वकांक्षाएं हमारी कामनाएं हमारी इच्छाएं बड़प्पन के केंद्र से हटे और महानता के साथ जुड़ जाएं हमारी महत्वकांक्षाएं यह नहीं होनी चाहिए कि हम वासनाओं को पूरा करते रहेंगे जिंदगी भर हम अपनी अहमता को ठाट बाट को रोब को और बड़प्पन को लोगों के ऊपर रोब जारी करने के लिए तरह तरह के ताने-बाने बनते रहेंगे और हमारा अंतःकरण यह स्वीकार कर ले कि यह बचकानी बातें है छिछोरी बातें है छोटी बातें है छिछोरापन बचकानापन और यह छोटापन छुद्रता को त्याग कर सके तो रबात हमारे सामने खड़ी होगी तब हमको महानता पर होंगे महापुरुषों ने जिस तरीके से आचरण किए थे महापुरुषों के चिंतन करने का जो तरीका था वही तरीका हमारा होना चाहिए और हमारी गतिविधियां उसी तरह की होनी चाहिए
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
*क्या आप अत्याधिक चिन्तनशील प्रकृति के हैं? सारे दिन अपनी बाबत कुछ न कुछ गंभीरता से सोचा ही करते हैं? कल हमारे व्यापार में हानि होगी या लाभ, बाजार के भाव ऊँचे जायेंगे, या नीचे गिरेंगे।* अमुक ने हमारा रुपया उधार ले रखा है, वह वापस करेगा भी या हड़प लेगा? दिनों दिन बाजार में महंगाई उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। कल का खर्च कैसे चलेगा? कन्या बड़ी होती जा रही है। उसके लिये योग्य समृद्ध और शिक्षित वर का कैसे प्रबन्ध होगा? *हमारा पुत्र पढ़ता कम है। सारा समय खेलने में व्यतीत करता है। परीक्षा में कैसे उत्तीर्ण होगा? हमारी नौकरी लगी रहेगी, या छूट जायगी? हमारा स्वास्थ्य गिरता जा रहा है, कैसे सुधरेगा?* हमें जल्दी ही लम्बी यात्रा पर जाना है। मार्ग की कठिनाइयाँ कैसे हल होंगी? ऐसी ही किसी समस्या को लेकर आप दिन-रात चिन्तन करते रहते हैं।
*आप अपने मस्तिष्क को सारे दिन विशेषतः रात में किसी भी चिन्तन की क्रिया में डाल देते हैं।* जैसे गाड़ी का पहिया किसी लीक में पड़ कर आगे निरन्तर उसी दिशा में बढ़ता रहता है, उसी प्रकार मस्तिष्क को चिन्तन की किसी भी समस्या में उसको लगा देने से वह उसी में फँसा रहता है। व*ह खुद रुकता नहीं बल्कि चिन्तन के प्रवाह में आगे बढ़ता रहता है। मस्तिष्क तो चिन्तन का एक यंत्र है। उसका कार्य चिन्तन करना ही है।* यदि आप उसे कोई अच्छी या बुरी समस्या दिये रहेंगे, तो निश्चय जानिये, वह उसी समस्या के उखाड़-पछाड़ में संलग्न रहेगा। वह विश्राम की परवाह न कर बौद्धिक चिन्तन ही किए जायगा।
आधुनिक मनोविज्ञान वेत्ताओं की नई खोज यह है कि अधिक बौद्धिक चिन्तन मनुष्य के शरीर के लिए हानिकारक है। *जो जितना अधिक मानसिक चिन्तन करता है, उसका शरीर उतना ही क्षीण होता जाता है। भूख नष्ट हो जाती है। भोजन में कोई भी रुचि नहीं रह जाती। रक्तचाप, व्रण, हृदय रोग, सिर दर्द आदि उभर उठते हैं।* चिन्तनशील व्यक्ति प्रायः भयभीत से, शंकालु से और भविष्य के लिए चिन्तित रहते हैं। गुप्त मन में बैठा हुआ उनका भय ही उन्हें खाया करता है।
*आप बौद्धिक चिन्तन या मानसिक श्रम करने वालों के स्वास्थ्य को देखिए। वे पहले दुबले रहते हैं तो भी शरीर पर माँस नहीं बढ़ता। उनकी हड़ियाँ ही हड्डियाँ चमका करती हैं।* मेरे एक मित्र हैं जो लेखन का काम करते हैं। एक दिन मेरे पास आये। बोले रात में नींद नहीं आती। फल यह होता है कि सारे दिन थकान बनी रहती है। हाथ पाँव टूटते से रहते हैं। नेत्रों में नींद छाई रहती है और सर भारी रहता है। डॉक्टर को दिखाया तो न बुखार है, न इन्फ्यूलेन्जा, न और कोई शारीरिक विकार पर थकान बनी रहती है। दिमाग में सारे दिन रात एक अजीब प्रकार का तनाव बना रहता है।
हमने उन्हें बताया कि इस मानसिक व्यग्रता का मुख्य कारण सतत चिन्तन है। *अधिक बौद्धिक चिन्तन से स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है। उसी की प्रतिक्रिया इनके शरीर पर दिखाई देती है।* इन्होंने अपने मस्तिष्क को आराम नहीं दिया वरन् लगातार चिन्तन करते-करते उसे इतना कार्य बोझिल बना दिया कि मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। *अधिक सोचने-विचारने से, दिमाग सारे दिन चिन्तन में लगाये रखने से स्नायु पर अतिरिक्त भार पैदा हो गया। इससे शारीरिक क्रियाओं में रुकावट उत्पन्न होने लगी। फलस्वरूप अपने को मानसिक दृष्टि से थका हुआ पाने लगे।*
*तुम जिस कार्य, उद्देश्य या मनोरथ में सफलता लाभ करने की चेष्टा कर रहे हो उसका अभिनय भली-भाँति करो।* यदि तुम एक विद्वान बनने की चेष्टा कर रहे हो तो अपने आपको एक विद्वान की ही भाँति रखो वैसा ही वातावरण एकत्रित करो, निराशा निकाल कर यह उम्मीद रखो कि मूर्ख कालिदास की भाँति हम भी महान बनेंगे। निराशा निकाल कर तुम इस एकटिंग को पूर्ण करने की चेष्टा करो। *तुम अनुभव करो कि मैं विद्वान हूँ, सोचो कि मैं अधिकाधिक विद्वान बन रहा हूँ। मेरी विद्वता की निरंतर अभिवृद्धि हो रही है। तुम्हारे व्यवहार से लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए कि तुम सचमुच विद्वान हो।* तुम्हारा आचरण भी पूर्ण विश्वास युक्त हो शंका, शुबाह या निराशा का नाम निशान भी न हो। अपने इस विश्वास पर तुम्हें पूरी दृढ़ता का प्रदर्शन करना उचित है। *यह अभिनय करते-करते एक दिन तुम स्वयमेव अपने कार्य को पूर्ण करने की क्षमता प्राप्त कर लोगे।*
*अखण्ड ज्योति मई 1960*
हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज की सेवा के व्रती लाखों साधु संन्यासी, भारतवर्ष के ग्रामों, कस्बों और नगरों में स्वतन्त्रता से विचरते हैं। हिन्दू जाति के इस घोर संकट के समय उनका क्या कर्तव्य है? इस विषय पर कुछ लिखना अनुचित न होगा। क्योंकि जो प्रभाव हिन्दू जनता पर इन विरक्तों का पड़ता है, वह और किसी का नहीं पड़ सकता। अविद्या अन्धकार में सोई हुई हिन्दू जनता को यह महात्मा लोग बहुत शीघ्र जगा सकते हैं। उनका सिंहनाद हिन्दू सन्तान में नई जान फूँक सकता है। छोटे से छोटे कस्बे में सन्त महात्माओं के मठ बने हुए है, जहाँ से हिन्दू संगठन का काम बड़ी आसानी से हो सकता है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि साधु सन्त हिन्दू संगठन के उद्देश्य को भली प्रकार जाने।
हिन्दू जनता आज कैसी दीनावस्था में है, उस पर विधर्मी गुण्डे कैसा संगठित प्रहार कर रहे हैं, यह सब देखकर कौन ऐसा साधु संन्यासी होगा, जिसका हृदय न फटता हो। हिन्दू गृहस्थ सदा श्रद्धा और प्रेम से साधुओं की सेवा करते है, देवियाँ बड़ी भक्ति भाव से विरक्तों की पूजा करती हैं, आज उन विरक्तों को हिन्दू गृहस्थों के प्रति अपना अपना कर्तव्य पालने का समय आ गया है। प्रत्येक साधु को दण्ड और कमण्डलु उठाकर, हिन्दू संगठन के काम में लग जाना चाहिए। ग्राम ग्राम और कस्बे कस्बे में घूम कर अज्ञानी जनता को चैतन्य करना चाहिए, और उसे स्वार्थी लोगों के हथकंडों से बचाना चाहिए। कोई नगर, कोई कस्बा, हिन्दू संगठन से, संघ से खाली न रहे। बड़ी शान्ति से गृहस्थों को समझा बुझाकर ऐसे विचार फैलावें, कि जिससे हिन्दू फौलादी दीवार की तरह संगठित हो जावें, और कोई उन्हें सता न सके।
जो साधु महात्मा देश जाति और धर्म की सेवा करना चाहते हैं, वे अब कमर कस कर तैयार हो जायं और संगठन के बिगुल को हाथ में लेकर नगर नगर में इसे बजाते हुए घूमें। आज बैठने का समय नहीं, जिससे जो कुछ हो सकता है उसे उतना काम करना ही चाहिए। हिन्दू संगठन की इस जागृति के काल में जो साधु महात्मा इस महाप्रतापी हिन्दू जाति की सेवा करेगा उसका नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायगा।
यदि हम अपन भगवे कपड़े को सार्थक करना चाहते हैं तो हमें हिन्दू संगठन का कठिन व्रत लेना होगा। स्थान स्थान पर व्यायामशालायें खुलवा कर, हिन्दू बच्चों में क्षात्र धर्म का तेज भरना होगा। उनको उन्नत मार्ग दिखलाना होगा, लाखों साधु आज इस धर्मक्षेत्र में आकर अपने जीवन को पवित्र बना सकते हैं। धर्म की सेना में आज ऐसे लाखों विरक्तों की आवश्यकता है। इसलिए आइए हम साधुओं का जबर्दस्त संगठन कर हिन्दू जाति की सेवा में लग जायें इसी में हमारा कल्याण है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
वाङमय-नं-३७-पेज-१२.३७
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