Saturday 26, October 2024
कृष्ण पक्ष दशमी, कार्तिक 2081
पंचांग 26/10/2024 • October 26, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | दशमी तिथि 05:24 AM तक उपरांत एकादशी | नक्षत्र आश्लेषा 09:45 AM तक उपरांत मघा | शुक्ल योग 05:57 AM तक, उसके बाद ब्रह्म योग | करण वणिज 04:19 PM तक, बाद विष्टि 05:24 AM तक, बाद बव |
अक्टूबर 26 शनिवार को राहु 09:16 AM से 10:38 AM तक है | 09:45 AM तक चन्द्रमा कर्क उपरांत सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:31 AM सूर्यास्त 5:31 PM चन्द्रोदय 12:47 AM चन्द्रास्त 2:33 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष दशमी - Oct 26 03:23 AM – Oct 27 05:24 AM
- कृष्ण पक्ष एकादशी - Oct 27 05:24 AM – Oct 28 07:51 AM
नक्षत्र
- आश्लेषा - Oct 25 07:40 AM – Oct 26 09:45 AM
- मघा - Oct 26 09:45 AM – Oct 27 12:24 PM
किसी का बुरा मत सोचो
प्रमाद का मार्ग
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 26 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
मन और इंद्रियों के आप स्वामी बनें |
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हमको व्यवहारिक जीवन में भी थोड़े से कदम उठाने चाहिए साधकों को साधकों के लिए यही मार्ग है मन और इंद्रियों की गुलामी को हम छोड़ दें मन इंद्रियों की गुलामी को हम छोड़ दें उनके हम स्वामी बनें तब तक हम असहाय के रूप में दीन दुर्बल के रूप में इंद्रियों के कोड़े सहते हैं और इनके दबाव और इनकी वजह से चाहे हम जहां घूमते रहते हैं मन हमको चाहे जहां घसीट ले जाता है कभी गड्ढे में धकेल देता है कभी कहीं कर देता है इंद्रियाॅं हमसे न जाने क्या से क्या करा लेती है क्या-क्या करने के लिए कहता रहता है हम असहाय के तरीके से दीन दुर्बल के तरीके से गुलामों के तरीके से इन्हीं लोगो का कहना मानते हैं अब हमको अपनी नई परिस्थितियां बदल देनी चाहिए हमारी प्रार्थना है आप स्वामी बनें आप स्वामी बनें अपनी गुलामी को छोड़ दीजिए इंद्रियों को नौकरानी के तरीके से इस्तेमाल करें और मन को नौकर के तरीके से इस्तेमाल करें मन को बोल दे कि आपको हमारा कहना मानना ही पड़ेगा |
अखण्ड-ज्योति से
साल में एक बार छात्रों की परीक्षा होती है, उस पर उनके आगामी वर्ष का आधार बनता है। प्रबुद्ध आत्माओं की परीक्षा का भी कभी-कभी समय आया करता है। त्रेता में दूसरे लोग कायरताग्रस्त हो चुप हो बैठे थे, तब रीछ बन्दरों ने वह परीक्षा उत्तीर्ण की थी। द्वापर में पाँच पाण्डवों ने भगवान का मनोरथ पूरा किया था। पिछले दिनों गुरु गोविन्दसिंह के साथी सिखों ने और समर्थ गुरु रामदास के शिवाजी आदि मराठा शिष्यों ने ईश्वर भक्ति की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। गायत्री की पुकार पर भी कितनों ने ही अपनी श्रेष्ठता का परिचय दिया था।
नव-निर्माण की ऐतिहासिक वेला में अब फिर प्रबुद्ध तेजस्वी, जागृत और उदात्त आध्यात्मिक भूमिका वाले ईश्वर भक्तों की पुकार हुई है। समय आने पर दूध पीने वाले मजनुओं की तरह हमें आंखें नहीं चुरानी चाहिए। यह समय ईश्वर से नाना प्रकार के मनोरथ पूरे करने के लिए अनुनय विनय करने का नहीं, वरन् उसकी परीक्षा कसौटी पर चढ़कर खरे उतरने का है।
युग की पुकार ईश्वर की इच्छा का ही सन्देश लेकर आई है। माँगने की अपेक्षा देने का प्रश्न सामने उपस्थित किया है और अपनी भक्ति एवं आध्यात्मिकता को खरी सिद्ध करने की चुनौती प्रस्तुत की है। *इस विषम बेला में हमें विचलित नहीं होना है वरन् श्रद्धापूर्वक आगे बढ़ना है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, जून १९७१, पृष्ठ ५८
मनुष्य−समाज की स्वार्थहीन सेवा कर्मयोग है। यह हृदय को शुद्ध करके अन्तःकरण को आत्मज्ञान रूपी दिव्य ज्योति प्राप्त करने योग्य बना देता है। विशेष बात तो यह है कि बिना किसी आसक्ति अथवा अहंभाव के आपको मानव−जाति की सेवा करनी होगी। कर्मयोग में कर्मयोगी सारे कर्मों और उनके फल को भगवान के अर्पण कर देता है। ईश्वर में एकता रखते हुए, आसक्ति को दूर करके सफलता व निष्फलता में समान रूप से रह कर कर्म करते रहना कर्म−योग है।
जैमिनी ऋषि के मतानुसार अग्निहोत्रादि वैदिक कर्म ही कर्म है। भगवद्गीता के अनुसार निष्काम भाव से किया हुआ कोई भी कार्य कर्म है। भगवान् कृष्ण ने कहा है निरन्तर कर्म करते रहो, आपका धर्म फल की चाहना न रखते हुए कर्म करते रहना ही है। गीता का प्रधान उपदेश कर्म में अनासक्ति है। श्वास लेना, खाना, देखना, सुनना, सोचना सब कर्म हैं।
अपने गुरु या किसी महात्मा की सेवा कर्मयोग का सर्वोच्च रूप है। इससे आपका चित्त जल्दी शुद्ध हो जावेगा। उनकी सेवा करने से उनके दिव्य तेज का आप के ऊपर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। आपको उनसे दैवी प्रेरणा प्राप्त होगी। शनैः शनैः आप उनके सद्गुणों को ग्रहण कर लोगे।
श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज
अखण्ड ज्योति, मार्च 1955 पृष्ठ 6
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