Sunday 27, October 2024
कृष्ण पक्ष एकादशी, कार्तिक 2081
पंचांग 27/10/2024 • October 27, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | एकादशी | नक्षत्र मघा 12:24 PM तक उपरांत पूर्व फाल्गुनी | ब्रह्म योग | करण बव 06:35 PM तक, बाद बालव |
अक्टूबर 27 रविवार को राहु 04:08 PM से 05:30 PM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:31 AM सूर्यास्त 5:30 PM चन्द्रोदय 1:44 AM चन्द्रास्त 3:02 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष एकादशी [ वृद्धि तिथि ] - Oct 27 05:24 AM – Oct 28 07:51 AM
नक्षत्र
- मघा - Oct 26 09:45 AM – Oct 27 12:24 PM
- पूर्व फाल्गुनी - Oct 27 12:24 PM – Oct 28 03:24 PM
EP:- 03, जीवन लक्ष्य का निर्धारण
उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो
धर्मों की मूलभूत एकता
बीज की तरह गले : भाग 02
आज दिनांक 27th अक्टूबर 2024, देव संस्कृति विश्वविद्यालय में मातृभूमि मंडप और उसमें भारत माता की प्रतिमा का अनावरण होते ही, देव संस्कृति विश्वविद्यालय और गायत्री परिवार ऐसा अनूठा स्थल बन गए हैं जहाँ शौर्य दीवार, भारत माता और विशाल राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) एक ही परिसर में स्थित हैं। इस अभूतपूर्व संकल्प के साथ, देव संस्कृति विश्वविद्यालय ने एक ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है, जो हरिद्वार और उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने एक नई और अभिनव परंपरा की शुरुआत करते हुए अनावरण का कार्य 8 वर्ष से छोटे बच्चों द्वारा करवाया। उन्होंने इस ऐतिहासिक पहल पर कहा कि यह परंपरा इतनी विशेष है कि भविष्य में अन्य विश्वविद्यालय और संस्थान भी इसका अनुकरण करेंगे, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
डॉ. पंड्या ने कहा कि हम अक्सर देखते हैं कि संस्थानों का अनावरण गणमान्य अतिथियों और प्रशासकीय अधिकारियों द्वारा किया जाता है, लेकिन आज इस अनावरण का कार्य उन बच्चों के हाथों से हुआ है, जो भारत का भविष्य हैं। कल उन्हीं का है, और जिनका कल है, उन्हें ही आज की कहानी लिखने का अधिकार मिलना चाहिए।
इस ऐतिहासिक घटना के साथ ही हरिद्वार और उत्तराखंड का गौरव और भी बढ़ गया है, क्योंकि शौर्य दीवार, विशाल तिरंगा और भारत माता की प्रतिमा एक ही परिसर में स्थापित करने वाला देव संस्कृति विश्वविद्यालय अब एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय बन गया है।
कौशाम्बी जनपद में आगामी कार्यक्रम 24 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ निकट आ रहा है कार्यक्रम की तैयारियों के लिए मात्र 30 दिन शेष रह गए हैं। सभी परिजन और कार्यकर्ताओं को दुगुने ऊर्जा के साथ कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कार्य करने के लिए बैठक का आयोजन भी किया जा रहा है। कार्यक्रम की तैयारियां तीव्र गति से चल रही हैं।
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 27 October 2024 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 27 October 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 27 October 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 27 October 2024 !!
!! आज के दिव्य दर्शन 27 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 27 October 2024 !!
!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma HimalayaMandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 27 October 2024 !!
!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 27 October 2024 !!
!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 27 October 2024 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
आप क्षुद्रता का त्याग करे
बीज की तरह गले : भाग 02
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
भावी जीवन की संभावनाओं का विचार कीजिए
जिंदगी एक बहुत लंबी कड़ी है एक लंबी वाली श्रृंखला है बहुत लंबी श्रृंखला बहुत लंबी श्रृंखला जिसमें कि आपको लाखों जन्मों तक जिंदा रहना था एक ही मौका आपका ऐसा है जो मनुष्य के जीवन में मिला हुआ है आप जिस मनुष्य की जिंदगी में मिले हुए हैं आप उसके साथ में अपने भावी जीवन के भावी जीवन की संभावनाओं का विचार कीजिए आज हर आदमी जो काम करता है कल का विचार करके ही तो करता है आज जो आप काम कर रहे हैं कल के ख्याल से कर रहे हैं कल क्या करना पड़ेगा आज जो आपने नौकरी खेती-बाड़ी की उसका मतलब तो यही तो है आपको कल का दिन गुजारा करने के लिए ठीक मिलेगा मकान आप किसलिए बनाते हैं आज तो आप धर्मशाला में भी रह सकते थे, होटल में भी रह सकते थे। पर यही तो विचार करते हैं हम कल हम रहेगें तो कहां रहेंगे बुढ़ापे में जाएंगे तो कहां रहेंगे हमारा कुटुंब कहां रहेगा इसीलिए विचार करते हैं कल की संभावनाओं के लिए आज का आज की व्यवस्था बनाना हर एक आदमी का काम है हर समझदार आदमी का काम है
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
कर्म योगी का विशाल हृदय होना चाहिये। उसमें कुटिलता, नीचता कृपणता और स्वार्थ बिल्कुल नहीं होना चाहिए, उसे लोभ, काम, क्रोध और अभिमान रहित होना चाहिए। यदि इन दोषों के चिन्ह भी दिखाई देवें तो उन्हें एक एक करके दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए, वह जो कुछ भी खाय उसमें से पहले नौकरों को देना चाहिये, यदि कोई निर्धन रोगी दूध की चाहना रखकर उसी के घर आये और घर में उसी के लिए दूध नहीं बचा हो तो उसे चाहिये कि अपने हिस्से का दूध फौरन ही उसे देदे और उससे कहे कि ‘हे नारायण! यह दूध आपके वास्ते है, कृपा कर इसे पीलो, आपकी जरूरत मुझसे ज्यादा है।’ तब ही वह सच्ची उपयोगी सेवा कर सकता है।
कर्मयोगी का स्वभाव प्रेमयुक्त, मिलनसार, समाज−सेवी होना चाहिए। उसे जाति, धर्म या वर्ण के विचार बिना हर एक व्यक्ति के साथ मिलना चाहिए, उसमें सहनशीलता, सहानुभूति, विश्व−प्रेम, दया और सबमें मिल जाने की सामर्थ्य होनी चाहिये। उसे दूसरों के स्वभाव और रीति से संयोग रखने की क्षमा होनी चाहिये, उसे उपस्थित बुद्धि होनी चाहिये, उसका मन शान्त और सम होना चाहिये। उसे दूसरों की उन्नति में प्रसन्न होना चाहिये, उसको सारी इन्द्रियों पर पूरा संयम होना चाहिये, और हर एक वस्तु केवल अपने ही लिए चाहता है तो वह अपनी सम्पत्ति दूसरों को कैसे बाँट सकता है, उसे अपने स्वार्थ को जला डालना चाहिए।
ऐसा ही मनुष्य अच्छा कर्मयोगी बन सकता है और अपने लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कर लेता है।
श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज
अखण्ड ज्योति, मार्च 1955 पृष्ठ 7
इन दिनों जन-मानस पर छाई हुई दुर्बुद्धि जीवन के हर क्षेत्र को बुरी तरह संकटापन्न बना रही है। स्वास्थ्य, सन्तुलन, परिवार, अर्थ-उपयोग, पारस्परिक सद्भाव, समाज, राष्ट्र, धर्म, अध्यात्म जैसे किसी भी क्षेत्र को उसने विकृतिग्रस्त बनाने से अछूता छोड़ा नहीं है। फलतः बाहर ठाठ-बाट बढ़ जाने पर भी सर्वत्र खोखलापन और अधःपतन ही दृष्टिगोचर हो रहा है। विश्व की विभिन्न समस्याओं की जड़ में यह विकृत बुद्धि ही काम कर रही है। हमें अपने युग के इसी असुर से लोहा लेना है। यह अदृश्य दानव भूतकाल के रावण, कंस, हिरण्यकश्यप, वृत्रासुर, महिषासुर आदि सभी से बढ़ा-चढ़ा है। उनने थोड़े से क्षेत्र को ही प्रभावित किया था, इसने मनुष्य जाति के अधिकाँश सदस्यों को जकड़ लिया है। बात भलमनसाहत की भी खूब चलती है, पर भीतर ही भीतर जो पकता है उसकी दुर्गन्ध से नाक सड़ने लगती है।
यदि मनुष्य जाति के भविष्य को बचाना है तो अवाँछनीयता, अनैतिकता, मूढ़ता और दुष्टता से पग-पग पर लोहा लेना पड़ेगा। ज्ञान-यज्ञ का, विचार क्रान्ति अभियान का, युग-निर्माण योजना का, युगान्तर चेतना का अवतरण इसी प्रयोजन के लिए हुआ है। मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण प्रत्यक्ष देखने के लिए हमारे प्रयास चल रहें हैं। यह सार्वभौम और सर्वजनीन प्रयास है। उथली राजनीति वर्गगत, फलगत, क्षुद्र प्रयोजनों से हमारा दूर का भी नाता नहीं है। हमें दूरगामी और मानवी चेतना को परिष्कृत करने वाली सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों को बोना, उगाना और परिपुष्ट करना है। इसके लिए अनेकों प्रचारात्मक, रचनात्मक एवं सुधारात्मक कार्य करने के लिए पड़े हैं। जो हो रहा है उससे अनेकों गुनी सामर्थ्य, साहस और साधन समेट कर आगे बढ़ चलने की आवश्यकता है और यह प्रयास हमीं अग्रदूतों को आगे बढ़कर अपने कन्धों पर उठाना चाहिए।
यह कार्य तभी सम्भव है जब हममें से प्रत्येक अपनी अन्यमनस्कता एवं उपेक्षा पर लज्जित हो और अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करने का साहस समेटे। समय दिये बिना-आर्थिक अंशदान के लिए उत्साह सँजोये बिना यह कार्य और किसी तरह हो ही नहीं सकता। धर्म-मंच से लोक-शिक्षण प्रक्रिया के अन्तर्गत बीस सूत्री कार्यक्रम बताये जाते रहे हैं। अन्य सामयिक कार्यक्रमों के लिए पाक्षिक युग-निर्माण योजना में निर्देश एवं समाचार छपते रहते हैं। स्थानीय आवश्यकता एवं अपनी परिस्थिति को देखकर इनमें से कितने ही कार्य हाथ में लिये जा सकते हैं। यह पूछना व्यर्थ है कि आदेश दिया जाय कि हम क्या करें?
अपने घर से आरम्भ करके सार सम्पर्क क्षेत्रों में ज्ञान-घटों की स्थापना और उनका सुसंचालन, झोला पुस्तकालय, चल पुस्तकालय, जन्म-दिन, पर्व संस्कारों के आयोजन, तीर्थयात्रा, शाखा का वार्षिकोत्सव, महिला शाखा की स्थापना जैसे कितने ही कार्य ऐसे हैं जिन्हें आलस्य छोड़ने और थोड़ा उत्साह जुटा लेने से ही तत्काल आरम्भ किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रौढ़ पाठशालाएँ, व्यायामशालाएँ, वृक्षारोपण, पुस्तकालय स्थापना जैसे अनेकों रचनात्मक और दहेज, मृत्युभोज, नशा, जाति और लिंग भेद के नाम पर चलने वाली असमानता, भिक्षा व्यवसाय, आर्थिक भ्रष्टाचार, अनाचार, प्रतिरोध जैसे अनेकों सुधारात्मक काम करने के लिए पड़े हैं। जिन्हें कभी भी कोई भी आरम्भ कर सकता है और अपने साथी जुटा कर इन्हें सफल अभियान का रूप दे सकता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति नवम्बर १९७६
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