Friday 28, March 2025
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, चैत्र 2025
पंचांग 28/03/2025 • March 28, 2025
चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), फाल्गुन | चतुर्दशी तिथि 07:55 PM तक उपरांत अमावस्या | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 10:09 PM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा | शुक्ल योग 02:06 AM तक, उसके बाद ब्रह्म योग | करण विष्टि 09:32 AM तक, बाद शकुनि 07:55 PM तक, बाद चतुष्पद 06:13 AM तक, बाद नाग |
मार्च 28 शुक्रवार को राहु 10:50 AM से 12:22 PM तक है | 04:47 PM तक चन्द्रमा कुंभ उपरांत मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:15 AM सूर्यास्त 6:29 PM चन्द्रोदय 5:23 AM चन्द्रास्त 5:27 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - फाल्गुन
तिथि
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
- Mar 27 11:03 PM – Mar 28 07:55 PM
- कृष्ण पक्ष अमावस्या
- Mar 28 07:55 PM – Mar 29 04:27 PM
नक्षत्र
- पूर्वभाद्रपदा - Mar 28 12:33 AM – Mar 28 10:09 PM
- उत्तरभाद्रपदा - Mar 28 10:09 PM – Mar 29 07:26 PM

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आराम नही काम चाहिए | Aaram Nahi Kaam Chahiye| Sansmaran Jo Bhulaye Na Ja Sake
मन प्रसन्न है तो संसार में सभी ओर प्रसन्नता ही प्रसन्नता दृष्टिगोचर होगी, सुख ही सुख अनुभव होगा। तब ऐसी सहज प्रसन्नता की दशा में परिस्थितियों के अनुकूल होने की अपेक्षा नहीं रहती। परिस्थितियां अनुकूल हैं—मनभावनी हैं—बहुत अच्छा। परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं तब भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। प्रसन्न-मन मानव उन्हें अनुकूल करने के लिए प्रयत्न करेगा, संघर्ष करेगा, पसीना बहायेगा, मूल्य चुकायेगा, कष्ट उठायेगा किन्तु दुःखी नहीं होगा। वह, यह सब हंसते-हंसते, प्रसन्न मनो मुद्रा में ही करता रहेगा। उसे परिश्रम में आनन्द आयेगा। संघर्ष में सुख मिलेगा। असफलता पर हंसी आयेगी और सफलता का स्वागत करेगा। जीवन की विविध परिस्थितियां तथा विविध उपलब्धियां उसकी प्रसन्नता को बढ़ा ही सकती हैं घटा नहीं सकती।
यह सही है कि संसार का कोई मनुष्य दुःख की कामना नहीं करता। यदि चाहता है तो केवल सुख ही चाहता है। किन्तु एक मात्र सुख की स्वार्थपूर्ण कामना का अर्थ यह है कि दुःख क्लेश आ जाने पर हाय-हाय करते हुए हाथ-पैर छोड़कर बैठे रहना और दुर्भाग्य अथवा नियति को कोसते रहना। इस प्रकार की निरुत्साह वृत्ति ही सुख की स्वार्थ कामना है जो कि किसी मानव को शोभा नहीं देती।
एक मात्र सुख की आकांक्षा रखने वाले दुःख क्लेशों से भयभीत होने वाले न केवल स्वार्थी ही होते हैं अपितु कायर भी होते हैं। कायरता मनुष्य जीवन का कलंक है जो संघर्षों, मुसीबतों एवं आपत्तियों से डरता है, उनके आने पर निराश अथवा निरुत्साहित हो जाता है वह और कोई बड़ा काम कर सकना तो दूर साधारण मनुष्यों की तरह साधारण जीवन भी यापन नहीं कर सकता है। संसार में न तो आज तक ऐसा कोई मनुष्य हुआ है और न आगे ही होगा जिसके जीवन में सदा प्रसन्नता की परिस्थितियां ही बनी रहे। उसे कभी दुःख क्लेश के तप्त झोंके न सहन करने पड़े हों।
राजा से लेकर रंक तक और बलवान से लेकर निर्बल तक प्रत्येक प्राणी को अपनी-अपनी स्थिति में अपनी तरह के दुःख क्लेश उठाने ही पड़ते हैं। कभी शारीरिक कष्ट, कभी मानसिक क्लेश, कभी सामाजिक कठिनाई कभी आर्थिक अभाव तो कभी आध्यात्मिक अन्धकार मनुष्य को सताते ही रहते हैं। सदा सर्वदा कोई भी व्यक्ति कष्ट एवं कठिनाइयों से सर्वथा मुक्त नहीं रह सकता। तब ऐसी अनिवार्य अवस्था में किसी प्रकार की कठिनाई, आ जाने पर निराश, चिन्तित अथवा क्षुब्ध हो उठना इस बात का प्रमाण है कि हम संसार के शाश्वत नियमों से सामंजस्य स्थापित नहीं करना चाहते, हम असामान्यता के प्रति हठी अथवा दुराग्रही बने रहना चाहते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति- दिसंबर 1966 पृष्ठ 21

शानदार जिन्दगी जिएँ | Shandar JIndagi Jiye

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!! आज के दिव्य दर्शन 28 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
क्रिया और विचार इन दोनों का अगर समन्वय कर डालें, तो चमत्कार पैदा हो जाए। एक पक्षी होता है, नाम है उसका बया। घोंसला बनाता है, ऐसी तबीयत से बनाता है, कैसे मन से बनाता है? कि छोटे-छोटे तिनके, उनको लेकर के गुँथ के ऐसा बढ़िया बना देता है कि क्या मजाल है, बच्चा उसका पानी में झपट्टा मार ले। बच्चे मौज के साथ अंदर बैठे रहते हैं और कोई आदमी सड़क पर से निकलता है, तो देखता रहता है। यह बया का घोंसला है, देखना कैसा बया का घोंसला है। हर जगह यह प्रशंसा होती है कि बया स्वयं प्रसन्न रहता है, देखने वालों की तबीयत बाग-बाग हो जाती है।
क्या विशेषता है बया में? कोई विशेषता नहीं है, बेटे। मन लगाकर के काम करता है। मन लगा करके काम न किया जाए, तो बेटे, सत्यानाश हो जाता है। एक पक्षी का नाम है कबूतर। कबूतर बया के मुकाबले चार-पाँच गुना बड़ा होता है। इतना बड़ा होता है और घोंसला बनाता है। घोंसला कैसे बनाता है? बया का घोंसला जरा देखना, कबूतर का घोंसला देखना। बड़ी-बड़ी लकड़ी बीन के ले आता है, एक इधर धर दी, एक उधर धर दी, एक इधर-उधर से लकड़ी इधर-उधर रख लेता है और फिर वहीं अपने अंडे देने लगता है। उसी पर बैठा रहता है। हवा का झोंका आता है, बस घोंसला गिरता है नीचे, और कबूतर गिरता है ऊपर। बस अंडे फूट के अलग पड़ जाते हैं, बच्चे मरके जहन्नुम में चले जाते हैं। सारी की सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है और देखने वाले कहते हैं, "ये कबूतर कैसा बेअकल है और कैसा बेवकूफ है।"
मैं क्या कहता हूँ? मैं ये कहता हूँ, किसी की क्रिया सामान्य जीवन की, बहिरंग जीवन की मामूली कामों के लिए और काम में तबियत नहीं लगाएं, आप मन नहीं लगाएं, तब काम बड़ा फूहड़, कुरूप, बेसिरा, बेहूदा, बेढंगा हो जाएगा। काम को किसी में मन लगा दे, तब उसमें तब चमत्कार दिखाई पड़ेगा, जादू दिखाई पड़ेगा। मन लगा के किए हुए काम और बिना मन लगाके किए हुए कामों में जमीन आसमान का फर्क होता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
मित्रो ! स्मरण रखिए, रुकावटें और कठिनाइयाँ आपकी हितचिंतक हैं। वे आपकी शक्तियों का ठीक-ठीक उपयोग सिखाने के लिए हैं। वे मार्ग के कंटक हटाने के लिए हैं। वे आपके जीवन को आनंदमय बनाने के लिए हैं। जिनके रास्ते में रुकावटें नहीं पड़ीं, वे जीवन का आनंद ही नहीं जानते। उनको जिंदगी का स्वाद ही नहीं आया। जीवन का रस उन्होंने ही चखा है, जिनके रास्ते में बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ आई हैं। वे ही महान् आत्मा कहलाए हैं, उन्हीं का जीवन, जीवन कहला सकता है।
उठो ! उदासीनता त्यागो। प्रभु की ओर देखो। वे जीवन के पुंज हैं। उन्होंने आपको इस संसार में निरर्थक नहीं भेजा। उन्होंने जो श्रम आपके ऊपर किया है, उसको सार्थक करना आपका काम है। यह संसार तभी तक दु:खमय दीखता है, जब तक कि हम इसमें अपना जीवन होम नहीं करते। बलिदान हुए बीज पर ही वृक्ष का उद्ïभव होता है। फूल और फल उसके जीवन की सार्थकता सिद्घ करते हैं।
सदा प्रसन्न रहो। मुसीबतों का खिले चेहरे से सामना करो। आत्मा सबसे बलवान है, इस सच्चाई पर दृढ़ विश्वास रखो। यह विश्वास ईश्वरीय विश्वास है। इस विश्वास द्वारा आप सभी कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं। कोई कायरता आपके सामने ठहर नहीं सकती। इसी से आपके बल की वृद्धि होगी। यह आपकी आंतरिक शक्तियों का विकास करेगा।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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