Tuesday 29, October 2024
कृष्ण पक्ष द्वादशी, कार्तिक 2081
पंचांग 29/10/2024 • October 29, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | द्वादशी तिथि 10:32 AM तक उपरांत त्रयोदशी | नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी 06:34 PM तक उपरांत हस्त | इन्द्र योग 07:47 AM तक, उसके बाद वैधृति योग | करण तैतिल 10:32 AM तक, बाद गर 11:54 PM तक, बाद वणिज |
अक्टूबर 29 मंगलवार को राहु 02:44 PM से 04:06 PM तक है | चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:33 AM सूर्यास्त 5:28 PM चन्द्रोदय 3:31 AM चन्द्रास्त 3:53 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष द्वादशी - Oct 28 07:51 AM – Oct 29 10:32 AM
- कृष्ण पक्ष त्रयोदशी - Oct 29 10:32 AM – Oct 30 01:15 PM
नक्षत्र
- उत्तर फाल्गुनी - Oct 28 03:24 PM – Oct 29 06:34 PM
- हस्त - Oct 29 06:34 PM – Oct 30 09:43 PM
मन में सद्भावनाएँ रखें
नदी का पानी
EP:- 06, धैर्य एक महत्वपूर्ण गुण है
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 29 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
हमें माली की जिंदगी जीनी चाहिए |
समाज निर्माण से पहले व्यक्ति निर्माण
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हममें से हर व्यक्ति अपने को समाज का एक अविच्छिन्न अंग मानें। अपने को उसके साथ अविभाज्य घटक मानें। सामूहिक उत्थान और पतन पर विश्वास करें। एक नाव में बैठे लोग जिस तरह एक साथ डूबते या पार होते हैं, वैसी ही मान्यता अपनी रहे। स्वार्थ और परमार्थ को परस्पर गुँथ दें। परमार्थ को स्वार्थ समझें और स्वार्थ सिद्धि की बात कभी ध्यान में आये तो वह संकीर्ण नहीं उदात्त एवं व्यापक हो। मिल जुलकर काम करने और मिल बाँटकर खाने की आदत डाली जाय।
मनुष्यों के बीच सज्जनता, सद्भावना एवं उदार सहयोग की परम्परा चले। दान विपत्ति एवं पिछड़ेपन से ग्रस्त लोगों को पैरों पर खड़े होने तक के लिए दिया जाय। इसके अतिरिक्त उसका सतत प्रवाह सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन के लिए ही नियोजित हो। साधारणतया मुफ्त में खाना और खिलाना अनैतिक समझा जाय। इसमें पारिवारिक या सामाजिक प्रीति भोजों का जहाँ औचित्य हो, वहाँ अपवाद रूप से छूट रहे। भिक्षा व्यवसाय पनपने न दिया जाय। दहेज, मृतक भोज, सदावर्त धर्मशाला आदि ऐसे दान जो मात्र प्रसन्न करने भर के लिये दिये जाते हैं और उस उदारता के लाभ समर्थ लोग उठाते हैं, अनुपयुक्त माने और रोके जायें। साथ ही हर क्षेत्र का पिछड़ापन दूर करने के लिए उदार श्रमदान और धनदान को अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाय।
किसी मान्यता या प्रचलन को शाश्वत या सत्य न माना जाय, उन्हें परिस्थितियों के कारण बना समझा जाय। उनमें जितना औचित्य, न्याय और विवेक जुड़ा हो उतना ग्राह्य और जो अनुपयुक्त होते हुए भी परम्परा के नाम पर गले बंधा हो, उसे उतार फेंका जाय। समय- समय पर इस क्षेत्र का पर्यवेक्षण होते रहना चाहिये और जो असामयिक, अनुपयोगी हो उसे बदल देना चाहिये। इस दृष्टि से लिंग भेद, जाति भेद के नाम पर चलने वाली विषमता सर्वथा अग्राह्य समझी जाय।
सहकारिता का प्रचलन हर क्षेत्र में किया जाय। अलग- अलग पड़ने की अपेक्षा सम्मिलित प्रयत्नों और संस्थानों को महत्त्व दिया जाय। संयुक्त परिवार से लेकर संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त विश्व को लक्ष्य बनाकर चला जाय। विश्व परिवार का आदर्श कार्यान्वित करने का ठीक समय यही है। सभी प्रकार के विलगावों को निरस्त किया जाय। व्यक्ति की सुविधा की तुलना में समाज व्यवस्था को वरिष्ठता मिले। प्रशंसा ऐसे ही प्रयत्नों की हो जिन्हें सर्वोपयोगी कहा जाय। व्यक्तिगत समृद्धि, प्रगति एवं विशिष्टता को श्रेय न मिले। उसे कौतूहल मात्र समझा जाय।
अवांछनीय मूढ़ मान्यताओं और कुरीतियों को छूत की बीमारी समझा जाय। वे जिस पर सवार होती है उसे तो मारती ही हैं, अन्यान्य लोगों को भी चपेट में लेती और वातावरण बिगाड़ती हैं। इसलिए उनका असहयोग, विरोध करने की मुद्रा रखी जाय और जहाँ सम्भव हो उनके साथ समर्थ संघर्ष भी किया जाय। समाज के किसी अंग पर हुआ अनीति का हमला समूचे समाज के साथ बरती गई दुष्टता माना जाय और उसे निरस्त करने के लिए जो मीठे- कड़ुवे उपाय हो सकते हों, उन्हें अपनाया जाय। अपने ऊपर बीतेगी तब देखेंगे, इसकी प्रतीक्षा करने की अपेक्षा कहीं भी हुए अनीति के आक्रमण को अपने ऊपर हमला माना जाय और प्रतिकार के लिए दूरदर्शितापूर्ण रणनीति अपनायी जाय।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अपराधियों को आप जानते हैं ना शराबियों को आप जानते हैं ना आलसियों को आप जानते है ना फिजूल खर्चों को आप जानते हैं ना यह कौन है यह सब सब वो आदमी है जो आज की सुविधाओं को तो ध्यान देते हैं और यह भूल जाते हैं कि हमारा भविष्य क्या होना है शराबी इस समय के मजे को देखता है और यह देखता है इस समय हम को कैसा जायका आ रहा है कैसा आनंद आ रहा है ये भूल जाता है कल हमारा लीवर खराब होने वाला है दिमाग खराब होने वाला है जिंदगी में कमी होने वाली है हमारी अक्ल खराब होने वाली है हमारे कुटुंब की तबाही होने वाली है हमारी बदनामी होने वाली है यह कल तो होगी ना कल का आपको ख्याल ही नहीं कल का ख्याल नहीं आता तब तब उसको शराब पीने में कोई एतराज नहीं है। लेकिन जिसको कल का ख्याल है अपने शरीर का ही खयाल है अपनी बदनामी का ख्याल है अपनी आमदनी का ख्याल है अपनी घर गृहस्थी की जिम्मेदारी का ख्याल है जैसे यह ख्याल आएगा तब वह शराब पीने से ऐतराज करने लगेगा और छोड़ देगा |
पंडित श्रीराम शर्मा शर्मा
अखण्ड-ज्योति से
पश्चिम में तथा अमरीका में बहुत से धनी लोग बेशुमार दान करते हैं, वे बड़े बड़े अस्पताल और बड़ी बड़ी संस्थाएँ बनाते हैं। वे यह सब कुछ केवल सहानुभूति और मनुष्य जाति पर दया करने के नाते ही करते हैं, उनके लिए यह सब समाज सेवा है और ईश्वर समाज का आधार है और मनुष्य ईश्वर का व्यक्तित्व प्रकट करता है। वे अभिमान रहित होकर कर्त्तापन की बुद्धि को छोड़ कर और फल की आशा को छोड़कर सेवा नहीं करते, उनके लिए यह सेवायोग (कर्मयोग) नहीं है।
उनके वास्ते यह सेवा केवल दान विषयक कर्म है, उनके लिए सेवा केवल मनुष्यता का धर्म है, उनमें किसी दर्जे तक मनुष्य−जाति के लिये सहानुभूति इस सेवा के द्वारा बढ़ जाती है, उनको कर्मयोग के अभ्यास से चित्त शुद्धि करके आत्मज्ञान प्राप्त करने का विचार नहीं आता, उनको जीवन के लक्ष्य (उद्देश्य) का कुछ ज्ञान नहीं होता, उनको ईश्वर की सत्ता में भी दृढ़ विश्वास नहीं होता। जो कर्मयोग के सिद्धान्त को समझकर ईश्वर की सत्ता में दृढ़ विश्वास रखते हुए कर्म करते हैं वे अपने लक्ष्य को जल्दी पहुँच जावेंगे।
कर्मयोग के अभ्यास के लिए बहुत धन होना आवश्यक नहीं है, आप अपने धन और मन से सेवा कर सकते हैं। यदि किसी निर्धन रोगी को सड़क के किनारे पड़ा हुआ देखो तो उसको थोड़ा जल या दूध पीने को दो, मीठे आश्वासन से उसको प्रसन्न करो, उसको ताँगे में बैठाओ और पास के अस्पताल में ले जाओ, यदि तुम्हारे पास ताँगे का किराया देने के लिये पैसा नहीं है तो रोगी को अपनी पीठ पर उठाकर ले जाओ और उसको अस्पताल में दाखिल कराने का इन्तजाम कर दो। यदि तुम इस प्रकार सेवा करोगे तो तुम्हारा चित्त जल्दी शुद्ध हो जावेगा। निर्धन, निःसहाय मनुष्यों की इस प्रकार की सेवा से परमात्मा ज्यादा खुश होता है, न कि धनी लोगों की शान−शौकत से की हुई सेवा से।
श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज
अखण्ड ज्योति, मार्च 1955 पृष्ठ 8
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