Wednesday 30, October 2024
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कार्तिक 2081
पंचांग 30/10/2024 • October 30, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | त्रयोदशी तिथि 01:15 PM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र हस्त 09:43 PM तक उपरांत चित्रा | वैधृति योग 08:51 AM तक, उसके बाद विष्कुम्भ योग | करण वणिज 01:16 PM तक, बाद विष्टि 02:36 AM तक, बाद शकुनि |
अक्टूबर 30 बुधवार को राहु 12:00 PM से 01:22 PM तक है | चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:34 AM सूर्यास्त 5:27 PM चन्द्रोदय 4:24 AM चन्द्रास्त4:18 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष त्रयोदशी - Oct 29 10:32 AM – Oct 30 01:15 PM
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी - Oct 30 01:15 PM – Oct 31 03:53 PM
नक्षत्र
- हस्त - Oct 29 06:34 PM – Oct 30 09:43 PM
- चित्रा - Oct 30 09:43 PM – Nov 01 12:44 AM
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हे गुरुवर के ज्ञान दूत तुम ज्ञान ज्योति संचार करों |
दीपवाली क्यों मनाई जाती है ?
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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 30 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
ईश्वर-शक्ति का आदि स्रोत
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
Aap Apne Aap Ko Pariskrit Kare
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
दूरदर्शिता की कमी जिस आदमी में है वह सिर्फ आज की बात विचार करता है अपराधियों के बारे में भी यही बात है शराबियों के बारे में जुआरी को आपने देखा है ना चोरों को देखा है ना इस समय हम फायदा उठा लेते हैं अरे भई इस समय तो फायदा उठा लेते हो पर भविष्य तुम्हारा क्या बनेगा दूसरा आदमी कौन सहयोग करेगा दूसरा आदमी कौन अपने पास बैठने देगा जहां कहीं भी किसी का सहयोग मांगने जाएंगे वह यही ख्याल तो करेगा ना कि चोर और उचक्का है हमारे पास रहेगा हमको हैरान करेगा किसी न किसी तरीके से तंग करेगा इसलिए अच्छा होते हुए भी कुटुंबी होते हुए भी मित्र होते हुए भी अपने खानदान का और परिवार का होते हुए भी आदमी हर आदमी चाहता है कि यह किसी तरीके से काला मुंह करे और हमसे दूर चला जाए क्यों क्या वजह हुई क्राइम क्राइम आदमी के व्यक्तित्व को खत्म कर देता है आमदनी क्या मिली क्या नहीं मिली मैं नहीं कहता आप से आपने जेब काट के क्या कमा लिया चोरी बेईमानी से क्या क्या कमा लिया यह आपकी मर्जी के ऊपर है पर आपने अपना भविष्य खराब कर दिया अब आपको सहयोग की गुंजाइश नहीं है
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
ईश्वर हमारे जीवन तथा कर्म का आदि स्रोत है, हमारे हृदय-मंदिर में प्रकाश करने वाला तेल पुंज है, हमारे जीवन का प्राण और श्वॉस है। ईश्वरीय आशाविहीन व्यक्ति उस सूखी पत्ती की तरह है जो विपरीत हवा में यत्र-तत्र मारी-मारी फिरती है। निराशा और वेदनाएँ उसे एक ओर खींचती हैं, तो व्यर्थ के प्रलोभन, लोभ, अतृप्ति दूसरी विपरीत दिशा में आकर्षित करती हैं। मैं ईश्वर के तेज की एक रश्मि हूँ। ईश्वरीय सत्ता में मुझे अंतत: विलीन हो जाना है। मैं जहाँ से जन्मा हूँ, वहीं पहुँच जाऊँगा। मेरी आत्मा सत्-चित्-आनंद स्वरूप परमेश्वर का अंश है। मुझ में मेरे प्रभु के गुण ही प्रकाशित हो सकते हैं। अनीति, अन्याय, अनर्थ से मेरा कोई संबंध नहीं, ऐसी आस्तिक भावना मन:प्राण में संचित रखने वाला सदा-सर्वदा कमल के समान प्रफल्लित रहता है। संकट में, पिदा में, निराशा के अवसरों पर दैवी-सत्ता से तादात्म्य आप को वह अंतर्बल देगा, जिसके द्वारा आप आंतरिक शक्ति पाते रहेंगे। ईश्वर-शक्ति का आदि स्रोत है। उससे हमारी आत्मा को सहनशक्ति प्राप्त होती है। इस अंतर्बल से व्यक्ति सब परिस्थितियों में बाह्यजगत् के संकटों से सुरक्षित रहता है। ईश्वर की सद्योजनाओं में अपने विश्वास को निरंतर बढ़ाते चलिए। पूजन, जप, भजन, संध्या तथा नाना साधनाएँ आप को सदा दैवी तत्त्व से जोड़े रखती हैं।
-अखण्ड ज्योति-नंव. ५३
अखण्ड-ज्योति से
अगले दिन बहुत ही उलट-पुलट से भरे हैं। उनमें ऐसी घटनायें घटेंगी ऐसे परिवर्तन होंगे जो हमें विचित्र भयावह एवं कष्टकर भले ही लगें पर नये संसार की अभिनव रचना के लिए आवश्यक हैं। हमें इस भविष्यता का स्वागत करने के लिए-उसके अनुरूप ढलने के लिए-तैयार होना चाहिये। यह तैयारी जितनी अधिक रहे उतना ही भावी कठिन समय अपने लिये सरल सिद्ध होगा।
भावी नर संहार में आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को अधिक पिसना पड़ेगा। क्योंकि महाकाल का कुठाराघात सीधा उन्हीं पर होना है। “परित्राणाय साधूनाँ विनाशायश्च दुष्कृताम्” की प्रतिज्ञानुसार भगवान को युग-परिवर्तन के अवसर पर दुष्कृतों का ही संहार करना पड़ता है। हमें दुष्ट दुष्कृतियों की मरणासन्न कौरवी सेना में नहीं, धर्म-राज की धर्म संस्थापना सेना में सम्मिलित रहना चाहिये। अपनी स्वार्थपरता, तृष्णा और वासना को तीव्र गति से घटाना चाहिए और उस रीति-नीति को अपनाना चाहिये जो विवेकशील परमार्थी एवं उदारचेता सज्जनों को अपनानी चाहिये।
संकीर्णताओं और रूढ़ियों की अन्य कोठरी से हमें बाहर निकलना चाहिए। अगले दिनों विश्व-संस्कृति, विश्व-धर्म, विश्व-भाषा, विश्व-राष्ट्र का जो भावी मानव समाज बनेगा उसमें अपनी-अपनी महिमा गाने वालों और अपनी ढपली अपना राग गाने वालों के लिये कोई स्थान न रहेगा। पृथकतावादी सभी दीवारें टूट जायेंगी और समस्त मानव समाज को न्याय एवं समता के आधार पर एक परिवार का सदस्य बन कर रहना होगा। जाति लिंग या सम्पन्नता के आधार पर किसी को वर्चस्व नहीं मिलेगा। इस समता के अनुरूप हमें अभी से ढलना आरम्भ कर देना चाहिये।
धन-संचय और अभिवर्धन की मूर्खता हमें छोड़ देना ही उचित है, बेटे पोतों के लिए लम्बे चौड़े उत्तराधिकार छोड़ने की उपहासास्पद प्रवृत्ति को तिलाँजलि देनी चाहिये क्योंकि अगले दिनों धन का स्वामित्व व्यक्ति के हाथ से निकल कर समाज, सरकार के हाथ चला जायगा। केवल शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार एवं सद्गुणों की सम्पत्ति ही उत्तराधिकार में दे सकने योग्य रह जायगी। इसलिए जिनके पास आर्थिक सुविधायें हैं वे उन्हें लोकोपयोगी कार्यों में समय रहते खर्च करदें ताकि उन्हें यश एवं आत्म-संतोष का लाभ मिल सके। अन्यथा वह संकीर्णता मधुमक्खी के छत्ते पर पड़ी डकैती की तरह उनके लिये बहुत ही कष्ट-कारक सिद्ध होगी।
लंका विजय में श्री राम के साथी रीछ-वानरों की तरह गिद्ध और गिलहरी की भाँति हमें युग-निर्माण योजना के महान अभियान में तत्परतापूर्वक संलग्न होना चाहिये। यह प्रयत्न एवं पुरुषार्थ नव युग के स्वागत की सच्ची अगवानी का महत्वपूर्ण आयोजन माना जायगा। विवेकशील और दूरदर्शी प्रबुद्ध व्यक्तियों को इस महत्वपूर्ण समय का उपयोग इसी दिशा में कदम उठाते हुए करना चाहिये। जो समय रहते अपने को बदल सकेंगे वस्तुतः वे ही शाँति और सन्तोष अनुभव करेंगे।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जुलाई 1967
यदि किसी के शरीर के किसी अंग में घोर पीड़ा हो तो उसके उस अंग को धीरे−धीरे दबाओ और अपने हृदय से प्रार्थना भी करो कि हे भगवान इस मनुष्य का दुःख दूर कर इसको शान्ति में रहने दे और इसका स्वभाव अच्छा हो जावे।
यदि आप किसी मनुष्य या पशु का खून बहता हुआ देखो तो कपड़े के लिये इधर−उधर मत भागे फिरो, बल्कि अपनी धोती या कमीज में से, कुछ परवा नहीं कितना भी कीमती हो एक टुकड़ा फाड़ कर उसके पट्टी बाँध दो, यदि वह कीमती रेशमी कपड़ा भी है तो भी उसको फाड़ने में शंका मत करो, यह सच्चा कर्मयोग है। यह आपके हृदय को जाँचने के लिये काँटा है, आपमें से कितनों ने इस प्रकार की सेवा की है, यदि अभी तक आपने ऐसा नहीं किया है तो आज से शुरू कर दो।
जब आपका पड़ौसी या कोई निर्धन आदमी रोगग्रस्त हो तो उसके लिये अस्पताल से दवाई ला दो। सावधानी से उसकी सेवा करो, उसके कपड़े खाने के बर्तन और टट्टी−पेशाब के बर्तन साफ करो, यह अनुभव करो कि उस रोगी मनुष्य के रूप में आप ईश्वर की सेवा कर रहे हो। इस प्रकार आपका मन बहुत ऊँचा उठ जावेगा और दैवी प्रेरणा प्राप्त होगी, उससे हर्ष−दायक शब्द कहो, उसके पंगग के पास बैठो। उसके स्वस्थ होने के लिए प्रभु से प्रार्थना करो। इस प्रकार के कर्मों से आप में दया और प्रेम की वृद्धि होने में सहायता मिलेगी, इसमें घृणा, द्वेष और शत्रुता का नाश होगा और आप दैवत्व में बदल जाओगे।
श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज
अखण्ड ज्योति, मार्च 1955 पृष्ठ 8
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