Thursday 17, April 2025
कृष्ण पक्ष चतुर्थी, बैशाख 2025
पंचांग 17/04/2025 • April 17, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | चतुर्थी तिथि 03:23 PM तक उपरांत पंचमी | नक्षत्र अनुराधा 05:55 AM तक उपरांत ज्येष्ठा | वरीयान योग 12:50 AM तक, उसके बाद परिघ योग | करण बालव 03:23 PM तक, बाद कौलव 04:19 AM तक, बाद तैतिल |
अप्रैल 17 गुरुवार को राहु 01:52 PM से 03:29 PM तक है | चन्द्रमा वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:52 AM सूर्यास्त 6:41 PM चन्द्रोदय 10:57 PM चन्द्रास्त 8:53 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष चतुर्थी
- Apr 16 01:17 PM – Apr 17 03:23 PM
- कृष्ण पक्ष पंचमी
- Apr 17 03:23 PM – Apr 18 05:07 PM
नक्षत्र
- अनुराधा - Apr 16 03:10 AM – Apr 17 05:55 AM
- ज्येष्ठा - Apr 17 05:55 AM – Apr 18 08:21 AM

देवतओं को दक्षिणा के रूप में क्या दें ? | Devtaon Ko Dakshina Ke Roop Mei Kya De

शान्ति तो अन्दर ही खोजनी पड़ती है, Shanti To Andar Hi Khojani Padati Hai | Pt Shriram Sharma Acharya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन












आज का सद्चिंतन (बोर्ड)



आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 17 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 17 April 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 17 April 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
संतुलन जब भी बिगड़ते हैं तो भगवान उसको संतुलन को बनाते हैं आज भावनात्मक संतुलन बिगड़ रहा है और भगवान उस भावनात्मक संतुलन को बना करके ही अपनी सृष्टि को सुखी रख सकते हैं अन्यथा यह सृष्टि दुख और दर्द में डूब जाएगी शोक और संताप में डूब जाएगी एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का खून पीने लगेगा और परस्पर के स्नेह और उसका सद्भाव जो कि सुख और शांति के मूलभूत आधार हैं थोड़े दिनों में समाप्त हो करके रहेंगे फिर यह दुनिया नर्क की तरीके से मरगट की तरीके से बन जाएगी भली से इसमें धन अंधाधुंध क्यों हो भली से इसमें सुविधा साधन कितने भी बड़े चढ़े क्यों न हों भली से इसमें मनुष्यों के पास सोने और चाँदी की ईटें खाने के लिए क्यों ना हो लेकिन यह दुनिया नर्क बन जाएगी और मनुष्य की भावनाएँ निरस्त हो गईं तब इस बात को भगवान समझते हैं और उस भगवान ने इस असंतुलन को संतुलन के रूप में परिवर्तित करने के लिए युग निर्माण आंदोलन का प्रादुर्भाव किया है और जिस जिस शक्ति के लिया है प्रादुर्भाव किया है वही उसकी सफलता के लिए भी जिम्मेदार है मानवीय प्रयास उसके लिए हो यह अच्छी बात है लेकिन मानवीय प्रयास यदि ना हो तो भी उसकी सफलता में संदेह नहीं किया जा सकता प्राचीन काल में ऐसी घटनाएं हुई भी हैं मानवीय प्रयास न मिल सके भगवान राम लंका को विजय करने के लिए चले थे पाप और असुर का जो केंद्र था उसको ध्वंस करने के लिए चले थे मानवीय सहयोग की अपेक्षा की गई थी मानवीय सहयोग उसमें मिलना चाहिए राजाओं का सहयोग मिलना चाहिए संपन्न लोगों का सहयोग मिलना चाहिए शूरवीरों को रावण से लड़ने के लिए चलना चाहिए लेकिन कोई शूरवीर आगे नहीं आया कोई राजा उस जमाने में नहीं नहीं थे ऐसे ऐसी बात नहीं थी लेकिन कोई भी सहयोग नहीं आया मानवीय सहयोग न मिल सका मानवीय सहयोग न मिल सका लेकिन क्यों जी क्या लंका पर विजय प्राप्त न की जा सकी क्या कुंभकरण मेघनाथ नहीं मारे गए क्या लंका का ध्वंस नहीं हुआ क्या पाप का अंत नहीं हुआ हुआ बिना मानवीय प्रयासों के मानवीय सहयोग के बिना मानवीय सहयोग का अभाव भी काम कर सकता है यह हमको मानकर चलना चाहिए अगर हम यह यह समझते हो कि हमारे बिना गाड़ी चलने वाली नहीं है और हम सहयोग नहीं करेंगे तो यह आंदोलन सफल नहीं होगा तो अपनी यह भ्रम अपने मन में से निकाल देना चाहिए बिना सहयोग के बिना भी बिना मनुष्यों के योगदान दिए बिना भी ये आंदोलन पूरा हो करके रह सकता है
अखण्ड-ज्योति से
शान्ति की खोज में चलने वाले पथिक को यह जान लेना चाहिए कि अकेले रहने या जंगल पर्वतों में निवास करने से शांति का कोई सम्बन्ध नहीं। यदि ऐसा होता, तो अकेले रहने वाले जीव जन्तुओं को शान्ति मिल गई होती और जंगल पर्वतों में रहने वाली अन्य जातियाँ कब की शान्ति प्राप्त कर चुकी होतीं।
अशान्ति का कारण है आन्तरिक दुर्बलता। स्वार्थी मनुष्य बहुत चाहते हैं और उसमें कमी रहने पर खिन्न होते हैं। अहंकारी का क्षोभ ही उसे जलाता रहता है। कायर मनुष्य हिलते हुए पत्ते से भी डरता है और उसे अपना भविष्य अन्धकार से घिरा दीखता है। असंयमी की तृष्णा कभी शान्त नहीं होती । इस कुचक्र में फँसा हुआ मनुष्य सदा विक्षुब्ध ही रहेगा भले ही उसने अपना निवास सुनसान एकान्त में बना लिया हो।
नदी या पर्वत सुहावने अवश्य लगते हैं। विश्राम या जलवायु की दृष्टि से वे स्वास्थ्यकर हो सकते हैं पर शान्ति का उनमें निवास नहीं। चेतन आत्मा को यह जड़ पदार्थ भला शान्ति कैसे दे पावेंगे? शान्ति अन्दर रहती है और जिसने उसे पाया है उसे अन्दर ही मिली है। अशान्ति उत्पन्न करने वाली विकृतियों को जब तक परास्त न किया जाय तब तक शान्ति का दर्शन नहीं हो सकता, भले ही कितने ही सुरम्य स्थानों में कोई निवास क्यों न करता रहे।
सन्त तिरुवल्लुवर
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1964 पृष्ठ 1
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