Sunday 30, March 2025
शुक्ल पक्ष प्रथमा, चैत्र 2025
पंचांग 30/03/2025 • March 30, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | प्रतिपदा तिथि 12:49 PM तक उपरांत द्वितीया | नक्षत्र रेवती 04:35 PM तक उपरांत अश्विनी | इन्द्र योग 05:53 PM तक, उसके बाद वैधृति योग | करण बव 12:49 PM तक, बाद बालव 11:00 PM तक, बाद कौलव |
मार्च 30 रविवार को राहु 04:58 PM से 06:30 PM तक है | 04:35 PM तक चन्द्रमा मीन उपरांत मेष राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:13 AM सूर्यास्त 6:30 PM चन्द्रोदय 6:29 AM चन्द्रास्त 7:46 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष प्रतिपदा
- Mar 29 04:27 PM – Mar 30 12:49 PM
- शुक्ल पक्ष द्वितीया
- Mar 30 12:49 PM – Mar 31 09:11 AM
नक्षत्र
- रेवती - Mar 29 07:26 PM – Mar 30 04:35 PM
- अश्विनी - Mar 30 04:35 PM – Mar 31 01:45 PM

आपको और आपके परिवार को भी नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ! 🙏

धन और साधनों का क्या महत्व है ? Dhan Aur Sadhno Ka Kya Mehtav Hai

Navratri Day 1 | Maa Shailputri | माँ शैलपुत्री |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन









आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma Himalaya Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 30 March 2025 !!

!! आज के दिव्य दर्शन 30 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 30 March 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 30 March 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 30 March 2025

!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 30 March 2025 !!

!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 30 March 2025

!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 30 March 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आपको चलिए हम बताते हैं, मन भाग जाए तो हमसे कहना। आप क्या करें, बेटे, किसी काम में मन को लगाए रखें। मन की बनावट ऐसी है, जब काम नहीं होगा, तब मन भागेगा। मन की, जब आप भागने की शिकायत करते हैं, तो मैं उसका उत्तर ये देता हूँ हमेशा कि आपने मन को किसी काम में नहीं लगाया। काम में नहीं लगाया होगा, तो वह भागेगा। घोड़े को आप काम में लगाइए, तांगे में चला दीजिए, कहीं भी चला दीजिए, सवारी में काम लीजिए, घोड़ा काम से लगा रहेगा। घोड़े को खोल दीजिए, गले में से रस्सा खोल दीजिए, भागेगा। कहाँ भाग गया? घोड़ा भाग गया, और मालूम नहीं कहाँ भाग गया। खेत में भाग गया, पकड़ना नहीं, तो भाग गया। बैल को खाली छोड़ दीजिए, भाग जाएगा। उपासना के समय पर हम अक्सर मन को खाली छोड़ देते हैं, छुट्टा छोड़ देते हैं, कोई काम नहीं सौंपते, कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपते, इसीलिए मन भागेगा ही। नहीं जाएगा। क्या बेचारा भागेगा नहीं, तो क्या करेगा? नहीं साहब, मन भागना नहीं चाहिए। बेटा, भागने की उसकी बनावट है, भागेगा नहीं, तो क्या करेगा? उसकी बनावट ही ऐसी है, संवेदना ही उसकी संरचना ही ऐसी है, इसके इलेक्ट्रान ऐसे ढंग से बनाए गए हैं, उसको भागना चाहिए। भागना तो स्वभाव है, भागेगा नहीं तो आदमी तो हो जाएगा। सिद्ध पुरुष समाधि में चला जाएगा, जिसका मन नहीं भागेगा, तो फिर क्या? पागल हो जाएगा। दो में से एक काम होगा, मन को तो भागना चाहिए। मन का तो स्वभाव है, मन का कोई कसूर नहीं दे सकते। मन को बंद कीजिए, बेटे, बंद नहीं हो सकता। बंद करने के क्या तरीके हैं? मैं कल समझा रहा था, उपासना कल आपको ये समझा रहा था, आपकी क्रिया के साथ-साथ मन को लगाइए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
गायत्री साधना का प्रत्यक्ष परिणाम है-सात्विक आत्मबल की अभिवृद्धि। सात्विक आत्मबल के दस लक्षण हैं- उत्साह, सतत परिश्रम, कत्र्तव्यपरायणता, संयम, मधुर स्वभाव, धैर्य, अनुद्वेग, उदारता, अपरिग्रह और तत्त्वज्ञान। यदि कोई व्यक्ति सच्ची गायत्री साधना कर रहा है, तो उसमें अवश्य ही ये गुण बढ़ेंगे और जैसे-जैसे यह बढ़ोतरी आगे चलेगी, वैसे ही वैसे जीवन की कठिनाइयों का समाधान होता चलेगा। जब साधक की आत्मा गायत्री शक्ति से परिपूर्ण हो जाती है, तो उसे किसी भी प्रकार का कोई कष्टï, अभाव या दु:ख नहीं रह जाता। वह निरंतर पूर्ण परमानन्द का, ब्रह्मïानंद का अलौकिक रसास्वादन करता रहता है।
भ्रांत, पथ-भ्रष्ट, लालची, गायत्री को मुफ्त में ठगने का षड्यंत्र करने वाले लोग सच्ची साधना नहीं कर सकते। करना तो दूर, उसे ठीक तरह समझ भी नहीं सकते। वे जिव्ह्वा के अग्र भाग से 24 अक्षरों की तोता रटंत करते हैं; अंत:करण में श्रद्धा-विश्वास का नाम भी नहीं होता, मातृ-भक्ति का प्रेमांकुर कहीं दीख नहीं पड़ता। जितने मिनट चौबीस अक्षर रटते हैं, उतने समय अपनी अवांछनीय, अनैतिक, अवास्तविक मृग तृष्णाओं में ही मन को लपलपाते रहते हैं। दस-पाँच दिन जप करने पर यदि उनकी सब तृष्णाएँ पूरी नहीं हो गयीं, तो उनका साहस टूट जाता है और साधना को छोड़ बैठते हैं। साधना विधि से छोटे-छोटे नियम बंधनों तक को गवारा नहीं करना चाहते। दान- पुण्य के नाम पर एक कौड़ी खर्च करना ब्रज उठाने के समान भारी मालूम पड़ता है।
ऐसे लोगों की साधना प्राय: निष्फल रहती है। कई बार तो वह पहले की अपेक्षा भी घाटे में रहते हैं। वे सोचने लगते हैं कि हमारे सब काम गायत्री करके रख जायेगी, इसलिए हमें अब कुछ करना नहीं है। वे अपने रहे बचे प्रयत्न को भी छोड़ बैठते हैं। आलस्य, अकर्मण्यता और परावलम्बन की मनोवृत्ति में केवल कार्य नाश ही हो सकता है। ऐसी दशा में उनका लँगड़ा-लूला विश्वास भी नष्टï हो जाता है और भविष्य में आत्म-विद्या के दुरुपयोग से कोई लाभ उठाने का उनमें उत्साह भी नहीं रहता।
उपरोक्त प्रकार की छछोरी बुद्धि के साथ, बाल-क्रीड़ा के साथ साधना करना निष्प्रयोजन है। कभी-कभी तत्काल आश्चर्यजनक परिणाम भी होते अवश्य है; पर सदा ही वैसी आशा नहीं की जा सकती। वेदमाता की आराधना एक प्रकार का आध्यात्मिक कायाकल्प करना है। जिन्हें कायाकल्प कराने की विद्या मालूम है, वे जानते हैं कि इस महा अभियान को करते समय कितने धैर्य और संयम का पालन करना होता है, तब कहीं शरीर की जीर्णता दूर होकर नवीनता प्राप्त होती है। गायत्री आराधना का आध्यात्मिक कायाकल्प और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
उसके लाभ केवल शरीर तक ही सीमित नहीं हैं, वरन्ï शरीर, मस्तिष्क, चित्त, स्वभाव, दृष्टिïकोण सभी का नवनिर्माण होता है और स्वास्थ्य, मनोबल एवं सांसारिक सुख-सौभाग्यों में वृद्धि होती है। ऐसे असाधारण महत्त्व के अभियान में समुचित श्रद्धा, सावधानी, रुचि व तत्परता रखनी पड़े, तो इसे कोई बड़ी बात न समझना चाहिए। केवल शरीर को पहलवानी के योग्य बनाने में काफी समय तक धैर्यपूर्वक व्यायाम करते रहना पड़ता है। दण्ड, बैठक, कुश्ती आदि के कष्टï साध्य कर्मकाण्ड करने होते हैं।
यह सत्य है कि कई बार जादू की तरह गायत्री उपासना का लाभ होता है। आई हुई विपत्ति अति शीघ्र दूर हो जाती है और अभीष्ट मनोरथ आश्चर्यजनक रीति से पूरे हो जाते हैं। पर कई बार ऐसा भी होता है कि अकाट्य प्रारब्ध भोग न टल सके और अभीष्टï मनोरथ पूरा न हो। गीता में भगवान्ï श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्मयोग का ही उपदेश दिया है। साधना कभी निष्फल नहीं जाती। उसका तो परिणाम मिलेगा ही; पर हम अल्पज्ञ होने के कारण अपना प्रारब्ध और वास्तविक हित नहीं समझते।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Newer Post | Home | Older Post |