प्राकृतिक रंगों के प्रचलन से बढ़ रहा है होली का उल्लास
बुरहानपुर। मध्य प्रदेश : होली तन, मन में उमंग और उल्लास बढ़ाने वाला पर्व है, लेकिन बढ़ते रासायनिक रंगों के चलन, अश्लीलता व फूहड़ता ने लोगों को रंगों के उत्सव का आनन्द लेने से ही वंचित कर दिया था। गायत्री परिवार बुरहानपुर ने विगत 5 वर्षों से प्राकृतिक रंगों के साथ होली खेलने की परंपरा आरंभ की, जिसके कारण रंगोत्सव में भागीदारी का लोगों का उत्साह निरंतर बढ़ रहा है।
गायत्री परिवार बुरहानपुर के कार्यकर्त्ताओं ने बताया कि इस वर्ष लगभग 2000 से अधिक संख्या में लोग एकत्रित हुए। सबने एक-दूसरे को रंग लगाने के साथ लोकगीतों पर नृत्य का भरपूर आनन्द लिया। अब अन्य शहरों में भी प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परम्परा फैलती जा रही है। युवा वर्ग बड़े उत्साह के साथ इसे अपना रहा है।
प्राकृतिक रंग और उनके स्रोत
पीला (हल्दी), लाल (चुकंदर), हल्का पीला (मुलतानी मिट्टी), नारंगी (टेसू के फूल), भगवा (अष्टगंध), हरा (नीम रस), सफेद (यज्ञ भस्म और गोपी चंदन), कपूर काचरी, अम्बा हल्दी, मोसंबी, संतरे और निम्बू के छिलकों का पावडर, गुलाब जल मिलाकर ताजे एवं सुगन्धित रंग बनाकर त्वचा की सुंदरता को निखारने वाले उबटन से भी होली खेली जाती है। यह त्वचा के ऊपर जमे मैल और शुष्क त्वचा को निखारकर उसे मुलायम और सुगंधित बनाती है।