आज का सद्चिंतन
आज का सचिंतन
मित्रो ! शिक्षा को लोक व्यवहार का, उपार्जन प्रक्रिया का सुविधा संग्रह का एक प्रयोजन भर माना जा सकता है। इतने भर से किसी का जीवन स्तर ऊँचा नहीं उठ सकता है। सज्जनता-शालीनता की विद्या के अभाव में मनुष्य का भावनात्मक स्तर पशुवत ही बनकर रह जाता है।
विद्या की एक सांगोपांग रूपरेखा बनानी पड़ेगी और उसे जन-जन के मन-मन में प्रविष्ट करने की इतनी बड़ी इतनी व्यापक योजना बनानी पड़ेगी, जो
स्कूली शिक्षा की कमी पूरी करने में समर्थ हो सके। इसके लिए विचारशील भाव संपन्नों का समय, श्रम मनोयोग एवं पुरुषार्थ प्रायः उतनी ही मात्रा में
नियोजित करना पड़ेगा, जितना कि सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों शरीर साधन जुटाने के लिए शिक्षा के साथ, बड़ी तैयारियों का समन्वय करते हुए व्यापक स्तर पर क्रियान्वित करना इन्हीं दिनों अभीष्ट ...
आज का सद्चिंतन 26 July 2018
मित्रो ! भगवान ने अपने बाद चेतना का दूसरा स्तर मनुष्य का ही बनाया है। मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेंद्रियाँ इतनी समर्थ हैं कि
उसे सृष्टि का सर्व समर्थ प्राणी कहा जाना उचित है। यह उसके काय- कलेवर की विशेषता है। सचेतन अदृश्य सत्ता का, यदि लेखा-जोखा लिया जाए, तो प्रतीत होगा कि न केवल भौतिक जगत पर, वरन् अदृश्य क्षेत्र के रूप में जाने वाले सूक्ष्म जगत पर भी उसका असाधारण अधिकार है। दृश्य और अदृश्य दोनों ही लोकों पर उसका अधिकार होने से मानवी सत्ता को सुर दुर्लभ भी कहा जाता है। किसी ने सच ही कहा है कि मनुष्य भटका हुआ देवता है। उसके अंतराल में दैवी शक्तियों का तत्वतः समग्र निवास है, पर दृश्य जगत के जाल जंजाल में स्वयं को भूल जाने के कारण ठोकरें खाता और जहाँ-जहाँ भटकता है।
गड़बड़ी वहाँ से प्रारंभ...
आज का सद्चिंतन 29 July 2018
मित्रो ! जब समुद्र मथा गया था तो उसमें से सबसे पहले विष, फिर वारुणी, उसके बाद अन्य रत्न निकले थे। युग निर्माण के लिए, मूर्छित समाज को जाग्रत करने के लिए भी गायत्री संस्था द्वारा वह अमृत निकालने के लिए समुद्रमंथन का कार्य हो रहा है, जिसे पीने से यहाँ के निवासी इस देवभूमि को अमरों, भूसुरों की निवास-स्थली प्रत्यक्ष रूप में दिखा सकें।
यह समुद्र-मंथन ठीक प्रकार से चल रहा है या नहीं, इसकी प्रारम्भिक परीक्षा यही है कि इसमें कितना विष निकलता है, यह देखा जाय, जब सड़ी हुई कीचड़ की नाली साफ की जाती है तो उसमें से नाक फाड़ने वाली बदबू उड़ती है। दुर्बुद्धि की, संभावनाओं की, स्वार्थपरता और पाखण्ड की कीचड़, बहुत दिनों से हमारे धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में पड़ी सड़ रही है, उसे साफ किया जा रहा है तो व...
आज का सद्चिंतन 30 July 2018
मित्रो ! "आज तो ब्राह्मणबीज ही इस धरती पर से समाप्त हो गया है। मेरे बेटो ! तुम्हें फिर से ब्राह्मणत्व को जगाना और उसकी गरिमा का बखान कर स्वयं जीवन में उसे उतारकर जन-जन को उसे अपनाने को प्रेरित करना होगा। यदि ब्राह्मण जाग गया तो सतयुग सुनिश्चित रूप से आकर रहेगा।"
"यह जो कलियुग दिखाई देता है, मानसिक गिरावट से आया है। मनुष्य की अधिक संग्रह करने की, संचय की वृत्ति ने ही वह स्थिति पैदा की है जिससे ब्राह्मणत्व समाप्त हो रहा है। प्रत्येक के अंदर का वह पशु जाग उठा है, जो उसे मानसिक विकृति की ओर ले जा रहा है। आवश्यकता से अधिक संग्रह मन में विक्षोभ, परिवार में कलह तथा समाज में विग्रह पैदा करता है। कलियुग मनोविकारों का युग है एवं ये मनोविकार तभी मिटेंगे जब ब्राह्मणत्व जागेगा।"
"ब्राह्मण सूर्य की तरह ते...
आज का सद्चिंतन 31 July 2018
अपने निर्वाह के लिए लोकसेवी को कम से कम आवश्यकतायें रखने का दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए। समझा जाता है कि हम जितनी शान शौकत और मौज मजे के विलासिता पूर्ण साधनों का उपयोग करेंगे उतना ही बड़प्पन मिलेगा। वस्तुतः यह सोचना गलत है। इसके लिए अपने बड़प्पन की परिभाषा बदलनी चाहिए। बड़प्पन धन- सम्पति या शान-शौकत से नहीं, उत्कृष्ट और आदर्श व्यक्तित्व तथा महान बनाने वाले सद्गुणों से मिलता है। प्राचीन काल में लोकसेवी परम्परा के अन्तर्गत जितने भी सन्त, ऋषि,
विचारक, मनीषी और महापुरुष हुए उन्होंने यही दृष्टिकोण अपनाया। ऋषियों के रहन-सहन की सादगी इतनी सुविख्यात है कि उस सम्बन्ध में कुछ भी कहना पुनरुक्ति ही कहलायेगा। चाणक्य-जिन्होंने भारत को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने के लिए चन्द्रगुप्त का मार्गदर्शन किय...