जीवन के मूल्यवान क्षणों का सद्व्यय (भाग ३)

जो व्यक्ति अपनी आय का प्रारम्भिक बजट बना कर खर्च करता है, वह प्रत्येक रुपये, इकन्नी और पैसे से अधिकतम लाभ निकालता है। इसी प्रकार दैनिक कार्यक्रम बनाकर समय को व्यय करने वाला जीवन के प्रत्येक क्षण का अधिकतम लाभ उठाता है और आत्म-विकास करता है।
प्रत्येक क्षण जो आप व्यय करते हैं, अन्तिम रूप से व्यय कर डालते हैं, वह वापस लौटकर आने वाला नहीं है। जब मृत्यु समीप आती है तो हमें जीवन के दो चार क्षणों का ही बड़ा मूल्य लगता है। यदि हम विवेकपूर्ण रीति से अपने उत्तरदायित्व और जिम्मेदारियों को धीरे-धीरे समाप्त करते चलें तो हम जीवन में इतना कार्य कर सकते हैं कि हमें उस पर गर्व हो।
क्या आप ‘जौन जेक रूसो’ नामक विद्वान के जीवन के सदुपयोग की कहानी जानते हैं। वह कहार का कार्य करते-करते फालतू समय के परिश्रम से विद्वान बना था। दिन भर रोटी के लिए परिश्रम करता और रात्रि में पढ़ता था। एक व्यक्ति ने उससे पूछा- ‘आपने किस स्कूल से शिक्षा पायी है?’ रूसो ने कहा-’मैंने विपत्ति की पाठशाला में सब कुछ सीखा है।’ यह कहार दिन-भर सख्त मेहनत की रोटी कमाता और बचे हुए समय में पढ़कर धुरन्धर शास्त्रकार हुआ है। हम भी यह कर सकते हैं।
समय के अपव्यय के पश्चात् भाव, विचार, वासना, उत्तेजना आदि अनेक रूपों से जीवन का अपव्यय किया करते हैं। दुर्भाव न केवल दूसरों के लिये हानिकर है वरन् ‘स्वयं’ हमें बड़ी हानि पहुँचा जाते हैं। एक बार का किया हुआ क्रोध दूसरों पर तो बाद में प्रभाव डालता है, पहले तो हमारे रक्त को विषैला और स्वभाव को चिड़चिड़ा बना डालता है पाचन-क्रिया को शिथिल कर डालता है, बहुत देर तक सम्पूर्ण शरीर थरथराता रहता है। यदि हम वासना को नियंत्रण में रखकर वीर्य संचय करें, तो जीवन में जीवाणुओं, पौरुष, बल की, बुद्धि की, वृद्धि हो सकती है। व्यर्थ जो वीर्य नष्ट किया जाता है, वह जीवन का अपव्यय ही है।
अखण्ड ज्योति, फरवरी १९५७ पृष्ठ ५
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