उपासना और आत्म-निरीक्षण

मित्रो ! उपासना का तात्पर्य अपने आपको महानता के आदर्श के अधिकाधिक निकट लाना तथा आग और ईधन की तरह तादात्म्य स्थापित कर लेना है। साधना का तात्पर्य है संचित कुसंस्कारों और कषाय-कल्मषों की छाती पर चढ़ बैठना, उन्हें बेरहमी के साथ कुचल-मसल कर रख देना। इंद्रिय संयम, समय संयम, अर्थ संयम और विचार संयम की चतुर्विध तपश्चर्या के सहारे ही जीवन की वरिष्ठïता उभरती है और उस आत्मबल का उदय होता है जिसे संसार का सबसे बड़ा सामर्थ्य स्त्रोत कहा जाता है। आराधना वह है जिसमें 'आत्मवत् सर्वभूतेषु की, 'वसुधैव कुटुंबकम् की अनुभूति होती है। उपासना, साधना और आराधना का अवलंबन करके ही कोई वास्तविक आत्मिक प्रगति कर सका है। आत्मिक प्रगति का वास्तविक मार्ग एक ही है समूची जीवन- चर्या में उत्कृष्टता का समावेश। जिसने यह समझ लिए उसने अध्यात्म का सारतत्व समझ लिया।
मित्रो ! आत्म-निरीक्षण करके गुण, कर्म, स्वभाव में भरे हुये दोष दुर्गुणों को ढूंढा जा सकता है और उन्हें निरस्त करने का प्रयास आरम्भ किया जा सकता है। लोहे से लोहा कटता है और विचारों से विचारों की काट की जाती है। हेय आदतें, इच्छायें और मान्यतायें जो अपने मन: क्षेत्र में जड़ जमाये बैठी हों, उन्हें आत्म- निरीक्षण की टार्च जलाकर बारीकी से तलाश करना चाहिए और निश्चय करना चाहिए कि उनका उन्मूलन करके ही रहेंगे। प्रत्येक निकृष्टï विचार के विरोधी विचारों की एक सुसज्जित सेना खड़ी करनी चाहिए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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