आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 Nov 2023
बुराई, भ्रष्टाचार, अपराधों के सम्बन्ध में हमारी शिकायतें दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। प्रतिदिन एक बँधे हुए ढर्रे की तरह हम नित्य ही इस सम्बन्ध में टीका टिप्पणी करते हैं, तरह-तरह की आलोचनायें करते हैं। कभी सरकार को दोष देते हैं तो कभी प्रशासन व्यवस्था की छीछालेदार करते हैं। कभी किन्हीं व्यक्तियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। इस तरह की शिकायतें एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्च-स्थिति के लोगों तक से भी सुनी जा सकती हैं। इनमें बहुत कुछ ठीक भी हो सकती हैं। लेकिन कभी हमने यह भी सोचा है कि इनके लिए हम स्वयं कितने जिम्मेदार हैं।
बुराइयों को मिटाने के लिए हमारा सर्व-प्रथम कर्तव्य है-हम दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करें, जिसे हम स्वयं अपने लिए न चाहते हों। भगवान मनु ने इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुए अपनी प्रजा को बताया था- “आत्मनः प्रतिकूलिति परेषाँ न समाचरेत्” जिस बात को तुम अपने लिए नहीं चाहते, उसे दूसरों के लिए मत करो।
स्मरण रहे, सहज मौन ही हमारे ज्ञान की कसौटी है। “जानने वाला बोलता नहीं और बोलने वाला जानता नहीं।” इस कहावत के अनुसार जब हम सूक्ष्म रहस्यों को जान लेते हैं तो हमारी वाणी बन्द हो जाती है। ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका में सहज मौन स्वयमेव पैदा हो जाता है। स्थिर जल बड़ा गहरा होता है। उसी तरह मौन मनुष्य के ज्ञान की गम्भीरता का चिन्ह है। वाचालता पांडित्य की कसौटी नहीं है, वरन् गहन गम्भीर मौन ही मनुष्य के पण्डित, ज्ञानी होने का प्रमाण है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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