क्षणिक अस्तित्व पर इतना अभिमान

अमावस की रात में दीप ने देखा-न चाँद और न कोई ग्रह नक्षत्र न कोई तारा-केवल वह एक अकेला संसार को प्रकाश दे रहा है। अपने इस महत्व को देख कर उसे अभिमान हो गया।
संसार को सम्बोधित करता हुआ अहंकारपूर्वक बोला-मेरी महिमा देखो, मेरी ज्योति-किरणों की पूजा करो, मेरी दया-दयालुता का गुणगान करो मैं तुम सबको राह दिखाता हूँ, प्रकाश देता हूँ इस प्रगाढ़ अन्धकार में तुम सब मेरी कृपा से ही देख पर रहे हो। मुझे मस्तक नवाओ, प्रणाम करो।
दीप के इस अहंकारोक्ति का उत्तर और किसी ने तो दिया नहीं, पर जुगनू से न रहा गया बोला-ऐ दीप! क्षणिक अधिकार पाकर इतना अभिमान, एक रात के अस्तित्व पर यह अहंकार केवल इस रात ठहरे रहो। प्रभात में तुमसे मिलूँगा तब तुम अपनी वास्तविकता से अवगत हो चुके होगे!
अखण्ड ज्योति अप्रैल 1967 पृष्ठ 22
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