Magazine - Year 1941 - Version 2
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वेदों का अमर सन्देश
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सहृदयं साँमनस्यम्। अविद्वेषं कृणो मिवः।
अथर्व ॥ 30। 3 1
ईश्वर की आज्ञा है कि सब लोग आपस में दया भाव रखें। मन में उत्तम विचार किया करें और आपस में प्रेम का बर्ताव करें। एक दूसरे से कभी द्वेष न करें।
देवा भागं यथा पूर्वें संजानाना उपासते॥
ऋग 10।19।12
श्रेष्ठ और सदाचारी पुरुष जिस प्रकार कर्त्तव्य करते हैं। उसी प्रकार हर एक मनुष्य को अपना कर्त्तव्य उत्तम रीति से करना चाहिए।
अभयं मित्रादभयममित्रादयं ज्ञातादभयं परोक्षात् ॥ अथर्व 19।15। 6
मनुष्यों को उचित है कि वे अपने मन को बलवान बनाकर किसी से भी न डरते हुए, सदा निर्भयता पूर्वक अच्छे कर्त्तव्य करते रहें।
उत्तिष्ठत सं नह्यध्वं। मित्रा देव जनायूयम्
अथर्व 11।11।12
सब लोगों को उचित है कि वे परस्पर प्रेम करें और ज्ञानी बनकर अपनी उन्नति के लिए यत्र करें।
हृत्प्रतिष्ठं यदिजिरं जविष्ठं। तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु। यजु॰ 34। 6
मनुष्यों का मन हृदय में रहता है। वह मन अत्यन्त बलवान और वेगवान है। उस मनकों सदा उत्तम विचारों का मनन करने में ही लगाना चाहिए।
भद्रं ना अपि वातय। मनो दक्षमुत ऋतुम्॥
ऋ॰ 10।25।1
मनुष्यों को उचित है कि वे सब के कल्याण के लिए सब को बलवान बनाने के लिए और उत्तम पुरुषार्थों प्राप्त करने के लिए अपने मन को उत्साहित करें।