Magazine - Year 1941 - Version 2
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Language: HINDI
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समालोचना
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प्रेम-दर्शन-मीमाँसा- लेखक-आचार्य इन्द्र प्रकाशक-श्री विष्णु-ग्रन्थ माला, वृन्दावन । प्राप्ति स्थान-गायत्री काक पुस्तक भण्डार, मथुरा, दो भागों में प्रकाशित पुस्तक का मूल्य 2) रु ॰ है।
इस ग्रन्थ में अनेकों प्रेम-सम्बन्धी आवश्यक विषय हैं (1) दृश्य-जगत, (2) दृश्य-जगत् में सत्य वस्तु क्या है? (3) मानवता की विशेषता (4) मानव जीवन में क्या है? (5) मनुष्य क्या चाहता है? (6) मनुष्य की जिज्ञासा और उसका यत्न, (7) इन्द्रियों की पवित्रता एवं ध्यान जन्य शक्तियों का प्रकाश (8) अन्तःकरण परिचय (9) हृदय क्या है? (10) हृदयाकर्षण, (11) प्रेम विग्रह, प्रभु कैसा है? (12) प्रेम-प्राप्ति के उपाय, (13) प्रेम-व्यथा, (14) प्रेम का स्वरूप, (15)प्रेम का अधिकारी, (16) हृदय में गति क्यों होती है? (17) क्या आकर्षण को ही पारस्परिक प्रेम कहते हैं, (18) हृदय और प्रेम, (19) प्रेम और मोह, (20)प्रेम और आसक्ति के भाव, (21) प्रेम और काम, (22) प्रेम की अवस्थायें, (23) प्रेम क्या चाहता है? (24) प्रेम का बाह्य रूप और प्रेम का अन्तरंग रूप, प्रेम और अंगरेजी कवितायें, प्रेम और उर्दू कवितायें, प्रेम और ब्रज भाषा की कवितायें, प्रेम और संस्कृत की कवितायें, प्रेम और आँख के आँसू इत्यादि विषय हैं, जो सरल सरस भाषा में, साहित्यिक और दार्शनिक पद्धति से लिखे गये हैं। पुस्तक पठनीय और सर्वथा संग्रहणीय है । सुन्दर चिकने कागज पर छपी है, 700 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य 2) अधिक नहीं हैं।
जीवन सखा- सम्पादक श्री बालेश्वप्रसाद सिंह तथा श्री विट्ठलदास मोदी, 87 हिम्मत गंज, इलाहाबाद, वार्षिक मूल्य 3) ‘ जीवन सखा’ गत 5 वर्ष से हिन्दी संसार के स्वास्थ्य साहित्य की बड़ी महत्वपूर्ण पूर्ति कर रहा है। प्राकृतिक विधियों से आरोग्य लाभ प्राप्त करने की इसमें बड़ी खोज पूर्ण चर्चा रहती है। जनवरी मासिक 120 पृष्ठ सुन्दर विशेषांक हमारे सामने है, इसका मूल्य 1) और संपादक हैं, श्री जानकी शरण वर्मा। विशेषाँक के सभी लेख अधिकारी लेखकों के लेख हुए हैं। छपाई सफाई बहुत सुन्दर हैं। संचालकों को प्रयत्न स्तुत्य है।
सचित्र योग साधन- लेखक योगराज मुनीश्वर पं॰ शिव कुमार शास्त्री प्रकाशक-ज्ञान शक्ति, गोरखपुर। पृष्ठ संख्या 312 मू॰ 2॥), इस पुस्तक में राजयोग के यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि का वर्णन है। प्रत्येक विषय पर स्वतन्त्र दृष्टिकोण से प्रकाश डाला गया है और इस कठिन विषय को सुलभ रूप से उपस्थित किया गया है। पुस्तक उपयोगी है।
वेदान्त सिद्धान्त - लेखक और प्रकाशक उपरोक्त। पृष्ठ संख्या 252 मू॰ 2) आत्मा और ईश्वर एक ही वस्तु है। किन्तु लोग भ्रमवश ईश्वर को अलग मानते हैं, फल स्वरूप वे बारहसिंगा की भाँति कस्तूरी के लिये चारों और दौड़ते रहते हैं। इस पुस्तक में भली प्रकार समझाया गया है कि ईश्वर आत्मा से भिन्न नहीं। वह बाहर नहीं, आपके अन्दर है। पुस्तक विद्वत्ता और खोज के साथ लिखी गई है।
सत्य सुन्दर और स्वतन्त्र विचार- लेखक और प्रकाशक उपरोक्त। पृष्ठ 304 मू 2॥) ईश्वर और धर्म के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की भ्रमपूर्ण धारणायें जनता में फैली हुई हैं। इसलिये ईश्वर और धर्म के नाम पर बड़े-बड़े अनर्थ होते रहते हैं। पुस्तक में ईश्वर और धर्म के सम्बन्ध में स्वतन्त्र विचार प्रकट किये गये है, जिससे सत्य बात पर प्रकाश पड़ता है।