Magazine - Year 1941 - Version 2
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Language: HINDI
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शेख सादी की सूक्तियाँ
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(गुलिस्तां से)
लोगों ने बिच्छू से पूछा तुम जाड़े में बाहर क्यों नहीं निकलते? उसने उत्तर दिया-गर्मी में ही मेरी कौन बड़ी इज्जत होती है कि जाड़े में भी निकलूँ।
किसी ने एक बुद्धिमान मनुष्य से पूछा भाग्यवान कौन है और अभागा कौन है? उसने उत्तर दिया- ‘भाग्यवान वह है जिसने बोया और खाया’ अभागा वह ‘है जो मर गया और छोड़ गया।’
कोई बुद्धिमान किसी मूर्ख से विवाद नहीं करता कड़ी बात सुन कर भी बुद्धिमान अपनी सज्जनता से उसके हृदय को अपने वश में कर लेता है। किसी दुष्ट ने एक भले मानस को गाली दी उससे गर्मी से जवाब दिया तुमने मुझे बुरा कहा है मैं उससे भी ज्यादा बुरा हूँ।
एक बुद्धिमान जब विद्वानों की सभा में जाता तो सदा चुप रहता । किसी ने पूछा आप सभी में बोलते क्यों नहीं? उसने उत्तर दिया - मैं डरता हूँ कि लोग मुझ से वह बात न पूछ बैठें जो मैं नहीं जानता । तुमने सुना है, कि एक सूफी अपने जूतों के तले में कील ठोक रहा था, एक सरदार ने उसकी बाँह पकड़ कर कहा -चल मेरे जानवर के नाल भी बाँध दे।
एक हाथ पैर कटे हुए आदमी ने एक कान खजूरे को मार डाला । एक साधु उधर से आ निकला और बोला सुभान-अल्लाह। इस जीव के हजार पैर थे। पर जब इसका काल आ गया तो एक लँगड़े लूले से भी बचकर भाग न सका।
एक बार मेरे पास जूते न थे, मैं दुखी होकर कोफडडडडडडड की मस्जिद में आया । वहाँ मैंने एक मनुष्य को देखा कि उसके पैर ही न थे। मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया और नंगे पैरों पर ही संतोष किया।
एक साधू को किसी चीज की आवश्यकता थी। एक भला आदमी उसे एक धनी आदमी के घर ले गया। साधू ने देखा कि वह होंठ लटकाये, भौंहें चढ़ाये और अत्यन्त कठोर रूप धारण किए बैठा है। साधू एक शब्द भी बिना कहे लौट पड़ा, किसी ने पूछा-’तुमने क्या कहा और क्या किया?’ उसने जवाब दिया । मैंने उसकी कृपा को उसके रूप पर ही न्यौछावर कर दिया।
एक पीर ने अपने मुरीद से कहा, मैं लोगों से बहुत परेशान हूँ। वह तो मेरे दर्शन करने के लिये आते हैं। किन्तु मेरा समय नष्ट होता है । मुरीद ने जवाब दिया कि इन लोगों में से जो गरीब हैं उन्हें कुछ कर्ज दे दो और जो अमीर हैं, उनसे माँगने शुरू कर दो। बस फिर कोई तुम्हें परेशान न करेगा।
एक बादशाह किसी महात्मा से मिला और पूछा कि हमारी याद भी आती है? महात्मा ने कहा- हाँ आती है, पर उस वक्त जब कि खुदा को भूल जाता हूँ।
एक अन्यायी ने किसी सूफी से पूछा कि ‘मेरे लिये सब से अच्छी पूजा कौन सी है?’ उसने जवाब दिया कि तुम्हारे लिये दोपहर का सोना सब से अच्छी पूजा है, ताकि थोड़ी देर के लिये तो लोग तुम्हारे जुल्म से बचे रहें।