Magazine - Year 1948 - Version 2
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Language: HINDI
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सर्वश्रेष्ठ और सर्व सुलभ साधना
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(श्री रमेशचन्द्र जी दुबे हटा)
मैं अपनी कुटी में गायत्री की साधना किया करता था, तब मुझे बड़े दिव्य अनुभव होते थे। एक रात्रि को मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि दक्षिण दिशा से कोई सितार पर गाता हुआ मेरी कुटी के निकट आया और कुछ देर ठहर कर उत्तर दिशा की ओर चला गया। उठकर देखना चाहा तो अपने को असमर्थ पाया। शरीर ऐसा जड़ हो गया था जैसे लोहे की जंजीरों से जकड़ा हुआ हो। जब वह संगीत काफी दूर चला गया तब उठ सका वह उस समय प्रत्यक्ष दर्शन के लिए कुछ न था। उन दिनों मुझे और भी तरह-2 के अनुभव होते थे जैसे-अपने चारों ओर सिद्ध महात्मा घिरे दिखाई देना, उनके आदेश मिलना, शरीर पर बड़े सर्प चढ़ते उतरते दिखाई देना, भयंकर हिंसक पशुओं का आक्रमण होना। सुन्दरी स्त्रियों का दूषित हावभाव करते हुए मेरे निकट फिरना। इस प्रकार के विघ्नों से विचलित न होकर मैंने अपनी साधना की मंजिल पूरी कर ली।
साधना पूरी हो जाने पर अनेक प्रयोगों में मुझे आश्चर्यजनक सफलता दिखाई दी है। विषाक्त कीटाणुओं, रोग दर्द उन्माद आदि से पीड़ित व्यक्तियों को अच्छा कर देना, पथ भ्रष्टों में सुबुद्धि उत्पन्न होना, वस्तुओं का पारदर्शक दीखना आदि। मेरे लिए गायत्री की साधना सर्वश्रेष्ठ और सर्व सुलभ सिद्ध हुई है।
पुरश्चरण से जीवनोत्थान
दो वर्ष पूर्व मैंने गायत्री पुरश्चरण किया था। गायत्री मंत्र जपने में मुझे बड़ा आनन्द आता था चित भी उसमें मेरा खूब ही लगता। मैं इस कार्य को भार रूप नहीं समझता था। किन्तु मैंने गिनती से एक लक्ष सत्ताईस सहस्र जाप कर लिये थे।
गायत्री मंत्र पूर्ण रटा करता था। एक महीने के समय में मेरा चित बड़ा प्रसन्न रहा और अनेक रंग एवं प्रकाश नजर आये। जिस प्रकार अग्नि में स्फुल्लिंग उठते हैं वैसे नेत्रों के सन्मुख अनेक स्फुल्लिंग उठा करते थे और अब भी उठते हैं।
मैं यह नहीं लिखना चाहता कि गायत्री के साधन से मैंने क्या प्राप्त किया ? किन्तु मैं यह जरूर कहूँगा कि गायत्री पुरश्चरण मेरे जीवन के उत्थान का कारण अवश्य हुआ है।
स्त्री की रोग-मुक्ति और पुत्र-प्राप्ति
मेरी स्त्री संग्रहणी रोग से दो वर्ष से पीड़ित थी। अनेक औषधियों का प्रयोग किया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। दैवयोग से अखंडज्योति के किसी अंक में गायत्री की साधना का लेख छपा था उसी के अनुकूल मैंने सवा लक्ष गायत्री मंत्र का अनुष्ठान पन्द्रह दिन में पूरा करने का संकल्प किया और पंद्रहवें दिन गायत्री मंत्र से हवन कराके ब्राह्मण भोजन कराया। अब डेढ़ वर्ष हो चुका है मेरी स्त्री पूर्ण स्वस्थ रहती है। ईश्वर की कृपा से रोग के बाद एक बालक पैदा हुआ है और मैं अगर गायत्री मंत्र से किसी को झाड़ दूँ तो वह अच्छा हो जाता है।
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