Magazine - Year 1948 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
गायत्री के संबंध में महापुरुषों के अभिमत।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
भारत वर्ष के प्रसिद्ध महापुरुषों ने वेदमाता गायत्री के संबंध में समय पर अपनी श्रेष्ठतम सद्भावनाएं प्रकट की हैं। उन श्रद्धाँजलियों को नीचे संकलित किया जा रहा है। पाठक इन अभिमतों में प्रकट करने वालों की महत्ता और इस विचार करने वालों की महानता का ध्यान रखते हुए विचार करें कि आधुनिक काल के महापुरुष भी वेदमाता गायत्री के प्रति उतनी ही उच्च श्रद्धा रखते हैं जितने कि प्राचीन काल में ऋषि मुनि करते थे। सचमुच गायत्री ऐसी ही महाशक्ति है जिसको हमें भी श्रद्धापूर्वक हृदयंगम करना चाहिए।
महात्मा गान्धी
“गायत्री के मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने के लिए इसका प्रयोग, प्रार्थना की परिभाषा -आत्मा एक उन्नत अवस्था से दूसरी उन्नत अवस्था को पहुँचने के लिए आतुर हो रही है-सर्वथा चरितार्थ करता है। यदि इसी गायत्री मंत्र का जप अनवरत चित्त और शान्त हृदय से राष्ट्रीय आपत्ति काल में किया जाता है तो उन संकटों को मिटाने के लिए प्रभाव और पराक्रम दिखलाता है।”
“जिन लोगों का यह विश्वास है कि ‘मंदिरों में जाकर गायत्री का जप करना, नमाज या प्रेयर करना मूर्खता या विडम्बना है’ वे भ्रम में फंसे हुए हैं। मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि ऐसी मान्यता से बड़ी भूल मनुष्य से ओर कोई नहीं हो सकती।”
-यंग इंडिया
“मैं मानता हूँ कि संस्कृत भाषा की बुरी तरह उपेक्षा की जा रही है। मैं उस पीढ़ी का आदमी हूँ जिसका प्राचीन भाषाओं की पढ़ाई में विश्वास था। जहाँ तक भारतवर्ष का सम्बन्ध है, यह बात किसी और प्राचीन भाषा की अपेक्षा संस्कृत पर अधिक लागू होती है। हर एक राष्ट्रवादी को संस्कृत पढ़नी चाहिए।
इसी भाषा में तो हमारे पूर्वजों के विचार और लेख हैं। यदि हिन्दू बच्चों को अपने धर्म की भावनायें हृदयंगम करानी हैं तो एक भी लड़के या लड़की को संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किये बिना नहीं रहना चाहिए। देखिए, गायत्री का अनुवाद हो ही नहीं सकता। उसका एक खास अर्थ है। मूल मंत्र में जो संगीत है वह अनुवाद में कहाँ से आयेगा।”
-हरिजन सेवक
“वर्तमान चिकित्सा प्रणाली धर्म से सर्वथा शून्य है जो व्यक्ति उचित रूप से प्रति दिन नमाज पढ़ता है या गायत्री का जाप करता है, वह कभी रोग ग्रसित नहीं हो सकता एक पवित्र आत्मा ही पवित्र शरीर बना सकता है। मेरा दृढ़ निश्चय है कि धार्मिक जीवन के नियम आत्मा और शरीर दोनों की यथार्थ रूप से रक्षा कर सकते हैं।”
तिब्विया कालेज में भाषण
श्री जगद्गुरु शंकराचार्य जी
“गायत्री की महिमा का वर्णन करना मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर है। बुद्धि का शुद्ध होना इतना बड़ा कार्य है जिसकी समता संसार के और किसी काम से नहीं हो सकती। आभा प्राप्ति करने की दिव्य दृष्टि जिस शुद्ध बुद्धि से प्राप्त होती है उसकी प्रेरणा गायत्री द्वारा होती है। गायत्री आदि मंत्र है। उसका अवतार दुरितों को नष्ट करने और ऋत के अभिवर्धन के लिए हुआ है।”
महर्षि रमण
“योग विद्या के अंतर्गत मंत्र विद्या बड़ी प्रबल है। मंत्रों की शक्ति से बड़ी अद्भुत सफलताएं मिलती हैं। मंत्र शक्ति से जादू जैसे चमत्कारों से भारतीय जनता भली प्रकार परिचित है। गायत्री मंत्र ऐसा मंत्र है जिससे आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के लाभ मिलते हैं।”
महामना मालवीयजी
“महामना मालवीय जी गायत्री मंत्र के बड़े भक्त थे। हिन्दू विश्व विद्यालय के लिए प्रयत्न करने से पूर्व उन्होंने प्रयाग में त्रिवेणी तट पर एक करोड़ गायत्री कर पुरश्चरण करवाया था। उस तपस्या का फल आज सबके सामने प्रयत्न है। मालवीयजी नित्य एक हजार गायत्री का जप नियमित रूप से करते थे। गायत्री पुरश्चरण के अवसर पर उन्होंने अपने प्रवचन में कहा था।”
“ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमें दिये हैं उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री है। गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है। ईश्वर का प्रकाश आत्मा में आता है। इस प्रकाश में असंख्यों आत्माओं को भव बन्धन से त्राण मिला है। गायत्री में ईश्वर परायणता के भाव उत्पन्न करने की शक्ति है, साथ ही वह भौतिक अभावों को दूर रह करती। गायत्री की उपासना करना ब्राह्मणों के लिए तो अत्यन्त आवश्यक है। जो ब्राह्मण गायत्री जप नहीं करता वह अपने धर्म कर्तव्य को छोड़ने का अपराधी होता है।”
लोकमान्य तिलक
“भारतीय जनता आज अन्धकार में भटक रही है। उसका कल्याण केवल अन्न धन वृद्धि से ही न हो जायगा। आर्थिक दशा सुधर जाने पर भी मनुष्य सुखी नहीं हो सकता उसे आज ऐसे प्रकाश की आवश्यकता है जो उसकी आत्मा को प्रकाशित कर दे। जिस बहुमुखी दासता के बन्धनों में आज प्रजा जकड़ी हुई है उनका अन्त राजनैतिक संघर्ष करने मात्र से नहीं हो जायगा। उसके लिए तो आत्मा के अन्दर प्रकाश उत्पन्न होना चाहिए जिससे सत् और असत् का विवेक हो। कुमार्ग को छोड़ कर श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले। गायत्री मंत्र में वह भावना विद्यमान है। उसमें प्रकाश की कामना की गई है। अन्तः करण में प्रज्वलित ज्ञान ज्योति ही हमारा पथ प्रदर्शन कर सकती है और उसी के पीछे अनुगमन करने से आज की विपन्न दशा से छुटकारा पाया जा सकता है।”
श्री स्वामी शिवानन्दजी महाराज
“प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में उठकर, नित्य कर्म से निवृत्त होकर गायत्री का जप करना चाहिए। ब्राह्ममुहूर्त में गायत्री का जप करने से चित्त शुद्ध होता है और हृदय में निर्मलता आती है। शरीर निरोग रहता है और स्वभाव में नम्रता आती है। बुद्धि सूक्ष्म होने से दूर दर्शिता बढ़ती है और स्मरण शक्ति का विकास होता है। कठिन प्रसंगों में गायत्री द्वारा दैवी सहायता मिलती है। उसके द्वारा आत्म दर्शन हो सकता है।”
स्वामी रामतीर्थ
“राम को प्राप्त करना सब से बड़ा काम है। गायत्री अभिप्राय बुद्धि को काम रुचि से हटाकर राम रुचि में लगा देना है। जिसकी बुद्धि पवित्र होगी वही राम को प्राप्त करने का काम कर सकेगा। गायत्री पुकारती है कि-बुद्धि में इतनी पवित्रता होनी चाहिए कि वह काम को राम से बढ़ कर न समझे।”
श्री रामकृष्ण परमहंस
“मैं लोगों से कहता हूँ कि लम्बे लम्बे साधन करने की उतनी जरूरत नहीं है। इस छोटी सी गायत्री की साधना को करके देखो। गायत्री का जप करने से बड़ी बड़ी सिद्धियाँ मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है पर इसकी शक्ति बड़ी भारी है।”
योगी अरविन्द घोष
“पांडिचेरी के योगिराज श्री अरविन्द घोष ने कई जगह गायत्री जप करने का निर्देश किया है। उन्होंने बताया है कि गायत्री में ऐसी शक्ति समायी हुई है जो महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है। उन्होंने कइयों को साधना के तौर पर गायत्री का जप बताया है।”
श्री स्वामी विवेकानंद जी
“परमात्मा से क्या माँगना चाहिए? क्या वह वस्तुएं माँगें जिन्हें अपने बाहुबल से आसानी के साथ कमाया जा सकता? नहीं, ऐसा उचित न होगा। बुहारी की आवश्यकता पड़ने पर उसे दो चार पैसे में बाजार से खरीद लिया जाता है। उसे कौन बुद्धिमान कहेगा जो बुहारी माँगने राजदरबार में जावे। राजा ऐसे माँगने पर हँसेगा और उसकी इस तुच्छ बुद्धि पर हँसेगा। राजा से वही वस्तु माँगी जानी चाहिए जो उसके गौरव के अनुकूल हो। परमात्मा से माँगने योग्य वस्तु सद्बुद्धि है। जिस पर परमात्मा प्रसन्न होते हैं उसे सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। सद्बुद्धि से सत् मार्ग पर प्रगति होती है और सत्कर्म से सब प्रकार के सुख मिलते हैं। जो सत् की ओर बढ़ रहा है उसको किसी प्रकार के सुख की कमी नहीं रहती। गायत्री सद्बुद्धि का मंत्र है। इसलिए उसे मन्त्रों का मुकुटमणि कहा गया है।”
श्री स्वामी करपात्री जी
“जो गायत्री के अधिकारी हैं उन्हें नित्य नियमित रूप से गायत्री का जप करना चाहिए। द्विजों के लिए गायत्री का जप अत्यन्त आवश्यक धर्मकृत्य है।”
महात्मा उड़िया बाबा
“मैं जब आठ वर्ष का था तभी मुझे गायत्री मन्त्र की दीक्षा दी गई थी। मैंने श्रद्धापूर्वक उसकी उपासना की और ईश्वर की ओर मेरी प्रवृत्ति बढ़ती गई।
मनुष्य शरीर में बुद्धि का प्रमुख स्थान है। गायत्री बुद्धि को पवित्र करती है। जब बुद्धि पवित्र हो गई तो सब कुछ पवित्र हो गया समझना चाहिए। जिसकी बुद्धि पवित्र है उसके लिए संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं है। गायत्री ब्राह्मणों का तो प्रधान आधार है।”
स्व0 काली कमली वाले बाबा विश्रद्धानंद
“गायत्री ने बहुतों को सुमार्ग पर लगाया है। कुमार्ग गामी पुरुष की पहले तो गायत्री की ओर रुचि ही नहीं होती। यदि ईश्वर कृपा से हो जाए तो वह कुमार्ग गामी नहीं रहता। गायत्री जिसके हृदय में बास करती है उसका मन ईश्वर की ओर जाता है। विषय विकारों की व्यर्थता उसे भली प्रकार अनुभव होने लगती है।
कई महात्मा गायत्री का जप करके परम सिद्ध हुए हैं। परमात्मा की शक्ति ही गायत्री है। जो गायत्री के निकट जाता है वह शुद्ध होकर रहता है। आत्मकल्याण के लिए मन की शुद्धि आवश्यक है। मन की शुद्धि के लिए गायत्री मन्त्र अदभुत है। ईश्वर प्राप्ति के लिए गायत्री जप को प्रथम सीढ़ी समझना चाहिए”
प्रसिद्ध आर्यसमाजी महात्मा सर्वदानंदजी।
“गायत्री मन्त्र द्वारा प्रभु का पूजन सदा से आर्यों की रीति रही है। ऋषि दयानंद ने भी उसी शैली का अनुसरण करके सन्ध्या का विधान, यथाशक्ति सार्थक व्याख्यान तथा वेदों के स्वाध्याय में प्रयत्न करना बतलाया है। ऐसा करने से अन्तःकरण की शुद्धि तथा निर्मल बुद्धि होकर मनुष्य जीवन अपने और दूसरों के लिए हितकर हो जाता है। जितनी भी इस शुभ कर्म में श्रद्धा और विश्वास हो, उतना ही अविद्या आदि क्लेशों का ह्रास होता है। फिर विद्या के प्रकाश में उपासना, प्रभु के आस पास हो जाता है।
जो जिज्ञासु अर्थ पूर्वक इस मन्त्र का सप्रेम नियमपूर्वक उच्चारण करता है उसके लिए गायत्री संसार सागर संस्तरण की तरणि (नाव) और आत्म प्रसाद प्राप्ति की सरणि (सड़क) है।”
टी0 सुब्बाराव
“सविता नारायण की दैवी प्रकृति को गायत्री कहते हैं। वह आदि शक्ति होने के कारण इसको गायत्री या आद्यशक्ति कहते हैं। गीता में आदित्य वर्ण कहकर इन्हीं का वर्णन किया गया है। ब्राह्ममुहूर्त में सन्ध्योपासन द्वारा गायत्री की उपासना करना योग का सबसे प्रथम अंग है जो राजयोग में परमावश्यक है।”
----***----